मंगलवार, 25 अगस्त 2009
TRING
Love is a missed call
Wife is a received call
Mother is an important call
But
Friendship is a "FEVICOL
गुरुवार, 20 अगस्त 2009
कहानी में आम आदमी
समीक्षा
कहानी में आम आदमी
समाज,मनुष्य और साहित्य एक-दूसरे के पूरक हैं. यह बेजोड़ रिश्ता युगों से चला आ रहा है.मनुष्य के बिना सृष्टि की कल्पना करना भी असंभव है. कारपसज्यूरिस के अनुसार ’मनुष्य बुद्धिशून्य पशु तथा जड़ वस्तु से भिन्न जीवन,बुद्धि,इच्छा-शक्ति तथा स्वतंत्र अस्तित्व से संपन्न प्राणी,शरीर तथा मस्तिष्क से युक्त जीवन,मानव जाती का प्रतिनिधि,शरीर तथा आत्मा से बना मनुष्य,पुरुष,स्त्रि,बच्चा,नैतिक आदर्शों का अभिकर्ता,आत्म चैतन्य प्राणी है.’ भारतीय जीवन दर्शन के अनुसार मनुष्य जीवन के क्लेशों को दूर करने के उपाय के साथ-साथ मुक्ति का मार्ग खोजता है.
मानव संघर्ष का केंद्र है. पूँजीवादी एवं सामंतशाही सामाजिक रूढ़ियों से संघर्ष करता है और साथ ही सामजिक परिस्थितियों के अनुरूप अपने अस्तित्व को कायम करने के लिऐ अहर्निश जूझता रहता है. समाज में रहकर ही मनुष्य जीवन संघर्षों के समाधान खोजता है. जीवन के अत्यंत तीखे अनुभव उसे राक्षस बनाते हैं. बदलते युगीन परिवेश के साथ-साथ आम आदमी के जीवन में उतार-चढा़व एवं शोषण का सिलसिला व्यापक हो गया है. द्वितीय विश्वयुद्ध के परवर्तीकाल में आधुनिकता ने मनुष्य समाज को एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया,लेकिन इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि मानवीय मूल्यों का ह्रास भी इसी आधुनिकता की देन है. निराशा,भय,संत्रास,ऊब,कुंठा,अवसाद तथा मृत्युबोध चारों ओर पनपने लगे हैं और आदमी अपनी आदमीयता खो रहा है. मूल्यों का ह्रास,पारिवारिक विघटन,सांस्कृतिक अवमूल्यन,मानसिक तनाव,सांप्रदायिक विद्वेष तथा आर्थिक तंगी के कारण आदमी बुरी तरह से तहस-नहस हो चुका है. इस मशीनी युग में मनुष्य भी यांत्रिक पुर्जा बन गया है. रोटी, कपडा़ और मकान जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ती हेतु उसे समज के ठेकेदारों से लड़ना पड़ रहा है तथा आजीविका की तलाश में इधर-उधर भटकना पड़ रहा है.
विपरीत परिस्थितियों से जूझनेवाला आम आदमी साहित्यकार के लिए चुनौती है. आम आदमी की स्थिति स्वतंत्रता पूर्व भी दयनीय थी और आज भी दयनीय एवं सोचनीय है. उसका जीवन संघर्ष बहुआयामी है. एक ओर उसे जहाँ पहले शोषक वर्ग अर्थात जमींदार,सामंत तथा महाजन से जूझना पड़ता था,अब वह वर्ग व्यवस्था के विविध स्तरों पर विद्यमान अधिकारियों और कर्मचारियों के रूप में बदल गया है,तो दूसरी ओर उसे गरीबी,सामाजिक रूढ़ियों,परंपराओं तथा व्यक्तिगत अभावों को झेलना पड़ता है. आम आदमी ने सहृदय रचनाकारों का ध्यान आकर्षित किया है,अतः साहित्य में उसके विभिन्न रूपों का अंकन प्राप्त होना स्वाभाविक है.
