‘कुरुक्षेत्र ’ को अनुवाद करने के लिए विशेष रूप से आपने अंग्रेज़ी भाषा को ही क्यों चुना ?
‘कुरुक्षेत्र ’ काव्य का अंग्रेज़ी भाषा में रूपांतरित होना इसलिए वांछनीय है कि अंग्रेज़ी विश्व की समर्थ भाषा है और विश्व साहित्य की परिकल्पना उसी के द्वारा साकार हो सकती है. यदी कोई रचना उस भाषा में अनूदित होती है तो विश्व मानव समुदाय उससे लाभान्वित होता है. अंग्रेज़ी को ही चुनने का एक कारण यह भी है कि भारत में आज भी अंग्रेज़ी उच्चतर भावों व विचारों को व्यक्त करने के लिए एक समर्थ माध्यम है. जो पाठक हिंदी नहीं जानते हैं वे अंग्रेज़ी के माध्यम से ‘कुरुक्षेत्र ’ जैसी रचना का रसास्वादन कर सकते हैं. यदि कोई रचना अंग्रेज़ी में अनूदित होती है तो विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में इस कृति के रूपांतरित होने की अत्यधिक संभावना है.
आप के अनुसार इस कृति की क्या विशेषताएँ हैं ?
‘कुरुक्षेत्र ’ दिनकर का ऐसा कालजयी विचारोत्तेजक प्रबंध काव्य है जिसमें मानव समाज की वैयक्तिक, राजनैतिक एवं सामाजिक समस्याओं पर विभिन्न दृष्टियों से विचार किया गया है. अनादि काल से मानव के वैयक्तिक एवं सामूहिक संघर्षों के कारणों पर महाभारत युद्ध के पश्चात् भीष्म और युधिष्ठिर के बीच वार्तालाप के माध्यम से विचार किया गया है. युद्ध और शांति के अनेक आयामों को मुखरित किया गया है और मानव समाज को युद्ध मुक्त करने के उपायों पर भी सोचा गया है. आधुनिक युग में वैज्ञानिक आविष्कारों के फलस्वरूप निर्मित अणुबम और प्रक्षेपास्त्रों की जन संहार शक्ति का दिग्दर्शन इस कृति में हुआ है. इस काव्य में माहाभारत युद्ध के नेपथ्य में युद्ध की समस्या पर विचार मंथन हुआ है. इस तरह युद्ध भय से संत्रस्त आज के विश्व नागरिक के लिए इस कृति की प्रासंगिकता असंदिग्ध है.
अनुवाद करते समय शब्द के स्तर पर क्या क्या समस्याएँ आई हैं ?
अनुवाद करते समय शब्द चयन के स्तर पर कई समस्याएँ आ गई हैं. पहली समस्या यह है कि हिंदी शब्दों के समानार्थी अंग्रेज़ी शब्दों का चयन कैसे किया जाय. मूल पाठ के कथ्य को प्रभावशाली ढ़ंग से अंग्रेज़ी में उतारने के लिए मुझे अपने अंग्रेज़ी भाषा ज्ञान पर आधृत होना पड़ा है. कविता के क्षेत्र में प्रत्येक शब्द का अपना एक निश्चित अर्थ होता है और उस अर्थ के साथ वह शब्द एक विशिष्ट बिंब या चित्र को प्रस्तुत करता है. अतः जैसे कवि अपने सृजन कर्म में अपनी भाषा के शब्दों को चुनता है वैसा ही अनुवादक को भी लक्ष्य भाषा में समानार्थी एवं समान बिंबधर्मी शब्दों का चयन करना पड़ता है. दूसरी समस्या है, अंग्रेज़ी काव्यानुवाद में भावाभिव्यक्ति के लिए ऐसे शब्द चुने जाए जो विचारों का वहन करनेवाली भाषा शैली के प्रवाह में बाधक न हों. अतः अंग्रेज़ी शब्दों की लयात्मकता पर भी मुझे विशेष ध्यान देना पड़ा है. अनुवाद में शब्दों की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर भी ध्यान दिया गया है, जैसे ‘वैतरणी ’ का अनुवाद ग्रीक मिथक में संप्राप्त ‘Styx ' किया गया है. दोनों शब्द नरक में प्रवाहमान भयावह नदियाँ हैं.
