‘मीडिया समग्र मंथन’ 2016 के प्रथम दिन के प्रथम सत्र में मैं अपनी ओर से तथा तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के आंचलिक पत्रकारों की ओर से आप सबको सादर नमन करती हूँ. महात्मा गांधी द्वारा स्थपित संस्था दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के हैदराबाद कार्यालय से एक द्विभाषिक मासिक साहित्यिक पत्रिका प्रकाशित की जाती है जो तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में गाँव-गाँव तक जाती है. मैं पिछले आठ वर्षों से सह-संपादक के रूप में इस पत्रिका से जुड़ी हूँ. साथ ही मुझे यह बताते हुए भी अच्छा लग रहा है कि मेरे पिताजी तेलुगु के वरिष्ठ पत्रकार रहे हैं. वे लंबे समय तक ‘सोवियत भूमि’ के तेलुगु संस्करण के संपादक थे. 1990 के बाद से वे तेलुगु समाचार पत्र ‘वार्ता’ से संबद्ध रहे और ‘वार्ता स्कूल ऑफ जर्नलिज्म’ के प्राचार्य रहे.
मैं उनसे प्राप्त संस्कार और अपने अनुभव के आधार पर भारतीय त्रकारिता की दशा, दिशा और चुनैतियों के संबंध में जो कुछ समझ पड़ा उसे सूत्रबद्ध रूप में आज की संगोष्ठी के लिए लिखकर लाई हूँ. यह कोई पर्चा या शोधपत्र नहीं है. बल्कि कुछ पोइंट्स हैं.
- सबसे पहले मैं यह कहना चाहती हूँ कि वस्तुतः मीडिया को जनतांत्रिक व्यवस्था का निष्पक्ष साधन होना चाहिए.
- स्वातंत्र्यपूर्व कालीन भारतीय पत्रकारिता पर दृष्टि केंद्रित करने से यह स्पष्ट होता है कि उस समय पत्रकारों और संपादकों के समक्ष एक सुनिश्चित उद्देश्य था – राष्ट्रीयता की प्रबल भावना, अंग्रेजी शासन एवं शोषण के विरुद्ध संघर्ष तथा स्वातंत्र्य भावना.
- तेलंगाना और आंध्र की पत्रकारिता के इतिहास में झाँककर देखेंगे तो स्पष्ट होगा कि यहाँ के पत्रकारों ने भी अंग्रेजी शासन के साथ साथ निरंकुश निजाम शासन के विरूद्ध संघर्ष के लिए जनता को चेताया.
- आंध्र और तेलंगाना के प्रमुख पत्रकारों में वीरेसलिंगम पंतुलु, कोंडा वेंकटप्पय्या, काशीनाथुनी नागेश्वर राव पंतुलु, नार्ल वेंकटेश्वर राव, खासा सुब्बाराव, विश्वनाथ सत्यनारायण आदि तेलुगु पत्राकरिता जगत के प्रमुख स्तंभ हैं. ये सभी प्रमुख रूप से देश की स्वतंत्रता, समाज सुधार की भावना और सामाजिक न्याय के लिए कटिबद्ध थे.
- आंध्र प्रदेश राज्य निर्माण, हैदराबाद मुक्ति संग्राम, किसान आंदोलन, तेलंगाना आंदोलन आदि जनांदोलनों में पत्रकारिता की भूमिका निर्विवाद है.
- तत्कालीन समय के पत्रकार और संपादक समाचार पत्रों को स्थापित करने तथा सुचारू रूप से चलाने हेतु प्रोनोट लिखकर पैसे लाते थे और समाचार पत्र चलाते थे. देश हित ही उन लोगों का प्रमुख उद्देश्य था. तब के पत्रकारों को जेल की यात्रा भी करनी पड़ी.
- लेकिन आज स्थितियाँ काफी बदल चुकी हैं. एक वह समय था जब पत्रकार लक्ष्य प्राप्ति के लिए समाचार पत्र चलाने हेतु अपना तन-मन-धन गिरवी रखते थे लेकिन आज हम यहाँ तक भी देख रहे हैं कि पत्रकार किसी न किसी राजनेता या राजनैतिक दल के चंगुल में फँसे हुए हैं.
- कहने का आशय है कि आज मीडिया और राजनीति का गठबंधन है. इससे इनकार नहीं किया जा सकता. आज पैसा ही सब कुछ है. पूँजी जिसके पास है उसी के पास सत्ता है, और उसी के प्रति पत्रकार भी प्रतिबद्ध है.
- पत्रकारों या संपादकों को दोष नहीं दिया जा सकता. क्योंकि वे ऐसी परिस्थितियों में जी रहे हैं जिनका सामना करना हो तो उन्हें अपना ईमान गिरवी रखना ही पड़ता है. आंध्र और तेलंगाना के आंचलिक पत्रकारों की स्थिति अत्यंत दयनीय है. एक ओर आर्थिक और सामाजिक समस्याएँ उनके सामने हैं तो दूसरी ओर राजनैतिक समस्याएँ.
- संवाददाताओं को वेतन नहीं दिया जा रहा है. अतः रोजीरोटी के जुगाड़ में मजबूर होकर वे भ्रष्टाचार का रास्ता अपना रहे हैं. ‘कलम’ को सत्ता और पैसों के आगे गिरवी रख रहे हैं. यह विडंबना की स्थिति नहीं है तो और क्या है?
