सितंबर का महीना आते ही हर शिक्षण संस्थान, निगम, सरकारी कार्यालय आदि में ‘हिंदी दिवस’ के प्रसंगवश त्योहार का माहौल देखा जा सकता है. 14 सितंबर, 1949 को हिंदी ने भारत की राजभाषा का संवैधानिक पद प्राप्त किया और 14 सितंबर, 1954 को पहला ‘हिंदी दिवस’ मनाया गया. तब से यह सिलसिला जारी है. उल्लेखनीय है कि भाषा के अभाव में न ही मनुष्य का अस्तित्व होता है और न ही देश का. इस संदर्भ में थोमस डेविड का कथन ध्यान खींचता है. उनका कहना है कि कोई भी देश राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र नहीं कहला सकता. गोपालराव एकबोटे ने अपनी पुस्तक ‘राष्ट्रभाषा विहीन राष्ट्र’ (हिंदी प्रचार सभा, 1984) में इसी बात पर जोर दिया है. इस वर्ष यह महीना इसलिए और भी महत्वपूर्ण हो गया है कि 10 से 12 सितम्बर 2015 को भोपाल में 10वाँ विश्व हिंदी सम्मलेन संपन्न हुआ.
भाषा महज आदान-प्रदान या अभिव्यक्ति का साधन नहीं है अपितु वह मनुष्य की अस्मिता है. हिंदी एक ऐसी भाषा है जो एक साथ अनेक भूमिकाएँ निभा सकती है और निभा भी रही है. अर्थात जनभाषा, संपर्क भाषा, राजभाषा, राष्ट्रभाषा, शिक्षा की माध्यम भाषा, प्रौद्योगिकी की भाषा, बाजार-दोस्त भाषा, मीडिया भाषा आदि. सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों में हिंदी की भूमिका निर्विवाद है.
स्मरणीय है कि विश्व हिंदी सम्मेलन की संकल्पना राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा द्वारा 1973 में की गई थी और 10-12 जनवरी, 1975 में प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन 'राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा' के तत्वाधान में नागपुर में किया गया. इस सम्मलेन का बोधवाक्य था 'वसुधैव कुटुंबकम्'. द्वितीय विश्व हिंदी सम्मेलन मोरिशस में 28-30 अगस्त, 1976 में संपन्न हुआ. तदुपरांत नई दिल्ली (तीसरा सम्मेलन, 28-30 अक्टूबर, 1983), मोरिशस (चौथा सम्मलेन, 2-4 दिसंबर, 1993), त्रिनिडाड व टोबेगो (पांचवा सम्मेलन, 4-8 अप्रैल, 1996), लंदन (छठा सम्मेलन, 14-18 सितंबर, 1999), सूरीनाम (सातवाँ सम्मेलन, 6-9 जून, 2003), न्यूयॉर्क (आठवाँ सम्मेलन, 13-15 जुलाई, 2007), जोहानसबर्ग (नौवाँ सम्मेलन, 22-24 सितंबर, 2012) और भोपाल (दसवाँ सम्मेलन, 10-12 सितंबर, 2015) आदि देशों में विश्व हिंदी सम्मेलनों का आयोजन किया गया.
सम्मेलन का मूल उद्देश्य इस बात पर विचार विमर्श करना था कि ‘हिंदी संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रवेश पाकर विश्व भाषा के रूप में समस्त मानव जाति की सेवा की ओर अग्रसर हो. साथ ही यह किस प्रकार भारतीय संस्कृति का मूलमंत्र 'वसुधैव कुटुंबकम' विश्व के समक्ष प्रस्तुत करके 'एक विश्व एक मानव परिवार' की भावना का संचार करे.' नौवें विश्व हिंदी सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया था कि संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए अब समुचित और समयबद्ध कार्रवाई की जाएगी.
हिंदी के वैश्विक विस्तार हेतु विचारणीय बिंदुओं के संबंध में आज सोशल मीडिया के माध्यम से काफी कुछ कहा जा रहा है. यहाँ 'वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ (हिंदी तथा भारतीय भाषाओं के प्रयोग व प्रसार का मंच) एक ऐसा मंच सक्रिय है जिसके माध्यम से आम जनता हिंदी भाषा के संबंध में अपने विचार व्यक्त कर पा रही है. हिंदी दिवस और विश्व हिंदी सम्मलेन के हवाले से यहाँ विभिन्न लोगों द्वारा सुझाए गए कुछ बिंदु पाठकों के विचारार्थ प्रस्तुत हैं –
- अनेक कंप्यूटर-साधित सॉफ्टवेयर बनाए जाएँ जिससे हिंदी का प्रचलन और भी आसान हो सके.
- विभिन्न संगठनों द्वारा विकसित भाषा-उपकरण न सिर्फ सरकारी दफ्तरों तक सीमित हो अपितु उसे जन-मानस के लिए सुलभ कराया जाए.
- हिंदी सिर्फ एक सरकारी भाषा बन के न रह जाए अपितु लोग उसे सहर्ष स्वीकारें. अहिंदी भाषियों को इस प्रकार प्रेरित करना चाहिए कि वो हिंदी को सहर्ष ही अपने आप स्वीकारें.
- इंडिया हटाओ ‘भारत’ बनाओ.
- भारत सरकार के सभी कार्यालयों, मंत्रालयों, विभागों आदि का कामकाज प्रथम राजभाषा हिंदी में नोट शीट से ले कर सभी विधेयक तक बिना विलम्ब प्रारम्भ कर दिया जाय.
- न्याय के क्षेत्र में सर्वोच्च न्यायालय तक अपील तथा बहस की सुविधा हिंदी में भी उपलब्ध करा दी जाए.
- सभी कक्षाओं में शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषाओं को बिना विलंब बनाने के समय आ गया है.
- देश में देवनागरी लिपि के लिये अंग्रेजी भाषा की लिपि का उपयोग तेज़ी से बढ़ाया जा रहा है. यह हिंदी की लिपि देवनागरी के अस्तित्व पर संकट पैदा कर रहा है. इसे हतोत्साहित करना चाहिए.
अंततः इतना ही कि अब समय आ गया है कि हिंदी को उसका सही सम्मानपूर्ण वैश्विक स्थान प्रदान कराने के लिए सभी भारतवासियों को नवीनतम भाषा प्रौद्योगिकी से सुसज्जित होकर भाषाभिमान का परिचय देना चाहिए.
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