मंगलवार, 21 मई 2019

तेलुगु साहित्य 2016 : एक सर्वेक्षण

2016 में तेलुगु साहित्य की विभिन्न विधाओं में प्रभूत लेखन सामने आया। पाठकीय रुझान की दृष्टि से कथा साहित्य केंद्रीय विधा बना हुआ है। संस्मरण और आत्मकथा भी तेलुगु के लेखकों और पाठकों की प्रिय विधाएँ हैं। इस वर्ष भी इन विधाओं में रोचक कृतियाँ सामने आईं। समीक्षा और फिल्म विषयक लेखन के साथ ही मीडिया के प्रभाव विषयक पुस्तकें भी पर्याप्त चर्चित रहीं। 

यह निर्विवाद सत्य है कि संपूर्ण भारतवर्ष में लोककथा की अत्यंत समृद्ध परंपरा रही है। लोककथाएँ लोक के कंठ से फूटती हैं और उनमें संवेदनाओं के साथ-साथ सृजनात्मकता का सम्मिश्रण होता है। इन्हीं लोककथाओं से प्रेरित होकर मनुष्य कहानियों को अक्षरबद्ध करने लगा ताकि यह संपदा पीढ़ी दर पीढ़ी अक्षुण्ण रहे। ‘टी तोटला आदिवासुलु चेप्पिना कथलु’ (चाय बागान के आदिवासियों की कथाएँ)[1] शीर्षक कहानी संग्रह में संकलित 16 कहानियाँ दार्जिलिंग के चाय बागान में कार्यरत आदिवासियों द्वारा कही गई लोककथाएँ हैं। सामान्या ने इन लोककथाओं को अक्षरबद्ध किया है ताकि यह विरासत लुप्त न हो जाए। इन कहानियों के माध्यम से आदिवासी जीवनशैली, रीति-रिवाज, संस्कार आदि के संबंध में जानकारी उपलब्ध होती है। आज उत्तर आधुनिक संदर्भ में आदिवासियों को केंद्र में रखकर कहानियाँ एवं उपन्यास लिखे जा रहे हैं, शोधकार्य कार्य हो रहे हैं और आलोचनात्मक ग्रंथ पाठकों के सामने आ रहे हैं। इस दृष्टि से बालगोपाल कृत ‘आदिवासुलु : वैद्यम, संस्कृति, अनचिवेता’ (आदिवासी : चिकित्सा, संस्कृति और दमन)[2], ‘आदिवासुलु : चट्टालु, अभिवृद्धि’ (आदिवासी : न्याय और अभिवृद्धि)[3] उल्लेखनीय हैं। 

आज के साहित्यकार अपने चारों ओर निहित परिवेश से कथासूत्र ग्रहण करते हैं और थोड़ा बहुत कल्पना के योग से कहानी बुनते हैं। कोम्मिशेट्टि मोहन कृत ‘पूला परिमलम’ (फूलों की सुगंध)[4] शीर्षक कहानी संग्रह में कुल 12 कहानियाँ संकलित हैं। इन कहानियों में मध्यवर्गीय मानसिकता के साथ-साथ निम्नवर्ग के लोगों की समस्याओं का चित्रण भी है। इन कहानियों को पढ़ते समय पाठक को ऐसा लगता है कि वह इन पात्रों से भलीभाँति परिचित है। इस संग्रह में संकलित कहानी ‘वाग्दानम’ (वादा) में कहानीकार ने यह दर्शाया है कि शराब के शिकंजे में फँसे हुए व्यक्ति के परिवार को किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। पार्वतम्मा का पति शिवय्या शराबी है। इस आदत से छुटकारा दिलाने के लिए वह प्रयत्न करती है। पति के व्यसन से त्रस्त पार्वतम्मा पति को कोसती रहती है, गुस्से में आकर पीटती भी है। लेकिन शराबी पति शराब छोड़ने का नाम नहीं लेता, तो वह प्यार से समझाती है कि उसके स्वास्थ्य के लिए शराब हानिकारक है। पत्नी का दिल रखने के लिए वह शराब छोड़ने का नाटक करता है। इतने में सरकार घोषणा करती है कि शराब पर रोक लगाई जा रहा है। यह सुनकर शिवय्या अपने आपको रोक नहीं पाता और भगवान की मनौती हेतु रखे हुए पैसों को लेकर शराब पीने चला जाता है यह कहकर कि इसके बाद गलती से भी वह कभी शराब को हाथ तक नहीं लगाएगा। शिवय्या रात को नशे में घर आता है और सुबह मृत पाया जाता है। कहानी का अंत पत्नी के विलाप से होता है - ‘उन्होंने अपना वादा पूरा किया।’ यहाँ कहानीकार ने यह दर्शाया है कि शिवय्या की खुली हुई आँखें मानो कह रही हों कि ‘मैं शराब को कभी हाथ नहीं लगाऊँगा। यह मेरा वादा है।’ 

