दूरस्थ शिक्षा माध्यम ने उच्च शिक्षा को सर्वसुलभ बना दिया है. कुछ समय पहले तक यही समझा जाता रहा कि दूरस्थ शिक्षा पारंपरिक शिक्षा से कम स्तर की है. लेकिन आज स्थिति बदल चुकी है. आज दूरस्थ शिक्षा में सुनियोजित ढंग से पाठ्य सामग्री एवं तकनीकी संसाधनों का प्रयोग करके शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाया जा रहा है.
आज दूरस्थ शिक्षा सिर्फ पिछड़ों, वंछितों या घरेलू स्त्रियों तक सीमित नहीं है. आज देश भर के युवक/ युवतियां इसे उच्च शिक्षा का बढ़िया विकल्प मानकर आगे बढ़ रहे हैं. यह शिक्षा पद्धति निरंतर नवाचार युक्त/ इन्नोवेटिव बन रही है. यह सर्वविदित है कि दूरस्थ शिक्षा प्रणाली में अध्यापक अनुपस्थित रहता है अर्थात अध्यापक से प्रत्यक्ष संवाद /फेस टू फेस कांटेक्ट नहीं रहता. इसलिए समस्याओं का समाधान/ निवारण तुरंत नहीं हो सकता है. दूरस्थ शिक्षा के अध्येताओं के लिए पाठ्य सामग्री ही शिक्षक है. अतः पाठ्य सामग्री तथा तकनीकी संसाधनों के माध्यम से दूरस्थ शिक्षा प्रणाली में शिक्षक तथा कक्षा की कमी को दूर किया जा सकता है. इस प्रणाली को बाधाविहीन शिक्षा प्रणाली भी कहा जा सकता है चूंकि बिना किसी रुकावट के, बिना किसी समस्या के, बिना किसी बंधन के इस शिक्षा प्रणाली को अपनाया जा सकता है. इस माध्याम का अध्येता समूह विषमरूपी है अर्थात हेटीरोजीनस ग्रुप. हर आयु के लोग अपने व्यवसाय, दैनंदिन नौकरी, गृहस्थी आदि के साथ साथ शिक्षा जारी रखते हैं. पारंपरिक शिक्षा पद्धति से शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र अपनी समस्याओं एवं शंकाओं का समाधान अध्यापक की सहायता से कर लेते हैं लेकिन दूरस्थ शिक्षा के अध्येता की समस्याओं का समाधान पाठ्य सामग्री के माध्यम से ही संभव हो सकता है. अतः पाठ्य सामग्री में संभावित समस्याओं और समाधानों का समावेश किया जा सकता है.
दूरस्थ शिक्षा पाठ्यक्रमों के लिए कुछ इकाइयां लिखने का अवसर मुझे भी प्राप्त हुआ है. उस समय विद्वानों से यह निर्देश प्राप्त हुआ कि इकाइयां उन विद्यार्थियों के लिए लिखी जा रही हैं जिनके समक्ष अध्यापक उपस्थित नहीं है. अतः विद्यार्थियों को बीच बीच में संबोधित करना जरूरी है और उनकी समझ की पहचान करने के लिए प्रत्येक लघु उपखंड के बाद प्रश्न करना भी जरूरी है. इसीलिए इकाइयों के बीच में बोध प्रश्न दिए जाते हैं. इनका उद्देश्य अध्येता का एक प्रकार से स्वतः मूल्यांकन करना होता है.
दूरस्थ माध्यम की अध्ययन सामग्री में इन बोध प्रश्नों के अलावा इकाई के अंत में पूरे पाठ पर आधारित अलग अलग प्रकार के प्रश्न दिए जाते हैं. ये प्रश्न ही मिलकर उस पाठ्यक्रम का प्रश्न बैंक बनाते हैं. इस प्रकार निर्मित प्रश्न बैंक का अवलोकन करने से यह पता चलता है कि इसमें प्रायः तीन प्रकार के प्रश्न होते हैं - दीर्घ उत्तरीय प्रश्न, लघु उत्तरीय प्रश्न और अति लघु उत्तरीय प्रश्न. इन तीनों प्रकार के प्रश्नों के उद्देश्य भी एकदम साफ है. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एक ओर जहां संबंधित विषय के समग्र अधिग्रहण का मूल्यांकन करते हैं वहीं विद्यार्थी की संप्रेषण क्षमता या लेखन कौशल की भी इनके द्वारा परिक्षा होती है. इनकी तुलना में लघु उत्तरीय प्रश्न इस दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं कि ये पाठ के छोटे छोटे परंतु महत्वपूर्ण अंशों पर केंद्रित होते हैं और इनके उत्तर से यह पता चलता है कि छात्र ने पाठ के विविध सूक्ष्म आयामों को समझा है या नहीं. अब बचे अति लघु उत्तरीय प्रश्न. ये प्रायः एक दो शब्दों की उत्तर की अपेक्षा रखते हैं या इनके सही उत्तर के लिए विकल्पों में से चुनाव करना होता है. वास्तव में इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए छात्र को पूरा पाठ अक्षरशः पढ़ना जरूरी होता है. इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि अति लघु उत्तरीय प्रश्न छात्र को बाध्य करते हैं कि वह पूरी इकाई की क्लोस रीडिंग करे. यही ऐसे प्रश्नों की सबसे बड़ी उपाधेयता है.
