कितने बरसों बाद घर वापस लौटे?
बहुत चालाकी से अपने हिस्से को स्वाहा कर
पुराना उधार चुकाने के वक्त भाग खड़े हुए क्या?
चोरी के माल को चोरी से बेचकर
नकदी अपनी पत्नी के नाम जमा कर ली क्या?
हाथ में कौड़ी नहीं, बस में चढ़ने की औकात नहीं
कारों में घूमनेवाली चमेली तुम्हारे पास कैसे?
भूल गई जनता – अब कैसा डर,
यह सोच तुम आज उम्मीदवार बन प्रकट हो गए?
ठगे गए थे कल – ठगे जाएँगे न आज
हर बार तुम्हारा खेल नहीं चलेगा.
दुष्कर्मी! वोटों का क्या कहना
जूतों की, लातों की कमी नहीं रहेगी!
(1949 : हैदराबाद पुलिस एक्शन के बाद स्टेट कांग्रेस के संस्थागत चुनाव के समय अपराधी तत्वों द्वारा चुनाव लड़ने के संदर्भ में रचित)
* मेरी आवाज (पद्मविभूषण डॉ. कालोजी नारायण राव की चयनित कविताएँ)/ 2013/ आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद/ पृ. 138
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