इकाई
1
: संभाषण : अर्थ एवं विविध रूप
रूपरेखा
1.1 उद्देश्य
1.2 प्रस्तावना
1.3 पाठ परिचय
1.4 मूल पाठ : संभाषण : अर्थ एवं विविध रूप
1.4.1 संभाषण : अर्थ एवं स्वरूप
1.4.2 संभाषण : विविध
रूप
1.4.2.1 वार्तालाप
या संवाद
1.4.2.2 व्याख्यान या भाषण
1.4.2.3 वाद-विवाद
1.4.2.4 एकालाप
1.4.2.5 परिचर्चा
1.4.2.6 जनसंचार
1.4.3 जनसंचार के लिए उपयोगी संभाषण के विविध प्रकार
1.4.3.1 उद्घोषणा
1.4.3.2 आँखों देखा हाल
1.4.3.3 कार्यक्रम संचालन
1.4.3.4 वाचन
1.4.3.4.1 समाचार वाचन
1.4.3.4.2 मंचीय वाचन
1.4.4 संभाषण की आवश्यकता
1.5 सारांश
1.6 समीक्षा
1.7 पारिभाषिक शब्द
1.8 परीक्षार्थ प्रश्न
1.9 बोध प्रश्नों के उत्तर
1.10 पठनीय पुस्तकें
इस इकाई के अध्ययन से आप –
- संभाषण के अर्थ और स्वरूप को जान सकेंगे।
- संभाषण के स्वरूप को समझ सकेंगे।
- संभाषण के विविध रूपों से परिचित हो सकेंगे।
- जनसंचार हेतु संभाषण के विविध प्रकारों की जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।
- संभाषण
की आवश्यकता को पहचान सकेंगे।
अपने
मनोभावों को प्रकट करने तथा विचारों के परस्पर आदान-प्रदान के लिए हमें भाषा का
उपयोग करना पड़ता है। परस्पर वार्तालाप द्वारा ही हमारे जीवन के विभिन्न कार्य हो
पाते हैं। वार्तालाप में कम-से-कम दो व्यक्ति सम्मिलित होते हैं – (i) बोलेनेवाला
अर्थात वक्ता तथा (ii) सुननेवाला अर्थात श्रोता। कुशल
वक्ता के लिए संभाषण कला में निपुण होना आवश्यक है। कुछ व्यक्तियों में यह कला
जन्मजात होता है तो कुछ लोग अभ्यास के माध्यम से इसे अर्जित करने का प्रयास करते हैं।
विचारों के संप्रेषण और अभिव्यक्ति का माध्यम भाषा है परंतु सामाजिक संबंधों की
जटिलता के कारण संप्रेषण क्षमता को अधिक महत्व दिया जाता है। आमने-सामने की बातचीत
में संप्रेषण केवल भाषा से ही नहीं होता,
कभी इशारों से तो कभी चेष्टाओं से बात को समझाना पड़ता है। हर स्तर पर एक ही तरह की
भाषा का प्रयोग नहीं किया जाता। संभाषण के विविध रूपों में भाषा वैविध्य को देखा
जा सकता है। इस इकाई में संभाषण के अर्थ तथा उसके विविध रूपों पर विचार किया जा
रहा है।
मनुष्य
अपनी इच्छाओं और भावनाओं को व्यक्त करना चाहता है। संभाषण के द्वारा उसके
व्यक्तिगत और सामाजिक व्यवहार संचालित होते रहते हैं। कभी वह दूसरों को सलाह देने
के लिए तो कभी अपने कार्य की सिद्धि के लिए अथवा कभी अपने मन की बातों को
अभिव्यक्त करने के लिए संभाषण का प्रयोग करता है। यह भी कहा जा सकता है कि संभाषण
के माध्यम से व्यक्ति का समाजीकरण होता है। अर्थात व्यक्ति से समष्टि की ओर मनुष्य
संभाषण के द्वारा अग्रसर होता है।
1.4 मूल पाठ : संभाषण : अर्थ एवं विविध रूप
1.4.1 संभाषण : अर्थ एवं स्वरूप
संस्कृत
के ‘भाष’
धातु में ‘ल्युट’ प्रत्यय (अन) लगाने से भाषण शब्द की व्युत्पत्ति
होती है। इससे पहले ‘सम’ उपसर्ग जोड़ने से ‘संभाषण’
शब्द बनता है। संभाषण का सामान्य अर्थ है - बातचीत अथवा वार्तालाप। ‘सम’
उपसर्ग के साथ-साथ अव्यय भी है। इसका अर्थ है समान,
तुल्य, बराबर और सारा। ‘संभाष’
में ल्युट प्रत्यय (अन) जोड़ने से इसका अर्थ अभिवादन,
कथन और वार्तालाप भी होता है। वार्तालाप के अंतर्गत अनुभाषण, आलाप,
भाषण, उक्ति, कथोपकथन,
गुफ्तगू, चर्चा, बतकही,
वार्ता, संलाप, संवाद और संभाषण शामिल है।
संभाषण
अकेले में संभव नहीं होता। इसके लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों की आवश्यकता होती
है। दो मित्र आपस में बातचीत कर सकते हैं। सभा या समूह में जब लोग एक दूसरे से
बातचीत करते रहते हैं, तो कभी-कभी उनका
संभाषण सुनने में किसी को रुचि नहीं रहती। जब दो व्यक्ति आपस में प्रथम बार मिलते
हैं तो अभिवादन के साथ बातचीत/ संभाषण शुरू करते हैं। व्यक्ति आपस में जब परस्पर
संभाषण करता है तब एक व्यक्ति मन की बात बताता है तो दूसरा ध्यान से सुनता है। दूसरा
व्यक्ति तभी बात करेगा जब पहले व्यक्ति का कथन पूरा हो जाता है। जब ऐसा प्रतीत हो
कि कोई वार्ता इच्छा के अनुरूप नहीं है या समझ से बाहर है, तो संभाषण को बंद कर देना चाहिए क्योंकि बातचीत
की प्रक्रिया 'सुनना-समझना-बोलना’ से होकर गुजरती है।
‘सरसता’ संभाषण का एक अनिवार्य तत्व है। वार्तालाप तभी
