गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

'साहित्यिक पत्रकारिता' : नई पुस्तक

साहित्यिक पत्रकारिता
आशा मिश्र 'मुक्ता'
2016
गीता प्रकाशन, हैदराबाद
मूल्य : रु. 595
पृष्ठ : 176 

भूमिका

श्रीमती आशा मिश्रा ‘मुक्ता’ की प्रस्तुत शोधपूर्ण कृति के प्रकाशन के अवसर पर मैं अत्यंत हर्ष का अनुभव कर रही हूँ क्योंकि इस कृति के प्रणयन में उन्होंने अत्यंत सदाशयतापूर्वक पग-पग पर मुझसे चर्चा की है. यह पुस्तक इस दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण है कि इसमें हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता के विराट मानचित्र पर दक्षिण भारत की रेखाओं को खासतौर पर उभारा गया है. हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता आरंभ से ही अत्यंत तेजस्वी रही है और उसके विकास में भारतेंदु हरिश्चंद्र, बालकृष्ण भट्ट, महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रेमचंद, निराला, अज्ञेय, रघुवीर सहाय, सर्वेश्वर, धर्मवीर भारती, राजेंद्र अवस्थी और मृणाल पांडे जैसे दिग्गज हस्ताक्षरों का योगदान अविस्मरणीय है. इन बड़े नामों के आभामंडल के कारण बहुत बार हिंदीतर भाषी क्षेत्रों की हिंदी पत्रकारिता हाशिए पर धकेल दी जाती है. यह युग हाशियाकृत समुदायों के विमर्श का युग है. इसलिए इतिहास के मुख्य पृष्ठ पर अनुपस्थित रह गए समुदाय अब अपनी उपस्थिति और अस्मिता को नए सिरे से रेखांकित कर रहे हैं. हिंदीतर भाषी क्षेत्रों की साहित्यिक पत्रकारिता भी ऐसा ही एक उपेक्षित समुदाय है. प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से लेखिका ने हिंदीतर भाषी क्षेत्र की हिंदी पत्रकारिता पर विमर्श का नया प्रस्थान दर्ज कराया है. इसके लिए उन्होंने हैदराबाद से प्रकाशित होने वाली पहले अनियतकालीन और अब त्रैमासिक पत्रिका ‘पुष्पक’ का विशिष्ट और गहन अध्ययन करके यह प्रतिपादित किया है कि लोकल सरोकारों से उद्भूत होने के बावजूद इस क्षेत्र की साहित्यिक पत्रकारिता ग्लोबल सरोकारों को भी पूरी तरह संबोधित करती है. वस्तुतः हिंदी साहित्य का सार्वदेशिक और समेकित इतिहास लिखते समय ‘पुष्पक’ जैसी पत्रिकाएँ आधारभूत सामग्री का प्रामाणिक स्रोत सिद्ध होंगी. इसलिए यदि यह कहा जाए कि प्रस्तुत पुस्तक साहित्यिक पत्रकारिता ही नहीं समेकित हिंदी साहित्य की इतिहास रचना की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. 

स्मरणीय है कि इस पुस्तक में विवेचित पत्रिका ‘पुष्पक’ हैदराबाद (वर्तमान तेलंगाना) से प्रकाशित होती है. इसलिए लेखिका ने हिंदी पत्रकारिता के उद्भव और विकास का इतिहास प्रस्तुत करने से पहले अत्यंत संक्षेप में तेलंगाना के इतिहास की रेखाओं को उकेरा है. तदनंतर दक्षिण भारत में हिंदी पत्रकारिता की चर्चा करने के बाद साहित्यिक हिंदी पत्रिकाओं का इस क्षेत्र के संदर्भ में सर्वेक्षण किया है. ‘कल्पना’, ‘अजंता’, ‘पूर्णकुंभ’, ‘स्रवंति’, ‘विवरण पत्रिका’, ‘संकल्य’, ‘पुष्पक’, ‘समुच्चय’, ‘भास्वर भारत’, ‘अग्रतारा’, ‘महिला सुधा’, ‘मध्यांतर’ और ‘दक्षिण समाचार’ की यह झांकि इस सत्य का साक्षात्कार कराने में समर्थ है कि साहित्यिक पत्राकरिता की दृष्टि से यह क्षेत्र अत्यंत उपजाऊ रहा है जिसकी अब तक उपेक्षा की जाती रही है. 

लेखिका ने अपने विवेचन के केंद्र में जिस महत्वपूर्ण पत्रिका को रखा है उसके 25 अंकों की सामग्री का विश्लेषण करते हुए उसकी संपादकीय दृष्टि के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और साहित्यिक आयामों की जमकर पड़ताल की है. साथ ही उसके कथासाहित्य, काव्य, निबंध, समीक्षा एवं अन्य विधाओं के योगदान को भी इन विधओं की विषय वस्तु और भाषा शैली की कसौटी पर कसकर स्थापना की है. विवेचित पत्रिका की प्रधान संपादक का साक्षात्कार इस पुस्तक को और भी परिपूर्णता प्रदान करता है. 

आशा है, कि आशा मिश्रा ‘मुक्ता’ की इस पुस्तक का हिंदी जगत में व्यापक स्वागत होगा तथा सुधी पाठक इसे उन्हें अपना स्नेह और आशीर्वाद प्रदान करेंगे. 

शुभकामनाओं सहित

- गुर्रमकोंडा नीरजा  

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