मंगलवार, 22 मई 2012

सुमित्रानंदन पंत की जयंती पर ...


आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद के तत्वावधान में 19 मई 2012 को महाकवि पं.सुमित्रानंदन पंत के जन्मदिन की पूर्व संध्या पर विशेष व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया. मुख्य वक्ता थे डॉ.मोहम्मद रियाजुल अंसारी. मुख्य अतिथि का आसन कवि एवं समीक्षक प्रो.ऋषभ देव शर्मा ने ग्रहण किया. अध्यक्षता केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रो.रवि रंजन ने की. संयोजन नीरजा ने. 

पीएच.डी. शोधार्थी अप्पल नायुडु ने कुछ चित्र भेजे हैं . यहाँ सहेज रही हूँ. 

रिपोर्ट पिछली प्रविष्टि में जा चुकी है. 

मुख्य वक्ता  डॉ . अंसारी 
अध्यक्ष  प्रो रवि रंजन 

शनिवार, 19 मई 2012

‘अहे! निष्ठुर परिवर्तन’



आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद 
 द्वारा काफी समय से  मासिक  व्याख्यानमाला आयोजित की जाती है. हर महीने किसी साहित्यकार या किसी साहित्यिक प्रवृत्ति पर एक मुख्य वक्ता का व्याख्यान होता है. कुछ सूक्ष्म सी पर काम की परिचर्चा होती है; साथ ही एक मुख्य अतिथि भी बोलते हैं. अध्यक्ष का वक्तव्य तो होता ही है. अर्थात २ से ३ घंटे तक का एक नियमित मासिक आयोजन जिसमें १०-१५  से लेकर ५०-६० तक जागरूक साहित्यिक जन श्रोता के रूप में आते हैं प्रायः.

20 मई सुमित्रानंदन पंत का जन्मदिवस है. इसलिए इस बार यह व्याख्यानमाला  पंत जयंती की पूर्व संध्या पर आज यानि 19 मई को रखा गया. ‘सुमित्रानंदन पंत का जीवन-दर्शन’ पर केंद्रित इस व्याख्यानमाला की अध्यक्षता हिंदी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष प्रो.रवि रंजन ने की तथा  उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष प्रो.ऋषभ देव शर्मा मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे. इस व्याख्यानमाला के मुख्य वक्ता लिटल फ्लावर कालेज के हिंदी प्राध्यापक डॉ.मोहम्मद रियाजुल अंसारी थे. आज के  व्याख्यानमाला  में मेरी भी गिलहरी जैसी भागीदारी रही – संचालक के रूप में. इस बहाने मुझे सुमित्रानंदन पंत के काव्य के निकट जाने का अवसर मिला.

विद्वानों को सुनने के बाद मुझे तो यही लगा कि सुमित्रानंदन पंत की कविताओं को बार बार पढ़ने से नए आयाम खुलते जाएँगेउनकी कविताओं से उनकी वैचारिकता  को खोज निकालना वास्तव में चुनौतीपूर्ण कार्य है. आज जितने विमर्शों का नाम हम सुन रहें हैं उन सभी के  दर्शन पंत जी की कविता में स्वतः ही हो जाएँगे. स्त्री संबंधी दृष्टिकोण हो या दलित संबंधी, या फिर पर्यावरण संबंधी दृष्टिकोण. उनकी कविताएं  संबोधनों के  व्यंजनापूर्ण प्रयोगों से भरी पड़ी हैं. सुमित्रानंदन पंत पर काफी शोध कार्य हुए हैं पर मुझे आज यह लगा कि ‘पंत के काव्य में स्त्री संबंधी दृष्टिकोण’ ‘पंत के काव्य में संबोधन का संस्कार’ आदि विषयों पर पाठ विमर्श की दृष्टि से भी शोध कार्य किया जा सकता है.   

अब मुझे भी लोभ हो रहा है कि क्यों न मैं अपने  विचार आप लोगों से शेयर करूँ?