वस्तुतः अध्येताओं का ज्ञान (Knowledge), समझने की शक्ति (Understanding Power) और ग्रहण करने की दक्षता (Ability to grasp) का परीक्षण और मूल्यांकन अनेक स्तरों पर किया जाता है. कोर्स/ पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए अध्येता को विभिन्न तरह की परीक्षाओं का सामना करना पड़ता है – आतंरिक परीक्षाएं और बाह्य परीक्षाएं. दूरस्थ शिक्षा अध्येताओं को आतंरिक परीक्षा के रूप में दत्तकार्य (Assignment) को पूरा करना पड़ता है. दत्तकार्य हो या बाह्य परीक्षाएं अध्येता को सभी तरह के प्रश्नों का समाधान देना पड़ता है.
वास्तव में प्रश्न कोश का केंद्रक छात्र होता है. और प्रश्न कोश की सुविधा मूलतः छात्र हित की ही सुविधा है. प्रश्न कोश बनाने की प्रक्रिया के संबंध में यहाँ कुछ बातें जान लेना आवश्यक है.
प्रश्न कोश के निर्माण की प्रक्रिया
१. पहले प्रश्नों को श्रेणियों में बांटना चाहिए – अर्थात अति लघु उत्तरीय प्रश्न, लघु उत्तरीय प्रश्न और दीर्घ उत्तरीय प्रश्न.
२. उसके बाद पाठ के आधार पर प्रश्न बनाने चाहिए.
३. केवल प्रश्न बनाना काफी नहीं है. यह भी बताना होगा कि उसका उत्तर कहाँ से प्राप्त हो सकता है और कैसे लिखा जा सकता है. इस दृष्टि से हमें अपने विविध पाठ्यक्रमों के प्रश्न कोशों का पुनरावलोकन करना होगा. और उन प्रश्नों को पहचानना होगा जिनके लिए उत्तर संबंधी निर्देश की आवश्यकता है.
४. यह पहचान करने के बाद अगले स्तर पर इन प्रश्नों के समक्ष कोष्ठक में अथवा प्रश्नावली के अंत में उत्तर संकेत देने होंगे. आवश्यक हो तो दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के लिए उत्तर की संक्षिप्त रूपरेखा भी बिंदु बिंदु रूप में दी जा सकती है. अर्थात प्रश्न कोश अपने आप में उत्तरों का भी पावर पाइंट प्रेसेंटेशन बन सकता है.
५. इस सुझाव का आधार यह है कि प्रायः छात्रों के द्वारा यह मांग की जाती है कि दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के लिए कम से कम एक रूपरेखा दी जानी चाहिए ताकि यह पता चले कि उत्तर कैसे लिखना चाहिए.
६. वास्तव में अध्येताओं की दक्षता और कौशल के परीक्षण करने के लिए प्रश्न बैंक का निर्माण किया जाता है. दूरस्थ शिक्षा माध्यम की यह मांग है कि प्रश्न कोश केवल पाठ्य सामग्री अथवा एक पुस्तक के रूप में ही नहीं बल्कि इंटरनेट पर भी उपलब्ध होने चाहिए. आन लाइन प्रश्न कोश बनाने में यह एक लाभ रहेगा कि समय समय पर हम इसे आवश्यकतानुसार संपादित और परिवर्धित कर सकेंगे. आवश्यकता होने पर नई श्रेणियाँ और उप श्रेणियाँ भी बनाया जा सकता है. और इस तरह धीरे धीर हमारा आन लाइन प्रश्न कोश केवल प्रश्न कोश नहीं बल्कि ज्ञान कोश बन सकता है.
हमारे संस्थान को भी इस दिशा में प्रयास करना होगा. इसके लिए निम्न लिखित सुझावों पर ध्यान दिया जा सकता है –
१. प्रत्येक प्रश्न पत्र के आन लाइन प्रश्न कोश को भी अलग अलग श्रेणियों में बांटा जाए. ये श्रेणियाँ प्रश्नों के प्रकार के आधार पर भी बनाई जा सकती हैं और परिक्षा के प्रकार के आधार पर भी. इससे छात्र को यह लाभ होगा कि वह आसानी से इच्छित परिक्षा, इच्छित पाठ्यक्रम, इच्छित इकाई अथवा इच्छित प्रकार के अनुसार प्रश्नों तक पहुँच सकेगा. यह भी आवाश्यक है कि प्रश्नों के साथ कई कई टैग अथवा लेबल भी उपलब्ध कराए जाएँ जिन्हें सर्च करके इच्छित सामाग्री तक पहुंचा जा सके. यदि हमारी पाठ सामग्री इंटरनेट पर उपलब्ध हो तो एक अत्यंत चमत्कारी सुविधा यह भी हो सकती है कि प्रश्नों के साथ संबंधित इकाई अथवा पाठांश का हाईपर लिंक भी उपलब्ध कराया जाए. इस हाईपर लिंक को क्लिक करते ही छात्र उस मूल पाठ तक पहुँच सकता है जिसके आधार पर उसे उत्तर तैयार करना है.
२. इंटरनेट पर अपने पाठों और प्रश्न कोश उपलब्ध कराते समय उसे लाक अवश्य करना होगा ताकि केवल पंजीकृत उपभोक्ता ही उस तक पहुँच सके. और सामग्री पर हमारा कापी राईट बना रहे. मैंने तो यह सुझाव मात्र दिया है. अब आगे इससे जुडी तकनीकी संभावनाओं पर विस्तृत विचार विमर्श की आवश्यकता है.
- दूरस्थ शिक्षा निदेशालय, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा द्वारा आयोजित द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी / कार्यशाला में प्रस्तुत शोध पत्र
2 टिप्पणियां:
अच्छा लगा आपको पढ़कर डॉ नीरजा ,
आपका यह लेख अनूठा होने के साथ साथ बेहद उपयोगी है, आभार आपका !
very nice post, you write so well thanks for sharing such beautiful tips
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