शहरीकरण, एकल परिवार, कम आय आदि से समाज जूझ रहा है। जहाँ बूढ़े माता-पिता अपनी संतान के साथ रह सकते हैं, वहाँ तो फिर भी खैर है; परंतु जहाँ युवक गाँव छोड़कर शहर जा रहे हैं, वहाँ परिस्थिति बहुत गंभीर है। कोम्मिशेट्टि मोहन कृत ‘पूला परिमलम’ (फूलों की सुगंध) कहानी संग्रह में संकलित कहानी ‘ओ हो... अलागा!’ (अ हा... ऐसा है क्या!) इस संदर्भ में उल्लेखनीय है। इसमें वृद्धों की मनोदशा, उनके आयुजनित बड़प्पन, बहू के रूखा व्यवहार और बेटे की निरूपायता को बखूबी दर्शाया गया है। बेटा चाहते हुए भी माता-पिता को अपने साथ शहर में रख नहीं सकता। जब बूढ़े माता-पिता बेटे-बहू से मिलने गाँव से शहर आते हैं तो उनके प्रति बहू का व्यवहार ठीक नहीं रहता लेकिन बेटा कुछ नहीं कर सकता। जब वह दीपावली के अवसर पर माता-पिता के लिए भी नए वस्त्र लाता है तो बहू हंगामा कर देती है। तीर्थयात्रा के लिए निकले माता-पिता भगवान के पास चले जाते हैं। बरसी के दिन बहू वही नए कपड़े उनकी तस्वीर के समक्ष लाकर रखती है तो उनके बेटे के पूछने पर जवाब देती है कि नए कपड़े दादा-दादी के लिए हैं। यह सुनकर वह नन्हा बालक कहता है, ‘अच्छा! ऐसा है क्या! लेकिन दादा-दादी तो नहीं रहे, फिर कपड़े कौन पहनेंगे माँ?’ जीते जी वृद्ध माता-पिता को न तो सम्मान प्राप्त हुआ और न ही प्यार, लेकिन मरने के बाद नए कपड़े अर्पित किए जाने पर कहानीकार ने छोटे बच्चे के माध्यम से व्यंग्य कसा है। इस कहानी संग्रह में संकलित परीक्षा, स्वार्थम (स्वार्थ), वारसत्वम (विरासत), अम्मायिलु... जिंदाबाद... (लड़कियाँ.. जिंदाबाद), पूल परिमलम (फूलों की सुगंध), प्रयाणम (यात्रा) आदि कहानियों के कथासूत्र और चरित्र हमारे इर्द-गिर्द उपस्थित हैं और रोज़ ही हमारा उनसे आमना-सामना होता रहता है। 

पोतूरी विजयलक्ष्मी कथाकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनके 20 उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं और समसामयिक मुद्दों पर 250 से भी अधिक कहानियाँ। उनके ‘पूर्वी’[5] शीर्षक कहानी संग्रह में कुल 16 कहानियाँ सम्मिलित हैं। इस संग्रह की शीर्ष कहानी ‘पूर्वी’ एक ऐसी युवती की कहानी है जिसका जन्म पूर्वी भारत में होता है और विवाह तेलुगुभाषी युवक से। एक दुर्घटना में पति का निधन हो जाता है। बीमाराशि सास-ससुर को देने के उद्देश्य से पूर्वी उनकी खोज में आंध्र प्रदेश जाती है और अपने सास-ससुर से मिलती है। इस संग्रह में संकलित सुखांतम (सुखांत), प्रेमिकुला रोजु (प्रेमियों के दिन), श्रीदेवी अम्मगारि मामिडी तोरणम (श्रीदेवी माता के आम का तोरण) आदि कहानियों में परिवेश चित्रण की दृष्टि से तेलुगु भाषासमाज और संस्कृति की प्रामाणिक छवियाँ ध्यान खींचती हैं। 

