मंगलवार, 26 मार्च 2019

तेलुगु साहित्य 2015 : एक सर्वेक्षण


भारतीय भाषाओं के बीच तेलुगु भाषा का साहित्य अत्यंत समृद्ध और परंपरायुक्त है. इक्कीसवीं शताब्दी में तेलुगु के साहित्यकार समय और समाज की नब्ज पहचानकर इसे और भी संपन्न बनाने के लिए सचेत है. वर्तमान समय में एक ओर पुरानी पीढ़ी अपनी लेखनी से तेलुगु साहित्य को समृद्ध कर रही है तो इसके समानांतर संवेदनशील नई पीढ़ी भी अपनी लेखनी से इसे बहुरंगी आयाम प्रदान कर रही है. वर्ष 2015 में तेलुगु साहित्य में प्रमुख रूप से आलोचना कृतियों के साथ-साथ कहानी संग्रहों का प्रकाशन हुआ है. उपन्यास, कविता, निबंध और अनूदित रचनाएँ भी पाठकों के समक्ष उपस्थित हुई हैं. 

तेलुगु भाषा और साहित्य के इतिहास, विकास यात्रा तथा भाषा और साहित्य से संबंधित अन्य जानकारी प्रदान करने वाली आलोचनात्मक पुस्तकें अनेक हैं. लेकिन 2015 में डॉ. दहगाम साम्बमूर्ति कृत ‘तेलुगु भाषा साहित्य दर्पणम : रूपालु, प्रक्रियलु, धोरणुलु (तेलुगु भाषा साहित्य दर्पण : रूप, प्रक्रिया, प्रवृत्तियाँ) प्रकाशित हुई है जिसमें लेखक ने तेलुगु भाषा विषयक अनेक व्याकरणिक एवं भाषावैज्ञानिक दृष्टिकोणों को स्पष्ट किया है. 

तेलुगु साहित्य जगत में लोक को प्रमुखता दी जाती है. लोक भाषा एवं लोक साहित्य का अपना एक निजी एवं विशिष्ट स्थान है. यह सर्वविदित तथ्य है कि नागर जीवन और लोक जीवन के बीच अंतर विद्यमान है. लोक साहित्य लोक कंठ से निःसृत साहित्य है. इसमें लोक की आस्थाओं, आकांक्षाओं, कल्पनाओं, आवश्यकताओं को महत्व दिया जाता है. अपनी पुस्तक ‘जानपद साहित्यम : आधुनिक स्पृहा’ (लोक साहित्य : आधुनिक चेतना) में देवराजु महाराजु ने लोक साहित्य तथा उसकी मान्यताओं की व्याख्या आधुनिक परिप्रेक्ष्य में की है और प्रतिपादित किया है कि समय के साथ-साथ लोक साहित्य में भी नए-नए आधुनिक परिवेश प्रतिबिंबित हो रहे हैं. 

यह तो विमर्शों का युग है. हाशियाकृत समुदाय केंद्र की ओर आ रहे हैं और अपनी अस्मिता के लिए संघर्ष कर रहे हैं. हर भाषा के साहित्य में इस प्रकार के विमर्श प्रधान साहित्य को भलीभाँति देखा जा सकता है. तेलुगु साहित्य में भी दलित साहित्य की अवधारणा को रेखांकित करने वाली अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई है. 2015 में डॉ. एस.वी. सत्यनारायण कृत ‘दलित साहित्यम नेपथ्यम’ (दलित साहित्य की पृष्ठभूमि) पाठकों के सामने आई. इसमें दलित साहित्य के उदय और विकास के साथ-साथ अखिल भारतीय दलित लेखक संघ के प्रथम अधिवेशन की जानकारी अंकित है तथा आधुनिक दलित साहित्य में चित्रित दलित चेतना, आधुनिक दलित कविता में अभिव्यक्त दलित आक्रोश और संघर्ष आदि को भी रेखांकित किया गया है. इसी प्रकार डॉ. कत्ति पद्मारव कृत ‘दलित साहित्यवादम : जाषुवा’ शीर्षक पुस्तक दलित साहित्य की अवधारणा को तेलुगु के कवि गुर्रम जाषुवा के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट करती है. स्मरणीय है कि तेलुगु साहित्य में दलित कवि के रूप में गुर्रम जाषुवा विख्यात हैं लेकिन वे मूलतः मानववादी कवि हैं. उनके साहित्य को उजागर करने वाली अनेक पुस्तकें प्रकाशित हैं. फिर भी 2015 में ‘जाषुवा साहित्यम : द्रुकपथम – परिणामम’ [जाषुवा का साहित्य : परिप्रेक्ष्य और विकास] (डॉ. येंड्लूरि सुधाकर), ‘महाकवि जाषुवा : प्रगतिशीलता-कलात्मकता’ [महाकवि जाषुवा : प्रगतिशीलता एवं कलात्मकता] (डॉ. अद्देपल्लि राममोहन राव) और जाषुवा स्नेहम-संदेशम [जाषुवा का स्नेह और संदेश] (डॉ. राचपालेम चंद्रशेखर रेड्डी) जैसी पुस्तकें सामने आईं जो महाकवि जाषुवा की कविता का विश्लेषण प्रस्तुत करती हैं. 

