शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

डॉ. कविता वाचक्नवी और डॉ. राधेश्याम शुक्ल का सम्मान समारोह


हैदराबाद, ३० अगस्त २०११ .

दोपहर के समय  डॉ.अहिल्या मिश्र का फोन आया. सूचना मिली कि  शाम को ठीक साढ़े चार बजे आथर्स  गिल्ड ऑफ़ इण्डिया के हैदराबाद चैप्टर की विशेष बैठक है. पहुँचने पर पता चला दो विद्वानों का सम्मान समारोह था. एक तो डॉ कविता वाचक्नवी जी जो कुछ ही दिन के लिए लन्दन से आई थीं . दूसरे डॉ. राधेश्याम शुक्ल जिन्हें दो दिन पहले ही कमला गोइन्का फाउंडेशन ने पत्रकार शिरोमणि का ५१ हज़ार का पुरस्कार दिया था.

मंच पर दोनों सम्माननीय अतिथियों के साथ विशेष अतिथि प्रो.ऋषभदेव शर्मा , डॉ. एम् प्रभु , मधुसूदन सोंथालिया और अध्यक्ष डॉ. अहिल्या मिश्र बैठीं. खूब भावभीना स्वागत हुआ. बाद में  हास्य व्यंग्य   के महारथी वेणुगोपाल की अध्यक्षता में ''कविता की एक शाम डॉ. कविता के नाम'' का आयोजन हुआ. कई भाषाओँ की कविताएँ सुनने का मौका मिला. बहुत अच्छा लगा. मुझे भी काव्य पाठ के लिए बुलाया गया. मैंने कविता जी की तीन छोटी कविताओं का तमिल अनुवाद प्रस्तुत किया, तो सबने खूब आशीर्वाद दिया. कविता जी को अनुवाद पसंद आया इससे मुझे संतोष हुआ ; नहीं तो मैं तो डरी हुई थी.

मैं इस साहित्यिक शाम को भूल न सकूँगी.                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                         

4 टिप्‍पणियां:

Kavita Vachaknavee ने कहा…

तुम्हारी तरह मैं भी भूल नहीं पाऊँगी।

मेरी कविताओं का तमिल अनुवाद तो तुम्हारा मुझे दिया सबसे बड़ा सरप्राईज़ था। धन्यवाद।

मिलना सुखद रहा। बिटिया को स्नेह!

'अपनी माटी' मासिक ई-पत्रिका (www.ApniMaati.com) ने कहा…

NIRJA JI PLEASE DO SEND YOOUR PROGRAM REPORTS TO US AT info@apnimaati.com for www.apnimaati.com.

डॉ.बी.बालाजी ने कहा…

'दो विद्वानों का सम्मान' कार्यक्रम का अच्छा संस्मरण लिखा है आपने. संक्षित और रोचक.

फोटो भी अच्छे लगे. हर फोटो में अपने वरिष्ठों(इस क्षेत्र के सीनियर्स) को मुस्कुराते हुए देखकर एक प्रश्न मन में उठा, उसे आपके साथ बाँटना चाहता हूँ.
इन में जिन्हें मुस्कुराते देख रहा हूँ उन्हें पिछले लगभग ८-१० वर्षों से देखा रहा हूँ. ये सभी इसी तरह मुस्कुराते हुए अपने काम में लगे हुए हैं अर्थात हिंदी की सेवा में. इनके उत्साह और कर्मठता के समक्ष नमन.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

एक नया रहस्योद्‌घाटन हुआ कि आप तमिल में कविता जी की कविताओं का अनुवाद भी किया। बधाई स्वीकारें।