मंगलवार, 8 सितंबर 2009

प्रयोजनमूलक हिंदी और प्रिंट मीडिया : दैनिक पत्रों का संदर्भ




’केंद्र सरकार अडी़,भ्रष्टाचार में डूबी,पुलिस के हाथ आकर फिसला पहाडी़,चुनाव नहीं लड़ रहे हैं बिहार के कई बाहुबली,मंदी के बावजूद छंटनी से परहेज कर रही कंपनियाँ,अब हलफ़नामे जमा करने की आई सुध’



ये हैं दैनिक समाचार पत्रों की कुछ सुर्खियाँ जो इस व्यवहार क्षेत्र के भाषिक वैशिष्ट्य का जायका देने में समर्थ हैं. वस्तुतः भाषा,संप्रेषण का सशक्त माध्यम है. समाज में भाषा दो तरह से काम करती है. एक : सामान्य संप्रेषण,जिसके माध्यम से लोग बातचीत कर सकें,तर्क प्रस्तुत कर सकें,स्वागत कर सकें,विदाई दे सकें आदि. वास्तव में जो भाषा समुदाय होता है उसके अधिकतर सदस्य सामान्य संप्रेषण की भाषा से ही काम लेते हैं,चाहे वे शिक्षित हों या अशिक्षित अथवा उच्च वर्ग के हो या निम्नवर्ग के. ऐसी भाषा या भाषा के प्रकार्य को समाज भाषाविज्ञान ने ’सामान्य प्रयोजनों की भाषा’(Language for General Purposes / LGP) की संज्ञा दी. अर्थात दैनंदिन जीवन की संप्रेषण संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति सामान्य संप्रेषण की भाषा करती है. इसमें परिवार,परिवेश,समाज,पूरा देश आते हैं. सामान्य प्रयोजन की भाषा में विविधता होती है. प्रयोक्ता क्षेत्र,सामाजिक वर्ग भेद आदि के अनुसार यह बदलती रहती है. कभी भी सामान्य प्रयोजन की भाषा एकरूपी नहीं होती, यही उसकी सामाजिक स्वीकृति का प्रमाण है. हिंदी को सामान्य प्रयोजन की भाषा के रूप में बहुत लोगों ने स्वीकार किया है. इसका प्रमुख लक्ष्य है-सामान्य संप्रेषण के माध्यम से समाज को जोड़्ना. भाषा का दूसरा प्रकार्य इससे भिन्न है जिसे विशिष्ट प्रयोजन पर आधारित होने के कारण ’प्रयोजनमूलक भाषा’ (Language for Specific / Special Purposes) के रूप में जाना जाता है.



जब भाषा विशिष्ट सामाजिक दायित्वों को पूरा करती है तो वह प्रयोजनमूलक भाषा का रूप धारण करती है. विशेष प्र्योजनों के लिए समाज को विशेष भाषा की जरूरत पड़ती है. अब जरूरत काम सामान्य प्रयोजनों को पूरा करनेवाली सामान्य भाषा से नहीं चलता;उसकी एक सीमा है. अतः जरूरत पड़ने पर समाज प्रयोजनमूलक भाषा क निर्माण करता है. इसका अर्थ यह नहीं है कि सामान्य भाषा का कोई प्रयोजन नहीं है. इसी सामान्य भाषा का आधार लेकर ही प्रयोजनमूलक भाषा को विकसित किया जाता है. अपने ओरयोजन क्षेत्र में प्र्योजनमूलक भाषा एकरूपी होती है. यद्यपि हिंदी के विविध प्रयोजनमूलक भाषा के लिए भी सत्य है.



प्रयोजनमूलक भाषा सायास (Conscious) रूप में विकसित होती है. समयबद्ध ढंग से इसका निर्माण होता है. भारतीय भाषाओं का विकास जो प्रयोजनमूलक भाषाओं के रूप में हुआ है,वह स्वतंत्रता के बाद सायास रूप में कियाअ गया है. प्रयोजनमूलक भाषा का सीधा संबंध विषय क्षेत्र (Domain) से होता है. विषय के अनुरूप प्रयोजनमूलक शैली / बोली में परिवर्तन आ जाता है. इसलिए प्रयोजनमूलक भाषा के वर्ग बनाए गए हैं. कुछ विद्वानों ने यह माना कि इनके केंद्र में ’विषय’(Subject) है तो कुछ लोगों ने ’विषय बिंदु" (Topic) को ज्यादा महत्व दिया और कहा कि वस्तुतः विषय बिंदु के अनुसार प्रयोजनमूलक भाषा का रूप बदलता है.



