आधुनिक तेलुगु साहित्य अपने आरंभिक काल से ही सामाजिक और राजनैतिक दृष्टि से अत्यंत चेतना संपन्न साहित्य रहा है। समकाल की धड़कनों को समझने और अंकित करने विभिन्न विधाओं के माध्यम से तेलुगु साहित्यकार भारत में अग्रणी रहे हैं। अपनी इस सामाजिक-राजनैतिक संचेतना के कारण आज का साहित्यकार इस बात से अत्यंत विचलित प्रतीत होता है कि इक्कीसवीं सदी में भी जाति और वर्ण के नाम पर समाज में अराजकता और अमानुषिकता का बोलबाला है। समकालीन साहित्यकार इन विसंगतियों की ओर ध्यान केंद्रित कर रहा है। यही कारण है कि 2017 में तेलुगु साहित्य में दलित विमर्श, स्त्री विमर्श और अल्पसंख्यक विमर्श से संबंधित स्वानुभूति पर आधारित अत्यंत महत्वपूर्ण रचनाएँ सामने आई हैं।
यद्यपि दलित विमर्श का प्रचलन बहुत बाद का है तथापि यह तथ्य उल्लेखनीय है कि ‘माकोद्दु नल्ल दोरतनम’ (हमें नहीं चाहिए ये काले अंग्रेज़) के कवि के रूप में प्रसिद्ध कुसुम धर्मन्ना (1900-1946) तेलुगु के प्रथम दलित कवि थे जिन्होंने वर्ण व्यवस्था का खंडन किया था। वे ‘जयभेरी’ के संपादक भी थे। आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने दलितों के उत्थान के लिए संघर्ष किया। उन्होंने ‘हरिजन शतक’, ‘नल्ल दोरतनम’ (काले अंग्रेज़), ‘निम्नजाति तरंगिणी’, ‘मद्यपान निषेधम’ (शराब निषेध), ‘अंटरानिवाल्लम’ (छुआछूत) आदि कविता और निबंध संग्रहों के माध्यम से जनता को चेताया था। अब मद्दुकूरि, पुट्ल हेमलता और अन्य ने कुसुम धर्मन्ना के संपूर्ण साहित्य को ‘कुसुम धर्मन्ना रचनलु’ (कुसुम धर्मन्ना की रचनाएँ) नाम से सात खंडों में संपादित किया है।
तेलुगु साहित्य में शिखामणि के नाम से प्रसिद्ध कवि और आलोचक डॉ. कर्रि संजीव राव ने दलित विमर्श से संबंधित अनेक काव्य संग्रह और आलोचना ग्रंथों की रचना की है। उनके कविता संग्रह ‘चूपुडुवेलु पाडे पाटा’ (तर्जनी के गीत) में संकलित कविताओं का मुख्य स्वर दलित की व्यथा-कथा है।
‘दग्धम कथलु’ (दग्ध कथाएँ) शीर्षक कहानी संग्रह में बूतम मुत्यालु ने दलितों के मानवाधिकारों के हनन का हृदयस्पर्शी चित्रण किया है। ‘जालि’ (दया) शीर्षक कहानी में दलित समुदाय में मानव संबंधों की गरिमा का अंकन किया गया है। ‘मीना’ शीर्षक कहानी दलित बाल मजदूर की आशाओं एवं आकांक्षाओं की कहानी है। पर-स्त्री के कारण पति अपनी पत्नी की हत्या करता है। ऐसे पिता के प्रति प्रतीकार की भावना से पीड़ित पुत्र की कहानी है ‘दग्धम’ (दग्ध)। बाल मनोविज्ञान की दृष्टि से यह कहानी उल्लेखनीय है। धर्म और अंधविश्वासों के नाम पर दलितों पर होने वाले अत्याचारों का पर्दाफाश करने वाली कहानी है बलिमर्मम (बली का मर्म)। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि इस कहानी संग्रह में संकलित कहानियों में दबे हुए और कुचले हुए व्यक्ति की पीड़ा निहित है।
