बुधवार, 22 जनवरी 2014

FEELINGS

Sometime before
Trees dozed and were motionless
Wind disappeared
Your memories stroked my thoughts
Your whisper lingered in my ears
Some-sort of anxiety smouldered in me
Trees spread their branches
Blossoms spread delicate fragrance
Breeze became soothing
A strong feeling aroused in me. 

तुम ... ?


कौन हो तुम?
कौन हूँ मैं?
एक हुए इस अनंत विश्व में

तुम नहीं जानते
कि मेरे लिए तुम क्या हो!

मेरे हृदय की पुकार हो तुम
मन की  प्यास बुझाने वाले हो तुम
मुझे मुझसे मिलाने वाले हो तुम

                                                     तुम नहीं मिलते तो ...... ? 

मंगलवार, 21 जनवरी 2014

अशआर अशरफ गिल के, पसंद ऋषभ देव शर्मा की


'शब्द सुगंध' के तत्वावधान में 20 जनवरी 2014 को राजस्थानी स्नातक संघ (हैदराबाद) के प्रेक्षागार में अमेरिका से पधारे पाकिस्तान मूल के वरिष्ठ साहित्यकार अशरफ़ गिल की उर्दू गज़लों के हिंदी रूपांतर को प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने लोकार्पित किया. इस अवसर पर उन्होंने विस्तार से अशरफ गिल की गज़लों के कथ्य, शिल्प और काव्यभाषा का विवेचन किया. उन्होंने पाँच श्रेणियों में बाँटकर कवि के कुछ शेरों को उदाहरण के रूप में भी पेश किया जिन्हें पाठकों के रसास्वादन के लिए यहाँ उद्धृत किया जा रहा है.  









अशरफ गिल के चुनिंदा अशआर
मुहब्बत
  1. जो बस रही है कसक बनके मेरे सीने में
     तुझे वो पेश मुहब्बत, करूँ करूँ न करूँ
 
  1. ज़रा इस ने देखा जो दरिया की जानिब
     तो पानी को भी इस ने प्यासा किया है
 
  1. इश्क से ‘अशरफ़’ ना घबराया कोई
     इश्क की गरचे है कीमत ज़िंदगी
 
  1. खुदा रा ! न तुम अपनी आदत बदलना
     सितम से तिरे दिल को आराम आए
 
  1. सुनसान थे वीरान थे आमद से तेरी पेशतर
     तूने दरखशां कर दिए मेरी गली के रास्ते 
  1. ‘अशरफ़’ इस दुनिया की रस्में करते करते अपने बस में
     हर आशिक़ ने जान गंवाई फिर भी मुहब्बत रास न आई
 
  1. तुझे याद करने के शौक में, कई रोग जां को लगा लिए
     तुझे भूलने की लगन में भी, कई दर्द सीने में पल गए
 
  1. हमेशा अश्क ख़्वाहिश जुस्तजू की आड़ में ‘अशरफ़’
     मिरी यादों की बस्ती में बसी अक्सर गलतफ़हमी !
 
  1. व आप से जब तलक आशनाई न थी
     ज़िन्दगानी मिरी मुसकुराई न थी
 
  1. जो लोग मुहब्बत की इबादत नहीं करते
     वो लोग इबादत से मुहब्बत नहीं करते
 
  1. यहाँ यार कोई भी जब मिला, वो मिला के हाथ जुदा हुआ
     जो किसी ने मुझसे बुरा किया, मेरे वास्ते वो भला हुआ
 
  1. इश्क का नाम दूसरा है जुनून
     रोज़ बढ़ता है, कम नहीं होता

व्यक्ति
  1. उसकी हर पल नई कहानी है
     आदमी ! आज की ख़बर ही नहीं
 
  1. कल तलक जिस में रह न पाएँगे
     उसको अपना मकान कहते हैं
 
  1. अगरचे चलते-चलते थक गया हूँ
     मगर फिर भी मुसलसल चल रहा हूँ
 
  1. ज़रूरतों से मुझे बांध कर जहाँ वाले
     मिरी ज़बान को पाबंदियों से कसते हैं
 
  1. दुश्मन बनाने को हमें कोशिश नहीं करना पड़ी
     हमवार यारों ने किए बेगानगी के रास्ते
 
  1. दोस्ती को पड़ रही हैं दुश्मनी की आदतें
     और यकीं से उठ रहा सभी का एतबार है
 
  1. वो इश्क है बे मतलब, वो प्यार है बे मानी
     इंसान का जो ऊंचा, मेयार न कर पाए
 
  1. मालूम न था हम पे ही तनकीद करेगा
     जिस से भी सलीके या शराफ़त से मिलेंगे
 
समाज/ राजनीति
  1. जो मुल्क ऐटम बना रहे हैं, वुह मुफ़लिसी को बढ़ा रहे हैं
     दिलों की धरती हसीन तर है, दिलों का नक्शा बदल के देखें
 
  1. ऐसी नगरी में भला कैसे रहें क्योंकर रहें
     जिसमें हो हर आदमी ही आदमी से डर गया?
 
