सागरिका
खुली डायरी के बिखरे पन्नों को सहेजने की कोशिश
रविवार, 12 मई 2013
लू चल रही है
हवा गरम है
तन भी
मन भी.
तरस रही हैं आँखें -
तुम आते क्यों नहीं?
मन मचल रहा है -
कहाँ रह गए मीत?
1 टिप्पणी:
Madan Mohan Saxena
ने कहा…
simply superb. Plz visit my blogs.
21 मई 2013 को 4:41 pm बजे
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1 टिप्पणी:
simply superb. Plz visit my blogs.
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