प्रयोगवाद और नई कविता के विशिष्ट कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय ’ का स्वर अत्यंत वैविध्यपूर्ण है. एक कुशल कवि होने के साथ साथ वे एक सफल उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार और संपादक भी हैं. अज्ञेय मध्यवर्ग की पीड़ा से भली भाँति परिचित हैं. मध्यवर्ग के सपने और आकांक्षाएँ बड़े रंगीन होते हैं, लेकिन चतुर्दिक व्याप्त आर्थिक वैषम्य की दीवारों से टकराकर वे चूर चूर हो जाते हैं.अज्ञेय ने थके -हारे और टूटे हुए मध्यवर्गीय व्यक्ति की पीड़ा को भलीभांति पहचाना है, तभी तो वे लिखते हैं - "दुःख सबको माँजता है / और / चाहे स्वयं सबको मुक्ति देना वह न जाने, किंतु / जिनको माँजता है / उन्हें यह सीख देता है कि सबको मुक्त रखें."
सच्चिदानंद चतुर्वेदी (१९५८) ने अपनी समीक्षाकृति ‘अज्ञेय के निबंध ’ (2009) में यह प्रतिपादित किया है कि अज्ञेय ने अपने साहित्य द्वारा जन मानस के समक्ष संस्कृति का वह रूप प्रस्तुत किया है जो मानव विकास के लिए अत्यंत उपयोगी है. अज्ञेय के साहित्य में प्रतिपादित सांस्कृतिक दृष्टि किसी ‘वाद’ या ‘पूर्वाग्रह’ से ग्रस्त नहीं है . संस्कृति के बारे में उनकी मान्यता है कि "संस्कृति शब्द यों तो बहुत पुराना है, लेकिन जिस अर्थ में हम आधुनिक युग में उसका प्रयोग करते हैं, उस अर्थ में उसका इतिहास बहुत लंबा नहीं है. भारतीय चिंतन धारा में समग्रता की खोज की बात मान लें तो संस्कृति की चेतना की अपनी पड़ताल में परिधि से केंद्र की ओर यात्रा करते हुए बहुत से बाहरी लक्षणों की पड़ताल कर सकते हैं जिनसे हमें भीतरी स्थिति का निदान करने में सहायता मिलेगी."
अज्ञेय ने व्यक्ति, समाज, संस्कृति तथा साहित्य को मानवीय मूल्यों की कसौटी पर ही कसा है. लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि "अज्ञेय ने अपने निबंधों में मूल्यों की बार-बार चर्चा की है क्योंकि उनका मानना था कि मानव ही ऐसा प्राणी है जो मूल्यों की सृष्टि करता है और बाद में उन मूल्यों को अपने जीवन से बड़ा मान लेता है तथा उनकी रक्षा के लिए प्राण भी निछावर कर सकता है."
लेखक ने अपनी पुस्तक में निबंध साहित्य की सैद्धांतिक चर्चा करते हुए अज्ञेय के निबंध साहित्य का विवेचन - विश्लेषण सांस्कृतिक, सामाजिक, मानववादी तथा भाषिक स्तर पर किया है. विषयवस्तु और शैली के आधार पर अज्ञेय के निबंधों का वर्गीकरण किया गया है. लेखक ने अज्ञेय के निबंधों में प्रयुक्त भाषा और शैली की ओर पाठकों का ध्यान खींचा है. उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि अज्ञेय वस्तुतः पाठकों तक अपनी बात पहुँचाने के लिए कई पद्धतियों का प्रयोग करते हैं. जैसे स्थापना - परिणाम पद्धति, परिणाम - स्थापना पद्धति, प्रश्न पद्धति, खंडन - मंडन पद्धति, गणितीय पद्धति तथा चित्र पद्धति. इन पद्धतियों का सोदाहरण विवेचन भी किया गया है.
अज्ञेय की भाषा स्थिर न होकर गत्यात्मक है. शब्द चयन और शब्द के सही प्रयोग के बारे में स्वयं अज्ञेय की मान्यता है कि "केवल सही शब्द मिल जाएँ तो ! लेखक के नाते और उससे अधिक कवि के नाते मैं अनुभव करता हूँ कि यही समस्या की जड़ है. मेरी खोज भाषा की खोज नहीं है, केवल शब्दों की खोज है. भाषा का उपयोग मैं करता हूँ, निस्संदेह लेकिन कवि के नाते जो मैं कहता हूँ, वह भाषा के द्वारा नहीं केवल शब्दों के द्वारा. मेरे लिए यह भेद गहरा महत्व रखता है. भाषा का उपयोग मैं करता हूँ, लेखक के नाते, कवि के नाते और एक साधारण सामाजिक मानव प्राणी के नाते, दूसरे सामाजिक मानव प्राणियों से साधारण व्यवहार के लिए. उसका उपयोग मैं ऐसे ढंग से करना चाहता हूँ कि नए प्राणों से दीप्त हो उठे." लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि अज्ञेय की लिखित भाषा और उच्चरित भाषा में कोई अंतर नहीं दीखता. यह उनकी विशेषता है. अज्ञेय की रचनाओं में कोड मिश्रण और कोड परिवर्तन की संकल्पनाएँ व्यवहारतः सम्मिलित हैं.
लेखक की यह स्थापना महत्वपूर्ण है कि अज्ञेय ने अपने निबंधों के माध्यम से साहित्यालोचना की कई कसौटियाँ निर्धारित की हैं. पहली कसौटी यह है , किसी रचना का मूल्यांकन करने के लिए तत्कालीन युगीन परिवर्तनों के साथ उस रचना के रचनाकार के संबंध को देखना. दूसरी कसौटी है भाषा और तीसरी कसौटी है रचनाकार के मन की परख.
इस प्रकार एक निबंधकार के रूप में अज्ञेय को समझने के लिए डा.सच्चिदानंद चतुर्वेदी की यह कृति अत्यंत उपयोगी है तथा अन्य निबंधकारों की कृतियों के विवेचन के लिए भी इससे दिशा प्राप्त की जा सकती है. _______________________________________________________
_ अज्ञेय के निबंध / सच्चिदानंद चतुर्वेदी / 2009 / मिलिंद प्रकाशन, 4-3-178/2, कंदास्वामी बाग, हनुमान व्यायामशाला की गली, सुलतान बाज़ार, हैदराबाद - 500 095 / पृष्ठ - 188 / मूल्य - रु.225 _______________________________________
1 टिप्पणी:
अज्ञेय जी को बचपन में काफी पढ़ा है . उनके बारे में आलेख प्रस्तुति के लिए बधाई.
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