डॉ.रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का सारा साहित्य भारतीय संस्कृति और जन जीवन के विविध प्रसंगों से भरा पड़ा है। उनका प्रसिद्ध खंडकाव्य ‘कुरुक्षेत्र’ भी इसका अपवाद नहीं है। उल्लेखनीय है कि अनुवाद की दृष्टि से ऐसी रचनाएँ अत्यंत चुनौतिपूर्ण मानी जाती हैं क्योंकि इनका अनुवाद करते समय अनुवादक को स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा - दोनों ही - के समाजों की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को समझना पड़ता है, तथा तदनुरूप अनुवाद करना होता है। यही कारण है कि अनुवाद को सांस्कृतिक सेतु कहा जाता है। इस संदर्भ में यदी ‘दिनकर’ के ‘कुरुक्षेत्र’ (1946) के डॉ.पी.आदेश्वर राव तथा डॉ.यिनान्द एम.कल्वार्ट कृत अंग्रेज़ी अनुवाद ‘kURUKSHETRA' (1995, हेरिटेज पब्लिकेशन डिविज़न, विशाखपट्णम्) का तुलनात्मक अध्ययन करें तो अत्यंत रोचक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। यह आलेख इसी दिशा के एक विनम्र एवं लघु प्रयास है।
भारत एक विशाल एवं समृद्ध देश है। इसमें विविध जातीय पृष्ठभूमि वाले एवं भिन्न भिन्न भाषा भाषी निवास करते हैं। यही कारण है कि भारत के जाति, भाषा, रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, रीति-रिवाज आदि की विविधता के साथ धार्मिक व सांस्कृतिक मान्यताओं में भी विविधता देखने को मिलती हैं। वस्तुतः इनके समीकरण से ही भारत की सामाजिक संस्कृति का निर्माण हुआ है। ‘कुरुक्षेत्र’ के मूल हिंदी पाठ में उपलब्ध कतिपय सांस्कृतिक और रीति रिवाजों से संबंधित उक्तियों के अंग्रेज़ी अनुवाद की समीक्षा करते समय इस विविधता का स्मरण तो रखना ही होगा, साथ ही यह भी न भूलना होगा कि ये दोनों भाषाएँ विजातीय हैं तथा दोनों के भाषा समाजों की संस्कृतियाँ अलग अलग हैं। कतिपय उदाहरण देखें -
मूल : जय-सुरा की सनसनी से चेतना निस्पन्द है। (पृ.7)
अं.अ: Semi-conscious with the excitement of the wine of victory (pg.3)
मूल में प्रयुक्त ‘सुरा’ शब्द मदिरा का द्योतक है। इस प्रकार पांडव सेना विजयोल्लास में मग्न थी मानो सुरा पान किया हो। इसकी ओर संकेत करते हुए मूल में ‘जय-सुरा’ शब्द का प्रयोग किया गया है। अंग्रेज़ी अनुवाद में ‘the wine of victory' का प्रयोग किया गया है जो मूलतः शाब्दिक अनुवाद है। मूल में विवेक का शिथिल होने की ओर संकेत करते हुए ‘चेतना निस्पन्द’ का प्रयोग गया है। लेकिन अंग्रेज़ी अनुवाद में प्रयुक्त ‘Semi-Conscious' शब्द दूसरा ही अर्थ प्रकट कर रहा है।
मूल: द्रौपदी हो दिव्य-वस्त्रालंकृता (पृ.9)
अं.अ. : Draupadi now wears her heavenly attire (pg.5)
महाभारत संग्राम के मुख्य कारण की ओर इंगित करते हुए कवि ने ‘दिव्य वस्त्रालंकृता’ का प्रयोग किया है। भारतीय रीति रिवाज के अनुसार रानियाँ-महारानियाँ अपने सौभाग्य और वैभव के चिह्नों के रूप में कैसे दिव्य-वस्त्रालंकृता होती हैं, इसकी ओर यहाँ कवि ने संकेत किया है। अंग्रेज़ी अनुवाद में ‘now wears her heavenly attire' का प्रयोग किया गया है। अंग्रेज़ी अनुवाद में मूल से भिन्न अर्थ द्योतित हो रहा है।
मूल : करते प्रणाम, छूते सिर से पवित्र पद,
ऊँगली को धोते हुए लोचनों के नीर से, (पृ.10)
अं.अ. : He saluted Bhishma,
touching the feet with his head,
washing the toes with his tears (pg.7)
पैरों पर झुककर प्रणाम करना, सिर से चरण छूना, आँसुओं से उँगलियों को धोना आदि क्रियाएँ भारतीय सभ्यता एवं संस्कार को व्यक्त करती हैं। मूल में कवि ने वर्तमान काल का प्रयोग करते हुए ‘करते प्रणाम’ का जो प्रयोग किया है, वह वर्तमान सूचक है, जब कि अंग्रेज़ी में प्रयुक्त ‘saluted' शब्द भूतकाल का द्योतक है। ‘पवित्र पद’ में ‘पवित्र’ विशेषण को अनुवाद में छोड़ दिया गया है। इससे मूल के उदात्त भाव की क्षति हुई है।