दलित विमर्श स्वयं को बौद्ध दर्शन से जोड़ता है. भारत में जन्मे बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार पूरे विश्व में हुआ. इस पर अनेकानेक पुस्तकें भी उपलब्ध हैं. आज के परिप्रेक्ष्य में बौद्ध धर्म की प्रासंगिकता को रेखांकित करने वाली पुस्तक ‘बौद्धम : इप्पटिकी अवसरमा?’ (बौद्ध धर्म : आज भी आवश्यक है?) पाठकों के समक्ष है. बुद्ध ने जिन सिद्धांतों का प्रतिपादन किया था आज बौद्ध मत में वे सिद्धांत नहीं है. बुद्ध को भगवान के रूप में पूजा जा रहा है. ऐसी स्थिति में बोर्रा गोवर्धन ने अपनी इस शोधपरक पुस्तक में बौद्ध धर्म की प्रासंगिकता को बखूबी रेखांकित किया है और साथ ही समसामयिक समाज की रीति-नीति को स्पष्ट करते हुए यह प्रतिपादित किया है कि बौद्ध मत मानवता को प्रमुख मानता है. 

वंचित समूहों के रूप में आमतौर पर दलित, स्त्री, आदिवासी और अल्पसंख्यकों की बात की जाती है लेकिन वृद्धों की चर्चा न के बराबर होती है. ऐसे में उस साहित्य पर ध्यान देने की जरूरत है जिसमें वृद्धों को केंद्र में रखा जा रहा है. वार्धक्य के बारे में स्पष्ट करने वाली पुस्तक ‘वार्धक्यम : वरमा? शापमा?’ (वार्धक्य : वरदान है या अभिशाप) प्रकाशित हुई. इसकी रचनाकार हैं डॉ. गुरजाडा शोभा पेरिंदेवी. उन्होंने वैज्ञानिक ढंग से वार्धक्य से संबंधित अनेक भ्रांतियों का निराकरण किया है और स्पष्ट किया है कि वार्धक्य अभिशाप नहीं बल्कि जीवन का सार है. 

तेलुगु साहित्य जगत में उपन्यासों का अपना विशिष्ट स्थान है. तेलुगु उपन्यास साहित्य से संबंधित अनेक आलोचनात्मक पुस्तकें हैं. तेलुगु साहित्य के 25 प्रमुख राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक उपन्यासों के इतिवृत्त को सहवासी ने 9 वर्ष पहले अपनी पुस्तक ‘नूरेल्ला तेलुगु नवला’ में रेखांकित किया था. 2015 में इसकी पहली आवृत्ति पाठकों के समक्ष आई है. इस वर्ष पाठकों की संवेदना को प्रबल करने वाले उपन्यास भी प्रकाशित हुए. उनमें प्रमुख हैं नागेश बीररेड्डी कृत ऐतिहासिक उपन्यास ‘ओका नाजिया कोसम’ (नाजिया के लिए). इसमें प्रेमकथा के माध्यम से 1947 कालीन निजाम शासन की कथा अंकित है. उस समय तेलंगाना निजाम शासन के अधीन था. इस उपन्यास में रजाकारों की अमानुषिकता का लोमहर्षक चित्रण किया गया है. 

यह पहले भी कहा जा चुका है कि 2015 में आलोचना पुस्तकों के साथ-साथ कहानी संग्रहों का प्रकाशन अधिक मात्रा में हुआ है. के. सुभाषिणी के कहानी संग्रह ‘अमूल्या’ में संकलित 15 कहानियाँ स्त्री प्रधान कहानियाँ हैं. इन कहानियों में स्त्री की समस्याओं को उजागर करने के साथ-साथ आर्थिक विसंगतियों, मानसिक द्वंद्व, उपभोक्ता संस्कृति, भ्रष्ट शिक्षा तंत्र आदि को भी रेखांकित किया गया है. इन कहानियों में परिनिष्ठित तेलुगु के साथ-साथ रायलसीमा अंचल की भाषा का खुला प्रयोग विशेष द्रष्टव्य है. इस दृष्टि से इस संग्रह की कहानी ‘गायालु’ (घाव) विशेष रूप से उल्लेखनीय है. 

