(श्रद्धेय गुरुदेव प्रो.दिलीप सिंह जी को सादर समर्पित)
भाषा परिज्ञानमु,
वाक् चातुर्युमु,
क्रंगुना म्रोगे कंठमु,
चिरुनव्वु तो कूडिना मोमु।
आप्यायंगा पलकरिंचि
नेनुन्नाननि अभयमिच्चे हस्तमु।
आरबाटमु लेनि सहज जीवनमु।
शत्रुवुनैना क्षमिंचि अक्कुना चेर्चुकोने व्यक्तित्वमु।
इवन्नी कलबोसिना तेजोमूर्तिवि नीवु।
मा मार्गदर्शीवि नीवु।
नी षष्ठिपूर्ति वेडुकलु
अंभरान्नि अंटिते,
मा मदिलोनि संभरालु
एल्लुवलु दाटाते
कोट्लादि अभिमानुल शुभाकांक्षलतो
भुवि मारुम्रोगिते,
दिविनुंचि देवतल दीवेनलु
एरुलै प्रवहिस्तायि।
नी चिरुनव्वे माकु दीवेना।
नी अभयहस्तमे माकु दिक्सूची।
नी वक्कु माकु वेदमु।
नी अनुरागमे माकु कोंडंत बलमु।
भाषा शास्त्रानिके मारुपेरु नीवु।
माकु नडकनेर्पिन गुरुवु नीवु।
जीवितांतम् ऋणपडि वुन्नामु मेमु।
नी ऋणम् तीर्चुकोवटम्
ई जन्मलो साध्यमा माकु!!
(तेलुगु कविता - लिप्यंतरण)
3 टिप्पणियां:
जिस गुरू की षष्टिपूर्ति पर यह रचना लिखी गई है, उन्हें प्रणाम॥ आखिर उन्हीं की प्रेरणा से सृजन हुआ होगा इस कविता का:)
प्रणाम जी!
आप की कविता देख कर मुझे अत्यंत आनंद हुआ!
आप ने जिन के लिए यह कविता लिखी है,
इस के लिए साकार रूप हमारे मार्गदर्शक , अपार ज्ञान समुद्र शर्मा सर है .....,
आप के शिष्य के रूप में आप की स्थान भी हमारे मन में वहीं है ...
"आप्यायंगा पलकरिंचि
नेनुन्नाननि अभयमिच्चे हस्तमु।
आरबाटमु लेनि सहज जीवनमु।
शत्रुवुनैना क्षमिंचि अक्कुना चेर्चुकोने व्यक्तित्वमु।
आप दोनों का ही है!!!
धन्यवाद जी !!!!!!
@ चंद्रमौलेश्वर जी आपने सही पहचाना है. गुरु की प्रेरणा से ही इस कविता का सृजन हुआ है.
@ राधाकृष्ण मिरियाला जी यह कविता दरअसल दिलीप जी को समर्पित है.
एक टिप्पणी भेजें