(Photos by dr.balaji, radhakrishna & self)
३०-३१ मार्च, २०११ को आयोजित शमशेर शताब्दी समारोह से मैंने बेहद लाभ उठाया है| दोनों दिन संगोष्ठी स्थल पर किसी मेले जैसा दृश्य था| हैदराबाद में गंगा - जमुनी तहजीब को देखने का अवसर प्राप्त हुआ|
नामवर जी को सुनने और उनसे मिलने का जो अवसर प्राप्त हुआ है इसे मैं कभी भूल नहीं सकती| इतना ही नहीं इस संगोष्ठी के कारण मुझे अनेक विद्वानों से परिचय और विचार विमर्श का जो अवसर मिला वह हैदराबाद जैसे शहर में रहते हुए प्रायः सुलभ नहीं होता|
विद्यार्थी जीवन में तो मैंने सिर्फ शमशेर के बारे में परीक्षा की दृष्टि से ही कामचलाऊ सा कुछ पढ़ा था, वह भी कुछ कविताएँ, पर इस संगोष्ठी के कारण मैं शमशेर की गद्य रचनाओं से भी परिचित हो पाई| यह वास्तव में बहुत बड़ी उपलब्धि है| अगर यह कहूँ कि डॉ.अर्जुन चव्हाण और डॉ. रोहिताश्व का ग्यारहवें घंटे में आने से मुकर जाना मेरे लिए अच्छा ही रहा तो गलत न होगा. उनके न आ पाने के कारण डॉ. मृत्युंजय सिंह को और मुझे गद्य और कहानी पर परचा तैयार करने को कहा गया. डरते डरते रात भर बैठकर विभागाध्यक्ष जी के आदेश का पालन किया. प्रस्तुति पर सभी ने जो प्रोत्साहन दिया उसे कभी भूल न सकूंगी.
मैंने कभी कल्पना में भी नहीं सोचा था कि विद्वानों के समक्ष शमशेर की कहानियों पर शोध पत्र प्रस्तुत करने का अवसर मुझे प्राप्त होगा| इस बहाने ही सही मुझे शमशेर की कहानी `प्लाट का मोर्चा' पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ|
इन यादों को कभी भूल नहीं सकती|
समारोह की विस्तृत रिपोर्ट यहाँ पढ़ी जा सकती है.
3 टिप्पणियां:
शमशेर शताब्दी समारोह की रोचक रपट...
इस समारोह में उठाए गए कुछ मुद्दों पर चर्चा की दरकार है॥
समारोहों में भाग लेने का सौभाग्य तो कुछ ही लोगों को मिलता है और ऐसे मौके जीवन में हमेशा नहीं मिलते। आपने इस स्वर्ण अवसर का लाभ उठाय़ा, बधाई॥
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