बुधवार, 22 मार्च 2023

बिन पानी सब सून...



औद्योगीकरण के कारण देशों का विकास हो रहा है। दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँची! विकास के अंधाधुंध में मनुष्य ने प्रकृति से छेड़छाड़ की। परिणामस्वरूप आज स्वच्छ वातावरण का अभाव है। प्रदूषण का दैत्य मुँह बाये खड़ा है। हवाएँ जहरीली हो चुकी हैं। इन जहरीली हवाओं के कारण आकाश भी मैला हो चुका है। पृथ्वी और जल भी प्रदूषण की चपेट में आ चुके हैं। हम सब जल संकट से जूझ रहे हैं। इसीलिए प्रति वर्ष 22 मार्च को 'विश्व जल दिवस' मनाया जाता है। इसका प्रमुख उद्देश्य है जल के महत्व को उजागर करना।

विश्व के हर नागरिक को पानी के महत्व को समझाने के लिए ही संयुक्त राष्ट्र ने ‘विश्व जल दिवस’ मनाने की शुरूआत 1992 में की थी। 1993 को पहली बार 22 मार्च के दिन पूरे विश्व में 'जल दिवस' के अवसर पर जल के संरक्षण पर जागरूकता फैलाने का कार्य आरंभ किया गया। हर वर्ष इसकी एक थीम होती है। जैसे शहर के लिए जल (1993), हमारे जल संसाधनों की देखभाल करना हर किसी का कार्य है (1994), महिला और जल (1995), प्यासे शहरों के लिए पानी (1996), विश्व का जल : क्या पर्याप्त है (1997), भूमि जल - अदृश्य संसाधन (1998), हर कोई प्रवाह की ओर जी रहा है (1999), 21वीं सदी के लिए पानी (2000), जल और दीर्घकालिक विकास (2015), जल और नौकरियाँ (2016), अपशिष्ट जल (2017), जल के लिए प्रकृति के आधार पर समाधान (2018), किसी को पीछे नहीं छोड़ना (2019), जल और जलवायु परिवर्तन (2020), पानी का महत्व (2021), भूजल : अदृश्य को दृश्यमान बनाना (2022)। और विश्व जल दिवस 2023 की थीम है ‘अक्सेलरेटिंग चेंज’ अर्थात परिवर्तन में तेजी। विश्व जल दिवस सिर्फ एक औपचारिकता भर न रह जाए। इसके लिए हमें हर दिन पानी बचाने के लिए संकल्प लेना होगा और उस पर अटल रहना होगा।