आगे चल सकता है जब तक वह सरस और रोचक हो। सामान्य संभाषण का विषय दैनिक जीवन से संबद्ध
होता है तब तक ही संभाषण का ‘समझ’ में आना भी आवश्यक है। उदाहरण के लिए यदि वक्ता
क्या कह रहे हैं, इसका ज्ञान
श्रोता को न हो तो वह घंटों बैठकर नहीं सुनेगा। विद्यार्थी भी तब तक प्रश्न करता
ही रहेगा जब तक वह शिक्षक की बातों को नहीं समझेगा। कहने का अर्थ है कि संभाषण में
वक्ता और श्रोता के बीच रुचि का ध्यान भी रखना पड़ता है। यदि साहित्य के
विद्यार्थियों को शल्यक्रिया संबंधी विषयों के बारे में बताएँगे तो वे कुछ ही क्षणों
में ऊब जाएँगे। ऐसी स्थिति में संभाषण,
संभाषण नहीं रह जाएगा बल्कि कुछ और बन जाएगा। संभाषण के लिए वक्ता और श्रोता के
भाषण में समानता की अपेक्षा होती है। अर्थात समान भाषण ही संभाषण है। कहने का अर्थ
है कि वक्ता और श्रोता के बीच संदेशों का आदान-प्रदान समान रूप से होना चाहिए। इसे
निम्नलिखित आरेख के माध्यम से भी समझा जा सकता है –
संदेश
वक्ता ........................................... श्रोता
छात्रो! संभाषण व्यक्तिगत भी होता है और
समष्टिगत भी। समष्टिगत संभाषण में व्यक्ति की सहमति अथवा असहमति का कोई महत्व नहीं
रहता। शिक्षक या किसी नेता का संभाषण यदि एक-दो की समझ में नहीं आता तो भाषण को
रोका नहीं जाता। लेकिन व्यक्तिगत संभाषण में व्यक्ति की रुचि और स्वभाव का ध्यान
रखना पड़ता है। व्यक्तिगत संभाषण में दूसरे की बात सुनने, समझने और बोलने की प्रक्रिया कार्य करती है। यदि
केवल एक ही व्यक्ति बोलता चला जाए तो दूसरा व्यक्ति ऊब जाएगा और संभाषण समाप्त हो
जाएगा। यह भी ध्यान देने की बात है कि इच्छा या अनुकूलता के विरुद्ध किया गया
संभाषण शत्रुता पैदा कर सकता है।
संभाषण
के लिए व्यक्ति का विवेकशील होना भी आवश्यक है। यदि कोई व्यक्ति अपनी स्वार्थसिद्धि
के लिए दूसरे व्यक्ति से संभाषण कायम करता है तो थोड़े ही दिनों में दूसरा व्यक्ति
उससे किनारा करने लग जाएगा। संभाषण करते समय श्रोता के सामाजिक और बौद्धिक स्तर का
ध्यान रखना वक्ता के लिए अनिवार्य है। प्रभावी और स्पष्ट कथन तथा वक्ता-श्रोता
का प्रत्यक्ष संवाद संभाषण की प्रमुख कसौटियों हैं।
बोध प्रश्न
1. संभाषण का
सामान्य अर्थ क्या है?
............................................................................................................................................
............................................................................................................................................
2. जब दो व्यक्ति
आपस में प्रथम बार मिलते हैं तो संभाषण कैसे शुरू करते हैं?
............................................................................................................................................
............................................................................................................................................
3. संभाषण के
अनिवार्य तत्व क्या-क्या हैं?
............................................................................................................................................
............................................................................................................................................
4. व्यक्तिगत
संभाषण में कौन सी प्रक्रिया कार्य करती है?
...........................................................................................................................................
...........................................................................................................................................
5. संभाषण की
कसौटियाँ क्या हैं?
...........................................................................................................................................
...........................................................................................................................................
