मंगलवार, 8 सितंबर 2009

दिगंबर कवि ज्वालामुखी



"नर-बलि की चीख-पुकार
ओहदों के होठों पर
भयंकर रक्त-स्राव
संसद के मर्यादा को
भंग करती बेकार बहस
जनतंत्र है हँसी-मजाक
खूनी-दस्त."
(पराजित का विद्रोह , ज्वालामुखी)



14 दिसंबर,2008 को तेलुगे के दहकते विप्लव के केसरी,क्रांति की झंकार,सच्चे अर्थों में जनवादी कवि ’ज्वालामुखी’ के नाम से विख्यात आकारम वीरवल्ली राघवाचार्युलु की ’ज्वाला’ सदा के लिए बुझ गई. उनका जन्म 12 अप्रैल,1938 को हुआ था; यानि वे 71 वर्ष के हो चुके थे. उनका इस तरह से यों हमारे बीच से चले जाना तेलुगु साहित्य जगत के लिए एक क्षति है जिसकी पूर्ति करना असंभव है. विप्लव साहित्यांदोलन ने एक आत्मीय मित्र एवं प्रगतिशील कार्यकर्ता को हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया है.


1965 में तेलुगु साहित्य में दिगंबर काव्यांदोलन उभरा. समाज में पनप रहे शोषण,वर्ग विषमता, धोखाधड़ी आदि के प्रति दिगंबर कवियों (ज्वालामुखी,नग्नमुनि,निखिलेश्वर,चेरबंड राजु,भैरवय्या और महास्वप्न) ने आवाज अठाई. दिगंबर काव्यांदोलन की उफनाती तरंग ज्वालामुखी का कंठ दहकता हुआ वह अंगार है जिसने लाखों-करोड़ों जनता को गहन निद्रा से जगाया. प्रगतिशील भावों से युक्त ज्वालामुखी ने समाज को दीमक की तरह खाते जा रहे विषकीटकों के प्रति समाज को जगाया. उन्होंने केवल कवि के रूप में ही न्हीं अपितु कहानीकार और उपन्यासकार के रूप में भी अपने विचारों से तहलका मचाया. उनकी प्रमुख रचनाओं में "वोट्मी-तिरुगुबाटु" (पराजित-विद्रोह) तथा ’हैदराबाद कथलु’ (हैदराबाद की कहानियाँ) आदि उल्लेखनीय हैं. "रांगेय राघव : जीवित चरित्र" के लिए उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया.


धधकते तेवर क रूप में जनकल्याण के लिए,निष्कपट समाज के मंदहास के लिए अहर्निश अशांत अग्नि में जलनेवाली आत्मा की आवाज है ’ज्वालामुखी’. समाज को आलोकित करने तथा समाज से कुरीतियों को जड़ से मिटाने के लिए वे जीवनपर्यंत कार्यरत रहे. 1970 में विप्लवकारी रचयिताओं की संस्था (विप्लव रचयितल संगम, विरसं) की स्थापना कर शोषित वर्गों के हक के लिए लड़ते रहे. उन्होंने ’भारत-चीन मैत्री संस्था’ की नींव भी डाली है.


समाज में कोढ़ की तरह व्याप्त सत्तालोलुप राजनेता,धर्मांध मठाधीश और अवार्थी पूँजीपति आदि को उन्होंने अपनी कविताओं द्वारा बेनकाब किया. इसके लिए गाली-गलौज तथा अपशब्दों का प्रयोग करने में भी वे नहीं हिचकिचाए - "भय विह्वल जनता का/पागल-जीवन उसका/पीछा करता रहा/तोंदधारी लुटेरे/फोते वाले मरद/ढ़ोंगी तिलकधारी पंड़े/चोटीवाले नेता-सियार/दाढ़ी वाले घूस/मूँछ्वाली औरतें/मूँछ विहीन हिजड़े/मृदुल व्यवहारी/...खद्दर टोपीधारी/हरामजादे नेता/कुमार्गी कुटिल क्रूर/मंदिरों के म्लेच्छ/मस्जिद के काफिर/गुरुद्वारे के गुंडे/चर्च के पापी/शांति के पुजारी/वार्ता चोर..."


ज्वालामुखी अंत तक लोकतांत्रिक हकों के लिए लड़ते रहे क्योंकि लोकतंत्र के नाम पर तानाशाही का साम्राज्य ही चारों ओर फैला हुआ है. साधारण जन की प्रवंचना की पीड़ा को उन्होंने अपनी बुलंद आवाज में व्यक्त किया -"आज़ादी की सड़क पर/मज़ाकिया जानवर-सा/भगा दिया गया/जनतंत्र के/चोरों के बगीचे से/निर्दयतापूर्वक/ढ़केला गया./संसद की बहस में/अधिकारियों के विचित्र/पदार्थ के रूप में उसे/पेश किया गया."


बहुमुखी प्रतिभासंपन्न दीनबंधु,विश्वमानवता के पक्षधर ज्वालामुखी को उन्हीं के एक कवितांश के माध्यम से श्रद्धांजली निवेदित है-"लक्ष नक्षत्रमुलु रालनिदे/उज्ज्वल उदयं प्रवहिंचदु/रालिन निर्मल नक्षत्र कांतुले/रेपटि सूर्योदय किरणालु/नेटि निर्मल त्यागालु/रेपटि तूरुपु सौरभालु/समता सूर्योदयं नित्यं.../विप्लवं आगदु...सत्यं..."
(लाखों-करोड़ों नक्षत्र जब तक विलीन नहीं होते तब तक प्रभात का उदय नहीं होगा. आज का निर्मल त्याग ही कल के पूरब का सौरभ है. समता का सूर्योदय ही नित्य है. विप्लव को रोका नहीं जा सकता. यही सत्य है.)




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