मंगलवार, 6 अक्टूबर 2009

राष्ट्रकवि सुब्रह्‌मण्य भारती पर दो पुस्तकें

तमिल साहित्य और संस्कृति की विशाल परंपरा में राष्ट्रकवि सुब्रह्‌मण्य भारती का विशिष्ट स्थान है. भारतीय राष्ट्रीय संग्राम एवं राष्ट्रमुक्ति आंदोलन में भारती का योगदान उल्लेखनीय है. जाति - पाँति एवं देशकाल की सीमाओं से अनाबद्ध, मानव मात्र के लिए आदर्श जीवन मूल्यों का निर्देश देनेवाले प्रबल विचारक एवं श्रेष्‍ठ कवि के रूप में सुब्रह्‌मण्य भारती की महत्ता निर्विवाद है.

डॉ.एम.शेषन तमिल भाषी हिंदी साहित्यकार हैं. उन्होंने अपनी कृतियों
‘आधुनिक तमिल काव्य और सुब्रह्‌मण्य भारती ’ (2009) तथा ‘तमिल नवजागरण और सुब्रह्‌मण्य भारती ’(2009)
में राष्ट्रकवि एवं युगद्रष्टा सुब्रह्‌मण्य भारती की विचारधारा को हिंदी पाठकों के सम्मुख रखा है.

19 वीं सदी पुनर्जागरण का काल था. संपूर्ण भारतवर्ष में पुनर्जागरण की लहर उमड़ पड़ी. तमिलनाडु में भारती ने जनमानस में चेतना जगाई. उनका सिद्धांत था -
‘जननी जन्मभूमिश्‍च स्वर्गादपि गरीयसी. ’
उनके लिए जातीयता और राष्ट्रीयता दोनों एक दूसरे के पूरक हैं. भारती के हृदय में देशभक्ति के साथ साथ मातृभाषा के प्रति अपार प्रेम भी निहित है. अतः वे कहते हैं -
"जय हो सेन तमिल की, जय हो तमिल जन की, / जय हो मन भावन,पावन भारत भू की / **** / वंदेमातरम्‌ ! वंदेमातरम्‌ !" (जय हो सेन तमिल )

भारती पूर्ण स्वराज्य की कामना करनेवाले कवि थे. भारत माँ को गुलामी की ज़िंदगी से मुक्‍त करवाना ही उनका उद्धेश्य था. वे स्वतंत्र जीवन के अनुरागी थे. अतः
‘सुतंतिर पेरुमै ’(स्वतंत्रता का अभिमान), ‘सुतंतिर पयिर ’(स्वतंत्रता की फसल), ‘सुतंतिर दाहम्‌ ’(स्वतंत्रता का दाह), ‘सुतंतिर देवियिन्‌ तुति ’(स्वतंत्रता देवी की स्तुति)
आदि कविताओं के माध्यम से उन्होंने जनता में नई उमंग जगाई. उनकी कविताओं में राष्ट्रीयता पग पग पर दिखाई देती है -
"सिन्धु नदी की लहरों में चाँदनी रात में /चेर प्रदेश की सुंदरियों सहित / सुंदर तेलुगु गीत गाते हुए / हम नाव खेते चलेंगे."


लेखक ने यह प्रतिपादित किया है कि भारती की कविताओं में राष्ट्रीयता और अंतरराष्ट्रीयता का सुंदर समावेश है. भारती ने विश्‍व भर में व्याप्‍त सभी प्रकार की क्रूरताओं एवं अत्याचारों के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद की. वे नारी मुक्ति के भी प्रबल समर्थक थे -
"नारी की दासता को उन्‍मूलन किए बिना / मिट्टी की दासता को दूर करना असंभव है/ नारी को गूँगी जब तक मानेंगे तब तक / पुरुषों की मंदबुद्धि दूर नहीं होगी"
.
‘आज के बच्चे ही कल के नागरिक हैं ’,
इस उक्‍ति को सार्थक करने के लिए उन्होंने बच्चों में भी चेतना जगाने का प्रयास किया है-
"खेलो, कूदे, दौड़ो है बच्चों ... तू / आलसी बनकर मत रहो पाप्‍पा (बच्चा)! / मिल कर खेलो बच्चों ... / **** / जातियाँ यहाँ नहीं हैं पाप्‍पा / कुल की उच्चता और नीचता कहना पाप है / न्याय, ऊँची बुद्धि, शिक्षा, प्रेम से/ भरे व्यक्ति ही श्रेष्‍ठ हैं - पाप्‍पा."