आम आदमी की संकलपना को अभिव्यक्त करने के लिए नई कहानी से लेकर समांतर कहानी तक अनेकानेक आंदोलनों ने अपने अपने प्रयास किए. आम आदमी की संवेदना को मुखरित करना ही समांतर आंदोलन के प्रवर्तक कमलेश्वर के कथासाहित्य का प्रमुख उद्देश्य है. यह आम आदमी निम्न मध्यवर्ग और निम्नवर्ग का सदस्य है जिसे भरपेट खाने तक के लिए भटकना पड़ता है. बेरोजगारी,गरीबी,महँगाई जैसी अनेकानेक समस्याओं के कारण मानवीय रिश्ते खोखले हो गए हैं. कमलेश्वर के अनुसार संघर्ष को मरते दम तक खींचनेवाला अल्पजन के समक्ष खडा़ आदमी वस्तुतः ’आम आदमी’ है. उनकी कहनियों में आम आदमी के जीवन की जटिलता एवं संघर्ष का यथार्थ चित्र उपस्थित है. अतः इस मानवीय संवेदना को रेखांकित करने के लिए डा.मिथलेश सागर (१९६१) ने प्रो.ऋषभदेव शर्मा के निर्देशन में ’कमलेश्वर की कहानियों में आम आदमी की संकलपना’ विषय पर शोध कार्य किया है और इसी विषय को विस्तार करते हुए प्रो.टी.मोहनसिंह के निर्देशन में उसमानिया विश्वविद्यालय से ’अंतिम दशक की कहानियों में आम आदमी की संकलपना’ शीर्षक से पीएच.डी. की. निश्य ही ये दोनों शोधकार्य अत्यंत महत्वपूर्ण हैं तथा कहानी और आम आदमी के रिश्ते को समझने के लिए अत्यंत उपयोगी भी. इसलिए इनका पुस्तकाकार प्रकाशन स्वागतेय है.
’कमलेश्वर की कहानियों में आम आदमी की संकलपना’(२००८) नामक अपनी शोध कृति में लेखिका ने कमलेश्वर के ’सारिका’ के संपादकियों के आलोक में उनके कहानी संग्रह ’मेरी प्रिय कहानियाँ’ में संकलित रचनाओं में चित्रित आम आदमी की संकल्पना का विशलेशण प्रस्तुत किया है. लेखिका ने यह स्पष्ट किया है कि "कमलेश्वर के पात्र हमारे आस पास के परिवेश से ही आए हैं और उसी की पीड़ा,हताशा,क्रोध और तिरस्कार को पीता है,जिस नृशंस और अमानुषिक यथार्थ के आक्रमणों को झेलता है और उनका सामना करता है,उन सबको ये कहानियाँ सामने लाती हैं. आम आदमी के बाहरी और भीतरी व्यक्तित्व को कमलेश्वर की कहानियों के प्रमुख पात्रों के व्यक्तित्व में रूपायित होते देखा जा सकता है." यह निर्विवाद है कि कमलेश्वर ने कहानी को काल्पनिक मनोजगत की भूलभुलैया से निकालकर यथार्थ के ठोस धरातल पर पुनःस्थापित किया है तथा उनकी कथाभूमी का आधार निम्न,निम्नमध्य और मध्यवर्गीय मनुष्य की असुविधापूर्ण जिंदगी है जिसे यहाँ ’आम आदमी’ कहा गया है. इस कृति में लेखिका ने कमलेश्वर के व्यक्तित्व और कृतित्व के संबंध और उनके साहित्य में चित्रित आम आदमी की विस्तृत चर्चा करते हुए कथाभाषा का विश्लेषण भी प्रस्तुत किया है.