मूल : क्लीव-सा देखा लज्जा-हरण निज नारी का (पृ.18)
अं.अ. : Like a eunuch, allowed your wife to be insulted (pg.14)
द्रौपदी के लज्जा-हरण के कुकृत्य को धर्म के भय से युधिष्ठिर ने सहा। इसकी ओर संकेत करते हुए मूल में ‘क्लीव-सा’ (उपमा अलंकार) का प्रयोग किया गया है। भारतीय समाज में कायर लोगों को नपुंसक या क्लीव कहने का जो रिवाज है वह यहाँ मूल कृति में दर्शाया गया है। अंग्रेज़ी में प्रयुक्त ‘like a eunuch' उसका शाब्दिक अनुवाद है। ‘लज्जा-हरण’ का अनुवाद ‘insulted' अपरिहार्य है। इससे मूल भाव स्पष्ट नहीं हो रहा है।
मूल : शिव-शांति की मूर्ति नहीं
बनती कुलाल के गृह में;
सदा जन्म लेती वह नर के
मनःप्रांत निस्पृह में (पृ.30)
अंअ. : Like the idol of Parvati, peace
is not made in the house of a potter;
It always takes birth in the dispassionate mind of man. (pg. 26)
मूल में सांस्कृतिक तथ्य निहित है। जहरीले और दुखःदायी संघर्ष के कारणों को दूर करने से मानव के निष्काम हृदय में शांति की शीतल प्रतिमा का निर्माण होगा। सारी मानव चेतना ही शिवा-शांति का रूप धारण करेगा। इसी तथ्य को कवि ने उकेरा है।
मूल में कल्याणकारी रूप की ओर संकेत करते हुए ‘शिवा-शांति’ की मूर्ति का प्रयोग किया गया है। अंग्रेज़ी अनुवाद में ‘the idol of Parvati' का प्रयोग किया गया है, जो वस्तुतः भावानुवाद है। इससे मूल की अर्थच्छवियाँ स्पष्ट नहीं हो पा रही हैं। मूल में प्रयुक्त ‘कुलाल’ शब्द जातिवचक है। अंग्रेज़ी अनुवाद में प्रयुक्त ‘a potter' शब्द व्यावसायिक कर्म का सूचक है।
मूल : ब्रह्मचर्य के व्रती, धर्म के
महास्तम्भ, बल के आगार,
परम विरागी पुरुष, जिन्हें
पाकर भी पा न सका संसार। (पृ.32)
अं.अ. : Bhishma, a celibate by vow, a pillar of Dharma,
embodiment of strength,
a most detached man,
living in the world, but not of the world. (pg.29)
मूल में ब्रह्मचर्य आश्रम की ओर संकेत किया जया है तथा वीरता और विवेक के साक्षात् प्रतिरूप भीष्म की महानता के प्रति कवि ने अपना श्रद्धाभाव व्यक्त किया है। भारतीय संस्कृति में ब्रह्मचर्य आश्रम का जो निर्दिष्ट महत्व है इसकी ओर यहाँ संकेत किया गया है। अंग्रेज़ी अनुवाद में भी मूल के भाव को सशक्त एवं सुचारू रूप से अभिव्यक्त करते हुए ‘a celibate' का प्रयोग किया गया है। ‘धर्म’ शब्द को अंग्रेज़ी अनुवाद में लिप्यंतरण किया गया है।
मूल : निर्दोषा, कुलवधू, एकवस्त्रा। (पृ.40)
अं.अ. : Wrapped in a saree the innocent princess (pg.37)
मूल में नारी की दयनीय स्थिति की ओर संकेते किया गया है। प्राचीन भारतीय समाज में नारी के वस्त्र धारण संबंधी रिवाज की ओर यहाँ कवि ने संकेत किया है। ‘एकवस्त्रा’ पर विशेष बल दिया गया है। अंग्रेज़ी अनुवाद में ‘a saree' का प्रयोग किया गया है जिसमें विशेष रूप से बल नहीं है और ‘एकवस्त्रा’ में निहित यह भाव स्पष्ट रूप से अंकित नहीं हो पाया है कि उस समय द्रौपदी रजस्वला थी। यहाँ टिप्पणी देकर यह स्पष्ट किया जाना चाहिए था कि भारत में रजस्वला स्त्रियों को किस प्रकार का आचरण करना होता था तथा उनके साथ किस प्रकार का आचरण अपेक्षित था। इससे इस शब्द की सांस्कृतिक दृष्टिकोण स्पष्ट हो सकती थी।
मूल : सम्राट-भाल पार चढ़ी लाल जो टीका,
चन्दन है या लोहित प्रतिशोध किसी का? (पृ.53)
अं.अ. : The red mark shining on the forehead of the king -
is it sacred paste or someone's bloody revenge? (pg.50)