धर्म की आड़ में ढोंगी बाबाओं का राज्य चल रहा है। राजनैतिक दल-बल से जनता के विश्वास को लूटकर कुछ धोखेबाज़ अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं और दिगंबर पूजा के नाम पर अविवाहित स्त्रियों की अस्मत लूट रहे हैं। मोलकपल्लि कोटेश्वर राव ने अपने उपन्यास ‘स्वामुलोरु’ (स्वामीजी) में ऐसे धोखेबाज़ों का पर्दाफाश करते हुए भक्ति और अंधविश्वास के अंतर को स्पष्ट किया है। धर्म, वर्ग, वर्ण, जाति, लिंग, प्रांत आदि के भेदभाव के कारण होने वाले मनुष्य के शोषण का चित्रण अनवर के कहानी संग्रह ‘बकरी’ में सम्मिलित कहानियों में प्रभावी ढंग से किया गया है। अल्पसंख्यक विमर्श की दृष्टि से ये कहानियाँ उल्लेखनीय हैं।
आज भी भारत के अन्य प्रांतों की भाँति तेलुगु भाषी राज्यों में भी बाल मजदूरी प्रथा विद्यमान है। यह भारतीय सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था पर कलंक की तरह है। भारत सरकार ने बाल श्रम के उन्मूलन के लिए अनेक सकारात्मक कदम उठाए हैं, लेकिन आज तक भी बाल मजदूरी को रोक पाना संभव नहीं हो पाया है। आर. शशिकला के कहानी संग्रह ‘माँ तुझे सलाम’ में बाल श्रम, बाल शोषण और बाल मानवाधिकारों से संबंधित मार्मिक कहानियाँ संकलित हैं। ‘चिट्टी चिट्टी मिरियालु’ (छोटी छोटी काली मिर्च) शीर्षक कविता संग्रह में पालपर्ती इंद्राणी ने बाल कविताओं के माध्यम से जीवन मूल्यों को उकेरा है।
तेलुगु साहित्यकार जहाँ एक ओर मानवाधिकारों की बात करते हैं वहीं दूसरी ओर अपनी संस्कृति को भी उजागर करते हैं। उदयमित्र के कहानी संग्रह ‘दोसेडु पल्लीलु’ (मुट्ठी भर मूँगफली) में संकलित 17 कहानियों में तेलंगाना की सांस्कृतिक, राजनैतिक और सामाजिक स्थितियों का मार्मिक अंकन देखा जा सकता है। इन कहानियों में स्त्री शोषण और संघर्ष के विविध आयाम भी बखूबी उभरे हैं। तेलंगाना के भीमदेवरपल्लि मंडल के आंदोलन के इतिहास को डॉ. एरुकोंडा नरसिंहस्वामि और डेगल सूरय्या ने ‘मा पोराटम : भीमदेवरपल्लि मंडल उद्यम चरित्र’ (हमारा आंदोलन : भीमदेवरपल्लि मंडल के आंदोलन का इतिहास) शीर्षक कृति में विस्तार से विवेचित किया है। इसी प्रकार मानवाधिकारों के लिए संघर्षरत के. बालगोपाल ने अपने निबंध संग्रह ‘नक्सलइट उद्यमम : वेलुगु नीडलु (नक्सलइट आंदोलन : प्रकाश और परछाई) में 40 निबंधों तथा एक साक्षात्कार के माध्यम से तेलंगाना क्षेत्र के नक्सलइट आंदोलन के भविष्य और उससे संबंधित अनेक मुद्दों पर वैचारिक मंथन किया है।
