बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

झूठी प्रशंसा

तेलुगु मूल : कालोजी नारायण राव 
अनुवाद : गुर्रमकोंडा नीरजा 

अहो भाग्य
भाग्य का क्या, कुछ भी लिखा जा सकता है
आँय-बाँय बोले तो आँय-बाँय
कितना भी गा सकते हैं.

युद्ध से बहुत दूर
उत्तर कुमार की प्रज्ञाएँ.
विप्लव के लिए हो या सर्वोदय के लिए
दृढ़ हृदय चाहिए.
कदम कदम पर हैं
तलवारों के पुल.
जिस तरफ भी कदम रखो योद्धा ही योद्धा हैं
डर के मारे स्तंभित हो गए
अहो भाग्य !
भाग्य का क्या, कुछ भी लिखा जा सकता है
आँय-बाँय बोले तो आँय-बाँय
कितना भी गा सकते हैं.

चबूतरे पर बैठकर
प्रशस्ति गाइए या निंदा कीजिए
कलम की लच्छेदार कविता
सबको वश में कर सकती है
गांधी के लिए हो या माओ के लिए
झूठी प्रशंसा तो झूठी प्रशंसा ही है
झूठी प्रशंसा से तारे जमीन पर नहीं आते
स्तुति-गायन से इमली तक नहीं गिरती.
परिस्थितियों की आड़ में
अपने सच्चे जीवन क्षेत्र में
नित्य गुलाम रहकर
तरह तरह की घास चबाकर
तलुवे चाटकर
बापू ! बापू ! कहो
माओ ! माओ ! कहो
सर्वोदय कहो
विप्लव कहो
क्रोध क्रोध कहो
शांति कहो या क्रांति
भूसी फटकने से भी
आसान है प्रशंसा करना.
अहो भाग्य !
भाग्य का क्या, कुछ भी लिखा जा सकता है !

तुम्हारा निमंत्रण मिला –
मुझे बुलाया
तुम्हारे स्थान पर,
तुम्हारी सलाह मानी,
मुझे वह करने के लिए कहा
जो तुम करते हो
यह कैसी दुविधा !
निरर्थक निमंत्रण, सलाह !
दोनों एक ही स्थान पर हैं
कुछ भी नहीं कर रहे हैं
अहो भाग्य !
भाग्य का क्या, कुछ भी लिखा जा सकता है !

(1971 : मित्र मंडली के ‘विप्लव गीत’ पर परिचर्चा की प्रतिक्रयास्वरूप रचित)

* मेरी आवाज (पद्मविभूषण डॉ. कालोजी नारायण राव की चयनित कविताएँ)/ 2013/ आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद/ पृ. 147

मुझे क्या हुआ?


तेलुगु मूल : कालोजी नारायण राव 
अनुवाद : गुर्रमकोंडा नीरजा 

क्या हुआ? मुझे क्या हुआ?
अत्याचार को देशीय समझ
दया की क्या मैंने?
अंग्रेजों का विरोध कर
काले लोगों की सेवा करना
किसलिए? क्या हुआ?
मुझे क्या हुआ?
उस समय के रजाकारों को
मिटाने की तरह मैं
आज के रजाकारों का
‘नायक’ बन आया हूँ
क्यों? क्या हुआ? मुझे क्या हुआ?
हृदय बकरी, चित्त लोमड़ी,
मन भेडिया.
कुत्ते की तरह जी रहा हूँ
क्यों? मुझे क्या हुआ?
इससे भला
कोई और पशु होता
तो अच्छा होता.

(1974 : सत्तालोलुप राजनीति से समझौता करने वाले सवतंत्रता सेनानियों को देख कर दुःख से रचित)

* मेरी आवाज (पद्मविभूषण डॉ. कालोजी नारायण राव की चयनित कविताएँ)/ 2013/ आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद/ पृ. 153

वोटों का क्या कहना

तेलुगु मूल : कालोजी नारायण राव 
अनुवाद : गुर्रमकोंडा नीरजा 

कहाँ कहाँ घूमे? क्या क्या किया?
कितने बरसों बाद घर वापस लौटे?
बहुत चालाकी से अपने हिस्से को स्वाहा कर
पुराना उधार चुकाने के वक्त भाग खड़े हुए क्या?
चोरी के माल को चोरी से बेचकर
नकदी अपनी पत्नी के नाम जमा कर ली क्या?
हाथ में कौड़ी नहीं, बस में चढ़ने की औकात नहीं
कारों में घूमनेवाली चमेली तुम्हारे पास कैसे?
भूल गई जनता – अब कैसा डर,
यह सोच तुम आज उम्मीदवार बन प्रकट हो गए?
ठगे गए थे कल – ठगे जाएँगे न आज
हर बार तुम्हारा खेल नहीं चलेगा.
दुष्कर्मी! वोटों का क्या कहना
जूतों की, लातों की कमी नहीं रहेगी!

(1949 : हैदराबाद पुलिस एक्शन के बाद स्टेट कांग्रेस के संस्थागत चुनाव के समय अपराधी तत्वों द्वारा चुनाव लड़ने के संदर्भ में रचित)

* मेरी आवाज (पद्मविभूषण डॉ. कालोजी नारायण राव की चयनित कविताएँ)/ 2013/ आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद/ पृ. 138

साजिश

तेलुगु मूल : कालोजी नारायण राव 
अनुवाद : गुर्रमकोंडा नीरजा 

चालीस लोगों ने या चार नक्सलियों ने
अत्यंत गोपनीय ढंग से
रची साजिश,
असल में भूमिगत – प्रकट में रहस्य !
साजिश !
प्रधानमंत्री इंदिरा की सरकार को
जड़ से उखाड़ फेंकने की साजिश!
सरेआम सशस्त्र संघर्ष चलाने की साजिश!
फिर भी गाय-बछड़े की सरकार के
जासूसों ने सूँघ ही लिया
षड्यंत्र.
दर्ज किया कोर्ट में केस
गवाह हैं पाँच सौ;
पाँच सौ गवाहों के समक्ष
रहस्यमय साजिश !
भयंकर खतरनाक साजिश !
पाँच सौ गवाह;
कैसी साजिश ! सरकारी साजिश
झूठे मुक़दमे की सुनवाई
चल सकती है कोर्ट में चार-पाँच सालों तक.
मृत्युदंड या उम्रकैद की धाराओं के तहत
दोष का अभियोग.
क्या कुछ लोगों को हो नहीं सकती फाँसी –
और कुछ को उम्रकैद की सजा –
बाकी के बरी हो जाने पर भी
धाराओं के तहत चार पाँच बरस का कारावास तो तय है.
भयंकर साजिश – सरकारी साजिश का मुकदमा
प्रजाहित के लिए – साजिश !
श्रेष्ठ राज्य के लिए – साजिश !!

(1973 : प्रगतिशील रचनाकार वरवरराव और कुछ अन्य लोगों के खिलाफ सरकार द्वारा ‘सिकंदराबाद का झूठा मुकदमा’ दर्ज किए जाने की प्रतिक्रिया में रचित)

* मेरी आवाज (पद्मविभूषण डॉ. कालोजी नारायण राव की चयनित कविताएँ)/ 2013/ आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद/ पृ. 136