मूल पाठ की संवेदना को रूपांतरित करने में किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
मूल पाठ की संवेदना को रूपांतरित करते समय मुझे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. मुख्य समस्या तो यही है कि मूल पाठ की संवेदना को अंग्रेज़ी में सफलता के साथ कैसे उतारा जाय. जितनी सहजता से दिनकर अपनी काव्य शैली में भावों एवं विचारों को हिंदी में उतारते हैं, उसी संवेदना को, उसी शैली को आत्मसात करते हुए अंग्रेज़ी में प्रत्येक पंक्ति का पुनःसृजन करने की चेष्टा मैं ने की. अंग्रेज़ी में ठीक समांतर अभिव्यक्ति प्राप्त करने के लिए प्रत्येक छंद को कई बार बदलना पड़ा है. जब तक छंद का अनुवाद अंग्रेज़ी में ठीक उतरता नहीं है, तब तक काव्यानुवाद की यह प्रक्रिया चलती रही. जब मूल छंद और अनूदित छंद में एकरूपता, लयात्मकता तथा प्रभावोत्पादकता में सामंजस्य बैठ जाता है तब आगे के छंद की ओर मैं अग्रसर होने लगता. वास्तव में काव्य सर्जना या काव्यानुवाद की प्रक्रिया एक मधुर सुखात्मक अनुभूति है. इसी कारण कुछ छंदों के अनुवाद के पीछे कई घंटे लागाने पर भी वह श्रम बड़ा सुखद ही लगता था.
अन्य व्याकरणिक स्तरों पर क्या समस्याएँ आई ?
‘कुरुक्षेत्र ’ के अंग्रेज़ी काव्यानुवाद के संदर्भ में व्याकरणिक स्तरों पर अधिक समस्याएँ उपस्थित नहीं हुई हैं. वाक्यों में संबंधकारकों के संदर्भ में यद्यपि सावधानी बरतनी पड़ी है. हिंदी की काव्य शैली में कहीं कहीं एक साथ कई विशेषणों का प्रयोग किया गया है, वहाँ पर अंग्रेज़ी भाषा की प्रकृति के अनुरूप उन्हें घटा दिया गया है ताकि अनुवाद में सहजता का समावेश हो.
कृति के प्रतिपाद्य को अंग्रेज़ी में रूपांतरित करने के लिए आपने किस तरह की अनुवाद प्रक्रिया अपनाई ?
कृति के प्रतिपाद्य को अंग्रेज़ी में रूपांतरित करते समय जो अनुवाद प्रक्रिया अपनाई गई है, वह यह है कि मूल कृति का पुनःसृजन अंग्रेज़ी में हो. इसके लिए कृति के प्रतिपाद्य को सीधे पाठकों के मन में उसी तरह उतारना जिस तरह मूल पाठ में किया गया है. युद्ध की समस्या तथा उसका निदान दिनकर के विचारों के प्रवाह में उभर आया है. अतः अनुवाद में भी मूल कवि दिनकर ने जितनी स्पष्टता के साथ प्रस्तुत किया है, उसी ‘टोन ’ व ‘ट्यून ’ में लाना ही मेरा लक्ष्य रहा है. प्रतिपाद्य को संप्रेषित करने के लिए उसके अनुकूल अनुवाद की शैली को प्रवाहमय बनाने की चेष्टा की गई है. मूल एवं अनुवाद दोनों की समतुल्यता को ध्यान में रखकर अनुवाद कार्य हुआ है.
इस कृति के अनूदित पाठ में सप्तम सर्ग में निम्नलिखित अंश छूटा हुआ है - "और, कहे, क्या स्वयं उसे /कर्तव्य नहीं करना है ? / नहीं काम कर सही भीख से / क्या न उदर भरता है ?" (मूल पृ.94, अं.अ.पृ. 93). इसके बारे में आपका क्या विचार है ?
मैंने उपर्युक्त छंद का भी अनुवाद किया है. प्रकाशन के समय शायद इसका अनुवाद छूट गया हो. मुद्रण की असावधानी भी इसका कारण हो सकता है. दूसरे संस्करण में इस छंद का अनुवाद भी जोड़ा जाएगा.
इस रचना के अनुवाद करने की योजना कैसी बनी ?