पृथ्वी की 71% सतह जल से आच्छादित है। लेकिन पीने योग्य पानी की मात्रा बहुत ही कम है। आजकल पानी भी बंद बोतल में बिक रहा है। जल संरक्षण आज की जरूरत है। जल संकट की समस्या की ओर अनेक साहित्यकारों ने भी समय-समय पर ध्यान आकृष्ट किया है। एकांत श्रीवास्तव कहते हैं कि ‘जब वह जीवन और समाज के लिए संकट बनकर आती है - कभी भूकंप तो कभी बाढ़ के रूप में - तब आतंकित करती है।’ (पानी भीतर फूल, पृ.62)। ‘बाढ़ के कारण खाने के लाले पड़ गए हैं’ (रामदरश मिश्र, जल टूटता हुआ, पृ.40), ‘यहाँ आती है बाढ़, आती है महामारी, आती है भूख, ..... आती है, ... डॉक्टर क्यों आएगा?’ (रामदरश मिश्र, पानी के प्राचीर, पृ.166)। बाढ़ पूरे गाँव को लील जाता है – ‘बेतवा में जो उफान आया वह न जाने कितने गाँव के गाँव लील गया।’ (वीरेंद्र जैन, डूब, पृ. 204)। बाढ़ का मार्मिक चित्र देखें – ‘रात के पिछले पहर में आंधी की सी हरहराहट गाँव में गरज उठी। आखिर वही हुआ जो होना था। पड़ोसी गाँव के लोगों ने रात को बाँध काट दिया क्योंकि इधर का पानी उधर फैल रहा था। घुर-घुर-घुर-घुर पानी की धारा गहरी में गिर रही है। गड़ही और खेत देखते-देखते एक हो गए। गाँव के चारों ओर छाती भर पानी घहरा उठा। पानी ही पानी। आदिगंत सफेद-सफेद फेन फैल रहा था। राप्ती और गोरा एक हो गए। ह-ह-ह-हास – ह-ह-ह-ह-हास – भेड़िया उछल रही है। तेज पुरवा हुहुकार रही है। ऊपर से पानी बरस रहा है और बाढ़ की ऊँची-ऊँची तरंगें हहास-हहास गरज रही हैं। किसान नदी-नालों को पार कर दूर-दूर के खेतों तक जा रहे हैं और फसलों को उखाड़-उखाड़ कर पशुओं के लिए ला रहे हैं। साँप, पशु, पक्षी और मुर्दे आदमी बहे जा रहे हैं।’ (रामदरश मिश्र, पानी के प्राचीर, पृ.10)। इससे गंदगी फैल जाती है। सब कुछ नष्ट हो जाता है। “खेतों में बाढ़ का हाहाकार तड़पा था, इन्हीं खेतों से होकर कितनी लाशें बही थीं। बाढ़ इन खेतों की फसलें छीन कर इनमें बालू झोंक गई थी, इनके ऊपर तान गई थी रिक्तता का खाली आकाश।’ (रामदरश मिश्र, जल टूटता हुआ, पृ.76)। इतना होने के बावजूद किसान आशा नहीं छोड़ते। ‘खेत बोये जा रहे थे – यह समझते हुए भी कि बाढ़ आएगी, सब डूब जाएगा, फिर भी खेत बोये जा रहे थे। गरीब किसान अपने खेत के अन्न को बेच-बाच गए। बीज खरीद रहे थे – उन खेतों में डालने के लिए जहाँ बाढ़ आएगी, सब कुछ लूट ले जाएगी... फिर भी एक आशा थी, भविष्य के प्रति एक आस्था थी, जो उन्हें बीज बोने के लिए प्रेरित कर रही थी। सदियों से इनकी यह जिजीविषा इन्हें जीवन देती आई है, नहीं तो न जाने कब के खत्म हो गए होते।’ (रामदरश मिश्र, जल टूटता हुआ, पृ.159)। (हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह/ एक पुरुष, भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय प्रवाह।/ नीचे जल था ऊपर हिम था, एक तरल था एक सघन,/ एक तत्व की ही प्रधानता, कहो उसे जड़ या चेतन – कामायनी, चिंता सर्ग)। पानी में घिरे हुए लोग किसी से कुछ प्रार्थना नहीं करते बल्कि ‘वे पूरे विश्वास के साथ देखते हैं पानी को/ और एक दिन/ बिना किसी सूचना के/ खच्चर बैल भैंस की पीठ पर/ घर-असबाब लादकर/ चल देते हैं कहीं और।’ (केदारनाथ सिंह, पानी में घिरे हुए लोग)

