पुण्यस्मरण
जाना भारत भूषण और अदम गोंडवी का
जिस दिन भी बिछड़ गया प्यारे
ढूँढ़ते फिरोगे लाखों में
फिर कौन सामने बैठेगा
बंगाली भावुकता पहने
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जितनी उड़ती है आयु परी
इकलापन बढ़ता जाता है
सारा जीवन निर्धन करके
ये पारस पल खो जाएँगे
गोरे मुख लिए खड़े रहना
खिड़की की स्याह सलाखों में
(भारत भूषण, जिस दिन भी बिछड़ गया प्यारे)
मिलना और बिछडना ही जगत का चक्र है. भारत भूषण (८ जुलाई, १९२९ – १७ दिसंबर, २०११) और अदम गोंडवी (२२ अक्टूबर, १९४७ – १८ दिसंबर, २०११) आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं फिर भी ‘राम की जल समाधि’(भारत भूषण) और ‘आप कहते हैं सरापा गुलमुहर है जिंदगी’(अदम गोंडवी) के रचनाकारों रूप में सदा याद किए जाएँगे.
भारत भूषण का जन्म ८ जुलाई, १९२९ को मेरठ में हुआ था. उन्होंने प्राध्यापक के रूप में अपना कैरियर शुरू किया था. धीरे धीरे उन्होंने कविता के क्षेत्र में अपने आप को स्थापित किया. उन्होंने प्राध्यापक के रूप में ही नहीं बल्कि कवि के रूप में उच्च कोटि की ख्याति अर्जित की. उनके प्रसिद्ध काव्य संग्रह हैं – सागर के सीप वर्ष (१९५८), ये असंगति वर्ष (१९९३) और मेरे चुनिंदा गीत (२००८). उनकी कविताओं में राम की जल समाधि सबसे अधिक चर्चित है. यह छोटी सी रचना इतनी मार्मिक बन पडी है कि राम के क्रमशः सरयू के जल में विलीन होने के साथ साथ पाठक का हृदय भी करुना के सागर में डूबता चला जाता है. यह कविता कुछ इस तरह आरंभ होती है –
‘पश्चिम में ढलका सूर्य उठा वंशज सरयू की रेती से,
हरा–हरा, रीता-रीता, निःशब्द धरा, निःशब्द व्योम,
निःशब्द अधर पर रोम-रोम था टेर रहा सीता-सीता.’
(भारत भूषण,राम की जल समाधि)
और समाप्त होती है इस बिंब के साथ –
दीपित जयमाल उठी ऊपर,
सर्वस्व सौंपता शीश झुका, लो शून्य राम लो राम लहर,
फिर लहर-लहर, सरयू-सरयू, लहरें-लहरें, लहरें- लहरें,
केवल तम ही तम, तम ही तम, जल, जल ही जल केवल,
हे राम-राम, हे राम-राम
हे राम-राम, हे राम-राम । (भारत भूषण,राम की जल समाधि)
सर्वस्व सौंपता शीश झुका, लो शून्य राम लो राम लहर,
फिर लहर-लहर, सरयू-सरयू, लहरें-लहरें, लहरें- लहरें,
केवल तम ही तम, तम ही तम, जल, जल ही जल केवल,
हे राम-राम, हे राम-राम
हे राम-राम, हे राम-राम । (भारत भूषण,राम की जल समाधि)
भारत भूषण संवेदनशील कवि हैं. वे यही कहते हैं कि यदि अपना कोई बिछड़ जाए तो अकेलेपन को सहना मुश्किल हो जाएगा. अतः वे प्रश्न करते हैं कि
‘ये देह अजंता शैली सी
किसकी रातें महकाएँगी
जीने के मोडों की छुअनें
फिर चाँद उछालेगा पानी
किसकी समुंदरी आँखों में’
(भारत भूषण, जिस दिन भी बिछड़ गया प्यारे)
भारत भूषण अस्तित्व का यह मूलभूत प्रश्न भी उठाते हैं कि यह शरीर और मन किस लिए हैं तथा यह धरती उसे किसलिए सहे और वे इस धरती को किस लिए सहें –
‘किसलिए रहे अब ये शरीर, ये अनाथमन किसलिए रहे,
धरती को मैं किसलिए सहूँ, धरती मुझको किसलिए सहे.’