परिमला सोमशेखर की कहानियाँ स्त्री विमर्श की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। ‘परिमला सोमशेखर कथलु’ (परिमला सोमशेखर की कहानियाँ)[6] शीर्षक संग्रह में संकलित 42 कहानियाँ प्रमुख रूप से स्त्री प्रधान कहानियाँ हैं जो परंपरागत रूढ़ियों के प्रति स्त्री को विद्रोह करने के लिए प्रेरित करती हैं। इन कहानियों में स्त्री सशक्तीकरण को भलीभाँति देखा जा सकता है। परिमला सोमशेखर की कहानियों के स्त्री पात्र एक ओर परंपरागत रूढ़ियों को मानने वाले हैं तो दूसरी ओर स्त्री-आचार संहिता को तोड़ने वाले भी हैं। इन कहानियों में स्त्री-पुरुष संबंध, स्त्री के प्रति पुरुष की मानसिकता, पुरुष के प्रति स्त्री की मानसिकता, स्त्री संघर्ष और आक्रोश को भी रेखांकित जा सकता है। 

प्रसन्नकुमार सर्राजु की कहानियों में हास्य और व्यंग्य का सम्मिश्रण है। ‘प्रसन्नकुमार सर्राजु कथलु-2’ (प्रसन्नकुमार सर्राजु की कहानियाँ-2)[7] शीर्षक कहानी संग्रह में कुल 12 कहानियाँ संकलित हैं। ये कहानियाँ पाठकों के चहरे पर मुस्कान लाने के साथ-साथ उन्हें सोचने पर भी बाध्य करती हैं। उदाहरण के लिए ‘डॉनल भूगर्भ शत्रुत्वम’ (माफिया की शत्रुता) शीर्षक कहानी सिनेमा जगत पर व्यंग्य कसती है। यह कहानी दर्शाती है कि किस तरह सिनेमा को अंडरवर्ल्ड माफिया संचालित कर रहा है। ‘ए टेल ऑफ इंडियन सिनेमा’ शीर्षक कहानी इस ओर संकेत करती है कि सिनेमा को उद्योग के रूप में परिवर्तित करके सरकार कैसे मुनाफा अर्जित कर रही है। 

शेख हुसैन सत्याग्नि की कहानियाँ सामाजिक विसंगतियों, विद्रूपताओं, सांप्रदायिक ताकतों एवं राजनैतिक षड्यंत्रों के खिलाफ आवाज उठाने वाली कहानियाँ हैं।[8] देवुलपल्लि कृष्णमूर्ति ने तेलुगु समाज के उपेक्षित वर्ग ‘दासरी’ की जीवनशैली को अपनी कहानी ‘यक्षगानम’ (यक्षगान) में चित्रित किया है तथा ‘मृत्युंजयुडु’ (मृत्युंजय) शीर्षक कहानी में निजाम शासन के विरोध में किए गए आंदोलन का चित्रण किया है। ऐसी अनेक सामाजिक कहानियों का समुच्चय है देवुलपल्लि कृष्णमूर्ति की पुस्तक ‘यक्षगानम’ (यक्षगान)।[9]

2 जून, 2014 को तेलंगाना राज्य का गठन हुआ। तत्पश्चात तेलंगाना के साहित्यकार तेलंगाना का इतिहास, तेलंगाना का साहित्य, संस्कृति और उससे जुड़े आंदोलनों को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। तेलुगु साहित्य के इतिहास का भी पुनर्लेखन किया जा रहा है। प्रसिद्ध पत्रकार और आलोचक प्रतापरेड्डी द्वारा समय-समय पर तेलंगाना संस्कृति और साहित्येतिहास आदि विषयों पर लिखे गए आलोचनात्मक लेखों का संकलन है ‘तेलंगाना साहित्योद्यमालु (तेलंगाना के साहित्यिक आंदोलन)।[10] वाई. यानालु ने अपनी आलोचनात्मक पुस्तक ‘तेलंगाना चरित्र, संस्कृति वारसत्वम’ (तेलंगाना : ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत)[11] में तेलंगाना से संबद्ध अनेकानेक आंदोलन एवं सांस्कृतिक विरासत को साझा किया है। 

क़ासिम ने तेलंगाना आंदोलन से संबंधित अनेक कविताएँ लिखी हैं। तेलंगाना की जनता की व्यथा-कथा को उन्होंने अभिव्यक्त किया है। के कहते हैं कि ‘साठ वर्ष के अज्ञातवास के बाद/ दूध की धारा बन प्रवाहित हो रहा है तेलंगाना।’ (मेरा तेलंगाना)। ‘क़ासिम कवित्वम’ (क़ासिम की कविता)[12] काव्य संग्रह में 96 कविताएँ सम्मिलित हैं जिनमें 3 लंबी कविताएँ भी शामिल हैं। डॉ. देवराजु महाराजु ने ‘गुडिसे गुंडे’ (झोंपड़ी का हृदय)[13] शीर्षक कविता संग्रह में तेलंगाना की क्षेत्रीय बोली का प्रयोग किया है। यह तेलंगाना की क्षेत्रीय बोली में लिखित प्रथम काव्य संग्रह है। 