प्रयोजनमूलक क्षेत्र के अनुसार जो भाषा रूप विकसित होते हैं उन्हें प्रयुक्ति (Register) कहा जाता है. प्रयुक्ति के माध्यम से यह देखने का प्रयास किया जाता है कि भाषा प्रयोक्ता विशिष्ट परिस्थितियों में भाषा की लचीली संभावना के साथ क्या करते हैं. अर्थात किसी निश्चित परिस्थिति में सामाजिक दायित्व के निर्वाह हेतु वक्ता द्वारा प्रयुक्त भाषा शैली ही प्रयुक्ति या रजिस्टर है. प्रायः राजभाषा के रूप में हिंदी की कार्यालय तथा प्रशासन में काम आने वाली प्रयुक्ति की काफी चर्चा की जाती है परंतु केवल कार्यालयीन व प्रशासनिक भाषा या वैज्ञानिक एवं तकनीकी भाषा ही प्रयोजनमूलक भाषा नहीं है अपितु साहित्य की भाषा भी एक विशिष्ट प्रयोजन ही है और उसकी भी अनेकानेक प्रयुक्तियाँ व उप-प्रयुक्तियाँ हैं. आधुनिक युग संचार का युग है अतः संचार माध्यमों अथवा पत्रकारिता के प्रयुक्ति कहा जा सकता है. इसमें संदेह नहीं कि लोकतंत्र के चतुर्थ स्तंभ के रूप में विख्यात पत्रकारिता के विषय क्षेत्र (Domain) में आश्चर्यजनक विस्तार हुआ है. मनुष्य ज्ञान-विज्ञान की अनेक नवीन उपलब्धियों तथा समसामायिक गतिविधियों के प्रति विशेष जिज्ञासु हो उठा है. अतः तेजी से बदलती हुई परिस्थितियों के साथ ही पत्रकारिता के प्रयोजनों मेंभी वृद्धि हो रही है.



पत्रकारिता आज मात्र राजनीतिक एवं सामाजिक गतिविधियों तक ही सीमित नहीं रह गई है बल्कि यह आज अपने को आर्थिक,साहित्यिक,सांस्कृतिक आदि क्रिया-कलापों से भी जोड़ चुकी है और इन विषय क्षेत्रों के साथ-साथ फिल्म,खेल-कूद,स्वास्थ्य,ग्लैमर व फैशन तथा अन्य समस्त सामाजिक विषयों को अपने भीतर समेटे हुए हैं. इन सब उपक्षेत्रों की अपनी-अपनी उप-प्रयुक्तियाँ हैं जो व्यापक रूप से पत्रकारिता की प्रयुक्ति का अंग है.



दैनिक पत्रों में लगभग सभी पहलुओं पर समाचार छपते हैं. जैसा विषय होगा उसमें उसी प्रकार की भाषा का प्रयोग किया जाता है.



हर भाषिक प्रयुक्ति की अपनी विशेषताएँ होती हैं. हिंदी पत्रकारिता की विविध उप-प्रयुक्तियों में अनेकानेक अंतरराष्ट्रीय शब्दों का प्रयोगा बडी़ मात्रा में किया जा रहा है. पारिभाषिक शब्दावली किसी भी प्रयुक्ति की रीढ़ होती है अतः शब्द चयन व्यापक पाठक वर्ग को ध्यानमें रखकर किया जाता है. उदाहरण के के रूप में, 02 अप्रैल,2009 के ’स्वतंत्र वार्ता’ के मुख पृष्ठ को ही देखें-



"20 शीर्ष आर्थिक शक्तियों ने आज टैक्स हैवन (कर चोरी) के धन की पनाहगाहों को ध्वस्त करने का फैसला करते हुए...तीस के दशक के बाद की सबसे बडी़ मंदी से निपटने के लिए 1100 अरब डालर के नकद पैकेज का ऐलान किया."



इस समाचार में टैक्स हैवन, डालर, पैकेज जैसी अंतरराष्ट्रीय शब्दावली को उनके प्रचलित अंग्रेजी़ रूपों में ही अपनाया गया है और हिंदी की प्रकृति के अनुसार ही उनका लिप्यंतरण किया गया है. संस्कृत, अरबी, फा़रसी शब्दों के साथ-साथ संकर शब्दों का भी प्रयोग किया गया है.



इसी तरह दैनिक पत्रों में अंग्रेजी़ भाषा से अनूदित शब्दों का प्रयोग भी किया जाता है. जैसे- International Monetary Fund के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, Trade Proposal के लिए व्यापार के वित्तपोषण, Free Convertable Money के लिए मुक्त विनिमय मुद्रा आदि. इस प्रकार के शब्द प्रचलित पारिभाषिक शब्दावली से ही ग्रहण किए जाते हैं.



