भूमिका
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तेलुगु के ‘वेमना’ और हिंदी के कबीर की प्रकृति, साधना और रचनात्मकता तथा मूल संदेश एक हैं, इसे लेखिका ने ‘जनकवि वेमना’ शीर्षक आलेख में भी भलीभाँति सिद्ध किया है। वस्तुतः जिस प्रकार कबीर हिंदी में एक युगधारा को वाणी देते हैं, सामाजिक विरूपताओं के विरुद्ध आंदोलन खड़ा करते हैं और पूरी परंपरा को ललकारते हैं, ठीक उसी प्रकार वेमना भी तेलुगु क्षेत्र में रहकर कबीर के समान ही सामाजिक विरूपताओं तथा परंपराओं पर प्रहार करते हैं, समाज की निर्मिति के लिए प्रतिबद्ध हैं जिसमें जातिगत भेदभाव, ऊँच-नीच की भावना का कोई स्थान नहीं। प्रेम - ईश्वरीय प्रेम - ही वह रास्ता है, जिसके सहारे मनुष्य मात्र एक सूत्र में बँध सकता है।
लेखिका ने अपनी इस पुस्तक में तेलुगु साहित्य के विभिन्न भक्त रचनाकारों के अध्ययन द्वारा सिद्ध किया है कि भक्ति के उदय के कारक तत्व साधना पद्धति एवं आराध्य की समानता भारतीय मानव समुदाय एवं उसके साहित्य के प्राणतत्व हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में लेखिका का लक्ष्य तेलुगु साहित्य के उन तारों को झंकृत करना है जो एक लहर की भाँति तेलुगु साहित्य की निर्मिति में आदिकाल से आज तक निरंतर अग्नि स्फुलिंग का कार्य कर रहे हैं। आधुनिक तेलुगु साहित्य की निर्माण भूमिका प्रशस्त करने वाले वीरेशलिंगम, राष्ट्रीय स्वातंत्र्य आंदोलन से प्रभावित काशीनाथुनी नागेश्वर राव पंतुलु, प्रगतिशील कविता के प्रणेता श्रीश्री, नानीलु विधा के प्रवर्तक साहित्यकार एन.गोपि, क्रांतिकारी कवि वरवर राव आदि से संबद्ध आलेख लेखिका के इस उद्देश्य के पूरक हैं।
साहित्येतिहास मानव समुदाय का सांस्कृतिक इतिहास होता है। प्रस्तुत पुस्तक तेलुगु समुदाय के सांस्कृतिक विकास के इतिहास का पर्याय है। लेखिका सजग हैं, तभी वह सांस्कृतिक बदलाव के उन समकालीन कारकों को नहीं भूलीं। फलस्वरूप दलित कविता, मुस्लिमवादी कविता का अलग से अत्यंत गंभीर विवेचन इस पुस्तक की प्राणशक्ति सिद्ध होगा।
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निश्चय ही यह पुस्तक तेलुगु साहित्य को नए सिरे पहचानने में हिंदी पाठक के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी और तुलनात्मक साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी।
डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा एक प्रतिभावान अध्येता और लेखिका हैं। तमिल, तेलुगु, हिंदी तथा अंग्रेजी भाषा में पारंगत डॉ. नीरजा का पूर्ववर्ती लेखन भी उनकी प्रतिभा, संश्लिष्ट विवेचन, विश्लेषण तथा अनुवाद के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का परिचायक है। अस्तु, उन्हें मेरी हार्दिक शुभाशंसा...!
7 फरवरी 2015 - प्रो. राजमणि शर्मा
पूर्व प्रोफेसर
हिंदी विभाग
काशी हिंदू विश्वविद्यालय
वाराणसी-221005
संपर्क: चाणक्यपुरी, सुसुवाहा, वाराणसी-221011
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