इस रचना के अनुवाद की कोई सुनिश्चित योजना नहीं थी. वास्तव में 1965 में ही मैंने ‘कुरुक्षेत्र ’ के द्वितीय सर्ग का अंग्रेज़ी अनुवाद किया था. युद्ध की समस्या पर व्यक्त दिनकर के विचारों को अंग्रेज़ी में प्रस्तुत करना ही तब मेरा लक्ष्य था. जब दिनकर जी का देहांत 1974 में मद्रास में हुआ तो उनकी कविता से अंग्रेज़ी पाठकों को परिचित कराने की दृष्टि से मैंने उस समय दिल्ली से निकलनेवाली अंग्रेज़ी दैनिक पत्रिका ‘नेशनल हेराल्ड ’ के संपादक चलपतिराव को भेजा तो उन्होंने तत्काल पूरे सर्ग को ‘Thus Spoke Bhishma ' के शीर्षक से प्रकाशित किया. जब मैं 1988 में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् की ओर से विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में बेल्जियम गया था वहाँ अमेरिका और ईरान के बीच भयानक यद्ध छिड़ गया. इस युद्ध के साथ ‘कुरुक्षेत्र ’ की प्रासंगिकता बढ़ गई. तब मैंने अन्य छह सर्गों का काव्यानुवाद 27 दिनों में कर डाला और मेरे मित्र डॉ.यिनांद एम.कालवार्ट को दिखाया. मैंने अनुवाद को कंप्यूटर में डाला और मेरे मित्र ने कई स्थानों पर अभिव्यक्ति को बदलने में योग दिया. इसी कारण मैंने कालवार्ट को सह-अनुवादक बनाया. मेरी मित्र मंडली ने इस अनुवाद की प्रशंसा की और उसे प्रकाशित किया.
आप अनूदित कृति के किस पक्ष को महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय मानते हैं और क्यों ?
अनूदित कृति के वस्तुपक्ष को इसलिए मैं महत्वपूर्ण मानता हूँ क्योंकि इसमें एक कालजयी राजनीतिक एवं सामाजिक समस्या पर बड़े विस्तार से प्रकाश डाला गया है. चिरंतन काल से मानव समाज को आतंकित करनेवाली ‘युद्ध की समस्या ’ के कारणों और उसके निवारण के उपायों परा विचार किया गया है. आज के भारत-पाक के विवाद व संघर्ष का ब्यौरा भी इस कृति में मिलता है. युद्ध की यह समस्या समसामायिक होने के साथ साथ सर्वकालीन है. यह अनूदित कृति विश्व के समक्ष इस भयावह युद्ध की समस्या को रेखांकित करते हुए विश्व को चिरंतन शांति देती है.
क्या आपने इस अनुवाद के लिए कोश आदि की भी सहायता ली ? या केवल भाव बोध के आधार पर अनुवाद किया ?
इस अनुवाद के लिए कई कोशों की सहायता ली गई है. जहाँ पर मुझे अंग्रेज़ी के ठीक शब्द नहीं मिलते थे और जहाँ मेरी अभिव्यक्ति को सशक्त बनाने के आवश्यकता होती थी, वहाँ मैंने हिंदी-अंग्रेज़ी कोश, अंग्रेज़ी-अंग्रेज़ी कोश तथा अंग्रेज़ी के समानार्थी कोश (Thesaurus) आदि कोशों की सहायता ली.
इस अनुवाद कार्य से आपको कितनी और किस तरह की आत्मसंतुष्टि प्राप्त हुई ?
इस अनुवाद कार्य से मुझे अतीव आत्मसंतुष्टि मिली. वास्तव में मैं स्वांतः सुखाय ही अंग्रेज़ी काव्यानुवाद की ओर प्रवृत्त हुआ. हिंदी व तेलिगु की कालजयी काव्य कृतियों को अंग्रेज़ी में रूपांतरित करना मेरी साहित्यिक साधना का एक आयाम है. मेरा एक संकल्प ‘कुरुक्षेत्र ’ काव्यानुवाद के साथ पूरा हो गया. मैंने यह अनुभव किया कि मैंने दिनकर की इस महान कृति को अंग्रेज़ी पाठकों के समक्ष प्रभावशाली शैली में प्रस्तुत किया है. यह मेरी आत्मतुष्टि का प्रमुख कारण है.
अनुवाद करते समय यदि कुछ रोचक अनुभव हुए हैं तो उनका उल्लेख करेंगे ?
अनुवाद स्वयं अपने आप में एक अवतंत्र निर्माण है और काव्यानुवाद में प्रवृत्त लेखक को एक प्रकार का आनंद प्राप्त होता है. मैं इस अनुवाद को समाप्त करने के लिए हर रोज नियमित रूप से 5 पृष्ठों का अनुवाद कर लेता था. समय को निश्चित कर लेने के कारण एक महीने की अवधि में ही उसका प्रथम पाठ (First Draft) पूरा हुआ. उसे संशोधित एवं परिवर्धित किया. जब तक प्रत्येक छंद का सटीक या आदर्श अनुवाद प्रस्तुत नहीं होता तब तक एक बेचैनी मुझे सताया करती थी.
