रविवार, 5 मई 2013

हरजाई

मैंने तुमसे प्यार किया
सब अपनों को त्याग दिया
तुम्हारे घर आँगन को अपनाया
सब सपनों को त्याग दिया.
मैंने अपनी हँसी तुम्हें दे दी,
 तुमने मुझे क्या दिया?

चार जगह मुँह झूठा किया
मेरी भावनाओं को झुठला दिया.
पहले तो मेरी आत्मा को  मार डाला
ज़िंदा लाश बना दिया;
फिर मंगलसूत्र की दुहाई देकर
मेरे तन को भी नोच डाला!

कब तक खेलोगे इस ज़िंदा लाश से !!

2 टिप्‍पणियां:

साहित्य और समीक्षा डॉ. विजय शिंदे ने कहा…

कडवाहट, उलाहना और पीडा को व्यक्त करने वाली कविता।

Sp Sudhesh ने कहा…

यह लघु कविता बड़ी मार्मिक और गहन सन्देश देने वाली है । कम शब्दों में
बहुत कुछ कह दिया गया है । नीरजा जी बधाई की पात्र हैं ।