यदि विषय वैज्ञानिक होगा तो उसमें तकनीकी तथा पारिभाषिक शब्दों का अधिक प्रयोग होगा. उदाहरणार्थ-


प्लास्टिक मिनरल वाटर बोतलों में एस्ट्रोजन हार्मोन (स्वतंत्र वार्ता: 05 अपैल,2009)
परावर्तित यीस्ट का प्रयोग (स्वतंत्र वार्ता: 05 अपैल,2009)
मनुष्य के एस्ट्रोजन के लिए एक रिसेप्टर लगाया गया (स्वतंत्र वार्ता: 05 अपैल,2009)
मिनरल वाटर में मिलावट स्वास्थ्य के लिए जोखिम का कारण हो सकता है (स्वतंत्र वार्ता: 05 अपैल,2009)
शरीर की कोशिकाओं में ग्लूकोज के दहन का काम कोशिका के एक विशेष उपांग माइटोकांड्रिया (Mitochondria) में किया जाता है (स्वतंत्र वार्ता:26 मार्च,2009)
चिकन गुनिया... डेंगू... और अब स्वाइन फ्लू का कहर (स्वतंत्र वार्ता: 15 अगस्त,2009)
स्वाइन फ्लू की चपेट में विश्व (स्वतंत्र वार्ता: 15 अगस्त,2009)


यहाँ प्रयुक्त अनेक वैज्ञानिक शब्द लैटिन से अंग्रेज़ी में स्वीकार होकर हिंदी तक आए हैं. पारिभाषिकता के बावजूद समाचार पत्र की भाषा में सरलता और सुबोधता का भी ध्यान रखा जाता है. इसलिए वैज्ञानिक तथ्यों को भी जन सामान्य तक पहुँचाने के लिए दैनिक पत्रों में सहज-सरल भाषा का प्रयोग किया जाता है. दूसरी ओर, विषय सामान्य होने पर भाषा भी सामान्य होगी,लेकिन अपनी प्रस्तुतिगत विशिष्टता के कारण पत्रकारिता भाषा तकनीकी बन जाती है. कुछ शीर्ष पंक्तियाँ और कुछ अभिव्यक्तियाँ देखें-


शीर्ष पंक्तियाँ


पिता के लिए पुत्र सारथी, तो पुत्र के लिए पिता
लोकसभा चुनाव में कई नेताओं व दलों की प्रतिष्ठा दांव पर
नफरत व देश को बाँटने की राजनीति न करे
नोट देकर वोट माँगनेवाले नेता, सावधान रहें मतदाता
चुनाव आयोग के कडे़ तेवर
भारतीय कोच कम नहीं
सफलता के लिए मक्सद जरूरी
ट्वेंटी-20 के ट्रेडमार्क को लेकर जंग
साल्ट का डिफाल्ट
गेंद अब पाकिस्तान के पाले में है
ज्योतिष की सीढ़ी के सहारे चुनावी नैया पार करने की तैयारी
शेयर बाज़ार में तेजड़ियों की मजबूत होती पकड़


अभिव्यक्तियाँ


बंदूकधारी की गोलीबारी /अटूट संबंध बरकरार /पुछल्ले बल्लेबाज /प्रभावशाली गेंदबाज / बल्लेबाजों के तेजतर्रार खेल / पगबाधा आउट /
काले धन के जन्नत / कुर्सी के लिए जीना मरना /चुनावी महासमर /खूफिया मुद्दे /गुमराह करने की कोशिश /दरों में कटौती की घोषणा /
ऊँची छ्लांग /बाज़ार मे तेजी का सिलसिला /सीबीआई की क्लीन चिट /गुमराह करनेवाले विज्ञापन /आतंकवादियों के खिलाफ प्रदर्शन /
भ्रष्टाचार के खात्मे का आह्वान /सनसनीखेज़ खबर /बात धर्मनिरपेक्षता की,व्यवहार सांप्रदायिक राजनीति की /दिन-दहाड़े हत्या



कुछ अभिव्यक्तियों के अवलोकन से यह भी पता चलता है कि आजकल समाचर की भाषा में भी काव्यात्मक प्रयोग दैनिक पत्रों में सहज रूप से पाए जाने लगे हैं क्योंकि दैनिक पत्रों की भाषा में संप्रेषणीयता और परिवर्तनशीलता के साथ-साथ जीवंतता और लचीलापन भी विद्यमान है. पत्रकारिता का संबंध आम जनता से है. अतः अपने पाठक वर्ग को बाँधकर रखने के लिए प्रायः भावपरक भाषा (Emotive Language) का भी प्रयोग किया जाता है. पत्रकारिता की भाषा में अनेकरूप्ता, कोड मिश्रण और शैली भेद भी पाई जाती है जो इस प्रयुक्ति की विशिष्टता है.



