पुस्तक चर्चा
श्रीमती सुषमा बैद (1957) हैदराबाद के कविता मंचों का जाना पहचाना नाम है. खासकर उन्हें सस्वर कविता वाचन के लिए जाना जाता है. जैन समाज में वे एक आस्थाशील भक्तिप्रवण कवयित्री के रूप में अपनी पहचान बनाए हुए हैं. 1995 से अब तक उनके भक्ति गीत, कविता, मुक्तक और सावन गीत संग्रहों के रूप में ग्यारह प्रकाशन आ चुके हैं और अब यह बारहवां प्रकाशन सामने आया है – 'गीत ही मेरे मीत'(2011) जिसमें अलग अलग खंड बनाकर भक्ति गीत, अन्य गीत, कविताएँ, हास्य-व्यंग्य और मुक्तक परोसे गए हैं.
एक भक्तिप्रवण रचनाकार के रूप में सुषमा जी अपने आराध्य की राह निहारती और उन पर सब कुछ वारती दिखाई देती हैं.(पृ.18). वे यह मंगल कामना करती हैं कि सब राग-द्वेष को तजकर स्नेह सूत्र में बंध जाएँ.(पृ.19). उनके आराध्य की यह विशेषता है कि वह शराणागत को कभी निराश नहीं करता, सब का दाता और त्राता है, भाग्य विधाता है, अज्ञान के अंधेरे का हरण करके घट घट में ऐसी सुख शांति को व्याप्त करने वाला है जिससे जन्मों का फेरा मिट जाता है.(पृ.20). कवयित्री ऐसे प्रभु को पाने केलिए जप तप का महत्व स्वीकार करती है और याद दिलाती है कि संयम की सरिता में स्नान करने से ही मन का मैल मिटता है और तन का स्वर्ण निखरता है.(पृ.20). तन को सोना बनाने का यह सूत्र वैसे तपस्या के साथ जुडता दिखाई नहीं देता क्योंकि मूल उद्देश्य शरीर को निखारना नहीं है यहाँ.
सुषमा बैद के भक्ति गीतों में लोक भाषा और लोक गीत की खूब झलक मिलती है. वे मन का दीप जलाकार तन की बाती में प्राण की लौ सुलगाती हैं. हर सांस में अपने आराध्य का स्मरण करती हैं और सौ सौ बार उनके चरणों में सर नवाती हैं.(पृ.40). उल्लेखनीय है कि ये सारे गीत उन्होंने आचार्य श्री महाश्रमण जी की पचासवीं वर्षगाँठ के अवसर पर निवेदित किए हैं और यह प्रार्थना की है – "तेरे द्वार पे आई हूँ भगवान, चाहो तो बेड़ा पार करो/ करूं चरणों में निवेदन सादर, चाहो तो मेरा उद्धार करो."(पृ.42).
अन्य गीतों में सुषमा ने अपनी सामाजिक चिंताओं को व्यक्त किया है जैसे मानवीय मूल्यों का हनन, प्रदर्शनप्रियता, अपसंस्कृति, महंगाई, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुडी समस्याएँ तथा पर्यावरण प्रदूषण. वे यह गुहार लगाती है कि "हमें प्रदूषित शहर नहीं, गुनगुनाता गाँव चाहिए/ नहीं चाहिए नकली जीवन, पीपल नीम की छाँव चाहिए."(पृ.66). लेकिन उनकी भावुकता और सहृदयता का परिचय तो केवल वहीं मिलता है जहां वे आत्मविभोर होकर प्रेम के शब्द चित्र बनाती हैं. ऐसे स्थलों पर उनके भीतर बैठी प्रेम विह्वल स्त्री यह याचना करती है कि – "मुरझाए कहीं न ये दिल की कली/ सींचकर प्यार से फिर हरा कीजिए/ लोग सहते हैं कैसे जुदाई का गम/ गम में तडपा न यूं अधमरा कीजिए."(पृ.53).
हाथों से पल पल फिसलते संयोग सुख को रोके रखने की यह बेताबी बहुत कुछ कहती है. कबीर की तरह प्रेम पात्र की प्रतीक्षा में यह हाल हो गया है कि – "जीवन है यह धुंधला-सा तन साँसें बुझीं बुझीं/ पथ देख देख थकीं अंखियाँ पा दर्शन के लाले."(पृ.56). इसीलिए वे यह सीख भी देती चलती हैं कि दर्द को भुलाने हर पल हमें व्यस्त रहना चाहिए/ जिंदगी के हर इक मौसम में मस्त रहना चाहिए.(पृ.60).
कविता खंड में धार्मिक-सामाजिक सरोकार प्रमुख हैं और हास्य-व्यंग्य तथा मुक्तक खंड में भी. इतिवृत्तात्मकता और उपदेशात्मकता में ये कवितायें कहीं कहीं तो द्विवेदी युग की याद दिला देती हैं, कहीं कहीं सीधे सीधे नारे भी कविता में उतर आए प्रतीत होते हैं. जैसे "बेटा बेटी हैं एक सामान/ मत करो बेटी का अपमान/ क्यों जान लेते भ्रूण ह्त्या कर/ बेटी को भी दो जीवन दान.(पृ.110).
कुलमिलाकर सुषमा बैद का यह बारहवां कविता संग्रह उनकी आध्यात्मिक, धार्मिक, सामाजिक और समसामयिक चिंताओं को मुख्यतः अभिधामूलक अभिव्यक्ति प्रधान करता है. प्रासंगिक रूप से कुछ स्थलों पर मार्मिक भावों की व्यंजना भी देखाई देती है.
· गीत ही मेरे मीत (काव्य संग्रह)/ सुषमा बैद/ 2011/ सुषमा-निर्मलकुमार बैद, 3-3-835/1ए, के.एन.आर., संयुक्त एन्क्लेव, फ्लैट नं. 302, कुतबीगुडा, हैदराबाद – 500 027/ पृष्ठ 124/ मूल्य – रु.200
गुर्रमकोंडा नीरजा, प्राध्यापक, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, खैरताबाद, हैदराबाद – 500 004
3 टिप्पणियां:
कविता-संग्रह की सफलता के लिए ढेर सारी शुभकामनायें!!
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अच्छी समीक्षा के लिए बधाई डॉ. नीरजा जी॥
समीक्षा अच्छी है. बधाई. नए कविता संग्रह से परिचय कराने के लिए आभार.
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