तेलंगाना की सांस्कृतिक पहचान है बतुकम्मा। 2014 से यह त्योहार राजकीय लोकपर्व के रूप में मनाया जाने लगा है। इस देवी पूजन से संबंधित अनेक लोककथाएँ प्रचलित हैं। कूतुरु रामरेड्डी के कहानी संग्रह ‘बतुकम्मा कथला संपुटि’ (बतुकम्मा कहानियों का संग्रह) में सम्मिलित 18 कहानियों में बतुकम्मा से संबंधित लोककथाओं के साथ-साथ तेलंगाना आंदोलन का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य और मद्य निषेध आंदोलन आदि का चित्रण है। सुरवरम प्रताप रेड्डी के संपादन में प्रकाशित ‘गोलकोंडा’ पत्रिका में तेलुगु साहित्य और संस्कृति के साथ-साथ सामाजिक और राजनैतिक चेतना, तेलंगाना के परिवेश और संस्कृति से ओत-प्रोत कहानियाँ प्रकाशित हुईं थीं। इनमें से 52 कहानियों को यामिजाल आनंद ने ‘गोलकोंडा पत्रिका कथलु’ (गोलकोंडा पत्रिका की कहानियाँ) शीर्षक से संकलित किया है। आचार्य एस.वी. रामाराव की कृति ‘तेलंगाना सांस्कृतिक वैभवम’ (तेलंगाना का सांस्कृतिक वैभव) में तेलंगाना संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन है। आमगोत वेंकट पवार ने ‘मरो लदणि’ (दूसरा लदणि) में बंजारा संस्कृति का चित्रण किया है। उल्लेखनीय है कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में तेलुगु भाषा के अलग-अलग रूपों का प्रचलन है। यहाँ तक कि पृथक तेलंगाना राज्य की माँग के पीछे निहित कई कारणों में से एक कारण इस क्षेत्र की तेलुगू की निजता की प्रतिष्ठा की माँग भी थी। इस संदर्भ में डॉ. कालुव मल्लय्या का ‘तेलंगाना भाषा, चदुवला तल्लि’ (तेलंगाना की भाषा, ज्ञान की देवी) शीर्षक निबंध संग्रह उल्लेखनीय है।
समकालीन तेलुगु साहित्यकारों ने निम्न और मध्यवर्गीय जीवन शैली और समाज-आर्थिक तथा राजनैतिक स्थितियों को अंकित करने के लिए कथा साहित्य को माध्यम बनाया है। गुंडु सुब्रह्मण्य दीक्षितुलु के ‘अम्मा अज्ञानम’ (माँ का अज्ञान), गुडिपाटि कनकदुर्गा कृत ‘अनुबंधालु-आत्मीयुलु’ (सहयोगी-आत्मीयजन), डॉ. वी. आर. रासानी कृत ‘मुल्लुगर्रा’ (काँटों की छड़ी) शीर्षक कहानी संग्रहों में आम आदमी की कथा अंकित है। आज व्यक्ति भीड़ में भी अकेला होता जा रहा है। संबंध विच्छेद हो रहे हैं। वैवाहिक संबंधों में दरारें आ रही हैं। सुखी दांपत्य जीवन के लिए पति-पत्नी के बीच समंजस्य की आवश्यकता होती है। सफल वैवाहिक जीवन के लिए आवश्यक जानकारियाँ डॉ. गोडवर्ती सत्यमूर्ति के निबंध संग्रह ‘विवाहालु-विभेदालु’ (विवाह-विभेद) में सम्मिलित हैं।
माइग्रेशन के कारण उत्पन्न सांस्कृतिक संक्रमण और समाज-आर्थिक विसंगतियों का चित्रण के. सदाशिव राव के ‘क्रासरोड्स’ शीर्षक कहानी संग्रह में सम्मिलित कहानियों में देखा जा सकता है। उन्होंने वैज्ञानिक फिक्शन के आधार पर कहानियाँ बुनी है जो ‘आत्माफैक्टर’ शीर्षक संग्रह में सम्मिलित हैं।