चाहे कविता हो या कथासाहित्य, संस्मरण हो या जीवनी, आत्मकथा, रिपोर्ताज और यात्रावृत्त; विभिन्न विधाओं में साहित्यकार अपनी स्मृतियों एवं अनुभूतियों को अभिव्यक्त करता है। जहाँ कविता, कथा आदि में कल्पना के लिए खुला आकाश होता है, वहीं आत्मकथा आदि विधाएँ अकाल्पनिक विधाएँ हैं जो मूलतः स्मरणाधारित हैं। तेलुगु में इस कोटि की कृतियों की समृद्ध परंपरा बन चुकी है। इसी क्रम में, प्रसिद्ध तेलुगु साहित्यकार बुच्चिबाबु की धर्मपत्नी शिवराजु सुब्बलक्ष्मी की संस्मरणात्मक पुस्तक ‘मा ज्ञापकालु’ (हमारी स्मृतियाँ)[14] संस्मरण के साथ-साथ आत्मकथा भी है। 12वर्ष की आयु में उनका विवाह बुच्चिबाबु से संपन्न हुआ। संतानहीन रहे लेकिन कभी चिंतित नहीं हुए। दोनों एक-दूसरे के लिए संतान बने। बुच्चिबाबु ने सुब्बलक्ष्मी को आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रेरित किया और सृजनात्मक लेखन के क्षेत्र में प्रोत्साहित किया। नाटककार, कवि, कथाकार, चित्रकार और आलोचक के रूप में तेलुगु पाठक बुच्चिबाबु से परिचित तो हैं ही, लेकिन सुब्बलक्ष्मी ने अपनी पुस्तक के माध्यम से उनके भीतर निहित ममता, वात्सल्य, करुणा और प्रेम के विविध पक्षों को उजागर किया है। 

विजयनागिरेड्डी मूलतः चिकित्सक थे। हर व्यक्ति को उत्तम चिकित्सा उपलब्ध कराने की दृष्टि से उन्होंने चेन्नई में ‘विजया हॉस्पिटल’ की स्थापना की। सिनेमा के प्रति रुचि के कारण उन्होंने ‘विजया संस्था’ की स्थापना की और अनेक सफल फिल्मों के निर्माता-निर्देशक बने तथा अनेक लोगों को जीविका प्रदान की। ‘विजया पब्लिकेशंस’ की स्थापना करके उन्होंने ‘चंदामामा’ के साथ-साथ अनेक पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन का दायित्व भी निभाया। विजयनागिरेड्डी ने जीवन में सफलता अर्जित करने के लिए अनेक छोटे-मोटे व्यापार भी किए। उनके सुपुत्र विश्वनाथ रेड्डी ‘विश्वम’ ने अपने पिता के जीवन से संबद्ध छोटी-छोटी घटनाओं के साथ-साथ पिता के साथ गुजारी मधुर स्मृतियों को ‘नन्नातो नेनु (पिताजी के साथ मैं)[15] शीर्षक पुस्तक में संजोया है। इस पुस्तक के माध्यम से तमिल, तेलुगु, कन्नड और मलयालम फ़िल्मी जगत की अनेक छोटी-बड़ी हस्तियों की जानकारी भी उपलब्ध होती है। यह पुस्तक जीवनी के साथ-साथ संस्मरण भी है। 

आज की युवा पीढ़ी पुराने साहित्यकारों और उनके साहित्य से परिचित नहीं है। इस दृष्टि से पुराने साहित्य एवं साहित्यकारों पर फिर से दृष्टि केंद्रित की जा रही है। कालिपाका मधुसूदन ने अपनी आलोचनात्मक कृति ‘चंदाला केशवदासु : जीवितम-साहित्यम’ (चंदाला केशवदासु : व्यक्तित्व और कृतित्व)[16] में खम्मम जिला (तेलंगाना) के जक्कपल्लि गाँव में 1876 को जन्मे केशवदास के प्रदेय पर प्रकाश डाला है। इस पुस्तक से यह तथ्य सामने आता है कि केशवदास ने तेलुगु की प्रथम ‘टाकी फिल्म’ भक्तप्रह्लाद (1931) के लिए पदों की रचना की थी। ‘श्रीकृष्ण तुलाभारम’ (1966) फिल्म के लिए उनके द्वारा लिखे गए गीत आज भी तेलुगु पाठकों के हृदय में अंकित हैं। नाटककार, अभिनेता, गीतकार और अवधानी के रूप में भी उन्होंने ख्याति अर्जित की। 

