हिंदी के लोकप्रिय रंगकर्मी, निर्देशक, कवि और अभिनेता, ‘आगरा बाज़ार ’ और ‘चरनदास चोर ’ जैसे सुप्रसिद्ध नाटकों के लेखक हबीब तनवीर का निधन 08 जून, 2009 को 85 वर्ष की आयु में हुआ.
हबीब तनवीर का जन्म 01 सितंबर, 1923 को रायपुर (छत्तीसगढ़) में हुआ था. उनका मूल नाम हबीब अहमद खान था. ‘तनवीर ’ नाम से वे कविता लिखते थे. उनके द्वारा रचित नाटकों में ‘आगरा बाज़ार’, ‘शतरंज के मोहरे’, ‘मिट्टी की घड़ी’ ‘चरनदास का चोर’, ‘पोंगा पंडित’, ‘कामडे का अपना बसंत ऋतु का सपना’, ‘राजरक्त’ आदी प्रमुख हैं.
तनवीर को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1969), पद्मश्री (1983), कालिदास सम्मान (1990),संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप(1996), तथा पद्मभूषण (2002), से सम्मानित किया गया था. उनके सुप्रसिद्ध नाटक ‘चरनदास चोर’ के लिए एडिनबर्ग अंतरराष्ट्रीय नाटक महोत्सव (1982) में `Fringe Firsts Award' भी प्राप्त हुआ.
तनवीर पारदर्शी तथा खुले विचारोंवाले व्यक्ति थे. उनके अनुसार अंचल ही सही अर्थों में रंगमंच है. अतः उन्होंने लोक कलाकारों को प्रोत्साहित किया और अपने थियेटर में उन्हें स्थान दिया. वे अपने नाटकों में लोक संगीत का प्रयोग करते थे, समाज में व्याप्त शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार आदि के खिलाफ आवाज उठाते थे तथा छत्तीसगढ़ी लोकशैली ‘पंडवाणी’ के साथ साथ पारंपरिक रंगमंचीय तकनीक का भी प्रयोग करते थे. उनके नाटकों में छत्तीसगढ़ी लोक परंपरा एवं छत्तीसगढ़ी नाच का प्रभाव देखा जा सकता है.
सफदर हाशमी के अनुरोध पर तनवीर ने 1980 को जन नाट्य मंच (जनम) के लिए ‘मोती राम का सत्याग्रह’ नामक नाटक का निर्देशन किया. नाटक निर्देशन के साथ साथ उन्होंने फिल्मों में भी अभिनय किया. रिचडर्स एटिनबरो की फिल्म ‘गांधी ’ (1982) में अभिनय किया. भोपाल गैस त्रासदी पर चित्रित फिल्म ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ में भी उन्होंने अभिनय किया, पर यह फिल्म अभी तक रिलीज़ नहीं हुई.
रवींद्रनाथ टैगोर के उपन्यास ‘राजर्षि ’ तथा नाटक ‘विसर्जन ’ के आधार पर उन्होंने 2006 में ‘राजरक्त ’ नामक नाटक लिखा और उसका निर्देशन भी किया.
निध्न से पूर्व वे उर्दू में लिखित अपनी आत्मकथा ‘मटमैली चदरिया ’ को अंतिम रूप दे रहे थे.
जून माह में हमने वरिष्ठ रंगकर्मी हबीब तनवीर के साथ साथ हिंदी काव्यमंच की तीन विभूतियों - ओमप्रकाश ‘आदित्य’, लाड़सिंह गूजर और नीरज पुरी को खो दिया.
इन सब दिवंगत विभूतियों को ‘स्रवंति ’ परिवार की विनम्र श्रद्धांजलि !
[जुलाई2009, संपादकीय:स्रवंति]
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