दैनिक पत्रों में अनेक प्रयोजनमूलक वर्गों (Functional Categories) को भी देखा जा सकता है. हर एक वर्ग की भाषा विशिष्ट होती है. उदाहरणार्थ, संपादकीय, राजनैतिक समाचार, आर्थिक समाचार, राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय एवं स्थानीय समाचार, अपराध समाचार आदि के अतिरिक्त खान-पान की हिंदी,स्वास्थ्य एवं सौंदर्य की हिंदी, बाज़ार की हिंदी, फिल्म की हिंदी, ग्लैमर व फैशन की हिंदी,विज्ञापन की हिंदी आदि विशिष्ट प्रयोजनमूलक वर्ग हैं और इनकी अपनी प्रयुक्तियाँ हैं. हर प्रयुक्ति की अपनी विशिष्ट भाषिक संरचना है. जैसे खान-पान की प्रयुक्ति को ही अगर लें तो इसकी भाषा में विविधता पाई जाती है- उबालें, कूट लें, लपेट कर रोल कर लें, गरम गरम परोसें, बगैर तेल के सुनहरा होने तक भूनें,आटे की लोई बना लें, सेंक लें, फिलिंग के लिए आलू के टुकडों को काट लें, तड़का लगाएँ, मसाला कूट लें, मिश्रण को मिक्सर में पीसें जैसे प्रयोग पाए जाते हैं. इस प्रयुक्ति में अंग्रेज़ी-हिंदी कोड मिश्रण स्वाभाविक रूप से प्रचलित है. इतना ही नहीं सामान्य क्षेत्रीय शब्द इस प्रयुक्ति के विशिष्ट शब्द बन जाते हैं.



इसी तरह
साइकोलॉजिकल थ्रिलर फिल्में, पर्सनल ट्रेजडी, यूनिक पॉवर,कैरियर, निर्देशक, कैरेक्टर, डिफरेंट टाइप की फिल्म, किर्दार, रोल प्ले, उम्दा अभिनय, बॉक्स ऑफिस
आदि फिल्म प्रयुक्ति के शब्द हैं. इस क्षेत्र में अंग्रेज़ी शब्दों की भरमार हैं.



इसी के इलेक्ट्रिक उपकरणों से संबंधित पत्रकारिता की प्रयुक्ति में प्रायः अंतरराष्ट्रीय शब्दों को ही ग्रहण कर लिया गया है. जैसे-
मोबाइल, हैंड सेट, असेसरीज़, बैटरी, इयर फोन, चार्जर, वारंटी कार्ड, फैट रिडक्शन मिशन
आदि. बाज़ार भाव की हिंदी तो अब आमफहम हो गई हैं.
ऊँची छलाँग, बाज़ार में तेजी, बाज़ार में मजबूती दर्ज, सोने में हल्की तेजी, चाँदी स्थिर, सर्राफा बाज़ार में सुस्त गतिविधियाँ, कीमती धातुओं में विशेष उठापटक
आदि बाज़ार प्रयुक्ति की विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ हैं तो
शीटॉक्सीफिकेशन प्लान से लुक्स में लाए बदलाव,त्वचा को दे सन प्रोटेक्शन, याद र्खें मैचिंग का फंडा, फैशन के दौर में आभूषणों की कमी नहीं, अपनाइए टिप्स और बन जाइए पार्टी की शान
आदि ग्लैमर व फैशन दुनिया से संबंधित है.



अतः हम यह कह सकते हैं कि राजनैतिक चहल पहल हो या व्यावसायिक गतिविधियाँ, ग्लैमर व फैशन की दुनिया हो या पाक वोद्या - हिंदी दैनिक पत्रों ने इन प्रयोजनमूलक वर्गों को अपने सहज भाषा प्रयोज से समृद्ध बनाया है. इस क्षेत्र में एक साथ विभिन्न प्रयुक्तियाँ एवं इप-प्रयुक्तियाँ विद्यमान है. इनके गठन में अनुवाद का बड़ा हाथ है. जैसे अंतरराष्ट्रीय महत्व के समाचार,खेल-कूद समाचार. सभी भारतीय भाषाएँ इन प्रयुक्तियों को अनुवाद के माध्यम से भी, तथा मौलिक शब्द निर्माण से भी समृद्ध कर रही है.


1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

पढ़कर उपकृत हुआ