सलाखों के पीछे, कविता संग्रह / डॉ.अनंत काबरा / क्लासिकल पब्लिशिंग कंपनी, 28,शापिंग कॉम्प्लेक्स, कर्मपुरा, नई दिल्ली - 110 015 / 2009/ रु.350/- / 154 पृष्ठ.
अनंत काबरा ने इस कविता संग्रह में इस जीवन दर्शन को काव्यात्मक अभिव्यक्ति प्रदान की है कि अपराधी ही नहीं इस जगत में निरपराधी व्यक्ति भी किस-न-किसी प्रकार का कारावास भोग रहा है. इस कारागार की सलाखें मन की अपूर्ण इच्छाएँ, देह की आकांक्षाएँ, घुटती साँसें और बोझिल पलों से निर्मित हैं. 135 कविताओं के संकलन में पर्याप्त पठनीयता है. रचनाकार ने गद्यात्मकता, सूक्ति सृजन और परिभाषा गठन की तकनीक का अच्छा प्रयोग किया है. एक उदाहरण - "हम पेड़ को नहीं / तने को काटते हैं / इस आशा के साथ / नयी टहनियों पर / कोंपल फूटते ही / नया तना बन जाएगा / और वह अपनी दिशा का निर्धारण कर लेगा."
"कछु", ‘ना कहो-सब...है ’?, कविता संग्रह / डॉ.अनंत काबरा / क्लासिकल पब्लिशिंग कंपनी, 28,शापिंग कॉम्प्लेक्स, कर्मपुरा, नई दिल्ली - 110 015 / 2009/ रु.400/- / 170 पृष्ठ.
अनंत काबरा के इस नवीनतम संग्रह में 144 कविताएँ हैं जो समसामयिक प्रश्नों को संबोधित हैं. सामाजिक और राजनैतिक विसंगतियों के प्रति असंतोष और आक्रोश यहाँ मुखर है. कवि ने अराजकता पर व्यंग्य किया है, स्त्री प्रश्नों पर चर्चा की है, संपन्नता के अहंकार पर चोट की है और आज के आदमी के दोगले आचरण पर व्यंग्य किया है. संस्कृति के प्रति भी कवि की चिंता द्रष्टव्य है - "ढहने के कगार पर खड़े हैं / संस्कृति की संपदा / विरासत की धरोहर / सामर्थ्य के ऐतिहासिक गढ़ ! / हमारी शालीन भव्यता / पंथ से बड़े होते संप्रदाय / तैयार नहीं है झुकने को."
अवधान(म) / डॉ.म.लक्ष्मणाचार्य / अनुपमा प्रिंटर्स, शांति नगर, हैदराबाद / 2009 (प्रथम आवृत्ति) / रु.120/- / 104 पृष्ठ.
विश्व की समस्त भाषाओं में केवल तेलुगु भाषा ही गर्वपूर्वक यह कह सकती है कि मेरे पास अवधान जैसी अद्भुत एवं अनुपम साहित्यिक एवं साहित्येतर प्रक्रिया है. डॉ.म.लक्ष्मणाचार्य ने इस प्रक्रिया के अर्थ, स्वरूप, विकास और अंशों पर अच्छा प्रकाश डाला है. धारणेतर अंशों के अंतर्गत शास्त्रार्थ, चित्रकथा, छंदोभाषण, कीर्तन, आशुकविता आदि की भी चर्चा की है. घंटागणन, नाम समीकरण, पुष्पगणन, राग समीकरण और यांत्रिक गणित पर रोचक ढंग से प्रकाश डाला है. उपयोगी और पठनीय पुस्तक.
अलीगढ़ का क़ैदी / पुनत्तिल कुंज़ु अब्दुल्ला / अनुवाद : संतोष अलेक्स / साहित्य प्रतिष्ठान, ए-2 रामैया रेसिडेंसी, कृष्णा कॉलेज के आगे, मद्दिलिपालम, विशाखपट्टणम - 22 / 2009 / रु. 50/- / 47 पृष्ठ.
कवि और बहुभाषा अनुवादक संतोष अलेक्स ने कुंज़ु अब्दुल्ला के मलयालम लघु उपन्यास को हिंदी में प्रस्तुत किया है. अलीगढ़ के बहाने इस उपन्यास में एक ऐसे नारकीय परिवेश को साकार किया गया है जहाँ अनिश्चितता और अपराध का भयावह अंधेरा है. संबंधों के तड़ककर टूटने तथा गरीबी के इज्जत से बड़ी होने के दृश्य मार्मिक बन पड़े हैं. अच्छा अनुवाद.