1.4.2 संभाषण : विविध
रूप
आप जान ही चुके हैं कि संभाषण में वक्ता और श्रोता के
बीच संदेशों का आदान-प्रदान समान रूप से होना चाहिए। वार्तालाप या संवाद, व्याख्यान, वाद-विवाद, एकालाप, परिचर्चा और जनसंचार आदि संभाषण के विविध रूप हैं।
1.4.2.1 वार्तालाप या
संवाद
वार्तालाप
का अर्थ है – बातचीत। दो व्यक्ति जब भाषा के माध्यम से विचारों या सूचनाओं का आदान-प्रदान
करते हैं, तो इसे वार्तालाप अथवा संवाद कहा जाता है। व्यक्ति सुबह से लेकर रात को
सोने तक कई तरह के संवादों से गुजरता है। दैनिक जीवन में संवाद या ‘वार्तालाप’ किसी न
किसी रूप में सुबह होते ही शुरू हो जाता है और रात तक चलता ही रहता है। साहित्यिक
कृतियों में संवाद को कथोपकथन कहा जाता है। लेकिन यहाँ मानवीय संभाषण में निहित
संवाद की चर्चा की जा रही है। मोटे तौर पर संवाद या वार्तालाप दो या दो से अधिक
व्यक्तियों के बीच होने वाली बातचीत है। इस (वार्तालाप) के कई रूप प्रचलित हैं। जैसे :- दो देशों के बीच शिखर वार्ता (संवाद), साहित्यिक या कला संस्कृति विषयक वार्तालाप, साहित्यिक कृतियों या फिल्म-नाटक आदि के संवाद, ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में दो या दो से अधिक
विद्वानों का संवाद, व्यक्तिगत स्तर पर संवाद आदि। रोचकता संवाद की पहली शर्त है। यदि रोचकता न
हो तो बहुत ही कम समय में संवाद समाप्त हो सकते हैं। कई व्यक्ति अपने संवादों की
निजी शैली के कारण भी प्रसिद्ध हो जाते हैं। वार्तालाप व संवाद औपचारिक भी हो सकता
है या अनौपचारिक भी तथा व्यक्तिगत या सामूहिक भी। अनौपचारिक संवाद में बोलचाल की
भाषा का प्रयोग होता है जबकि औपचारिक संवाद में परिनिष्ठित भाषा का व्यवहार होता
है। संवाद वक्ता और श्रोता के आयु, लिंग, शिक्षा और सामाजिक स्तर आदि पर निर्भर रहता है। स्पष्टता, शुद्धता, शिष्टता, स्वाभाविकता, गतिशीलता, प्रभावोत्पादकता
आदि को वार्तालाप या संवाद के प्रमुख गुण माना जा सकता है। वक्ता-श्रोता की संख्या
के आधार पर संवाद व्यक्तिगत एवं समूहगत हो सकता है तथा सामाजिक परिवेश एवं सामाजिक
भूमिका के आधार पर औपचारिक और अनौपचारिक हो सकता है।
बोध प्रश्न
6. संवाद की पहली शर्त क्या है?
............................................................................................................................................
............................................................................................................................................
7. संवाद के प्रमुख गुण क्या हैं?
.........................................................................................................................................
.........................................................................................................................................
1.4.2.2 व्याख्यान या
भाषण
व्याख्यान संभाषण का विशिष्ट रूप है। इसका प्रयोग आम तौर
पर किसी विषय की व्याख्या करने के लिए किया जाता है। अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त
करने के साथ-साथ श्रोताओं को प्रेरित करने की क्षमता व्याख्याता में होनी चाहिए।
व्याख्याता अपनी बात को तर्कों के आधार पर श्रोता के समक्ष प्रस्तुत करता है। व्याख्यान
में व्याख्याता कम समय में अधिक जानकारी प्रस्तुत करने का प्रयास करता है।
व्याख्यान में भी यदि रोचकता नहीं है तो श्रोता ऊब जाते हैं। अतः व्याख्यान को
रोचक बनाए रखने के लिए व्याख्याता कभी-कभी तकनीकी प्रस्तुतीकरण या प्रश्नोत्तरी की
सहायता ले सकता है। छात्रो! वास्तव में व्याख्यान या भाषण का उद्देश्य समूह संचार (ग्रुप कम्युनिकेशना) होता है जिसमें एक वक्ता किसी छोटे या बड़े आकार के
श्रोता समूह को एक साथ संबोधित करता है।
बोध प्रश्न
8. व्याख्यान को रोचक बनाए रखने के लिए क्या करना चाहिए?
............................................................................................................................................
............................................................................................................................................
1.4.2.3 वाद-विवाद
‘वाद’ वह बातचीत या तर्क है जिससे कोई सिद्धांत निश्चित हो। सिद्धांत स्थापित
करने के लिए शास्त्रार्थ या वाद करते हैं, लेकिन सिद्धांत को न मानने वाले विवाद (उल्टा तर्क)
करते हैं। इस तरह वाद-विवाद शास्त्रार्थ या तत्व चिंतन का दूसरा नाम है। कहने का
अर्थ है कि किसी भी विषय के पक्ष और विपक्ष में विचार व्यक्त करने के माध्यम को
वाद-विवाद या बहस कहा जा सकता है। वाद-विवाद प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता
है। वाद-विवाद का उद्देश्य है – किसी भी ज्वलंत विषय पर लोगों का ध्यान आकर्षित करना तथा तर्क के साथ विषय
को श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत करना। तर्क के साथ किसी विषय पर चर्चा की औपचारिक
विधि को वाद-विवाद कहा जा सकता है। यह दो व्यक्तियों के मध्य से लेकर सार्वजनिक
बैठकों तक में हो सकता है, शिक्षण संस्थाओं में हो सकता है या संसद अथवा विधान सभाओं में हो सकता है।
यह माना जाता है कि किसी विषय के विभिन्न पक्षों पर बहस-मुबाहसा करके उचित और सटीक
निर्णय या सिद्धांत तक पहुँचा जा सकता है। कहा भी गया है – वादे-वादे जायते तत्व बोधः।
बहस से तत्व का बोध होता है।
बोध प्रश्न
9. वाद-विवाद किसे कहते हैं?