लेखिका ने ’अंतिम दशक की हिंदी कहानियों में आम आदमी की संकल्पना’ (२००९) नामक अपनी शोधपरक कृति में सिद्धांत चर्चा के अंतर्गत भारतीय समाज की वर्ग एवं वर्ण व्यवस्था,आदिवासी जातियों व घुमंतु जातियों की चर्चा करते हुए आम आदमी की संकल्पना पर प्रकाश डाला है. ’स्वातंत्र्यपूर्व एवं स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कहानी में चित्रित आम आदमी का स्वरूप एवं समस्याएँ ’ शीर्षक खंड़ के अंतर्गत रोजी रोटी,बेरोजगारी,आतंकवाद,शोषण,भ्रष्टाचार,पारिवारिक विघटन,सवर्ण-दलित संघर्ष जैसी अनेकानेक सामाजिक,राजनैतिक,आर्थिक एवं सांस्कृतिक समस्याओं का विवेचन करते हुए आम आदमी की वेदना का मूल्यांकन किया गया है.
लेखिका डा.मिथलेश सागर ने यह प्रतिपादित किया है कि "रोज़मर्रा के जीवन की आपा-धापी और समस्याओं के चलते अंतिम दशक का आदमी परेशान तो था परंतु अपने मनोबल के कारण प्रतिकूल परिस्थितियों का डटकर सामना करने की हिम्मत उसमें पर्याप्त मात्रा में आ चुकी थी. समस्या को अपने पर हावी न होने देकर,वह उसके समाधान को ढूँढ़ने में प्रयासरथ था. अपने अस्तित्व को बेदाग रखने और उसके भीतर निहित स्वाभिमान को बचाने के लिए वह सीधा विरोध करता है." वास्तव में आम आदमी से जुडा़व ने ही कहानी को इस काल की केंद्रीय विधा का रूप प्रदान किया है.
इन पुस्तकों में से प्रथम में ’कमलेश्वर की कथाभाषा का विश्लेषण ’ सबसे अधिक ध्यान खींचनेवाला है तथा उसकी अलग से चर्चा आवश्यक है. भाषावैज्ञानिक द्वय ’क्रिस्टल और डैवी ’ के प्रारूप के आधार पर कमलेश्वर की कथाभाषा का पाठ विश्लेषण अनूठा बन पड़ा है. इस प्रारूप के अनुसार कथाभाषा विश्लेषण के आठ आयाम हैं-वैयक्तिकता,बोली,काल/समय,प्रोक्ति(वाकलेखन के स्तर पर-विवरणात्मक सूचना,अनौपचारिक वार्तालाप,भाषिक-भाषेतर मिश्रण के स्तर,एकालाप,वार्तालाप),वार्तासीमा,पद,प्रकारता तथा अतिवैयक्तिकता. लेखिका ने बखूबी दर्शाया है कि कमलेश्वर अपनी भाषा क चयन आम आदमी की भाषा से करते हैं. उनकी भाषा की विशेषता यही है कि वह किताबी न होकर भारतीत जनमानस की अनुभूती उत्पन्न करने में सक्षम है. उपर्युक्त सभी आयामों का सटीक प्रयोग कमलेश्वर की कहानियों में प्राप्त होता है. उनकी कथाभाषा में ऐसी जीवंतता है कि वह भारत के आम आदमी के जीवन को व्यक्त करनेवाली भाषा बन गई है. लेखिका ने यह स्पष्ट किया है कि लेखक ने अपने व्यक्तित्व के अनुरूप जहाँ अपने प्रिय शब्दों का बार-बार प्रयोग किया है,वहीं पात्रों की वैयक्तिकता को निरूपित करने के लिए तदनुरूप शब्द चयन किया है. बोली तथा अन्य भाषाओं के कोड़ मिश्रण द्वारा कथाकार ने क्षेत्रीय वातावरण की सृष्टि तथा प्रयोक्ता के परिवेश की जानकारी देने का कार्य संपन्न किया है. ’पल्ला खोंसना’,’मुआ’,’होए मेमिया तोरी आंखिया बड़ा जुलुम ढायों री’,’थैंक्यू’ जैसे अनेक प्रयोग