माँ !
नौ महीने कोख में अपने रक्त मांस से सींचकर
मुझे जन्म दिया है
और अपनी छाती को चीरकर
दूध पिलाया है
रात भर अपलक जागती रही
हर पल हर लम्हा मेरे बारे में सोचती रही
ख़ुद तो कष्ट झेलती रही
कंटीली राह पर चलती रही
पर मेरी खुशी के लिए
भगवान से हर पल याचना करती रही
अपना खून पसीना बहाकर
एक एक तिनका जोड़कर
मुझे पढ़ाया लिखाया
और काबिल बनाया
आज वह मेरी राह देख रही है
मेरा माथा चूमने के लिए तरस रही है
आख़िरी बार मुझसे बात करने के लिए
आँखों में सपने संजोए है
लेकिन
मैं सात समंदर पार बैठी हूँ
होकर लाचार
मन तो पहुँच चुका है तेरे पास
सारे बंधन तोड़कर
पर यह तन लाचार बन
बैठा है लेकर आस
हे माँ !
नहीं चुका पाऊँगी मैं
दूध का कर्ज
पर माँ मैं तो हूँ अंश तुम्हारा
रग रग में है संस्कार तुम्हारा
2 टिप्पणियां:
komal bhavon se bhari hui rachna
achchha likhti hain aap
माँ तो माँ है . बहुत सुन्दर रचना
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