यज्ञ की दीक्षा में सम्मिलित हुए नरेशों के मस्तक पर भारतीय संस्कृति के अनुसार लाल टीका (तिलक) लगाया जाता है। मूल में इसी की ओर संकेत किया गया है। अंग्रेज़ी अनुवाद में ‘लाल टीका’ के लिए ‘The red mark' का प्रयोग किया गया है। ‘Mark’ शब्द से ‘टीका’ (तिलक) का आशय प्रकट नहीं हो रहा है क्योंकि यह एक विशेष सांस्कृतिक कृत्य है जो पाश्चात्य संस्कृति में दुर्लभ है। ‘चन्दन’ शब्द के लिए ‘Sacred paste' का प्रयोग किया गया है। इससे यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि चन्दन (sandal) का प्रयोग किस तरह से किया जाता है। ये सारे शब्द अपने आप में विशिष्ट प्रयुक्तिगत शब्द हैं। अतः पाद टिप्पणियों के द्वारा इनका आशय स्पष्ट किया जाना चाहिए था।
मूल : यह स्वस्ति-पाठ है या नव अनल-प्रदाहन? (पृ.53)
अं.अ. : Are these the words of blessing or new blazing flames? (pg.50)
मूल में कवि ने प्रश्न चिह्न लगाया कि वसतुतः यह स्नान यज्ञ के अंत में किया जानेवाला अवभृत स्नान है या कि रुधिर स्नान। भारतीय संस्कृति के अनुसार यज्ञ के उपरांत स्नान करने की प्रथा है। ‘यज्ञान्त स्नान’ का अंग्रेज़ी में भावानुवाद करके ‘a sacrificial bath' का प्रयोग किया गया है, जिससे कि इसका दूसरा अर्थ ध्वनित हो रहा है। वस्तुतः यह संकल्पना पाश्चात्य सभ्यता में नहीं है। अतः मूल का आशय स्पष्ट करने के लिए यदि ‘bath after Yagna' का प्रयोग किया गया होता तो एक हद तक मूल पाठ से अधिक न्याय हो पाता। यहाँ भी टिप्पणी की आवश्कता है।
मूल : दौड़ी नीराजन-थाल लिए निज कर में ,
पढ़ती स्वागत के श्लोक मनोरम स्वर में ।
आरती सजा फिर लगी नाचने-गाने,
संहार-देवता पर प्रसून छितराने। (पृ.53)
अं.अ. : Holding the plate of homage in her hand,
reciting welcome songs in her melodious voice
She began to sing and dance for arti,
showering flowers on the God of Destruction. (pg.50)
मूल में भारतीय सभ्यता में विजेताओं के स्वागत करने की संस्कृति की ओर संकेत किया गया है। विजेताओं का स्वागत नीराजन-थाल के साथ किया जाता है तथा मधुर स्वर में स्वागत के श्लोक पढ़ती हुई आरती उतारी जाती है। मूल में निहित भाव को अंग्रेज़ी अनुवाद में उतारने का प्रयास किया गया है। ‘आरती’ शब्द को अंग्रेज़ी अनुवाद में लिप्यंतरण किया गया है। पाश्चात्य सभ्यता में ऐसी सांस्कृतिक संकल्पना न होने के कारण शब्दानुवाद मात्र करना पड़ा। श्लोक, नीराजन, आरती, संहार-देवता आदि दार्शनिक शब्दों को टिप्पणी के माध्यम से स्पष्ट किया जाना चाहिए।
इस प्रकार ‘कुरुक्षेत्र’ के कतिपय सांस्कृतिक संदर्भों के अंग्रेज़ी अनुवाद के अनुशीलन से स्पष्ट होता है कि इस काव्य का मूल पाठ संस्कृति गर्भित है जिसका अनुवाद करने के लिए अनुवादक द्वय ने यथास्थान शब्दानुवाद, भावानुवाद और ग्रहण की नीति अपनाई है। परंतु ध्यान रखने की बात यह है कि हिंदी और अंग्रेज़ी सांस्कृतिक दृष्टि से विजातीय भाषाएँ हैं। इसीलिए अनूदित पाठ की संप्रेषणीयता बढ़ाने और हिंदी भाषा समाज की सांस्कृतिक विशेषताओं से अंग्रेज़ी पाठक को परिचित कराने के लिए यह आवश्यक था कि भारतीय संस्कृति और प्रथाओं से संबंधित शब्दों और अभिव्यक्तियों को स्पष्ट करने के लिए -
(1) या तो पाद टिप्पणियाँ दी जाती, (2) या परिशिष्ट दिया जाता (3) अथवा व्याख्यात्मक अनुवाद किया जाता।
अंततः कहा जा सकता है कि ‘दिनकर’ सांस्कृतिक चेतना से ओत-प्रोत एक ऐसे रचनाकार हैं जिनके काव्य का अंग्रेज़ी में अनुवाद करना निश्चय ही चुनौतिपूर्ण कार्य है
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