बाढ़ के कारण चारों ओर पानी ही पानी है लेकिन किसी काम का नहीं। जब अकाल पड़ता है तो भी मानव जीवन तहस-नहस हो जाता है। रांगेय राघव ने बंगाल के अकाल की भीषण त्रासदी को अपनी रिपोर्ताज ‘तूफ़ानों के बीच’ में चित्रित किया है तो रेणु (मैला आँचल), रामधारी सिंह दिवाकर (अकाल संध्या), शिवमूर्ति (आखिरी छलांग), पंकज सुबीर (अकाल के उत्सव), संजीव (फाँस), कमल कुमार (पासवर्ड) आदि अनेक साहित्यकारों ने मार्मिक ढंग से अभिव्यक्त किया है। तेलुगु साहित्य में भी कंदविल्ली साम्बासिव राव (शिक्षा (दंड), पापीकोंडलु,), राजेश्वरी (वरदा – बाढ़), बंडी नारायण स्वामी (शप्तभूमि – श्राप ग्रस्त भूमि) जैसे साहित्यकारों ने इन समस्याओं का मार्मिक चित्र अंकित किया है। सिर्फ उपन्यास, कहानी या रिपोर्ताज ही नहीं बल्कि कविताओं में भी इस समस्या का चित्रण है। हिंदी में केदारनाथ सिंह ने ‘पानी की प्रार्थना’ के माध्यम से पाने के महत्व को रेखांकित किया है तो तेलुगु के प्रसिद्ध कवि एन. गोपि ने ‘जलगीतम’ (जलगीत) के माध्यम से इसका अंकन किया है। संपूर्ण भारतीय साहित्य में बाढ़ और अकाल की समस्याओं को देखा जा सकता है। बिन पानी सब सून।

पानी की समस्या अत्यंत गंभीर समस्या है। सदियों से समाज इससे पीड़ित है। नासिरा शर्मा लिखती हैं – ‘खालिस दूध नहीं मिलता – यह शिकायत तो पुरानी हो चुकी है। नई शिकायत है – खालिस पानी नहीं मिलता है, देखने को। पानी तो दूर, खालिस शब्द की तरह खालिस पानी को भी लोग बोतल में बंद रखेंगे, ताकि उसकी एक दो बूँद सूखे के समय चाटकर अमृत का स्वाद ले सकें। ऐसा दौर जल्दी ही आने वाला है, जब हीरे के मोल पानी मिलेगा और पूँजीपति उसको अपनी तिजोरी में बंद करके रखेंगे, तब डकैतियाँ पानी की बोतल के लिए पड़ेंगी। बैंक के लॉकर टूटे मिलेंगे, केवल खालिस पानी के लिए जिसकी कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में करोड़ों में होगी। यह फैंटसी नहीं, बल्कि आने वाले समय में पानी की दुर्बलता की पूर्व घोषणा है। यह मजाक नहीं बल्कि पानी के बढ़ते महत्व का सच है। यह अतिशयोक्ति नहीं, बल्कि भविष्य का यथार्थ है’। (कुइयाँजान, पृ. 271)। यह हमारा कर्तव्य है कि इस अनमोल वस्तु को सुरक्षित रखें और धरा का संरक्षण करें।

प्रिय पाठको! पानी की गुहार सुन लीजिए-
                        मेरा मूल्य जानो! मेरी कीमत समझो
                        मुझे प्रदूषित करते
                        फिर शुद्ध करते
                        फिर शुद्ध करते, मुझे
                        दुकान का सौदा मत बनाओ
                        पहले अपने हृदयों को
                        शुद्ध करो।'' (एन. गोपि, जलगीतम, पृ. 103)

शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

विलोम शब्द


विलोम अर्थात उलटा, विपरीत, रीतिविरुद्ध। अतः विलोम शब्द ऐसे शब्दों को कहा जाता है जो एक-दूसरे का विपरीत अर्थ देते हों। उदाहरण के लिए - 