............................................................................................................................................
............................................................................................................................................
1.4.2.4 एकालाप
एकालाप
अर्थात एक ही व्यक्ति या पात्र का संभाषण। जहाँ किसी अन्य व्यक्ति से संवाद संभाव
नहीं होता वहाँ एकालाप जन्म लेता है। इसमें संबोधक और संबोधित एक ही पात्र होता
है। विचारों की स्थिरता और गतिशीलता के आधार पर एकालाप को दो प्रकारों में विभाजित
किया जा सकता है – स्थिर एकालाप और गत्यात्मक एकालप। स्वगत कथन एकालाप ही है। एकालाप में
प्रारंभ से अंत तक एक ही व्यक्ति अपने मनोभावों और घटनाओं का विवरण प्रस्तुत करता
है।
बोध प्रश्न
10. एकालाप किसे कहते हैं?
............................................................................................................................................
............................................................................................................................................
1.4.2.5 परिचर्चा
साहित्यिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक या सांस्कृतिक किसी भी तथ्य, विषय या समस्या पर विस्तृत रूप से की जाने वाली चर्चा को
परिचर्चा कहा जा सकता है। इस तरह के संभाषण में कई लोग भाग लेते हैं। विषय के सभी
पक्षों पर खुलकर चर्चा की जाती है। सभी प्रतिभागी अपना-अपना पक्ष और विचार
प्रस्तुत करते हैं। यह औपचारिक भी हो सकती है और अनौपचारिक भी। अनौपचारिक परिचर्चा
के कभी-कभी दिशाहीन होने की संभावना रहती है। अनावश्यक बहस के कारण मारपीट भी हो
सकती है। औपचारिक परिचर्चा में एक सभापति होता है और संभाषण व्यवस्थित रूप से चलाता
है। परिचर्चा सहज और मैत्रीपूर्ण वातावरण में होनी चाहिए। परिचर्चा के प्रमुख तत्व
हैं - विषय विशेष, विभिन्न मत, सम्यक विचार और आकर्षक प्रस्तुति।
बोध प्रश्न
11. परिचर्चा किसे कहते हैं?
............................................................................................................................................
............................................................................................................................................
12. परिचर्चा के प्रमुख तत्वों के बारे में बताइए।
............................................................................................................................................
............................................................................................................................................
1.4.2.6 जनसंचार
सूचना
तथा विचारों को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक संप्रेषित करने की कला को संचार
कहा जाता है। संचार का सामान्य अर्थ है लोगों का आपस में विचार, ज्ञान तथा भावनाओं का कुछ संकेतों द्वारा आदान-प्रदान। अंग्रेजी
शब्द ‘मास कम्यूनिकेशन’ के पर्याय के रूप में जनसंचार शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसका अर्थ है
किसी यंत्र या जनमाध्यम द्वारा संदेश को बहुत बड़े मिश्रित जनसमूह तक पहुँचाना। रेडियो, टीवी, इंटरनेट, फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप्प, समाचार पत्र, पुस्तकें, पोस्टर आदि जनसंचार के माध्यम हैं जिनकी सहायता से समूह में बहुत ही कम
समय में सूचनाओं को प्रेषित किया जा सकता है। जनसंचार के पाँच पहलू हैं – व्यापक श्रोता समूह, विभिन्न प्रकार के श्रोता, किसी संदेश की पुनर्रचना, तीव्र वितरण और उपभोक्ता के लिए सस्ता होना। बिखरे हुए
श्रोता समूह के लिए संदेश का सार्वजनिक रूप से सीधा प्रसारण किया जाता है। इसलिए
इसमें गोपनीयता संभव नहीं है। मीडिया अपनी जरूरत के अनुरूप श्रोता का चयन करता है
तो श्रोता भी अपनी जरूरत के अनुरूप मीडिया का चयन करता है। संचार की प्रक्रिया
परस्पर आदान-प्रदान की है। फीडबैक तुरंत प्राप्त होता है और कभी-कभी देर से भी
प्राप्त हो सकता है। संचारक तथा प्राप्तकर्ता (प्राप्त करने वाले) की भूमिकाएँ
बदलती रहती हैं। इसे निम्नलिखित आरेख के माध्यम से समझा जा सकता है –
संचारक ................ > संदेश ................> माध्यम
........> प्रापक
फीडबैक
बोध प्रश्न
13. संचार किसे
कहते हैं?
............................................................................................................................................
............................................................................................................................................
14. जनसंचार से आप क्या समझते हैं?
...........................................................................................................................................
...........................................................................................................................................
जनसंचार
के तत्व हैं - संचारक, संदेश, माध्यम, प्राप्तकर्ता और फीडबैक। संचारक ही किसी संदेश का स्रोत होता है। वही
प्रेषक है। संचारक ही संचार प्रक्रिया को प्रारंभ करता है। वह संचार प्रक्रिया के
लिए उचित माध्यम का चयन करता है ताकि संदेश को व्यापक जनसमूह तक पहुँचा जा सके। जनसंचार
की भाषा में संदेश को ‘अंतर्वस्तु’ या ‘कंटेंट’ कहा जाता है। प्राप्तकर्ता प्राप्त संदेश पर प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। प्राप्तकर्ता
या रिसीवर के प्रतिउत्तर या प्रतिक्रिया को फीडबैक कहा जाता है। यह संचार के लिए
आवश्यक है। अन्यथा संचार एकमुखी गतिविधि बनकर रह जाएगा।
बोध प्रश्न
15. जनसंचार के तत्व क्या-क्या हैं?
