हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ में मान्यता दिलवाने तथा रोजमर्रा जीवन में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने का मुद्दा वैसे तो हर बार विश्व हिंदी सम्मेलन में अवश्य उठता है और आंकड़े यह भी बताते हैं कि हिंदी विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली दूसरी या तीसरी भाषा है. फिर भी आज तक संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी को समुचित स्थान प्राप्त नहीं हुआ है जबकि अंग्रेजी, फ्रांसीसी, स्पैनिश, रूसी, चीनी और अरबी को संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद की कामकाज की भाषाएँ होने का गौरव प्राप्त है. एक ओर तो हिंदी भाषा को अखिल भारतीय स्वरूप प्रदान करने ही नहीं बल्कि उसके वैश्विक प्रसार की बात की जाती है तथा दूसरी ओर घोर उपेक्षा.
सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के तहत हाल ही में हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने से संबंधित 12 वर्षीय लड़की ऐश्वर्या पाराशर के एक सवाल के जवाब में विदेश मंत्रालय ने बताया कि भारत ने हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने के लिए कोई प्रस्ताव नहीं किया है चूँकि ऐसा होने पर सरकार पर 82 करोड़ रुपए से अधिक वार्षिक खर्च आएगा. विदेश मंत्रालय के केंद्रीय जनसूचना अधिकारी एस. गोपालकृष्णन ने कहा कि ‘हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की एक आधिकारिक भाषा के रूप में शामिल किए जाने के कई वित्तीय एवं प्रक्रियागत परिणाम आएँगे. संयुक्त राष्ट्र में औपचारिक प्रस्ताव रखने से पहले इन जरूरतों को पूरा करना पड़ेगा. प्रस्ताव करने वाले देश के रूप में भारत को दुभाषियों, अनुवाद, मुद्रण तथा दस्तावेजों के प्रतिलिपिकरण आदि पर होने वाले अतिरिक्त खर्च को पूरा करने के लिए संयुक्त राष्ट्र को समुचित वित्तीय संसाधन भी उपलब्ध करवाने होंगे.’ स्मरणीय है कि 1973 में अरबी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता मिली थी. इस पर भी प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि ‘यह महज खर्च का सवाल नहीं है, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र महासभा को 192 सदस्य राष्ट्रों के बहुमत से एक प्रस्ताव अनुमोदित करना पड़ेगा. किसी अन्य भाषा को आधिकारिक भाषा बनाने से संयुक्त राष्ट्र के बजट में खासी बढ़ोतरी होती है, जबकि सदस्य राष्ट्र आमतौर पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ डालने वाले प्रस्तावों को समर्थन देने में अनिच्छुक होते हैं. 1973 में जब महासभा ने अरबी को अपनी आधिकारिक एवं कामकाज की भाषा के रूप में स्वीकार किया था तो यह काम इस बात को ध्यान में रखकर किया गया था कि अरबी संयुक्त राष्ट्र के 19 सदस्यों की भाषा है.’
इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि हिंदी विश्व के कई देशों में बोली जाती है. इसके बावजूद संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनने का गौरव हिंदी को उपलब्ध नहीं है. यह विडंबना नहीं है तो और क्या है कि नागपुर में 1975 में आयोजित पहले विश्व हिंदी सम्मलेन में हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने का प्रस्ताव पारित किया गया था. लेकिन आज तक भी हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त नहीं हुआ है ! 2012 में नौवें विश्व हिंदी सम्मलेन के अवसर पर विदेश राज्य मंत्री परनीत कौर ने कहा था कि ‘हिंदी को संयुक्त राष्ट्र में दर्जा दिलाने की प्रक्रिया लंबी और खर्चीली है जिसके चलते इसमें सफलता मिलने में देरी होना लाजमी है. लेकिन भारत सरकार इस दिशा में प्रयास करती रहेगी और कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी.’ परंतु ऐश्वर्या पाराशर के सवाल के जवाब से तो यही लगता है कि इस दिशा में प्रयास को महँगा समझ कर ठंडे बस्ते में डाला जा चुका है.
आजकल हर क्षेत्र में हिंदी का प्रयोग किया जा रहा है तथा वह बाज़ार और कंप्यूटर की भाषा के रूप में अपनी क्षमता को प्रमाणित कर रही है. इंटरनेट की आभासी दुनिया में भी हिंदी में कार्य बहुत तेजी से बढ़ रहा है. अनेक वेब पत्रिकाएँ हिंदी में निकल रही हैं. अनेक हिंदी वेबसाइट हैं. हिंदी के अनेक ब्लॉग भी हैं. अनेक विदेशी हिंदी भाषा सीख रहे हैं. इसमें संदेह नहीं कि संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने से पूरे विश्व में भारत का गौरव बढ़ेगा तथा अर्थव्यवस्था भी सुदृढ़ होगी. लेकिन यह तब तक नहीं हो सकता जब तक कि अंग्रेजी के चक्रव्यूह से बाहर निकलकर सब लोग हिंदी को न अपनाएँ.
भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार से इस दिशा में ठोस पहल की अपेक्षा है. उन्होंने अपने चुनाव प्रचार के लिए सर्वत्र हिंदी को अपनाया. अहिंदीभाषी क्षेत्रों में भी उन्होंने हिंदी का भरपूर प्रयोग किया. सत्ता में आने पर उन्होंने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के नेताओं से हिंदी में बात की. यह एक अच्छा संकेत है. जिस तरह राजनीति, भष्टाचार, गरीबी आदि कई मुद्दों पर उनकी सोच बेबाक और दो टूक है उसी प्रकार भाषा के संबंध में भी उनका विचार सुस्पष्ट है. अतः उम्मीद की जानी चाहिए कि वे भारत में हिंदी का संवैधानिक स्थान बहाल करते हुए राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक-कूटनैतिक क्षेत्रों में हिंदी के व्यवहार को आधिकारिक प्रतिष्ठा प्रदान करेंगे और अब संयुक्त राष्ट्र की भाषा के रूप में मान्यता प्राप्ति के मार्ग की बाधाओं का निराकरण करेंगे.
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