  • अंशकालिक - पूनकालिक                                                           अंशतः - पूर्णतः 
  • अकर्मक - सकर्मक                                                                     अकारण - सकारण 
  • अपयश - यश                                                                             अविश्वास - विश्वास 
  • आरंभ - अंत                                                                               अनुत्तीर्ण - उत्तीर्ण 
  • असंभव - संभव                                                                          अगोचर - गोचर 
  • अग्र - पश्च                                                                                   अचल - चल 
  • अचेतन - चेतन                                                                            अज्ञेय - ज्ञेय 
  • अडिग - अस्थिर                                                                          अतिवृष्टि - अनावृष्टि 
  • अदृश्य - दृश्य                                                                              अद्भुत - सामान्य 
  • अधर्म - धर्म                                                                                 अधिक - थोड़ा 
  • अधीन - स्वतंत्र                                                                             अधूरा - पूरा 
  • अनधिकार - साधिकार                                                                  अभिज्ञ - अनभिज्ञ 
  • अनहोनी - होनी                                                                            आदि - अनादि 
  • अनायास - सायास                                                                         आवरण - अनावरण 
  • आवृत्त - अनावृत्त                                                                           आस्था - अनास्था 
  • अनिवार्य - ऐच्छिक                                                                        अनिश्चित - निश्चित 
  • अग्रज - अनुज                                                                              अनुपयुक्त - उपयुक्त 
  • अनुपस्थित - उपस्थित                                                                   अनैतिक - नैतिक 
  • औपचारिक - अनौपचारिक                                                            अंधकार - प्रकाश 
  • अंतरंग - बहिरंग                                                                            अंतर्मुखी - बहिर्मुखी 
  • अपकार - उपकार                                                                         अपठनीय - पठनीय 
  • अपना - पराया                                                                               अपमान - सम्मान 
  • अपशकुन - शकुन                                                                          अपराध - निरपराध 
  • अपरिचित - परिचित                                                                       अप्रस्तुत - प्रस्तुत 
  • अबला - सबला                                                                               अमानुषिक - मानुषिक 
  • अमीर - गरीब                                                                                 अमृत - विष  
  • अर्थ - अनर्थ                                                                                    अपूर्ण - पूर्ण 
  • अल्पायु - दीर्घायु                                                                              आधुनिक - प्राचीन  

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

वस्तुनिष्ठ प्रश्न : हिंदी साहित्य का इतिहास



1. ‘उत्तर अपभ्रंश ही पुरानी हिंदी है’ – यह किसका मत है?

        चंद्रधर शर्मा गुलेरी

2. आदिकाल के प्रथम कवि कौन हैं?

        सरहपाद

3. राहुल सांकृत्यायन ने हिंदी के प्रथम कवि किसे माना?

        सरहपा

4. ‘पउम चरिउ’ के रचनाकार कौन हैं?

        स्वयंभू

5. ‘आल्हाखंड’ के रचयिता कौन हैं?

        जगनिक

6. आदिकाल को ‘वीरगाथा काल’ नाम किसने दिया?

        रामचंद्र शुक्ल

7. ‘चारण काल’ का दूसरा नाम क्या है?

        आदिकाल

8. आदिकाल को ‘बीजवपन काल’ किसने माना?

        महावीर प्रसाद द्विवेदी

9. प्रथम काल का नामकरण ‘आदिकाल’ किसने किया?

        हजारी प्रसाद द्विवेदी ने साहित्यिक प्रवृत्तियों के आधार पर इसे आदिकाल कहा

10. हिंदी साहित्य के इतिहास को ‘संधि काल एवं चारण काल’ किसने कहा?

        डॉ. रामकुमार वर्मा

11. आचार्य शुक्ल ने किस आधार पर प्रथम काल को वीरगाथा काल कहा?

        ऐतिहासिक सामाजिक वास्तविकता के आधार पर

12. ऐतिहासिकता के आधार पर गरियर्सन ने आदिकाल को क्या कहा?

        चारण काल

13. मिश्रबंधुओं ने आदिकाल को क्या नाम रखा?

        प्रारंभिक काल

14. ‘भरतेश्वर बाहुबली रास’ के रचनाकार कौन हैं?

        शालिभद्र सूरी

15. ‘मैथिल कोकिल’ कौन हैं?

        विद्यापति

16. हिंदी साहित्य के पहले इतिहासकार कौन हैं?

    गार्सां द तासी। ‘इस्त्वार द ल लितरेत्युर ऐंदुई ऐ ऐंदुस्तानी’ नाम से उन्होंने हिंदी साहित्य का पहला इतिहास फ्रेंच में लिखा है।

17. हिंदी में लिखा गया हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास का नाम बताइए।

        शिवसिंह सेंगर कृत ‘शिवसिंह सरोज’

18. अंग्रेजी में लिखा गया हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास का नाम बताइए।

        सर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन कृत ‘द मॉडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर ऑफ हिन्दुस्तान’

19. चौरासी सिद्धों में आदि सिद्ध कौन हैं?