(भारत भूषण,राम की जल समाधि)
यह काल चक्र का संयोग ही कहा जाएगा कि सलोने सुकुमार गीतकार भारत भूषण के निधन के अगले ही दिन हिंदी उर्दू के कबीरी परंपरा के ठेठ किसानी थाथ्वाले गजलकार अदम गोंडवी का भी स्वर्गवास हो गया. अदम गोंडवी की रचनाओं में भारत के आम आदमी की मनोदशा की अभिव्यंजना ध्यान खींचती है. उनका जन्म २२ अक्टूबर, १९४७ को सूकर क्षेत्र के करीब परसपुर (गोंड) के आटा ग्राम में हुआ. उनका वास्तविक नाम था रामनाथ सिंह. उनकी प्रमुख कृतियों में धरती की सतह पर, समय से मुठभेड़ आदि परिद्ध हैं. कवि के रूप में वे आम जनता के प्रबल पक्षधर हैं. वे कहते हैं कि जिंदगी गरीबों की नजर में एक कहर है –
‘आप कहते हैं सरापा गुलमुहर है जिंदगी
हम गरीबों की नजर में इक कहर है जिंदगी
भुखमरी की धूप में कुम्हला गई अस्मत की बेल
मौत के लम्हात से भी तल्खतर है जिंदगी.’
(आप कहते हैं सरापा गुलमुहर है जिंदगी, अदम गोंडवी)
अदम गोंडवी की कविताओं में व्यंग्य का स्वर मुखरित होता है. वे समकालीन राजनीति पर तीखा प्रहार करते हैं और कहते हैं कि
‘काजू भुने प्लेट में, विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास में
आजादी का वो जश्न मनाएँ तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में’
आज नोट के बदले वोट का चलन है. पैसों की ताकत पर सरकार बनाई भी जा सकती है और गिराई भी. इसीलिए अदम गोंडवी कहते हैं कि
‘पैसे से आप चाहे तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गई है यहाँ की नखास में
जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में’
अदम गोंडवी की कविताओं में दलित विमर्श भी द्रष्टव्य है. यह कहा जा रहा है कि यह उत्तर आधुनिक युग है और इस युग में हाशिए पर स्थित समुदाय केन्द्र में आ रहे हैं. स्त्री, वृद्ध और दलित केंद्रित साहित्य में वृद्धि इसीका परिणाम है. पर अदम गोंडवी यह प्रश्न करते हैं कि वेद में जिनका स्थान हाशिए पर भी नहीं है, वे आस्था और विश्वास लेकर क्या करेंगे –
‘वेद में जिनका हवाला हाशिये पर भी नहीं
वे अभागे आस्था विश्वास लेकर क्या करें
लोकरंजन हो जहां शम्बूक-वध की आड़ में
उस व्यवस्था का घृणित इतिहास लेकर क्या करें
कितना प्रतिगामी रहा भोगे हुए क्षण का इतिहास
त्रासदी, कुंठा, घुटन, संत्रास लेकर क्या करें
बुद्धिजीवी के यहाँ सूखे का मतलब और है
ठूंठ में भी सेक्स का एहसास लेकर क्या करें
गर्म रोटी की महक पागल बना देती मुझे
पारलौकिक प्यार का मधुमास लेकर क्या करें
वे अभागे आस्था विश्वास लेकर क्या करें
लोकरंजन हो जहां शम्बूक-वध की आड़ में
उस व्यवस्था का घृणित इतिहास लेकर क्या करें
कितना प्रतिगामी रहा भोगे हुए क्षण का इतिहास
त्रासदी, कुंठा, घुटन, संत्रास लेकर क्या करें
बुद्धिजीवी के यहाँ सूखे का मतलब और है
ठूंठ में भी सेक्स का एहसास लेकर क्या करें
गर्म रोटी की महक पागल बना देती मुझे
पारलौकिक प्यार का मधुमास लेकर क्या करें
इसमें कोइ संदेह नहीं कि जिस प्रकार भारत भूषण गीत की परम्परा के उन्नायक थे उसी प्रकार अदम गोंडवी भी गजल को नया संस्कार प्रदान करने वालों में अपनी तरह के अकेले रचनाकार थे. इन दोनों प्रतिभाओं के एक साथ तिरोहित हो जाने से हिंदी गीत – गजल की दुनिया स्तब्ध रह गई है. यह सूनापन जल्दी भरनेवाला नहीं.