विरिंची नाम से प्रसिद्ध तेल्लाप्रगडा गोपाल कृष्ण के कहानी संग्रह ‘सहनाववुतु’ में शामिल 24 कहानियों में मध्यवर्गीय मानसिकता, मध्यवर्ग की जीवन शैली, सामाजिक विसंगतियाँ, आर्थिक संकट, स्त्री शोषण और पुरुष मानसिकता से त्रस्त स्त्री का चित्रण है।
बुनकरों पर केंद्रित साहित्य कम देखने को मिलता है। बुनकरों की जीवन शैली, उनकी परंपरागत कला, आर्थिक संकट आदि को कथावस्तु बनाकर रचित 58 कहानियों को डॉ. मेडिकुर्ति ओबुलेसु, वेल्लंदि श्रीधर और सिंगिशेट्टि श्रीनिवास ने ‘पडुगु पेकलु’ (ताना-बाना) शीर्षक से संकलित किया है।
रजक (धोबी) जाति का मुख्य कार्य कपड़े धोना, रंगना और इस्त्री करना है। आंध्र प्रदेश के मेडुलमिट्टा नामक स्थान के रजकों की जीवन शैली, आर्थिक और सामाजिक स्थिति, संस्कृति और विभिन्न संस्कारों को विंजमूरि मस्तानबाबु ने अपनी कहानियों की विषयवस्तु बनाया है। इन कहानियों को ‘मेडुलमिट्टा कथलु’ (मेडुलमिट्टा की कहानियाँ) शीर्षक संग्रह के रूप में प्रकाशित किया गया है।
विकास के नाम पर मनुष्य विनाश कर रहा है। प्रकृति का दोहन कर रहा है। उर्वर कृषि मैदानों की छाती पर कंक्रीट भवनों का निर्माण कर रहा है। झोंपड़पट्टियों में रहने वालों की स्थिति और भी दयनीय है। यदि ऐसी ही स्थिति रहेगी तो भविष्य में जल, जमीन और जंगल की अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। सलीम ने अपने कहानी संग्रह ‘नीटिपुट्टा’ (पानी का बिल) में इन स्थितियों को उजागर किया है और यह आशा व्यक्त की है कि भविष्य में मनुष्य कंक्रीट जंगलों को ध्वस्त करके कृषि प्रधान भूमि निर्मित करेगा।
समकालीन समाज में व्याप्त सामाजिक एवं राजनैतिक विद्रूपताओं पर प्रहार करने के लिए साहित्यकार हास्य-व्यंग्य का सहारा ले रहा है क्योंकि व्यंग्य पाठक को गुदगुदाने के साथ-साथ सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विसंगतियों के उद्घाटन द्वारा पाठक को विचलित करता है। तेलुगु के हास्य-व्यंग्य लेखक यासीन ने अपनी व्यंग्य कृति ‘हा... हा... कारालु’ (हाहाकार) में सामाजिक एवं राजनैतिक विद्रूपताओं का पर्दाफाश करने के साथ-साथ सांस्कृतिक मूल्य संक्रमण को भी उजागर किया है। हास्यब्रह्म शंकरनारायण ने ‘इंगलीशुकु तल्लि तेलुगु?!’(इंगलिश की जननी तेलुगु?!) में उदाहरणों के साथ यह कहा है कि तेलुगु के शब्दों को तोड़ मरोड़कर अंग्रेजी में प्रयोग किया जा रहा है। उदाहरण के लिए तेलुगु शब्द ‘मनिषी’ (मनुष्य) को तोड़ने से अंग्रेजी के शब्द बनते हैं – ‘मनी’ और ‘शी’। शंकर नारायण की एक और हास्य कृति है ‘तीपिगुर्तुलु’ (मीठी स्मृतियाँ)।