‘बुच्चिबाबु साहित्य व्यासालु’ (बुच्चिबाबु के साहित्यिक निबंध)[17] शीर्षक निबंध संग्रह नवतेलंगाना पब्लिशिंग हाउस द्वारा प्रकाशित है। इसमें बुच्चिबाबु द्वारा समय-समय पर लिखे गए अंग्रेजी साहित्य से संबंधित शोधपरक आलेख संकलित हैं। इसी तरह प्रसिद्ध नाटककार और कथाकार सिंगराजु लिंगमूर्ति की रचनाएँ भी दो खंडों में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत हैं।[18] ‘प्रजासेवालो नागिरेड्डी (जनसेवा में नागिरेड्डी)[19] शीर्षक पुस्तक में चेरुकूरि सत्यनारायण ने प्रसिद्ध फिल्म निर्माता-निर्देशक नागिरेड्डी के जीवन पर प्रकाश डाला है। ओलेटि श्रीनिवासभानु की पुस्तक ‘एल.वी.प्रसाद जीवित प्रस्थानम’ (एल.वी.प्रसाद की जीवन यात्रा)[20] में एल.वी.प्रसाद के जीवन पर प्रकाश डाला गया है। जयधीर तिरुमलराव ने अलिशेट्टि प्रभाकर की कविताओं को संगृहीत किया है।[21] डॉ. पेद्दी रामाराव ने अपनी पुस्तक ‘यवनिका’[22] में रंगमंच से संबंधित अनेक विषयों का विश्लेषण किया है। इस पुस्तक में संकलित 34 आलेखों में तेलुगु नाटक साहित्य की विकास यात्रा, नाट्यकर्मियों का संक्षिप्त परिचय, रंगमंच के विभिन्न तत्व, नाटक प्रदर्शनी आदि की सैद्धांतिक चर्चा के साथ-साथ व्यावहारिक चर्चा भी सम्मिलित है। 

समाज में व्याप्त विसंगतियों, विद्रूपताओं एवं राजनैतिक षड्यंत्रों के प्रति जनता को जागृत करने के लिए कविहृदय धड़कता रहता है। कवि के समक्ष यह भी प्रश्न खड़ा होना स्वाभाविक है कि कविता किस तरह समाज को प्रभावित कर सकती है और कितने लोग कविता पढ़ने में रुचि प्रदर्शित करते हैं? इस तरह के अनेक प्रश्नों से जूझता हुआ कविमन उनके उत्तर की तलाश करता रहता है। एन. वेणुगोपाल की पुस्तक ‘कवित्वमतो मुलाकात’ (कविता से मुलाकात)[23] में इस तरह के अनेक प्रश्नों के समाधान निहित हैं और वेणुगोपाल की मौलिक कविताओं के साथ ही माओ, पाब्लो नेरुदा, कैफ़ी आज़मी, देवीप्रसाद मिश्र, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना आदि की कविताओं का अनुवाद भी सम्मिलित है। 

जापानी काव्यविधा हाइकू को तेलुगु साहित्यकारों ने भी अपनाया है। हाइकू में 5,7,5 अक्षरों के माध्यम से बिंब निर्माण किया जाता है। तेलुगु साहित्य में इस विधा को लिखने वालों में बी.वी.वी. प्रसाद का नाम अग्रगण्य है। उन्होंने अपने हाइकू ‘बी.वी.वी. प्रसाद हाइकूलु (बी.वी.वी. प्रसाद के हाइकू)[24] शीर्षक पुस्तक में संकलित किए हैं। वासिरेड्डी पब्लिकेशंस ने एम.एस.नायुडु की कविताओं को ‘गालि अद्दम’[25] (हवा दर्पण) शीर्षक से प्रकाशित किया है। 