भारती संपूर्ण भारतदेश के साथ साथ अपनी मातृभूमि और मातृभाषा को प्रमुखता देते हैं -
"तमिल राष्ट्र को अपनी माता मानकर / उसकी वंदना करो पाप्पा / अमृत से भी मधुर है हमारी तमिल / सज्जनों, पूर्वजों का यह हमारा देश है पाप्पा / भाषा में श्रेष्‍ठ तमिल भाषा है पाप्पा - उसकी / वंदना कर पढ़ो पाप्पा/ संपत्ति में श्रेष्‍ठ यह हिंदुस्तान - उसे / प्रतिदिन प्रशंसा करते रहो पाप्पा."


जातिप्रथा का उन्मूलन जनवादी क्रांति के लिए आवश्‍यक है. भारती की रचनाओं में यह व्यावहारिक रूप में दिखाई देता है - "ब्राह्मण हो या अब्राह्मण, हम सब समान हैं / इस धरती पर जन्में सब मानव समान हैं / जाति धर्म का दम न भरेंगे / ऊँच नीच का भेद तजेंगे / हम वंदेमातरम्‌ कहेंगे. / जो अछूत हैं, वे भी कोई और नहीं हैं / वे भी तो रहते हम सबके साथ यहीं हैं / अपने कहीं पराए होंगे / और हमारा अहित करेंगे ? हम वंदेमातरम्‌ कहेंगे."

डॉ.एम. शेषन ने प्रथम पुस्तक में भारती के काव्यों में निहित लोकगीत शैली की ओर पाठकों का ध्यान खींचा है. इस शैली में रचित
‘अम्माकण्णु पाट्टु ’, ‘वण्डिक्‍कारन्‌ पाट्टु ’, ‘पुदिय कोणंगी ’, ‘पंडार पाट्टु ’ ‘कुम्मि पाट्टू ’
आदि उल्लेखनीय हैं. जैसे -
"वोडिविलयाडु पाप्पा ... नी / ओयिंदिरिक्‍क लागादु पाप्पा ! / कूडि विलयाडु पाप्पा, ओरु कुलंदैयनु नेनैक्‍कादे पाप्पा ..."
(खेलो, कूदो, दौडो हे बच्चों...तू / आलसी बनकर मत रहो ! / मिलकर खेलो बच्चों, अपने आप को सिर्फ बच्चे न समझो...)

सुब्रह्‌मण्य भारती कवि, गद्‌यकार, पत्रकार और संपादक के साथ साथ सफल अनुवादक भी हैं. उन्होंने संस्कृत, बंगला, अंग्रेजी, फ्रेंच, बेलजीयम, जापानी और चीनी भाषा के साहित्य को तमिल में अनूदित किया है. लेखक ने इसका भी संक्षिप्‍त विवरण प्रस्तुत किया है.

अपनी द्वितीय पुस्तक में लेखक ने तमिलनाडु में व्याप्त पुनर्जागरण और सांस्कृतिक चेतना का परिचय देते हए सुब्रह्‌मण्य भारती के योगदान को स्पष्ट किया है. अंत में उन्होंने भारतेंदु और मैथिलीशरण गुप्‍त के साथ भारती की तुलना की हैं. परिशिष्ट 1 और 2 में भारती की प्रासंगिकता तथा उनके खंड काव्य ‘पांचाली शपदम्‌ ’ का परिचय दिया गया है.

डॉ.एम.शेष‍न्‌ ने अपनी इन दो कृतियों के माध्यम से जहाँ एक ओर आधुनिक तमिल काव्य और भारती के अंतःसंबंधों की पड़ताल की हैं, वहीं दूसरी ओर तमिल नवजागरण में भारती की भूमिका का भी उल्लेख किया है. आशा है कि हिंदी जगत्‌ इनके इस प्रयास का स्वागत करेगा.


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1. आधुनिक तमिल काव्य और सुब्रह्‌मण्य भारती / डॉ.एम.शेषन्‌ /2009 / माणिक्‍यम एंड चिन्नाम्माल एडुकेशन एंड चारिटबल ट्रस्ट, नं. 6, IV क्रास स्ट्रीट, राजराजेश्‍वरी नगर, मडिप्पाकम, चेन्नई - 600 091

2. तमिल नवजागरण और सुबह्‌मण्य भारती / डॉ.एम.शेषन्‌ /2009 / माणिक्‍यम एंड चिन्नाम्माल एडुकेशन एंड चारिटबल ट्रस्ट, नं. 6, IV क्रास स्ट्रीट, राजराजेश्‍वरी नगर, मडिप्पाकम, चेन्नई - 600 091
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