............................................................................................................................................
............................................................................................................................................
16. फीडबैक क्यों आवश्यक है?
...........................................................................................................................................
...........................................................................................................................................
1.4.3 जनसंचार के लिए उपयोगी संभाषण के विविध प्रकार
जनसंचार
के माध्यम से व्यापक जनसमूह तक किसी भी संदेश को त्वरित गति से पहुँचाया जा सकता
है। इसके लिए उपयोगी संभाषण के अनेक रूप हैं। उनमें प्रमुख हैं – उद्घोषणा, आँखों देखा हाल और वाचन।
1.4.3.1 उद्घोषणा
उद्घोषणा
का सामन्य अर्थ है ऐलान करना, घोषणा करना। यह घोषणा सार्वजनिक रूप से भी हो सकती है। किसी विषय पर आधिकारिक
रूप से भी यह घोषणा की जा सकती है अथवा प्रकाशित अध्यादेश के रूप में भी हो सकती
है। सामान्य रूप से यह कहा जा सकता है कि सार्वजनिक जानकारी के लिए दी जाने वाली
सूचना या सरकारी तौर पर की जाने वाली घोषणा उद्घोषणा कहलाती है। इसे जनता तक बात
पहुँचाने के लिए तेज या ऊँची आवाज में प्रसारित किया जाता है। किसी सूचना की घोषणा
करने वाले को उद्घोषक (अनाउंसर) कहा जाता है। उद्घोषक अपनी निजी भाषा शैली के
माध्यम से श्रोता का ध्यान आकर्षित करता है। छात्रो! आपको पता है, पुराने जमाने में डुगडुगी या ढोल बजाकर गाँवों में घूम-घूम कर किसी बात की
घोषणा की जाती थी। इसे मुनादी करना या ढिंढोरा पीटना कहा जाता है। धीरे-धीरे ढोल
और डुगडुगी के स्थान पर माइक और लाउड स्पीकर का प्रयोग किया जाने लगा। पंचायत के
निर्णय का प्रचार, चुनाव प्रचार, भारतीय रेल और हवाई अड्डे में आवागमन की सूचनाओं का प्रसारण, टीवी-रेडियो आदि में घोषणा मौखिक उद्घोषणा के उदाहरण हैं, तो प्रिंट मीडिया में प्रकाशित विज्ञापन आदि लिखित
उद्घोषणा के उदाहरण हैं। यह ध्यान देने की बात है कि भारतीय रेल में जन उद्घोषणा
प्रणाली की शुरूआत 1967 में हुई थी। इस सार्वजनिक उद्घोषणा प्रणाली के माध्यम से रेलों के आवागमन
की जानकारी दी जाती है।
बोध प्रश्न
17. उद्घोषणा किसे कहते हैं?
...........................................................................................................................................
............................................................................................................................................
18. मुनादी करना किसे कहते हैं?
...........................................................................................................................................
............................................................................................................................................
1.4.3.2 आँखों देखा हाल
जनसंचार
हेतु संभाषण का एक बेहद रोचक और प्रभावशाली रूप है ‘आँखों देखा हाल।’ प्रायः विशेष कार्यक्रम का आयोजन का आँखों देखा हाल प्रस्तुत करने के लिए विशेष
संवाददाता को भेजा जाता है। यह प्रसारण तंत्र का अभिन्न अंग है। सूचना देने के
साथ-साथ प्रस्तुतीकरण में रोचकता ‘आँखों देखा हाल’ की मूलभूत विशेषता होती है; ताकि श्रोता
उस घटना या कार्यक्रम का आँखों देखा वर्णन सुनकर आनंद प्राप्त कर सके। इलेक्ट्रॉनिक
मीडिया में क्रिकेट मैच या अन्य खेल कार्यक्रमों का आँखों देखा हाल प्रसारित किया
जाता है। इसी तरह स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस समारोहों का भी आँखों देखा हाल
प्रसारित किया जाता है। 26 जनवरी या 15 अगस्त पर प्रसारित होने वाले ‘आँखों देखा हाल’ से पूर्व टिप्पणीकार (कमेंटेटर) झाँकियों का क्रम पता लगाकर उन पर विशेष जानकारी जुटाकर अपनी कमेंट्री को
रोचक तथा प्रभावशाली बना सकता है। कमेंटेटर को यह ध्यान अवश्य रखना होगा कि श्रोता
उसकी बात को आसानी से समझ सके। आँखों देखा हाल सुनाते समय कभी-कभी किसी कारणवश गैप
पैदा हो जाता है। आँखों देखा हाल प्रायः पूर्व निश्चित आयोजनों के लिए होता है। जैसे
:- ब्रह्मोत्सव का आँखों देखा हाल, किसी खेल का आँखों देखा हाल, किसी उद्घाटन का आँखों देखा हाल आदि।
बोध प्रश्न
19. ‘आँखों देखा
हाल’ की मूलभूत विशेषता क्या है?
...........................................................................................................................................
............................................................................................................................................
