गुरुवार, 5 नवंबर 2009

प्रलय तांडव !

धरती कराह रही थी
बूँद बूँद के लिए तरस रही थी
उसकी छाती फट गई थी
और वह बंजर बन गई थी

सभी वैज्ञानिक मिल गए
मेघमंथन करने के लिए
पंडित पादरी जुट गए
वरुण देव को प्रसन्न करने के लिए

पता नहीं भयभीत वरुण देव किस कोने में जा बैठे
बच्चे बूढे सभी पानी के लिए तरस गए
नेता भी एक जुट हो गए
अकाल की घोषणा करने के लिए

इतने में अचानक
आकाश चमक उठा
सिंहगर्जन सुनाई दिया
बिजली कड़कने लगी
आसमान को चीरकर
बारिश की एक बूँद सहसा बरस पड़ी
प्यारी वसुधा पुलकित हुई

लेकिन यह कया! क्षण में ही दृश्य बदल गया !
सबकी खुशी मटियामेट हो गई
आँख झपकते ही प्रकृति प्रलय तांडव करने लगी
मेरा प्यारा कर्नूल भी जल प्रपात में डूब गया

घुप्प अँधेरा
कड़ाके की सर्दी
चारों ओर अथाह पानी
प्राण को हथेली पर धरे
खड़े हैं प्राणी

एक ही क्षण में हम बेघर हो गए
अपनों से दूर होकर अनाथ हो गए
खाने के लिए अन्न नहीं
तन ढकने के लिए कपड़ा नहीं
सोने के लिए मकान नहीं
रहने का ठिकाना नहीं

जीवन और मृत्यु के बीच
तड़प रही है मेरी आत्मा
हे वरुण देवता ! अब तो शांत हो जा
इस महातांडव को रोककर
इस अवनी पर अमन कायम कर

2 टिप्‍पणियां:

sanjay vyas ने कहा…

प्राकृतिक त्रासदी का सशक्त,अर्थपूर्ण काव्यमय विवरण.
सत्ता के मठाधीशों के लिए तो अकाल घोषित करने को बाढ़ राहत में बदलना भी एक जैसा है.

शरद कोकास ने कहा…

आप बहुत अच्छा लिख रही है । मै अभी पूरी कविताये नही पढ़ पाया हूँ लेकिन पढूंगा और विस्तार से लिखूंगा । हिन्दी की अच्छी कविताएँ पढते रहिये ..इस ब्लॉग पर http://kavikokas.blogspot.com