  1. कितने मज़ाहिब मुखतलिफ है मुखतलिफ सब की रविश
     लेकिन रवां अल्लाह की जानिब सभी के रास्ते
 
  1. पास रखिए, ना यह नेमतें
     गर हंसी आए मुसकाइए 
  1. पकड़िए हाथ भी सूझ से
     सोचकर हाथ पकड़ाइए
 
  1. मैं वोट मर्ज़ी के इक रहनुमा को दे बैठा
     तभी हुकूमती दरबारियों की ज़द में हूँ
 
  1. मैं कर्बला हूँ जो प्यासों को पानी दे ना सका
     तभी मैं रोज़ ही बमबारियों की ज़द में हूँ
 
  1. अखबार की हर सुर्खी यूँ सुर्ख लगे हर दिन
     सतरों के बदन छलनी अलफ़ाज़ के सर ज़ख्मी 
  1. खोखली ऐसी हुकूमत की जड़ें हैं जिसने
     एक तराज़ू को भी तलवार बना के छोड़ा
 
  1. हथियार हथिया लो मगर कर पाओगे वापिस कभी?
     बदले में मासूमों की जो मासूमियत जाती रही
 
  1. तिजोरी थी अमीरों की भरी जानी
     पसीना बस ग़रीबों ने बहाना था
 
  1. इनसान का तो साँस भी लेना मुहाल है
     चारों तरफ़ फ़ज़ाओं में बारूद है यहाँ
 
  1. ऐटमी मुल्क का सोचें जो ये खुशहाल लगे
     पर यहाँ भूख से मरते है न जाने कितने

जिंदगी

  1. तुझ को बच्चों से भी मैं रखता अज़ीज़
     जानता गर तेरी बाबत ज़िंदगी
 
  1. वही ज़िन्दगानी मिरी हुई, मेरे हुक्म पर जो चली रुकी
     जो बिखर गई ना सिमट सकी, वही आप लोगों के नाम है
 
  1. एक खेल है जीना मरना भी
     बस आना जाना होता है
 
  1. रो ज़ाना बाप बनके डराती है ज़िन्दगी
     माँ बन के ख़ौफ़ दिल से मिटाती है ज़िन्दगी
 

कथन भंगिमा
  1. वह मेरे इज़हार-ए-उलफ़त पर यूं घबरा से गए
     पौ फटे जैसे अंधेरा रोशनी से डर गया
 
  1. याद की खेती सूख न जाए
     अक्सर आँखें तर करता हूँ
 
  1. मैं आंधी और अंधेरे का हूँ साथी
     दीया हूँ ! बुझ रहा हूँ जल रहा हूँ
 
  1. खुदा भी मुसतरद कैसे करेगा
     कि मैं इंसान हूँ माँ की दुआ हूँ?
 
  1. चाहता हूँ मैं तेरी नज़दीकी
     तू मगर मुझ से से फ़ासिला माँगे
 
  1. मेरी आँखों की चुभन शायद हो कम
     आप नज़रों से अगर सहलाइए 
  1. सुन के या पढ़ के ही जानोगे मेरे अशआर में
     रंग हैं अनमोल यकता ज़ायका मौजूद है
 
  1. महफ़िल-ए-गिल में जब जी करे
     आइए जाइए आइए जाइए
 
  1. प्यार तूफ़ान है आंधी है गरजता बादल
     जो सुझाई क्या, दिखाई भी नहीं देता है
 
  1. न तिरी वफ़ा थी नसीब में, न तिरी नज़र का करम हुआ
     ये तो खुदफ़रेबी का खेल था, जो हम आसरों से बहल गए
 
  1. उस की आँखें तरकर डालें
     जिससे आँख मिलाएं आँसू
 
  1. जता के प्यार तुम को कर लिया नाराज़, उफ़ तौबा !
     तुम्हारे रूठ जाने से तो थी बेहतर गलतफ़हमी ! 
  1. अपनी मर्ज़ी से हुआ शहर में सूरज तकसीम
     मेरी बारी है तो अब रात हुई जाती है
 
  1. आँखों की ख़ताओं के बदले
     दिल पर जुरमाना होता है
 
  1. जिस उम्र में आँखें मिलती हैं
     क्या ख़ूब ज़माना होता है
 
  1. एक दिन ये ख़ामुशी से घर को छोड़ जाएगी
     सांस ! जो मकान-ए-जिस्म में किराएदार है
 
  1. मिरा जिस वक्त हँसने का ज़माना था
     ज़माने को इसी दम ही रुलाना था
 
  1. खिलौनों की तरह पाबंद हम तेरी रज़ा के
     हमारी किस्मतों पर है फकत तेरा इजारा
 
  1. प्यार है हादसे का नाम अगर
     फिर ज़रूर एक हादसा कीजे
 
  1. कभी गम में माँ याद आयी है ‘अशरफ़’
     कभी उलझनों में खुदा याद आया
कविता

  1. होता रहेगा खुद-बखुद अशआर का नुज़ूल
     आएंगे जब वो बज़्म में होगी गज़ल तमाम
 
  1. ‘अशरफ़’ कुबूलियत नहीं पाता वही कलाम
     जो ख़ासो आम से नहीं होता है हमकलाम