अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परख
गुर्रमकोंडा नीरजा
2015
वाणी प्रकाशन
मूल्य : रु. 495
ISBN : 978-93-5229-249-3
पृष्ठ 304
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आज [27 अक्टूबर, 2015] सुबह मेरे नाम पर वाणी प्रकाशन से एक पार्सल आया था. मैं अपनी आखों पर यकीन नहीं कर पाई. मेरी पुस्तक ‘अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परख’ की लेखकीय प्रतियाँ!!! मेरी आँखें अनायास ही नम हो आईं.
‘अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परख’ को लिखने के पीछे मेरे दो गुरुजन का प्रोत्साहन रहा - प्रो. दिलीप सिंह और प्रो. ऋषभदेव शर्मा. इस पुस्तक का नामकरण भी दिलीप सर ने ही किया था. देखा जाय तो यह पुस्तक मेरे लिए देखा गया इन दोनों का सपना है जो आज इस रूप में पूरा हुआ है. मैं दोनों गुरुजन के प्रति कृतज्ञ हूँ. नतमस्तक हूँ.
अपनी खुशी दिलीप सर से बाँटनी चाही तो वे उपलब्ध नहीं हुए. मैं और मेरे पतिदेव शर्मा सर के घर पहुँच गए पुस्तकों के पार्सल सहित. शर्मा सर और पूर्णिमा मैडम दोनों पुस्तक को देखकर बेहद खुश हुए. दोनों ने मुझे बार-बार आशीर्वाद दिए.
गुरुजनों और हितैषियों के आशीष के अतिरिक्त और क्या चाहिए!
1 टिप्पणी:
शुभकामनाएँ स्वीकार कीजिए मैडम.....
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