कविता, कहानी, आलोचना और संस्मरण साहित्य के साथ-साथ तेलुगु साहित्य यात्रावृत्त क्षेत्र में भी समृद्ध है। ’मा केरल यात्रा’ (हमारी केरल की यात्रा)[26] शीर्षक यात्रावृत्त में मुत्तेवी रवींद्रनाथ ने केरल के भौगोलिक और प्राकृतिक परिवेश के साथ-साथ वहाँ के लोगों की जीवन शैली, खान-पान, वेश-भूषा, संस्कृति तथा केरल से संबंधित ऐतिहासिक घटनाओं का भी उल्लेख किया है। इसी प्रकार राजेश वेमूरि ने यूरोप की भौगोलिक एवं प्राकृतिक शोभा के साथ-साथ वहाँ के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक यथार्थ की जानकारी अपनी पुस्तक ‘ना ऐरोपा यात्रा’ (मेरी यूरोप की यात्रा)[27] में रोचक ढंग से प्रस्तुत की है। 

इस वर्ष में तेलुगु में पत्रकारिता और फिल्म जगत से भी संबंधित कई पुस्तकों का प्रकाशन हुआ है। सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने वाले व्यक्तियों को हमेशा यातना का शिकार होना पड़ता है; फर्जी केस में फँसकर उम्रकैद की सजा भुगतनी पड़ती है या फाँसी पर लटकना पड़ सकता है। मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र पर लगाए इल्जाम से लेकर आंध्र प्रदेश के पार्वतीपुरम नक्सल केस तक अनेकानेक फर्जी केसों, षड्यंत्रों, पुलिस मुठभेड़ों आदि का विवरण, दंड भुगतने वालों की जानकारी, साक्षात्कार आदि का ब्यौरा प्रमाणों के साथ ‘सूर्योदयम कुट्रकादु’ (सूर्योदय षड्यंत्र नहीं है)[28] शीर्षक ग्रंथ में संकलित किया गया है। अन्नम श्रीधर बाचि कार्टून चित्रों के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों एवं राजनैतिक दावपेंच पर व्यंग्य कसते हैं। उनके कार्टून चित्रों का संकलन है ‘बाचि कार्टूनलु’ (बाचि के कार्टून)।[29] इसके अलावा दाशरथि कृष्णामाचार्युलु (22.7.1925-5.11.1987) द्वारा लिखित तेलुगु सिनेमा के प्रसिद्ध गीत ‘दाशरथि सिनेमा पाटला पंदिरी’ (दाशरथि के फिल्मी गीत)[30] शीर्षक पुस्तक में सम्मिलित हैं। 

मौलिक रचनाओं के साथ-साथ अनूदित रचनाएँ भी प्रकाशित हुई हैं। राहुल सांकृत्यायन कृत ‘बहुरंगी मधुपुरी’ (कहानी संग्रह) का तेलुगु अनुवाद ‘मधुपुरी’[31] शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। सर ऑथर कॉनेन डॉयल कृत ‘शरलॉक होम्स’ का के. बी. गोपालम ने ‘एडवेंचर ऑफ शरलॉक होम्स-1'[32], ‘एडवेंचर ऑफ शरलॉक होम्स-2’[33] के रूप में तेलुगु में अनुवाद किया है। हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के काव्य संग्रह ‘संघर्ष जारी है’ का तेलुगु में भागवतुल हेमलता ने ‘सागुतुन्ना समरम’[34] शीर्षक से अनुवाद किया है। इस संग्रह में राष्ट्रीय अस्मिता की कविताएँ संकलित हैं. इन कविताओं में कवि ने वर्तमान व्यवस्था से बेहतर व्यवस्था, समाज, राष्ट्र और मानव कल्याण की चिंताएँ व्यक्त की हैं. 

इस प्रकार कहा जा सकता है कि वर्ष 2016 तेलुगु साहित्य की दृष्टि से पर्याप्त वैविध्यपूर्ण और गंभीर कृतियों के प्रकाशन की वर्ष रहा है। यह भी देखा जा सकता है कि इधर अकाल्पनिक गद्य विधाओं के प्रति तेलुगु लेखक और प्रकाशक अपेक्षाकृत अधिक रुचि प्रदर्शित कर रहे हैं। 

संदर्भ 

[1] टी तोटला आदिवासुलु चेप्पिना कथलु (चाय बागान के आदिवासियों की कथाएँ, 2016)/ सामन्या/ पृष्ठ 92/ मूल्य : रु. 120 

[2] आदिवासुलु : वैद्यम, संस्कृति, अनचिवेता (आदिवासी : चिकित्सा, संस्कृति और दमन, 2016)/ बालगोपाल/ पृष्ठ 150/ मूल्य : रु. 100/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : नव तेलंगाना पब्लिशिंग हाउस, हैदराबाद 