‘अहे! निष्ठुर परिवर्तन’


हिंदी के युग प्रवर्तक कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्मदिन कल (20 मई, 1900) को है – छायावाद और प्रगतिवाद दोनों के प्रवर्तकों में उन्हें गिना जाता है. दरअसल उन्हें छायावाद का या प्रगतिवाद का या और किसी वाद-विवाद-प्रवाद का कवि कहना एक विराट प्रतिभा को किसी छोटे से फोटो फ्रेम में कैद करने की ज़िद जैसा है. वे सतत गतिशीलता और संपूर्णता के कवि हैं (दूधनाथ सिंह). पंत जी उन कवियों में रहे हैं जिन्होंने बीसवीं शताब्दी में तेजी से बदलती हुई काव्यानुभूति की बनावट को पहचाना और तत्परता के साथ उसके लिए नई भाषा की खोज में जुट गए. उनकी सारी की सारी काव्य यात्रा सौंदर्यचेतना की विकास यात्रा है – जीवन के स्तर पर भी, कविता के स्तर पर भी, भाषा के स्तर पर भी. संप्रेषण उनके कवि की मूलभूत चिंता है, बेचैनी है. इस बेचैनी का वे कई तरह समाधान करते हैं. एक बहुत सुंदर समाधान है कविताओं की संबोध्यता. उनकी अनेक प्रसिद्ध कविताओं में संबोधन की मुद्रा अनायास ही नहीं आ गई है बल्कि पाठक से अंतरंग संबंध बनाने के लिए उन्होंने इस तकनीक को चुना है.

कहीं तो पंत जी प्रथम रश्मि के आने का उत्सव मनाती बाल विहंगिनी को संबोधित करते हैं – रंगिणि! बाल विहंगिनि! तरुवासिनि! अंतर्यामिनि! नभचारिणि! कहीं प्रिय को उलाहना देते हैं – निठुर! यह भी कैसा अभिमान? सावन आता है तो वे बादल को संबोधित करने लगते हैं – गरज, गगन के गान! मधुरिमा के मधुमास! अपनी प्रसिद्ध कविता ‘मोह’ में पंत ने आकर्षण के आलंबन को संबोधन बना दिया है – ‘बाले! तेरे बाल जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन?’ छाया से तो वे सीधे बातचीत करते ही हैं – ‘कौन, कौन तुम परिहत वसना!’ वह उनके लिए कभी अलि! कभी सजनि! कभी सखि! बनती है.

इतने संबोधन पंत जी की कविता में भरे पड़े हैं कि लगता है जैसे सारी सृष्टि को वे एक एक कर संबोधित कर रहे हों – और सृष्टिकार को भी – चित्रकार! ब्रह्मन्! करतार! विश्वसृज! विधि! दयामय!

‘परिवर्तन’ कविता की संप्रेषणीयता बड़ी सीमा तक उसके संबोधनों पर आधारित है – अहे निष्ठुर परिवर्तन! अहे वासुकि सहस्र फन! अहे दुर्जेय विश्वजित! अहे निरंकुश! हाय री दुर्बल भ्रान्ति! अरे, देखो इस पार! हाय, जग के करतार! विश्वमय हे परिवर्तन! अहे अनिर्वचनीय! अहे अनंत हृत्कंप! इतना ही नहीं इस कविता का अंतिम छंद तो मानो इन तमाम संबोधनों का चरमोत्कर्ष है –

“तुम्हारा ही अशेष व्यापार,
हमारा भ्रम मिथ्याहंकार;
तुम्हीं में निराकार साकार
मृत्यु जीवन सब एकाकार!
अहे! महांबुधि! लहरों-से शत लोक, चराचर
क्रीड़ा करते सतत तुम्हारे स्फीत वक्ष पर;
तुंग तरंगों-से शत-युग, शत-शत कल्पांतर
उगल, महोदर में विलीन करते तुम सत्वर;
शत- सहस्र रवि-शशि, असंख्य गृह, उपग्रह, उडुगण
जलते-बुझते हैं स्फुलिंग-से तुममें तत्क्षण
अचिर विश्व में अखिल, दिशावधि, कर्म वचन, मन
तुम्हीं चिरंतन
अहे विवर्तहीन विवर्तन!”

हम अपनी बात को आगे बढ़ाएंगे पंत जी की एक अत्यंत मधुर कविता के संबोधनों के साथ जिसका शीर्षक है ‘भावी पत्नी के प्रति’ – यह भावी पत्नी कभी मिलकर भी मिली नहीं पर कवि के लिए ‘प्रिये! प्राणों की प्राण!’ है. प्राण पंत जी का अत्यंत प्रिय संबोधन है – ‘प्राण! रहने दो गृह-काज.’

