शुक्रवार, 2 मार्च 2012

क्षणिकाएं


       चीख
अपने अस्तित्व को बचाने के लिए

चीख रहे हैं.

नहीं जानते

इतिहास के पन्नों में खो जाएँगे

या जबरदस्ती चुप कर दिए जाएँगे.



        स्त्री  




डैश, कॉमा, कोलन, सेमीकोलन,

प्रश्न चिह्न, रिक्त स्थान

क्या यही है तेरी जिंदगी ?







         मिट्टी


कुम्हार के हाथों कुटी - पिटी

चाक पर चढ़ी

घूम घूम नाची.

हथेलियों और उँगलियों के सहारे ढली

नित नए रूप में.

        कभी खिलौना बनी

                  कभी प्याली

                            कभी मूरत

                                        कभी दीपक



तनाव



         न

                      व


तनाव .... तनाव .... तनाव ....

घर में तनाव

बाहर तनाव

मन में कसाव

दिल में दबाव

चहुँ ओर तनाव.

1 टिप्पणी:

संपत देवी मुरारका ने कहा…

आ. नीरजा जी,
जीवन का यथार्थ , बधाई