[3] आदिवासुलु : चट्टालु, अभिवृद्धि (आदिवासी : न्याय और अभिवृद्धि, 2016), बालगोपाल/ पृष्ठ 176/ मूल्य : रु. 130/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : नव तेलंगाना पब्लिशिंग हाउस, हैदराबाद 

[4] पूला परिमलम (फूलों की सुगंध, 2016)/ डॉ. कोम्मिशेट्टि मोहन/ मूल्य : रु.100/ पृष्ठ 88/ प्रतियों के लिए संपर्क सूत्र : सरस्वती मोहनम, 24/327-4, अमृता गार्डन्स, पावरहाउस स्ट्रीट, प्रोद्दुटूरू – 516360, कड़पा जिला (आंध्र प्रदेश), मोबाइल : 09441323170 

[5] पूर्वी (2016)/ पोतूरी विजयलक्ष्मी/ 130 पृष्ठ/ मूल्य : रु. 120/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : 040-27637729 

[6] परिमला सोमशेखर कथलु (परिमला सोमशेखर की कहानियाँ, 2016)/ परिमला सोमशेखर/ पृष्ठ 460/ मूल्य : रु. 280/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : नवचेतना पब्लिशर्स, हैदराबाद 

[7] प्रसन्नकुमार सर्राजु कथलु-2 (प्रसन्नकुमार सर्राजु की कहानियाँ-2, 2016)/ मूल्य : रु. 100/ पृष्ठ 137/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : : 09849026928 

[8] सत्याग्नि कथलु (सत्याग्नि की कहानियाँ, 2016)/ शेख हुसैन सत्याग्नि/ पृष्ठ : 173/ मूल्य : रु. 120/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : 09866040810 

[9] यक्षगानम (यक्षगान, 2016), देवुलपल्ली कृष्णमूर्ति/ पृष्ठ : 152/ मूल्य : रु. 120/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : 040-23521849 

[10] तेलंगाना साहित्योद्यमालु (तेलंगाना के साहित्यिक आंदोलन, 2016)/ कासुला प्रतापरेड्डी/ पृष्ठ 430/ मूल्य : 275/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : श्री वेंकटरमण बुक डिस्ट्रिब्यूटर्स, हैदराबाद 

[11] तेलंगाना चरित्र, संस्कृति वारसत्वम (तेलंगाना : ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत, 2016)/ वाई. यानालु/ पृष्ठ 430/ मूल्य : 399/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : 07396586170 

[12] क़ासिम कवित्वम (क़ासिम की कविता, 2016)/ क़ासिम/ पृष्ठ 266/ मूल्य : रु. 140 

[13] गुडिसे गुंडे (झोंपड़ी का हृदय, 2016)/ डॉ. देवराजु महाराजु/ पृष्ठ : 66/ मूल्य : रु. 60 

[14] मा ज्ञापकालु (हमारी स्मृतियाँ, 2016)/ शिवराजु सुब्बलक्ष्मी/ मूल्य : रु.100/ पृष्ठ 142/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : विशालांध्र पब्लिशिंग हाउस 

[15] नन्नतो नेनु (पिताजी के साथ मैं)/ विश्वम/ मूल : रु. 100/ पृष्ठ 280/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : विजया पब्लिकेशंस, चेन्नई, 040-23652007 

[16] चंदाला केशवदासु : जीवितम-साहित्यम (चंदाला केशवदासु : व्यक्तित्व और कृतित्व, 2016)/ कालिपाका मधुसूदन/ पृष्ठ 48/ मूल्य : रु. 40/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : नवचेतना बुक हाउस, हैदराबाद 

[17] बुच्चिबाबु साहित्य व्यासालु (बुच्चिबाबु के साहित्यिक निबंध)/ पृष्ठ 245/ मूल्य : रु. 150/ प्रतियों के लिए संपर्क सूत्र : नवतेलंगाना पब्लिशिंग हाउस, हैदराबाद 

[18] सिंगराजु लिंगराजु रचनलु (सिंगराजु लिंगराजु की रचनाएँ, 2016), भाग 1, पृष्ठ 243/ मूल्य : रु. 170/ भाग 2, पृष्ठ 270/ मूल्य : 175, प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : नवचेतना पब्लिशिंग हाउस, हैदराबाद 

[19] प्रजासेवलो नागिरेड्डी (जनसेवा में नागिरेड्डी, 2016)/ चेरुकूरि सत्यनारायण/ पृष्ठ 500/ मूल्य : रु. 50/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : 09848631604 