- समाचार पत्र हो या इलेक्ट्रोनिक मीडिया या फ़िल्मी जगत कोई भी स्वतंत्र नहीं हैं. करोड़ों का लेन-देन होता है. जिस तरह से ‘फिल्म इंडस्ट्री’ कहा जाता है उसी तरह आज मीडिया भी ‘इंडस्ट्री’ बन चुका है. समाचार पत्र को भी ‘पेपर इंडस्ट्री’ कहा जा रहा है. अर्थात यह भी व्यवसाय बन चुका है.
- प्रिंट मीडिया तथा इलेक्ट्रोनिक मीडिया दोनों राजनैतिक पार्टियों के अधीन हैं. आज मीडिया स्वतंत्र नहीं है. मीडिया की आचार संहिता में भी बदलाव नजर आ रहा है.
- राजनीतिज्ञ अपनी पार्टी के प्रचार-प्रसार हेतु टीवी चैनल्स चला रहे हैं. आंध्र और तेलंगाना की बात करें तो वाई एस राजशेखर रेड्डी ने अपनी पार्टी के प्रचार-प्रसार के लिए ही ‘साक्षी’ समाचार पत्र और ‘साक्षी’ टीवी चैनल की स्थापना की थी. इसी प्रकार तमिलनाडु में ‘कलैन्यर’ टीवी डीएमके का पक्षधर है. कहना न होगा कि इन समाचार पत्रों और चैनलों में वास्तविक स्थितियों पर पर्दा डालकर उन्हें अपने मालिक के राजनैतिक हित की दृष्टि से वक्र रीति से दिखाया जाता है.
- मीडिया को जनहित के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए लेकिन आज वह हत्याकांड, चोरी, धोखाधड़ी, आदि को जरूरत से ज्यादा हाइलाइट करके दिखा कर जनता को गुमराह भी कर रहा है.
- यह भी देखा जा सकता है कि इस क्षेत्र में ‘क्षमता’/ टैलेंट की कोई कदर नहीं बस प्रशासन का इष्ट पात्र होना भर काफी है.
- आज मीडिया लोकतंत्र के बारे में जनता को शिक्षित करने में भी असफल है. जो चीज सामाजिक रूप से वर्जित है उसे मीडिया बहिरंग तौर पर दिखा रहा है. सेक्स और वायलेंस जरूरत से ज्यादा भरा हुआ है. जनता को शिक्षित करना तो दूर उसे भड़काने का काम कर रहा है. यदि यह भी कहा जाय कि मीडिया जातिभेद को भडकाने का भी काम कर रहा है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.
- विश्वविद्यालयों में भी भ्रष्ट राजनीति पनप चुकी है. वे भी गुंडागर्दी के अड्डे बनते जा रहे हैं. कुलपति सत्ता पार्टी के द्वारा संचालित हो रहे हैं. विद्यार्थियों को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है. हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय का उदाहरण सबके सामने है. रोहित वेमुला की आत्महत्या के मामले में राजनैतिक हस्तक्षेप के कारण जो भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई, मीडिया ने उसके संबंध में सही तथ्यों को पड़ताल करके सामने लाने की जिम्मेदारी नहीं निभाई, बल्कि टी आर पी बटोरने के लिए अपुष्ट तथ्यों को ही परोसकर एक ऐसी परिस्थिति उत्पन्न कर दी कि समाज के विभिन्न समूहों के बीच आरोप, प्रत्यारोप और घृणा को उकसावा मिला. ऐसे सनसनीखेज मामलों में संयम बरतना सीखना मीडिया के लिए अभी भी बाकी है.
- इससे पहले भी विगत वर्षों में तिरुपति के श्री वेंकटेश्वरा विश्वविद्यालय, तमिलनाडु के पच्चैयप्पा कॉलेज, हैदरबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय आदि अनके विश्वविद्यालयों में इस तरह की स्थितियाँ सामने आ चुकी हैं. उस समय भी जनता एवं विद्यार्थियों को भड़काने का काम किया है मीडिया ने.
- यह भी नहीं कहा जा सकता है कि निष्पक्ष भाव से काम करने वाले पत्रकार हैं ही नहीं. लेकिन ऐसे लोगों को उंगलीयों पर गिना जा सकता है.
- आज एक आंदोलन की जरूरत है, एक और स्वतंत्रता आंदोलन की ताकि मीडिया अपने खोए हुए सम्मान और स्वतंत्रता को प्राप्त कर सके.
अंत में मुझे अपनी बात समाप्त करने से पूर्व यह अवसर उपलब्ध कराने के लिए भाई अमन कुमार त्यागी और भाई अरविन्द कुमार सिंह के प्रति मैं कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ. साथ ही यह भी कहना चाहूँगी कि आजमगढ़ जैसे अंचल में इतना भव्य और सफल आयोजन देखकर और साथ ही आपकी अतिथि सत्कार की पवित्र भावना को महसूस करके मैं अभिभूत हूँ.
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सारगर्भित बाते -- साधुवाद -- मगर कही छायाकार भी एक हिस्सा है |
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