एहसास / कविता संग्रह / मीना खोंड / गीता प्रकाशन, 4-2-771/ए, प्रथम तल, रामकोट, हैदराबाद - 500 001 / 2009 / रु. 75/- / 80 पृष्ठ.
मराठी भाषी मीना खोंड की 64 कविताएँ उनकी रचनाधर्मिता को प्रमाणित करती हैं. वाक्य रचना और वर्तनी की त्रुटियाँ न होतीं तो ये कविताएँ कुछ और पठनीय हो सकती थीं. विवरणात्मकता और पारंपरिकता के बावजूद कुछ कविताओं में आकर्षक बिंब निर्मित हुए हैं. कहीं आत्मालाप और कहीं वार्तालाप शैली का अच्छा प्रयोग है. कुछ स्थलों पर स्त्री जीवन की यातना को तीखी अभिव्यक्ति मिली है - "क्या पसंद, क्या नापसंद, बेमतलबी सवाल रहे. / वो कहते रहे / हम सुनते रहे. / अपने लिए, अपने मर्जी से कैसे जीते ? / आखिर औरत हूँ. / कन्यादान में जो मिली हूँ. / स्वतंत्र देश की गुलाम नागरिक हूँ."
ज्योति कलश / ज्योति नारायण / हिंदी अकादमी, हैदराबाद; प्लॉट नं. 10, रोड नं.6, समतापुरी कॉलोनी, न्यू नागोल के पास, हैदराबाद -500 035 / 2008 / रु.125/- / 74 पृष्ठ.
ज्योति नारायण के ‘ज्योति कलश ’ में दो तरह की रचनाएँ हैं - गीत और गज़ल. पारंपरिक सरस्वती वंदना से आरंभ होनेवाले इस संकलन में कवयित्री ने इंकलाब का नारा भी लगाया है - "जो भी मिल रहा गले, कर रहा वो वार है. / आज इंकलाब को, किसका इंतजार है." कई गीत उद्बोधनात्मक हैं. आत्मपरक अधिक हैं - मैं तुम्हें ही गुनगुनाऊँ / मैं कविता बन जाऊँ / प्रेम पथ पर बढ़ चली मैं / मैं थिरकने लगी प्रेम में / तुम भी गाओ, मैं भी गाऊँ / तेरी काया की मैं छाया. प्रकृति गीत भी कई हैं. गज़लें छोटे और बड़े दोनों प्रकार के छंदों में हैं. गीतों में तत्समप्रधान कवियित्री गज़लों में उर्दूदाँ हो जाती हैं - "कभी ज़मीन, कभी आसमान की बातें / बहुत करते हैं वो दुनियाँ जहान की बातें."
व्यक्तित्व और कवित्व / कन्हैयालाल शर्मा / मिलिंद प्रकाशन,4-3-178/2, कंदास्वामी बाग, सुल्तान बाजार, हैदराबाद - 500 095 / 2006 / रु.150/- /110 पृष्ठ.
एक अलग तरह की किताब. कवि और कलाकार कन्हैयालाल शर्मा ने गायन, वादन, अभिनय, चित्रकला, खेल जगत, अर्थव्यवस्था और राजनीति आदि क्षेत्रों से जुडे़ और वहाँ चमके व्यक्तित्वों को अपने कवित्व में ढाला है और सचित्र इस किताब में जिल्दबंद किया है. प्रशंसा करना, प्रशस्ति लिखना और वह भी इतने लोगों की एक साथ - कुछ आसान काम तो नहीं रहा होगा.
अंग्रेज़ी-हिंदी कार्यालयीन पत्राचार : व्यतिरेकी विश्लेषण / डॉ.वी.एल.नरसिंहम शिवकोटि / मिलिंद प्रकाशन,4-3-178/2, कंदास्वामी बाग, सुल्तान बाजार, हैदराबाद - 500 095 / 2009 / रु.150/- /94 पृष्ठ.
यह पुस्तक कार्यालयीन पत्राचार के तुलनात्मक और व्यतिरेकी अध्ययन को समर्पित है. अर्थात् अनुवाद समीक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है जो लघु शोध प्रबंध के रूप में है. शोधकर्ता ने पर्याप्त सामग्री का संकलन किया है और विश्लेषण के लिए काफी व्यापक आधार ग्रहण किया है. मशीनी अनुवाद संबंधी अध्याय विशेष रूप से पठनीय है.
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