"आंध्र पत्रिकनिच्चीअमृतांजनमिच्चीतलनोप्पी बापिनधन्युडितडु"
(धन्य हैं ‘आंध्र पत्रिका’ नामक दैनिक समाचार पत्र देकर और ‘अमृतांजन’ नामक औषधि का आविष्कार कर सिर दर्द को मिटानेवाले काशीनाथुनि नागेश्वरराव पंतुलु! - दुग्गिराला गोपालकृष्णय्या)
देशोद्धारक कशीनाथुनि नागेश्वरराव पंतुलु का जन्म कृष्णा जिला में बंदरू के समीप एलमर्रू नामक गाँव में 1 मई, 1876 में हुआ। मद्रास विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद व्यापार करने के उद्देश्य से उन्होंने मुंबई और कलकत्ता की यात्रा की। बहुत कोशिशों के बाद उन्होंने मुंबई में 1893 में‘अमृतांजन’ कंपनी प्रारंभ करके ‘अमृतांजन’ नामक औषधि का आविष्कार किया। उससे प्राप्त धन को उन्होंने समाज सेवा के लिए उपयोग किया।
तेलिगु में सर्वप्रथम दैनिक समाचार पत्र निकालने का श्रेय नागेश्वरराव को ही प्राप्त हैं। तेलुगु जनता में देशभक्ति जगाने के लिए उन्होंने 1908 में मुंबई से ‘आंध्र पत्रिका’ नाम से साप्ताहिक पत्र निकाला था। 1914 में यह पत्र मद्रास से दैनिक के रूप में प्रकाशित होने लगा। तत्कालीन समाज में जागरूकता लाने में इस समाचार पत्र का योगदान महत्वपूर्ण है। आंध्र विश्वविद्यालय की स्थापना में भी ‘आंध्र पत्रिका’ की भूमिका निर्विवाद है। नागेश्वरराव ने इस पत्रिका के माध्यम से तेलिगु साहित्य और संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1924 में उन्होंने ‘भारती’ नामक साप्ताहिक तेलुगु मासिक पत्रिका भी आरंभ की। इन दोनों पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से उन्होंने अनेक कवियों, लेखकों और विद्वानों को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ उन्हें पुरस्कार देकर भी सम्मानित किया।
स्वतंत्रता आंदोलन के समय जनता को जागृत करने के लिए और उन तक समाचार पहुँचाने के लिए काशीनाथुनि नागेश्वरराव पुस्तकालयों के लिए ‘आंध्र पत्रिका’ की प्रतियाँ मुफ्त में उपलब्ध कराते थे। उनके सेवाभाव, देशभक्ति और दानशीलता से प्रभावित होकर राष्ट्रपिता माहात्मा गांधी ने उन्हें ‘विश्वदाता’ उपाधि प्रदान की थी।
स्वतंत्रता संघर्ष के समय अनेक आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेने के साथ साथ नागेश्वरराव ने मुक्त हस्त से आंदोलनकारियों की आर्थिक सहायता भी की। 1924 में मद्रास में संपन्न आंध्र महासभा में उन्हें ‘देशोद्धारक’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था। इसी प्रकार आंध्र विश्वविद्यालय ने उन्हें ‘कलाप्रपूर्ण’ की उपाधि देकर अपनी कृतज्ञता प्रकट की।
नागेश्वरराव पंतुलु ने ‘आंध्र वाड्.मय चरित्र’ नाम से तेलुगु साहित्य का संक्षिप्त इतिहास भी लिखा है। उनके द्वारा लिखी गई भगवद्गीता की टीका आज भी प्रासंगिक है। 11 अप्रैल, 1938 को उन्होंने सदा के लिए इस भौतिक संसार से विदा ली परंतु इसमें संदेह नहीं कि वे अपने राष्ट्रीय, सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यों के कारण सदा के लिए तेलुगु जनमानस में गौरवपूर्ण स्थान पर प्रतिष्ठित रहेंगे।
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