27 जुलाई, 2015. शिलांग. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के सम्मेलन में हिस्सा लेते समय ‘मिसाइल मैन’ के नाम से विख्यात भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम मूर्छित हो गए और बाद में उनका निधन हो गया.
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म तमिलनाडु के रामेश्वरम जिले के धनुषकोडी नामक गाँव में 15 अक्टूबर, 1931 को हुआ था. मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे कलाम ने कठिन परिश्रम से जीवन में सफलता अर्जित की. 1954 में मद्रास विश्वविद्यालय से भौतिक विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद 1958 में मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से अंतरिक्ष विज्ञान की उपाधि प्राप्त की. उसके बाद हावरक्राफ्ट परियोजना पर काम करने के लिए भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश लिया. 1962 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन से जुड़े और अनेक उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में भाग लिया. स्मरणीय है कि परियोजना निदेशक के रूप में उन्होंने भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएलवी 3) के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसके परिणास्वरूप जुलाई 1982 में ‘रोहिणी’ उपग्रह अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक भेजा जा सका. इतना ही नहीं उन्होंने ‘अग्नि’ एवं ‘पृथ्वी’ जैसे प्रक्षेपास्त्रों के निर्माण में स्वदेशी तकनीक को अपनाया. 1988 में उनकी देखरेख में भारत ने पोखरण में सफलतापूर्वक परमाणु परीक्षण किया. यदि कहा जाय कि अब्दुल कलाम के कठिन परिश्रम के कारण ही भारत परमाणु शक्ति से संपन्न राष्ट्रों की सूची में शामिल हुआ तो गलत नहीं होगा. प्रक्षेपास्त्रों के विकास के संबंध में उन्होंने कहा कि ‘2000 वर्षों के इतिहास में भारत पर 600 वर्षों तक अन्य लोगों ने शासन किया है. यदि आप विकास चाहते हैं तो देश में शांति की स्थिति होना आवश्यक है और शांति की स्थापना शक्ति से होती है. इसी कारण प्रक्षेपास्त्रों को विकसित किया गया ताकि देश शक्ति संपन्न हो.’ 18 जुलाई, 2002 को डॉक्टर कलाम भारत के 11 वें राष्ट्रपति चुने गए.
सफल वैज्ञानिक और राजनीतिज्ञ के साथ साथ अब्दुल कलाम समर्थ साहित्यकार भी थे. विंग्स ऑफ़ फायर (अग्नि की उड़ान), इंडिया 2020 - ए विज़न फ़ॉर द न्यू मिलेनियम (भारत 2020 नवनिर्माण की रूपरेखा), माई जर्नी, इग्नाइटेड माइंड्स - अनलीशिंग द पावर विदिन इंडिया’, महाशक्ति भारत, हमारे पथ प्रदर्शक, हम होंगे कामयाब, अदम्य साहस, छुआ आसमान, भारत की आवाज़ और टर्निंग प्वॉइंट्स आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं. ‘अग्नि की उड़ान’ में अब्दुल कलाम की जीवनी के साथ साथ 'अग्नि', 'पृथ्वी', 'त्रिशूल' और 'नाग' मिसाइलों के विकास की भी कहानी अंकित है.
अब्दुल कलाम भारत के विकास और निर्माण के बारे में सोचा करते थे. इस संबंध में उन्होंने लिखा भी था कि ‘हमारे पास वह सब कुछ है, जो हमें ऐसे राष्ट्र में रूपांतरित कर सकता है कि दुनिया के देशों में हम गर्व से सिर उठाकर चल सके. वैभव के शिखर पर जाने का रोडमैप क्या है? शोध, डिजाइन, विकास, उत्पादन और फिर सच्चे अर्थों में भारत में निर्मिति. यही है मैक इन इंडिया को साकार करने का अर्थ. हमारे पास ऐसी बौद्धिक क्षमता है कि जो चीज हमें दूसरे देश नहीं देते हम उन्हें विकसित कर लेते हैं. दुनिया के 15 बड़े निर्यातक देशों में मैन्यूफैक्चरिंग की सबसे कम लागत हमारे यहाँ है और उद्यमशीलता के मामले में हमारी बराबरी अमेरिका की सिलिकॉन वैली से होती है. जाहिर है नौजवानों के लिए व्यापक अवसर हैं.’ डॉ. कलाम अपने संबोधन में अक्सर यही कहा करते थे कि देश को आगे ले जाना है तो बच्चों को कमर कसकर आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि भ्रष्टाचार मुक्त देश का निर्माण उन्हीं के हाथों संभव है. वे कहा करते थे कि ‘अपने मिशन में कामयाब होने के लिए, आपको अपने लक्ष्य के प्रति एकचित्त निष्ठावान होना पड़ेगा.’
अब्दुल कलाम इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स का नेशनल डिजाइन अवार्ड, एरोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया का डॉ. बिरेन रॉय स्पेस अवार्ड, एस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया का आर्यभट्ट पुरस्कार, विज्ञान के लिए जी.एम. मोदी पुरस्कार, राष्ट्रीय एकता के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार आदि अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हुए. 1981 में पद्म भूषण, 1990 में पद्म विभूषण तथा 1997 में भारत रत्न से सम्मनित हुए. लेकिन दंभ व अहंकार लेशमात्र के लिए भी उन्हें छू न सके.
मानवता के प्रबल समर्थक अब्दुल कलाम को ‘स्रवंति’ परिवार की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि.
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को प्रो. देवराज (वर्धा) की भावभीनी श्रधांजलि
महावृक्ष की रोशनी
- देवराज
एक छतनार महावृक्ष धरती पर आ गिरा
पूर्वोत्तर की पहाड़ियों को
अमृत-फल बाँटते हुए
भीतर कहीं एक विस्फोट जा धँसा
तने को चीरते हुए
थरथराईं शाखा-प्रशाखाएँ
कुछ ही क्षण,
शांत पड़ती गईं
एक-एक कर सारी पत्तियाँ,
फटी की फटी रह गईं
डालियों पर चहचहाते
पंछियों की आँखें,
छटपटाए बेतरह
उड़ते रहे चारों तरफ
एक दूसरे से सवाल करते हुए
‘क्या करें कि लौट आये
शिराओं में रक्त का बहाव?’
आवाजें लगाते रहे हलक फाड़
नहीं सुना
दूर जाते स्पंदन ने,
नहीं लौटा वह
पंछियों के लिए महावृक्ष के पास,
असफल हुईं प्रार्थनाएँ
रिक्त होती गईं हवाएँ
पास आती गई रात
धीरे-धीरे टहलते हुए
........... ............
मगर एक रोशनी भी
तेजवंती आभा लिए
फूट रही है महावृक्ष के फलों से
पंछियों की दिशा में बढ़ती रात को
पीछे धकेलने का आह्वान
रश्मि-जाल के तंतुओं में.
क्या सुन पा रहे हैं पंछी
महावृक्ष को?