हिंदी से अंग्रेज़ी में साहित्यिक अनुवाद से क्या लाभ हैं ?
हिंदी भारत की प्रमुख राष्ट्रभाषा है और उसमें समृद्ध साहित्य भी है. अंग्रेज़ी विश्व की संपर्क भाषा है और उसमें विश्व साहित्य के महान ग्रंथ उपलब्ध होते हैं. अंग्रेज़ी अनुवादों द्वारा ही आस्वादन किया जा सकता है. अंग्रेज़ी अनुवादों द्वारा ही विश्व का पाठक अन्य साहित्यों से परिचित हुआ है. अतः हिंदी से अंग्रेज़ी में साहित्यिक अनुवाद से हिंदी के लेखक एवं उनके ग्रंथ विश्व स्तर पर पढ़े जाते हैं.
भारत की प्रमुख भाषाओं में अंग्रेज़ी का अपना स्थान है. आज भी वह शिक्षित समाज के व्यवहार की भाषा है. अतः भारत में भी अहिंदी भाषी, जो अंग्रेज़ी जानते हैं, वे हिंदी ग्रंथों को अंग्रेज़ी अनुवाद के माध्यम से पढ़कर हिंदी साहित्य का रसास्वादन कर सकते हैं.
इस स्मय क्या आप कोई अंग्रेजी में स्नुवाद कार्य कर रहे हैं ? या फिर कोई योजना बना रहे हैं ?
आज से चालीस वर्ष पूर्व ही (1962 में) जब मैं शोध कर रहा था, तब दिनकर की ‘उर्वशी ’ का प्रकाशन हुआ. जब मैं, शोध कार्य करता था तब मैं आत्मतोष के लिए ‘उर्वशी ’ का अंग्रेज़ी अनुवाद करने लगा. 1964 तक मैंने उसके तीन अंकों का अनुवाद पूरा किया. अन्य विषयों में व्यस्त होने के कारण मैंने बचे हुए भाग का अनुवाद नहीं किया. मद्रास में स्थित दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के स्नातकोत्तर विभाग में मैं अक्तूबर 1964 में प्राध्यापक बना. 1967 में जब दिनकर जी हमारे विभाग में आए थे मैंने ‘उर्वशी ’ के अंग्रेज़ी अनुवाद के प्रथम तीन अंक उन्हें समर्पित किया. दूसरे दिन दिनकर जी से मिलने के लिए गोयंका के आवास पर मैं गया और उनसे मिला. तब तक उन्होंने मेरे अंग्रेज़ी अनुवाद को पढ़ लिया. मेरे अनुवाद से संतुष्ट होकर उन्होंने अंग्रेज़ी में ही मुझ से कहा "Dr.Rao if you can complete the rest, it will be a wonderful feat in India". दिनकर जी के जीवनकाल में मैं उस अनुवाद को पूरा क नहीं सका. 1974 में दिनकर जी के निधन होने पर अंग्रेज़ी दैनिक ‘नेशनल हेराल्ड ’ में दो हफ्तों तक ‘उर्वशी ’ का मेरा अंग्रेज़ी काव्यानुवाद छपता ही रहा. 1988 में (बेल्ज़ियम में रहते समय) ‘उर्वशी ’ का अनुवाद पूरा किया.
मैंने अपने गुरुवर तथा तेलुगु व हिंदी के विख्यात कवि आलूरि बैरागी जी की प्रायः सभी तेलुगु कविताओं का अनुवाद चार भागों में किया है. उनके शीर्षक हैं - ‘Voices From The Empty Well', `The Broken Mirror', `The Unwritten Poetry', `Tamilnadu, My Foster Mother'. डॉ.नगेंद्र जी के आग्रह पर उनके कवि मित्र श्री रामनिवास जाजू के दो काव्य संग्रहों का अंग्रेज़ी पद्यानुवाद प्रस्तुत किया - `Quest For Love' and `Puppets Of Time'.
मैंने 20 वीं शताब्दी के पचास से अधिक प्रतिनिधि हिंदी कवियों की कविताओं का अंग्रेज़ी काव्यानुवाद किया है. यह ‘Modern Hindi Poetry (20th Century) ’ नाम से प्रकाशित है.
आगे भी कई योजनाएँ हैं. समय का अभाव है. तेलुगु के प्रसिद्ध कथाकार गुडिपाटि वेंकट चलम् के प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय उपन्यासों का अंग्रेज़ी अनुवाद प्रस्तुत करने का संकल्प मुझमें है.
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