        सरहपा

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2023

उन्नति भाषा की करहु...


हर वर्ष 21 फरवरी को 'अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस' मनाया जाता है। स्मरणीय है कि यूनेस्को ने 17 नवंबर, 1999 को इसे स्वीकृति दी। यह 21 फरवरी, 2000 से पूरी दुनिया में मनाया जा रहा है। वस्तुतः यह घोषणा बांग्लादेशियों (तब पूर्वी पाकिस्तानियों) द्वारा किए गए भाषा आंदोलन को श्रद्धांजलि देने के लिए की गई थी। यूनेस्को की इस घोषणा से बांग्लादेश के भाषा आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति प्राप्त हुई। 1952 से ही बांग्ला देश में यह दिन मनाया जाता आ रहा है। भाषा आंदोलन के कारण ही अलग बांगलादेश का निर्माण हुआ। भाषाई एवं सांस्कृतिक विविधता को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के उद्देश्य से ही अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जा रहा है। इससे बहुभाषिकता को निश्चित रूप से बढ़ावा मिलेगा।

ध्यान देने की बात है कि 1947 में आजादी के साथ लोगों को देश विभाजन की त्रासदी को भी झेलना पड़ा। 1947 में जब पाकिस्तान बना तब उसके भौगोलिक रूप से दो अलग-अलग हिस्से थे - पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में बांग्लादेश) और पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान में पाकिस्तान)। पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच भारत था। संस्कृति और भाषा के स्तर पर दोनों भाग एक दूसरे से बहुत भिन्न थे। 1948 में, पाकिस्तान सरकार ने उर्दू को पाकिस्तान की एकमात्र राष्ट्रीय भाषा घोषित किया, भले ही बांग्ला पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान को मिलाकर अधिकांश लोगों द्वारा बोली जाती थी। पूर्वी पाकिस्तानियों ने इसका खुलकर विरोध किया, क्योंकि अधिकांश आबादी पूर्वी पाकिस्तान से थी और उनकी मातृभाषा बांग्ला थी। उन्होंने उर्दू के अलावा बांग्ला को राष्ट्रीय भाषा बनाने की माँग की थी। पाकिस्तान की संविधान सभा में 23 फरवरी, 1948 को पूर्वी पाकिस्तान के धीरेंद्रनाथ दत्ता ने यह माँग उठाई थी। विरोध को ध्वस्त करने के लिए, पाकिस्तान की सरकार ने जनसभा और रैलियों को गैरकानूनी घोषित कर दिया था। 1952 में ढाका विश्वविद्यालय के छात्रों ने आम जनता के सहयोग से रैलियों का आयोजन किया था। पुलिस की गोला-बारी में सैकड़ों लोग मारे गए। लोगों ने अपनी मातृभाषा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। इसलिए बांग्लादेश में इस दिन को शहीद दिवस के रूप में याद किया जाता है। फूट डालो और राज करो की नीति के तहत बांग्लादेश का विभाजन हुआ। विभाजन का उद्देश्य ही था देश में तनाव की स्थितियों को पैदा करना तथा सांप्रदायिकता को बढ़ावा देना।