1.4.3.3
कार्यक्रम संचालन
संचालक
या एंकर किसी भी कार्यक्रम का महत्वपूर्ण अंग होता है। यदि टीवी के संदर्भ में बात
करें तो एंकर ही चैनल का चेहरा होता है। छोटे पर्दे का एंकर हो या किसी कार्यक्रम का
एंकर, उसे अपनी संतुलित
भाषा और अंदाज पर विशेष ध्यान रखना होता है। आवाज में निरंतर अभ्यास के माध्यम से निखार
लाया जा सकता है। संचालक को विषय की जानकारी की भी आवश्यकता होती है। संचालक के
पास ‘प्रेजेंस ऑफ माइंड’ (प्रत्युत्पन्न मति) का होना अनिवार्य है। कभी-कभी संचालक को अपने विवेक के आधार पर संचालन
करना पड़ सकता है। कार्यक्रम संचालक चाहे कैमरे के सामने किसी टीवी स्टूडियो में
उपस्थित हो या मंच पर, उसमें आत्मविश्वास का होना अत्यंत जरूरी है। कार्यक्रम शुरू करने से पहले
वह पृष्ठभूमि की चर्चा कर सकता है। वह अपने हाव-भाव से तथा अपनी आवाज के उतार-चढ़ाव
से श्रोताओं का ध्यान आकर्षित कर सकता है। यह भी स्मरणीय है कि संचालक को परिस्थिति
के अनुरूप संचालन करना होता है। नीरस कार्यक्रम को भी संचालक अपनी ‘सेंस ऑफ
ह्यूमर’ (हास-परिहास) से रोचक बना सकता है। किसी साहित्यिक कार्यक्रम का संचालन
करते समय संचालक बीच-बीच में प्रासंगिक कविताओं के अंशों का प्रयोग करके कार्यक्रम
को रोचक बना सकता है।
बोध प्रश्न
20. संचालक के पास कौन-सा तत्व होना अनिवार्य है?
...........................................................................................................................................
............................................................................................................................................
1.4.3.4 वाचन
जनसंचार
के लिए उपयोगी संभाषण का एक रूप ‘वाचन’ भी है। विचारों की अभिव्यक्ति में वाचन का अपना महत्व है। यह एक कौशल है। वाचक
अपनी आवाज और अंदाज के साथ श्रोता को अपनी ओर आकर्षित कर सकता है। समाचार का वाचन
और मंचीय वाचन अलग-अलग शैली में होता है।
1.4.3.4.1 समाचार वाचन
इलेक्ट्रॉनिक
मीडिया में समाचार वाचन आकर्षण (ग्लैमर) का केंद्र रहा है। समाचार कार्यक्रमों के लिए समाचार वाचक या न्यूज़ रीडर
की आवश्यकता होती है। समाचार वाचक को पूर्वग्रह से मुक्त रहना चाहिए। प्रभावशाली
व्यक्तित्व एवं अच्छी आवाज वाला व्यक्ति समाचार वाचक के रूप में तुरंत चुन लिया
जाता है। समाचार वाचन के समय यह ध्यान रखना अनिवार्य है कि बोलने का प्रवाह बना
रहे। भाषण, वार्ता और कार्यक्रम के संयोजन में यदि रोचकता का ध्यान रखा जाए तो समाचार
वाचक सफलता प्राप्त करेगा। समाचार वाचन करते समय वाचक को भाषा का शुद्ध उच्चारण
करना होगा तथा आत्मविश्वास से भरपूर रहना होगा। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में समाचार
वाचक के सामने श्रोता नहीं, बल्कि कैमरा रहता है।
कक्षा
या विद्यालय स्तर पर भी समाचार वाचन की गतिविधि आयोजित की जा सकती है। ऐसे आयोजन
में समाचार पत्रों, टीवी, रेडियो, इंटरनेट आदि से समाचार संकलित करके विद्यालय की प्रातःकालीन सभा में समाचार
वाचन किए जाते हैं। समाचार वाचन के समय बलाघात, आरोह और अवरोह पर ध्यान देना आवश्यक है।
बोध प्रश्न
21. समाचार वाचक किस तरह से सफल होता है?
...........................................................................................................................................
............................................................................................................................................
1.4.3.4.2 मंचीय वाचन
समाचार
वाचन में वाचक को आत्मविश्वास के साथ शुद्ध उच्चारण करना पड़ता है। अपने हाव-भावों
का प्रयोग करना पड़ता है। इसी तरह मंचीय वाचन के लिए भी वाचक को आत्मविश्वास के साथ
धाराप्रवाह बोलना पड़ता है। मंचीय वाचन में वाचक को सावधान रहना चाहिए क्योंकि उनके
सामने श्रोता उपस्थित है। मंच संचालक को भाषिक शुद्धता पर ध्यान रखना होगा।
1.4.4 संभाषण की
आवश्यकता
मनुष्य
की भावनाओं एवं संवेदनाओं के आदान-प्रदान के लिए संभाषण आवश्यक है। स्वागत-विदाई, शंका-समाधान आदि क्रिया व्यापारों के लिए भी संभाषण आवश्यक है। क्योंकि इसके
माध्यम से बात बनती है और काम चलते हैं। वाक् चातुर्य के गुण से युक्त व्यक्ति आसानी
से अपना काम करवा लेता है। यदि व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी हो तो वह न ही अपनी
बात रख सकता है, न ही तर्क-वितर्क कर सकता है और न ही अपना पक्ष रख सकता है। वह असमंजस की
स्थिति में पड़ सकता है। मनुष्य संभाषण के माध्यम से अपने गुण-दोषों के साथ-साथ
दूसरों के गुण-दोषों का विवेचन कर सकता है। व्यक्ति के अपने व्यक्तित्व निर्माण
में भी संभाषण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संभाषण व्यवहार कुशलता सिखाता है।
छात्रो!