अभिप्राय यह है कि पंत जी की कविताओं में संबोधनों की एक पूरी दुनिया समाई हुई है. सुंदर और विरूप दोनों को  वे संबोधित करते हैं. एक उदाहरण देखते चलें –

“द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र,
हे स्रस्त ध्वस्त, हे शुष्क शीर्ण!
हिम – ताप – पीत, मधुवात – भीत,
तुम वीतराग, जड़, पुराचीन!!
निष्प्राण विगत युग! मृत विहंग!
जग नीड़ शब्द औ’ श्वासहीन,
च्युत, अस्तव्यस्त पंखों-से तुम
झर-झर अनंत में हो विलीन!’ *

गुरुवार, 17 मई 2012

THEORY OF MARRIAGE ANNIVERSARY

ONE YEAR OF MARRIAGE     -   COTTON ANNIVERSARY
02 YEARS                                  -   PAPER
03 YEARS                                  -   LEATHER 
04 YEARS                                  -   FLOWER / FRUIT
05 YEARS                                  -   WOOD
06 YEARS                                  -   IRON / SUGARCANDY
07 YEARS                                  -   WOOL
08 YEARS                                  -   BRONZE / ELECTRICAL APPLIANCES
09 YEARS                                  -   COPPER / POTTERY 
10 YEARS                                  -   TIN
11 YEARS                                  -   STEEL 
12 YEARS                                  -   SILK / FINE LINES 
13 YEARS                                  -   LACE
14 YEARS                                  -   IVORY
15 YEARS                                  -   CRYSTAL
20 YEARS                                  -   CHINA CLAY 
25 YEARS                                  -   SILVER
30 YEARS                                  -   PEARL
35 YEARS                                  -   CORAL
40 YEARS                                  -   RUBY
45 YEARS                                  -   SAPPHIRE 
50 YEARS                                  -   GOLDEN
55 YEARS                                  -   EMERALD
60 65 YEARS                             -   DIAMOND
75 YEARS                                  -   PLATINUM 




80 +                                            -   EVERLASTING........................  

सोमवार, 14 मई 2012

GOLDY

Hey Kids....


One more new friend joined us today.


Guess who he is ??


Ha Ha...  have a look 




Yes he is our new friend.


None other than GOLDFISH.


Goldfish is a fresh water fish. Each and every one mostly like to domesticate a goldfish in their aquarium. Children are mostly fond of the goldfish. It has very prominent eyes. Its nature is very is soft. It likes to mingle with other fishes.  It moves very gently.


Have a look....


Hey I am all alone. Looking for a friend...


Hey kids our friend is feeling lonely. So let us try to introduce some more friends. So shall we go for 

FRIEND'S HUNT ??????

गुरुवार, 10 मई 2012

BLACK MOLLY

There are different types of houses. Wooden houses, brick houses, snow houses (igloo), concrete houses, thatched houses, sky scrapers, villas, bungalows, cottages, farm house, duplex houses and so on...

Today we are going to meet inhabitants who live in a house made of glass floor and glass walls. 

Hey kids...

I am talking about your favourite aquarium.

Here it is ...... Have a look ....



 Three fishes are playing hide and seek.

Hey look there is a black fish among them.

Come I will introduce her ....

She is Black Molly. She lives in rivers. Her little ones are also black and lively. As soon as they are born they set off to look for food. 

Male black mollies will be mildly aggressive. They will chase the other fishes. 

मंगलवार, 1 मई 2012

CHICK AND THE DUCKLING


One day I saw two eggs



Both are of different color. I was wondering. 

All of a sudden a duckling hatched out of one egg and said

 “HEY I AM HERE”






Then within seconds a chick hatched out of the egg and said

 “ME TOO”



The duckling started to walk and said

“I AM GOING FOR A WALK”








Then the chick said 

“ ME TOO”



Duckling got angry and said

 “I AM GOING FOR A SWIM”





Chick said

 “ME TOO”

and jumped in to water

 and lay motionless.




MORAL :

DON’T FOLLOW OTHERS BLINDLY