उक्त घटना का उल्लेख महुआ माजी के उपन्यास ‘मैं बोरिशाइल्ला’ में भी है। यथा – “1951 के अक्तूबर महीने में सैयद अकबर नामक एक अफ़गान युवक की गोली से प्रधानमंत्री लियाकत अली की मृत्यु हो गई और उनके बाद ख्वाजा नाज़िमुद्दीन पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री बने। नाज़िमुद्दीन ने जिन्ना साहब की तरह उर्दू को पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा बनाने का निर्णय लिया। उसकी मंशा भी बहुसंख्यक बंगालियों की स्वतंत्र सत्ता को, उनकी भाषा, साहित्य-संस्कृति को मिटाकर उन्हें नामहीन, परिचयहीन नकलनवीस दासों में परिणत करने की थी। इसीलिए तो उनके इस निर्णय के विरोध में 21 फरवरी, 1952 ई. को ढाका के छात्र समुदाय ने पूर्वी पाकिस्तान में हड़ताल की घोषणा कर दी। ढाका राजपथ पर विशाल जुलूस निकाला गया। उस विशाल जुलूस का नेतृत्व कर रहे थे शेख मुजीबुर्रहमान। पुलिस तथा सेना ने जुलूस पर गोलियाँ चलाईं। नौ छात्र शहीद हो गए। फिर तो भाषा आंदोलन ने व्यापक रूप धारण कर लिया। अनेक छात्र गिरफ़्तार कर लिए गए। कारागार के लौह-कपाट आंदोलनकारी छात्रों के आक्रोश से झनझना उठे, ‘कॉमरेड शोन् बिगुल ओइ हांकछे रे/ कारार ओइ लौहो कॉपाट भेंगे फैल/ कोरबे लोपाट/ मोदेर गॉरोब/ मोदेर आशा/ आ मोरी बांग्ला भाषा...” [कॉमरेड सुनो – बिगुल बज रहा है/ कारागार के उस लौह कपाट को तोड़ डालो/ नहीं तो वे हमारी बांग्ला भाषा को/ जो हमारा गर्व है, हमारी आशा है, मिटाकर रख देंगे।]" (माजी : 2007 : 119-120)

स्मरणीय है कि भाषा आंदोलनकारियों के साथ बर्बरतापूर्वक व्यवहार किया गया था। अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा के लिए खड़े होने वाले लोगों को बेरहमी से कुचला गया। हर तरह से उनका शोषण किया गया। तब पूर्वी पाकिस्तानी जनता स्वायत्त शासन के बारे में सोचने लगी। उनके मन में यह धारणा घर कर गई कि “आत्मनियंत्रण का अधिकार मिले बगैर पश्चिमी पाकिस्तानी शासकों के अत्याचार से मुक्ति मिलना संभव नहीं।” (माजी : 2007 : 121)। बांग्ला भाषा के अलावा किसी और भाषा को मातृभाषा के रूप में आत्मसात करने की बात वे सोच भी नहीं सकते थे। आंदोलन बड़े पैमाने पर होने लगा। 7 मई, 1954 में संविधान सभा ने उर्दू भाषा को आधिकारिक भाषा बनाया। 29 फरवरी, 1956 को बांग्ला भाषा को दूसरी आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। उर्दू और बंगाली पाकिस्तान की आधिकारिक भाषाएँ बन गईं। 23 मार्च, 1956 को पाकिस्तान का संविधान लागू किया गया था। इसका उल्लेख पाकिस्तान संविधान के अनुच्छेद 214(1) में है। आक्रोश से भरे बांग्लादेशियों ने अपनी मुक्ति के लिए संघर्ष किया। बांग्ला देश के स्वतंत्रता संग्राम को मुक्ति संग्राम के नाम से जाना जाता है जो 1971 में शुरू हुआ था। 26 मार्च, 1971 से लेकर 16 दिसंबर, 1971 तक यह युद्ध चला। अंततः 16 दिसंबर, 1971 को बांगलादेश स्वतंत्र हुआ। बांग्लादेशियों ने अपनी भाषा, साहित्य और संस्कृति को सुरक्षित रखने के लिए संघर्ष किया।

आशा करते हैं कि मातृभाषा प्रेम की यह भावना हमारे अंदर न केवल हमारी मातृभाषा के लिए, बल्कि दूसरी भाषाओं के लिए भी विकसित होगी। सभी प्रकार की बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक भाषाओं को सह-अस्तित्व में लाने का प्रयास करना चाहिए। एकाधिकार की भावना को जड़ से निर्मूल करना चाहिए।

“सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय।
उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय॥” 
                          (भारतेंदु हरिश्चंद्र)।