[20] एल.वी.प्रसाद जीवित प्रस्थानम (एल.वी.प्रसाद की जीवन यात्रा, 2016)/ ओलेटि श्रीनिवासभानु/ पृष्ठ 210/ मूल्य : रु. 250/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : 09848506964 

[21] अलिशेट्टि प्रभाकर कविता (अलिशेट्टी प्रभाकर की कविता, 2016)/ संपादक जयधीर तिरुमलराव, निजाम वेंकटेशम और बी. नरसन/ पृष्ठ 350/ मूल्य : रु. 150/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : 09440128169 

[22] यवनिका/ 2016/ डॉ. पेद्दी रामाराव/ पृष्ठ 200/ मूल्य : रु. 200 

[23] कवित्वमतो मुलाकात (कविता से मुलाकात, 2016)/ एन. वेणुगोपाल/ पृष्ठ 206/ रु. 120 

[24] बी.वी.वी. प्रसाद हाइकूलु (बी.वी.वी. प्रसाद की हाइकू, 2016)/ पृष्ठ 160/ मूल्य : रु. 90/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : वासिरेड्डी पब्लिकेशंस, बी-2 टेलीकॉम क्वार्टर्स, कोत्त्पेट, हैदराबाद – 500060 

[25] गालि अद्दम (हवा दर्पण, 2016)/ एम.एस.नायुडु/ पृष्ठ : 182/ मूल्य : रु. 120/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : वासिरेड्डी पब्लिकेशंस, हैदराबाद, मोबाइल : 09000528717 

[26] मा केरल यात्रा (हमारी केरल की यात्रा, 2016)/ मुत्तेवी रवींद्रनाथ/ पृष्ठ 256/ मूल्य : रु. 250/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : 040-24224458 

[27] ना ऐरोपा यात्रा (मेरी यूरोप की यात्रा, 2016)/ राजेश वेमूरि/ पृष्ठ 184/ मूल्य : रु. 150/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : 040-23325979 

[28] सूर्योदयम कुट्रकादु (सूर्योदय षड्यंत्र नहीं है, 2016)/ चेरुकूरि सत्यनारायण/ पृष्ठ 508/ मूल्यः रु. 90 

[29] बाचि कार्टूनलु (बाचि के कार्टून, 2016)/ अन्नम श्रीधर बाचि/ पृष्ठ 160/ मूल्य : रु. 150/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : बाचि, हैदराबाद, फोन : 040-24042847 

[30] दाशरथि सिनेमा पाटला पंदिरी (दाशरथि के फिल्मी गीत, 2016)/ प्रधान संपादक : के. प्रभाकर/ पृष्ठ : 350/ मूल्य : 326/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : के. विमलारानी, 104, ब्लॉक 1, डॉ. प्रभाकररेड्डी चित्रपुरी कॉलोनी, मणिकोंडा जागीर, राजेंद्रनगर मंडल, हैदराबाद – 500008 

[31] मधुपुरी/ हिंदी मूल : राहुल सांकृत्यायन, तेलुगु अनुवाद : कविनि आलूरि/ पृष्ठ 272/ मूल्य : रु. 200/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : विशालांध्र पब्लिशिंग हाउस 

[32] एडवेंचर ऑफ शरलॉक होम्स-1/ मूल : सर ऑथर कॉनेन डॉयल, तेलुगू अनुवाद : के. बी. गोपालम/ पृष्ठ 206/ मूल्य : रु. 100/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : क्रिएटिव लाइंस, हैदराबाद, 09848065658 

[33] एडवेंचर ऑफ शरलॉक होम्स -2/ मूल : सर ऑथर कॉनेन डॉयल, तेलुगू अनुवाद : के. बी. गोपालम/ पृष्ठ 220/ मूल्य : रु. 100/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : क्रिएटिव लाइंस, हैदराबाद, 09848065658 

[34] सागुतुन्ना समरम (संघर्ष जारी है, 2016)/ हिंदी मूल : डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’/ तेलुगु अनुवाद : डॉ. भागवतुल हेमलता/ पृष्ठ 135/ मूल्य : रु. 150/ प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए संपर्क सूत्र : डॉ. भागवतुल हेमलता, फ्लैट नं. 403, साई रामप्रसाद अपार्टमेंट्स, ओल्ड प्रतिभानिकेतन स्ट्रीट, माछवरम, विजयवाडा – 520004, मोबाइल : 09492437606 

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