यात्रा साहित्य में मुत्तेवि रवींद्रनाथ कृत ‘मा कश्मीर यात्रा’ (हमारी कश्मीर यात्रा), जीवनी साहित्य में सी. भवानी देवी कृत ऊटुकूरि लक्ष्मीकास्तम्मा, संजय किशोर कृत फिल्म अभिनेता अक्किनेनी नागेशवरराव के जीवन पर आधारित ‘मना अक्किनेनी’ (हमारा अक्किनेनी), कूनपराजु कुमार कृत फिल्म के हास्य-व्यंग्य कलाकार एम.एस. नारायण की जीवनी, वेंकट सिद्दारेड्डी कृत सिनेमा का आलोचनात्मक संग्रह ‘सिनीमा ओका आल्केमी’ (सिनेमा एक आल्केमी), डॉ. के. किरण कुमार कृत ‘जी.एस.टी. गाइड’, ममता वेणु के काव्य संग्रह ‘मल्लेचेट्टु चौरस्ता’ (चमेली का चौराहा), श्रीनागास्त्र के काव्य संग्रह ‘गायपड्डा गुंडे भाषा’ (घायल हृदय की भाषा) आदि विभिन्न विधाओं की कृतियाँ सामने आई हैं। वांड्रंगी कोंडल राव कृत ‘ऊरु-पेरु : आंध्र प्रदेश’ (गाँव-नाम : आंध्र प्रदेश) में आंध्र के 13 जिले के कुछ चयनित गाँव और शहरों के नाम, स्थान विशेष की जानकारी, ऐतिहासिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विरासत आदि सम्मिलित हैं। यह पुस्तक क्षेत्र कार्य पर आधारित है। विन्नकोटा रविशंकर कृत आलोचनात्मक कृति ‘कवित्वमलो नेनु’ (कविता में मैं) में कोकानी, श्रीश्री जैसे प्रतिष्ठित कवियों के विचार और उनसे से जुड़ी स्मृतयों को सँजोया गया है।
तेलुगु साहित्य में मौलिक लेखन के साथ-साथ अनुवाद का कार्य भी चल रहा है। अष्टम अनुसूची में उल्लिखित 22 भारतीय भाषाओं की प्रमुख कहानियों को तेलुगु में अनूदित करके काकानी चक्रपाणि ने ‘भारतीय कथा भारती’ नामक महाकाय ग्रंथ में सम्मिलित किया है। कहानी के साथ-साथ मूल लेखक का परिचय भी सम्मिलित है। अनुवादों के माध्यम से भारत की सामासिक संस्कृति को अक्षुण्ण रखा जा सकता है।
वर्ण व्यवस्था आज भी समाज में व्याप्त है। पश्चिमी तमिलनाडु के कोंगुनाडु में स्थिति तोलूर गाँव में दो प्रेमियों को जाति के नाम पर मौत के घाट उतार दिया गया। इसका सशक्त चित्रण पेरुमाल मुरुगन ने अपने तमिल उपन्यास ‘पूकुलि’ में किया है। के. सुरेश ने तेलुगु में ‘चिति’ (चिता) शीर्षक से इसका अनुवाद किया है। इसमें मजदूर शोषण और स्त्री शोषण को भी दर्शाया गया है। इसमें शोषण के प्रसंग अत्यंत मार्मिक बन पड़े हैं जो पाठक की चेतना को झकझोरती हैं।
कोलूरि सोमशंकर ने हिंदी, उर्दू, बांग्ला और अंग्रेजी की कहानियों को तेलुगु में रूपांतरित करके ‘नान्ना तोंदरगा वच्चेई’ (पापा जल्दी आ जाना) शीर्षक कहानी संग्रह में प्रकाशित किया है। अटल बिहारी वाजपेयी की जीवनी पर आधारित विजय त्रिवेदी की कृति ‘हार नहीं मानूँगा’ का आचार्य यार्लगड्डा लक्ष्मीप्रसाद ने ‘वोटमिनि अंगीकरिंचनु’ के रूप में रूपांतरित किया है। नगराजु रामस्वामी ने ‘ई पुडमि कवित्वम आगदु : जॉन कीट्स कविता वैभवम’ (इस धरती की कविता रुकेगी नहीं : जॉन कीट्स का काव्य वैभव) के रूप में जॉन कीट्स की कविताओं का काव्यानुवाद प्रस्तुत किया है। के. सदाशिवराव ने ‘काव्य कला’ शीर्षक से स्पेन, जर्मनी, फ्रांस, अफ्रीका, हंगेरी, क्यूबा और रूस की कविताओं का काव्यानुवाद प्रस्तुत किया है।