इस दृष्टि से उल्लेखनीय है. घटनाक्रम को संकेतित करने के लिए भूतकालिक सूचनाओं के साथ-साथ भविष्यकालिक क्रियाओं तथा निर्वैयक्तिक वाक्य रचना का प्रयोग किया गया है. प्रोक्ति के स्तर पर कमलेश्वर के पाठ निर्माण के कई रूप प्राप्त होते हैं. पात्रों की मानसिक उथल-पुथल को व्यक्त करने के लिए संवाद और स्वागत प्रोक्ति का मिश्रित प्रयोग पाया जाता है और साथ ही विवरण और एकालाप तथा संवाद और लेखकीय उपस्थिति जैसी मिश्रित प्रोक्तियाँ अनेक स्थलों पर प्राप्त होती हैं. संदर्भानुसार विशिष्ट शब्द चयन तथा सामाजिक संबंधों और रिश्ते-नातों के अनुरूप औपचारिकता तथा अनौपचारिकता का संतुलन भी प्राप्त होता है. अतिवैयक्तिकता के अंतर्गत समाज में पारंपरिक और सांस्कृतिक पक्षों का निदर्शन द्रष्टव्य है. कमलेश्वर की कहानियों में लोक कथा,अंग्रेज़ी शब्दावली का अंतर्निवेश,नैतिक वर्जनाओं,लोक विश्वासों,लोक कलाओं और कर्मकांड विषयक विशिष्ट भाषिक प्रयोग द्वारा कथाभाषा के इस आयाम को साधा गया है. यही कारण है कि कहानियों में आम आदमी की संकलपना को प्रतिफलित करने में कमलेश्वर की कथाभाषा पूर्णतः सिद्ध होती है.
इस प्रकार कहा जा सकता है कि डा.मिथलेश सागर ने अपने इन दो शोध ग्रंथों के द्वारा एक ओर जहाँ हिंदी कहानी और आम आदमी के परिवर्तनशील रिश्तों की पड़ताल की हैं वहीं कमलेश्वर की कथाभाषा के अध्ययन के बहाने कहानियों के पाठ विश्लेषण का एक प्रभावशाली नमूना भी पेश किया है. आशा है हिंदी जगत इनके इस प्रयास का स्वागत करेगा.
* १.कमलेश्वर की कहानियों में आम आदमी की संकल्पना/
डा.मिथलेश सागर/
२००८(प्रथम संस्करण)/
हिंदी अकादमी,हैदराबाद,प्लाट नं.१०,रोड नं.६,समतापुरी कालोनी,न्यू नागोल के पास,हैदराबाद-५०० ०३५/
पृष्ठ-११९/
मूल्य-रु.१५०
O
२. अंतिम दशक की हिंदी कहानियों में आम आदमी की संकल्पना/
डा.मिथलेश सागर/
२००९(प्रथम संस्करण)/
हिंदी अकादमी,हैदराबाद,प्लाट नं.१०,रोड नं.६,समतापुरी कालोनी,न्यू नागोल के पास,हैदराबाद-५०० ०३५/
पृष्ठ-२८०/
मूल्य-रु.४००
गुरुवार, 6 अगस्त 2009
कमजोरी
HYDERABAD
Dusty Stomach - DHOOLPET
Wife's Stomach - BEGUMPET
Four Pillars - CHARMINAR
King's Market - SULTAN BAZAR
Wife's Market - BEGUM BAZAR
Wooden Bridge - LAKDI KA PUL
Children City - BALANAGAR
Brave City - BAHADURPURA
Cashew Steps - JEEDIMETLA
Bangle Market - CHUDI BAZAR
Mosquito Home - DOMALGUDA
Length n Breadth - BADI CHOWDI
Sandal Market - CHAPPAL BAZAR
Sky Bank - AASMAN GHAT
Milk Bowl - DOODH BOWLI
Hidden Building - GOSHA MAHAL
रविवार, 2 अगस्त 2009
BODY
Bread Basket - Stomach
Ticker - Heart
Peeper - Eyes
Mane - Hair
Stoma - Mouth
Adam's Apple - Larynx/voice box
Choppers - Jaws
Wheels - Legs
Capout - Head
Naress - Ears
Otic - Ear