रविवार, 21 अप्रैल 2013

खतरे में बेटियाँ


भीगी भीगी ठंडी शब्दहीन चीख
पर उसने तो वीभत्स हँसी हँसकर अट्टहास किया.

मैं तो बस छोटी-सी गुड़िया हूँ
गुड्डे-गुड़ियों से खेलती हूँ.
उस दिन भी मैंने खेलने के लिए ही तो
खुशी खुशी घर की दहलीज पार की थी.
पर मुझे क्या पता
कि दरिंदा मुझे वहीं से उठाकर ले जाएगा
मुझे नोच-नोचकर खसोट-खसोटकर खा जाएगा

मुझे तो उसने मार डाला ही
मेरे माँ-बाप को ज़िंदा लाश बना दिया.

वे सड़क पर चलते हैं
पीछे से कोई पदचाप सुनाई दे तो घबरा जाते हैं
डर के मारे पसीने पसीने हो जाते हैं
होंठ दबाकर चीख को रोक लेते हैं.

जब कभी किसी नन्ही गुड़िया को देखते हैं
तो बस चीख उठते हैं -
‘गुड़िया घर से बाहर न जा
यह समाज तेरे लिए नहीं बना है
बाहर न जा
तुम्हें नोचकर खाने के लिए गिद्ध इंतजार कर रहा है
तू बाहर न जा’.

यहाँ भी देखा जा सकता है 
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in/2014_04_01_archive.html

14 टिप्‍पणियां:

साहित्य और समीक्षा डॉ. विजय शिंदे ने कहा…

जहां भी ऐसी दर्दनाक घटनाएं घटित हो रही वहां उसके कारण और परिस्थितियां कुछ अलग ही है। यहां सरकार,पुलिस और प्रशासन को दोशी मान आक्रमक होना, गालीगलौच करना और किसी का निलंबन करना उपाय नहीं है। ऐसा करना सांप समझ रस्सी को पीटते रहना है। मूल बीमारी दुष्चरित्र लोगों की मानसिकता में है। हमें अपनी और अपने परिवार की खुद सुरक्षा करनी होगी, पास-पडोस के माहौल से सचेत रह कर बच्चों को एक सुरक्षा कवच देना पडेगा। थोडा नजरंदाज करना बहुत महंगा पड सकता है। जानवर और पशु-पंछी अपने बच्चों को और परिवार जनों को बुरी आंखों से बचाए रखते हैं। जरूरत पडने पर हमला करते हैं। कहीं न कहीं ऐसी घटनाओं में लापरवाही पुलिस, प्रशासन, सरकार के साथ माता-पिता की मानी जा सकती है। आस-पास हजारों खतरें और राक्षस खडे है पहले खुद लडाई लडनी पडेगी।

Sp Sudhesh ने कहा…

बड़ी मार्मिक और सामयिक रचना है । भाषा की सहजता और शब्दों का प़वाह
भी आकर्षक है । रचनाकार को बधाई ।

संपत देवी मुरारका ने कहा…

आ, नीरजा जी, बधाई.बड़ी मार्मिक रचना है.

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 25/04/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !

RAKESH KUMAR SRIVASTAVA 'RAHI' ने कहा…

मार्मिक रचना.

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

समाज बेटियों के लिए अभिशाप बन चुका है -मर्म को छूती रचना !

बेनामी ने कहा…

बेहद मार्मिक एवं यथार्थपूर्ण रचना..

कविता रावत ने कहा…

बहुत मार्मिक। .
कुछ इंसान में राक्षस छुपा रहता है जो सबके लिए दुखदायी बन जाता है

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

ऐसे वक़्त में दर्द की चीखे भी खतम हो जाती हैं


कविता पढ़ने के बाद एक झुरझुरी पैदा हुई उफ़्फ़ के साथ ...बहुत मार्मिक

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

ऐसे वक़्त में दर्द की चीखे भी खतम हो जाती हैं


कविता पढ़ने के बाद एक झुरझुरी पैदा हुई उफ़्फ़ के साथ ...बहुत मार्मिक

Neeraj Neer ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Neeraj Neer ने कहा…

स्थिति बहुत ही वीभत्स है, आपने बहुत ही सुंदरता से इस संवेदनशील विषय को अपनी कविता के माध्यम से उठाया है।
आपको अपने ब्लॉग काव्यसुधा पर आने का निमंत्रण देता हूँ ...
KAVYASUDHA ( काव्यसुधा )

Neeraj Neer ने कहा…

स्थिति बहुत ही वीभत्स है, आपने बहुत ही सुंदरता से इस संवेदनशील विषय को अपनी कविता के माध्यम से उठाया है।
आपको अपने ब्लॉग काव्यसुधा पर आने का निमंत्रण देता हूँ ...
KAVYASUDHA ( काव्यसुधा )

Neeraj Neer ने कहा…
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