इस इकाई में आपने संभाषण के अर्थ और स्वरूप का अध्ययन किया है। संभाषण की
प्रक्रिया वस्तुतः बच्चे के जन्म के साथ ही शुरू हो जाती है। धीरे-धीरे परिवार और
समाज की सहायता से उसकी संभाषण कला में निखार आता जाता है। संभाषण व्यक्ति को समाज
से जोड़कर उसे सामाजिक प्राणी बनाता है। आपने इस इकाई में वार्तालाप या संवाद, व्याख्यान या भाषण, वाद-विवाद, एकालाप, परिचर्चा और जनसंचार जैसे संभाषण के विविध रूपों का भी अध्ययन किया है। जनसंचार
के लिए उपयोगी संभाषण के विविध प्रकारों की जानकारी भी प्राप्त कर चुके हैं। यह भी
जान चुके हैं कि प्रभावी संभाषण से व्यक्तित्व निर्माण संभव है। ऐसा इसलिए संभव है
क्योंकि आप क्या बोलते हैं, कैसे बोलते हैं – इसका असर आपके व्यक्तित्व के साथ-साथ जीवन पर भी पड़ता है। यदि यह कहा जाए
कि संभाषण सभी ओर से सफलता की कुंजी है तो गलत नहीं होगा। अतः आप संभाषण करते समय
सावधान रहिए क्योंकि इस पर आपका व्यक्तित्व निर्भर रहता है।
मनुष्य
एक ‘सामाजिक प्राणी’ (सोशल एनिमल) है। लेकिन साथ ही वह एक ‘बोलने वाला प्राणी’ (जूम्फ़ोनेटा) भी है। सामाजिक होने के लिए बोलने की
क्षमता का बड़ा महत्व है। इस क्षमता के द्वारा ही मनुष्य जाति ने सभ्यता, साहित्य, कला, विज्ञान और संस्कृति का विकास किया है। इसीके द्वारा विविध सामाजिक संबंध और
संस्थाएँ भी अस्तित्व में आई हैं। बोलने की क्षमता का प्रयोग मनुष्य अपने विचारों, भावनाओं तथा प्रतिक्रियाओं को भाषिक रूप में प्रकट करने
और समझने के लिए करता है। दैनिक जीवन में विविध अनौपचारिक और औपचारिक अवसरों पर
सूचनाओं के आदान-प्रदान, तर्क-वितर्क, वाद-विवाद, खंडन-मंडन, प्रश्न और उत्तर आदि के लिए दो या दो से अधिक व्यक्ति परस्पर संभाषण करते
हैं। संभाषण के द्वारा हम अपने दैनिक जीवन के विविध प्रयोजनों को सिद्ध कर पाते
हैं। संभाषण का सबसे अधिक व्यापक रूप जनसंचार को कहा जा सकता है। जनसंचार के
प्रयोजन की सिद्धि के लिए उद्घोषणा, सजीव प्रसारण या आँखों देखा हाल, संचालन और वाचन जैसे संभाषण के विविध रूपों का व्यवहार किया जाता है। यह
भी ध्यान देने की बात है कि संभाषण सामाजिक संबंधों के लिए आवश्यक है ही, हमारे निजी व्यक्तित्व के विकास में भी उसकी बड़ी भूमिका
है।
1. वक्ता
= बोलने वाला व्यक्ति/ speaker
2. संभाषण/ संचार = communication
3. श्रोता = सुनने
वाला व्यक्ति/ listener, receiver
4. अर्जित = ग्रहण
करना/ acquire
5.
समाजीकरण = समाज
से जुड़ने की प्रक्रिया/ socialization
6.
संचारक = संचार करने वाला/ sender
7.
संदेश = message
8.
माध्यम = channel
9.
प्राप्तकर्ता = receiver
10.
प्रतिपुष्टि = feedback
11.
उद्घोषणा = announcement
12. उद्घोषक = announcer
13. जनसंचार = mass communication
14. संभाषण कला = communication skill
खंड
(अ)
(अ)
दीर्घ श्रेणी के प्रश्न
निम्नलिखित
प्रश्नों के उत्तर लगभग 250 शब्दों में दीजिए।
- संभाषण के अर्थ एवं स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- संभाषण के विविध रूपों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- वार्तालाप या संवाद किसे कहते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- जनसंचार
हेतु उपयोगी संभाषण के विविध प्रकारों की चर्चा कीजिए।
खंड
(ब)
(आ) लघु श्रेणी के प्रश्न
निम्नलिखित
प्रश्नों के उत्तर लगभग 100 शब्दों में दीजिए।
- संभाषण की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
- परिचर्चा किसे कहते हैं?
- ‘आँखों देखा हाल’ पर टिप्पणी लिखिए।
- ‘उद्घोषणा’ पर टिप्पणी लिखिए।
- ‘कार्यक्रम संचालन’ पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
- जनसंचार पर टिप्पणी लिखिए।
- समाचार वाचन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
खंड
(स)
I. सही विकल्प चुनिए
1.