उपर्युक्त सर्वेक्षण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वर्ष 2017 में तेलुगु साहित्यकारों की दृष्टि मुख्य रूप से हाशियाकृत समूहों और हाशियाकृत प्रश्नों पर केंद्रित रही। यदि यह कहा जाए कि इस वर्ष सभी विधाएँ हाशिए पर फोकस रहीं तो अनुचित न होगा। इस वर्ष विभिन्न विधाओं की कृतियों में दलित, स्त्री, अल्पसंख्यक, उपेक्षित श्रमिक, बालक, किसान और पारिस्थितिकी से जुड़े प्रश्न मुख्य विषयवस्तु बनते दिखाई दिए। यह तेलुगु साहित्य की सटीक समकालीनता का ज्वलंत प्रमाण है।
संदर्भ
[1] कुसुम धर्मन्ना रचनलु (कुसुम धर्मन्ना की रचनाएँ)/ (सं) मद्दुकूरि, पुट्ल हेमलता और अन्य/ प्रजाशक्ति पब्लिकेशन्स
[2] चूपुडुवेलु पाडे पाटा (तर्जनी के गीत)/ शिखामणि/ मूल्य : रु. 150/ नवोदया बुक हाउस, हैदराबाद
दग्धम कथलु (दग्ध कथाएँ)/ बूतम मुत्यालु/ पृष्ठ 116/ मूल्य : रु. 80
[3] स्वामुलोरु (स्वामीजी)/ मोलकपल्लि कोटेश्वर राव/ पृष्ठ 160/ मूल्य : रु. 120/ विशालांध्रा पब्लिशिंग हाउस, विजयवाडा
[4] बकरी/ अनवर/ पृष्ठ 140/ मूल्य रु. 80
[5] माँ तुझे सलाम/ आर. शशिकला/ पृष्ठ 104/ मूल्य रु. 60
[6] चिट्टी चिट्टी मिरियालु (छोटी छोटी काली मिर्च)/ पालपर्ती इंद्राणी/ पृष्ठ 80/ मूल्य : रु. 50/ जे. आई. पब्लिकेशन्स
[7] दोसेडु पल्लीलु (मुट्ठी भर मूँगफली)/ उदयमित्र/ पृष्ठ 175/ मूल्य : रु. 120
[8] मा पोराटम : भीमदेवरपल्लि मंडल उद्यम चरित्र (हमारा आंदोलन : भीमदेवरपल्लि मंडल के आंदोलन का इतिहास)/ एरुकोंडा नरसिंहस्वामि, डेगल सूरय्या/ पृष्ठ 264/ मूल्य : रु. 200
[9] नक्सलइट उद्यमम : वेलुगु नीडलु (नक्सलइट आंदोलन : प्रकाश और परछाई)/ के. बालगोपाल/ पृष्ठ 306/ मूल्य : रु. 200
[10] बतुकम्मा कथला संपुटि (बतुकम्मा की कहानियों का संग्रह)/ कूतुरु रामरेड्डी/ पृष्ठ 180/ मूल्य : रु. 120
[11] गोलकोंडा पत्रिका कथलु (गोलकोंडा पत्रिका की कहानियाँ)/ (सं) यामिजाल आनंद/ पृष्ठ 252/ मूल्य : रु. 190
[12] तेलंगाना सांस्कृतिक वैभवम (तेलंगाना संस्कृति का वैभव)/ आचार्य एस.वी. रामाराव/ पृष्ठ 252/ मूल्य : रु. 252
[13] मरो लदणि (दूसरा लदणि)/ आमगोत वेंकट पवार/ पृष्ठ 149/ मूल्य : रु. 100
[14] तेलंगाना भाषा, चदुवला तल्लि (तेलंगाना की भाषा, ज्ञान की देवी)/ कालुव मल्लय्या/ पृष्ठ 106/ मूल्य : रु. 100
[15] अम्मा अज्ञानम (माँ का अज्ञान)/ गुंडु सुब्रह्मण्य दीक्षितुलु/ पृष्ठ 248/ मूल्य : रु. 125
[16] अनुबंधालु-आत्मीयुलु (सहयोगी-आत्मीयजन)/ गुडिपाटि कनकदुर्गा/ पृष्ठ 251/ मूल्य अंकित नहीं
[17] मुल्लुगर्रा (काँटों की छड़ी)/ डॉ. वी. आर. रासानी/ पृष्ठ 252/ मूल्य : 170
[18] विवाहालु-विभेदालु (विवाह-विभेद)/ डॉ. गोडवर्ती सत्यमूर्ति/ पृष्ठ 219/ मूल्य : रु. 150
[19] क्रासरोड्स/ के. सदाशिव राव/ पृष्ठ 152/ मूल्य : रु. 75
[20] आत्माफैक्टर/ के. सदाशिव राव/ पृष्ठ 480/ मूल्य : रु. 250
[21] सहानाभवुतु/ विरिंची/ पृष्ठ 264/ मूल्य : रु. 150
[22] पडुगु पेकलु (ताना-बाना)/ (सं) मेडिकुर्ति ओबुलेसु, वेल्लंदि श्रीधर और सिंगिशेट्टि श्रीनिवास/ पृष्ठ 568/ मूल्य : रु. 300
[23] मेडुलमिट्टा कथलु’ (मेडुलमिट्टा की कहानियाँ)/ विंजमूरि मस्तानबाबु/ पृष्ठ 160/ मूल्य : रु. 50
[24] नीटिपुट्टा (पानी का बिल)/ सलीम/ पृष्ठ 184/ मूल्य : रु. 150
[25] हा... हा... कारालु (हाहाकार)/ यासीन/ पृष्ठ 206/ मूल्य : रु. 160
[26] ‘इंगलीशुकु तल्लि तेलुगु?!’(इंगलिश की जननी तेलुगु?!)/ हास्यब्रह्म शंकरनारायण/ पृष्ठ 186/ मूल्य : रु. 144
[27] तीपिगुर्तुलु’ (मीठी स्मृतियाँ)/ हास्यब्रह्म शंकरनारायण/ पृष्ठ 200/ मूल्य : रु. 150
[28] मा कश्मीर यात्रा (हमारी कश्मीर यात्रा)/ मुत्तेवि रवींद्रनाथ/ पृष्ठ 216/ मूल्य : रु. 250
[29] ऊटुकूरि लक्ष्मीकास्तम्मा/ सी. भवानी देवी/ पृष्ठ : 132/ मूल्य : रु. 50/ साहित्य अकादमी
[30] मना अक्किनेनी (हमारा अक्किनेनी)/ संजय किशोर/ पृष्ठ 335/ मूल्य : रु. 2000
[31] एम.एस. नारायण जीवित कथा (एम.एस. नारायण की जीवनी)/ कूनपराजु कुमार/ पृष्ठ 208/ मूल्य : रु. 175
[32] सिनीमा ओका आल्केमी (सिनेमा एक आल्केमी)/ वेंकट सिद्दारेड्डी/ पृष्ठ 272/ मूल्य : रु. 130
[33] जी.एस.टी. गाइड/ डॉ. के. किरण कुमार/ पृष्ठ 160/ मूल्य : रु. 125
[34] मल्लेचेट्टु चौरस्ता (चमेली का चौराहा)/ ममता वेणु/ पृष्ठ 100/ मूल्य अंकित नहीं
[35] गायपड्डा गुंडे भाषा (घायल हृदय की भाषा)/ श्रीनागास्त्र/ पृष्ठ 132/ मूल्य : 100
[36] ऊरु-पेरु : आंध्र प्रदेश (गाँव-नाम : आंध्र प्रदेश)/ वांड्रंगी कोंडल राव/ पृष्ठ 280/ मूल्य : रु. 100
[37] कवित्वमलो नेनु (कविता में मैं)/ विन्नकोट रविशंकर/ पृष्ठ 275/ मूल्य : रु. 100
[38] भारतीय कथा भारती/ (अनुवाद) काकानी चक्रपाणि/ पृष्ठ 800/ मूल्य : रु. 400
[39] चिति (चिता)/ (अनुवाद) के. सुरेश/ पृष्ठ 160/ मूल्य : रु. 100
[40] नान्ना तोंदरगा वच्चेई (पापा जल्दी आ जाना)/ कोलूरि सोमशंकर/ पृष्ठ 66/ मूल्य : 80
[41] वोटमिनि अंगीकरिंचनु : अटलबिहारी वाजपेयी जीवन गाथा (हार नहीं मानूँगा : अटलबिहारी वाजपेयी जीवन गाथा)/ यार्लगड्डा लक्ष्मीप्रसाद/ पृष्ठ 420/ मूल्य : 399
[42] ई पुडमि कवित्वम आगदु : जॉन कीट्स कविता वैभवम (इस धरती की कविता रुकेगी नहीं : जॉन कीट्स का काव्य वैभव)/ नगराजु रामस्वामी
[43] काव्य कला/ के. सदाशिवराव/ पृष्ठ 308/ मूल्य : रु. 150