व्याख्यान का विशिष्ट रूप क्या है? ( )
(अ) तकनीक (आ) संभाषण (इ) समाचार (ई)
भाव
2.
संभाषण के माध्यम से व्यक्ति का क्या होता है? (
)
(अ) आधुनिकीकरण (आ) मानकीकरण (इ)
समाजीकरण (ई) मानवीकरण
3.
अनौपचारिक संवाद में किस तरह की भाषा का प्रयोग किया जाता है? ( )
(अ) शिष्ट भाषा (आ) क्लिष्ट भाषा (इ)
तकनीकी भाषा (ई) बोलचाल की भाषा
4.
एक ही व्यक्ति या पात्र का संभाषण क्या कहलाता है? ( )
(अ) विलाप (आ)
एकालाप (इ) आलाप (ई) संवाद
5. चर्चा की औपचारिक विधि क्या है? ( )
(अ) वाद-विवाद (आ) लड़ाई-झगड़ा (इ)
एकालाप (ई) स्वगत भाषण
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
- दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच होने वाली बातचीत ................ है।
- व्याख्यान को रोचक बनाए रखने के लिए व्याख्यानकर्ता .................. की सहायता ले सकता है।
- प्राप्तकर्ता या रिसीवर के प्रतिउत्तर या प्रतिक्रिया को
................ कहा जाता है।
- सार्वजनिक जानकारी के लिए दी जाने वाली सूचना या सरकारी तौर पर की जाने
वाली घोषणा ............. कहलाती है।
- कार्यक्रम संचालक के पास .....................
का होना अनिवार्य है।
III. सुमेल कीजिए
i)
वार्तालाप (अ) एकालाप
ii)
व्याख्यान (आ) सरसता
iii)
वाद-विवाद (इ) फीडबैक
iv)
स्वगत भाषण (ई) श्रोता समूह
v)
प्राप्तकर्ता (उ) संसद
1.9 बोध प्रश्नों के उत्तर
1.
बातचीत अथवा वार्तालाप।
2.
अभिवादन से।
3.
सरसता और रोचकता।
4.
सुनने,
समझने और बोलने की प्रक्रिया।
5.
प्रभावी और स्पष्ट कथन तथा वक्ता-श्रोता
का प्रत्यक्ष संवाद।
6. रोचकता।
7. रोचकता, स्पष्टता, शुद्धता, शिष्टता, स्वाभाविकता, गतिशीलता, प्रभावोत्पादकता।
8. व्याख्यान को
रोचक बनाए रखने के लिए कभी-कभी तकनीकी प्रस्तुतीकरण या प्रश्नोत्तरी का प्रयोग
किया जा सकता है।
9. तर्क के साथ किसी विषय पर चर्चा
की एक औपाचारिक विधि।
10. एक ही व्यक्ति या पात्र का संभाषण।
11. साहित्यिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक या सांस्कृतिक किसी भी तथ्य, विषय या समस्या पर विस्तृत
रूप से की जाने वाली चर्चा।
12. विषय विशेष, विभिन्न मत, सम्यक
विचार और आकर्षक प्रस्तुति।
13. सूचना तथा विचारों को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक संप्रेषित करने की
कला।
14. किसी यंत्र या जनमाध्यम द्वारा संदेश को बहुत बड़े मिश्रित जनसमूह तक
पहुँचाना।
15. संचारक, संदेश, माध्यम, प्राप्तकर्ता और फीडबैक।
16. प्राप्तकर्ता या रिसीवर के प्रतिउत्तर या प्रतिक्रिया फीडबैक है।
17. सार्वजनिक जानकारी के लिए दी जाने वाली सूचना या सरकारी तौर पर की जाने
वाली घोषणा।
18. पुराने जमाने में डुगडुगी या ढोल बजाकर गाँवों में घूम-घूमकर
किसी बात की घोषणा की जाती थी। इसे ही मुनादी
करना या ढिंढोरा पीटना कहा जाता है।
19. सूचना के साथ-साथ प्रस्तुतीकरण में रोचकता ‘आँखों देखा हाल’ की मूलभूत विशेषता है।
20. प्रेजेंस ऑफ माइंड (प्रत्युत्पन्न मति) और सेंस ऑफ ह्यूमर (हास परिहास)।
21. भाषण, वार्ता और कार्यक्रम के संयोजन में रोचकता का ध्यान तथा आत्मविश्वास के
साथ धाराप्रवाह बोलने से समाचार वाचक
सफलता प्राप्त कर सकता है।
1. ओम प्रकाश सिंह (2004). संचार और पत्रकारिता के विविध आयाम. नई दिल्ली : क्लासिकल पब्लिशिंग कंपनी
2. (सं.) धर्मपाल मैनी (2005). मानवमूल्य-परक शब्दावली का विश्वकोश. खंड – 5. नई दिल्ली : सरूप एंड संज़
3. पुष्पेंद्र कुमार आर्य. (2009). मीडिया में कैरियर
4. विष्णु राजगढ़िया (2008). जनसंचार : सिद्धांत और अनुप्रयोग. नई दिल्ली :
राधाकृष्ण
- संभाषण कला/ बी.ए./ द्वितीय वर्ष/ सत्र - iv / हिंदी सकिल एन्हांसमेंट एलेक्टिव कोर्स - 1