कथा साहिती प्रकाशन लगातार 25 वर्षों से नए नए कहानीकारों को प्रोत्साहित करने का कार्य कर रहा है. वासिरेड्डी नवीन और पापिनेनि शिवशंकर द्वारा संपादित ‘कथा-2014’ इस शृंखला का 25वाँ संग्रह है जिसका प्रकाशन 2015 में हुआ. नए कहानीकारों को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से इस शृंखला का सूत्रपात किया गया है. इस संग्रह में संकलित रामसुंदरी बत्तुला की कहानी ‘चावु देवरा’ (मर जा, भगवान!) में भ्रष्ट समाज का यथार्थ चित्र अंकित है. उन्होंने यह दिखाया है कि भूमंडलीकरण के कारण आम आदमी की जिंदगी किस तरह तब्दील हो गई है तथा यह समाज मंडी के रूप में कैसे परिवर्तित हो चुका है. पलगिरी विश्वप्रसाद की कहानी ‘आकुलु राल्चिना कालम’ (पतझड़) में स्त्री का जीवन संघर्ष अंकित है तो मधुरांतकम नरेंद्र की कहानी ‘निशब्दपु चप्पुडु’ (निशब्द ध्वनि) में स्त्री आक्रोश की अभिव्यक्ति है. तल्लावर्झुला पतंजलि शास्त्री ने अपनी कहानी ‘रोहिणी’ में जल समस्या को रेखांकित किया है तो अद्देपल्ली प्रभु ने अपनी कहानी ‘इस्साकु चिलुका’ (इस्साक का तोता) में निम्नवर्ग के साथ हो रहे राजनैतिक षड्यंत्र का पर्दाफाश किया है. इस संग्रह की सभी कहानियाँ किसी न किसी समसामयिक समस्या को पाठक के समक्ष रखकर उसे झकझोरने में सक्षम हैं. 

कहानियों को अस्त्र के रूप में प्रयोग करके समाज को चेताने के लिए विरसम (विप्लव रचयितला संघम, क्रांतिकारी लेखक संघ) ने कार्यशाला का आयोजन किया जिसके माध्यम से अनेक नए कहानीकार उभरकर सामने आए. उस कार्यशाला के फलस्वरूप जितनी कहानियाँ लिखी गईं उन्हें समय-समय पर प्रकाशित भी किया गया. इसी क्रम में 2015 में ‘कथला पंटा-3’ (कहानियों का फसल) सामने आया. इस संग्रह में कुल 19 कहानियाँ संकलित हैं. सामाजिक विसंगतियों के अलावा सत्ता की अमानवीयता, सत्ता के प्रति जनता का असंतोष और आक्रोश इन कहानियों का मुख्य कथ्य है. अभिव्यक्ति शैली रोचक है. परंपरागत कथा शैली को इन कहानीकारों तोड़ा है. 

प्रशांत विघ्नेश के कहानी संग्रह ‘मा ऊरू चेप्पिंदि (गाँव ने कहा)’ में संकलित कहानियाँ के साथ उस कथा के इतिवृत्त को स्पष्ट करने वाले चित्र भी अंकित हैं. हर एक कथा ग्रामीण व्यवस्था और गाँव की जिंदगी से जुड़ी हुई है. इन कहानियों को पढ़ने से ऐसा प्रतीत होता है कि कहानीकार जमीन से जुड़े हुए हैं. शहरी सभ्यता के रंग-ढंग में वे ढले नहीं बल्कि अपनी जड़ों से जुड़े हैं. इन कहानियों में अतीत की स्मृतियाँ भी अंकित है पर ऐसा नहीं लगता कि कहानीकार नॉस्टालजिक हैं. 

संगिशेट्टि श्रीनिवास द्वारा संपादित कहानी संग्रह ‘सुरमौली कथलु’ (सुरमौली की कहानियाँ) में कहानीकार सुरमौली की तेलंगाना की निजी भाषा-शैली में लिखी गई 16 कहानियाँ संकलित हैं. इन कहानियों के माध्यम से उन्होंने तेलंगाना की संस्कृति और जीवन शैली को पाठकों के सम्मुख अत्यंत रोचक ढंग से रखा है. जातिभेद को जड़ से मिटाना ही कहानीकार का मुख्य लक्ष्य है. उन्होंने इसी लक्ष्य को अपनी कहानियों में भी अंकित किया है. इसमें संकलित कहानी ‘रक्त पूजा’ में 1940-50 में घटित तेलंगाना किसान विद्रोह का मार्मिक चित्रण किया गया है. इस संकलन की कहानियों में उन लेखकों पर व्यंग निहित है जिनकी कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अंतर है. 

वेंपटि हेमा के कहानी संग्रह ‘कल्कि कथलु’ (कल्कि की कहानियाँ) में कुल 50 कहानियाँ संकलित हैं. इन कहानियों का कथ्य वैविध्यपूर्ण है. किसानों का जीवन संघर्ष, स्त्री-पुरुष संबंध और समस्याएँ, माता-पिता की संवेदना, वृद्धावस्थाजनित समस्याएँ, बदलते जीवन मूल्य आदि का प्रामाणिक चित्रण इन्हें पठनीय बनाता है. 

एक ओर जहाँ नई नई रचनाएँ सामने आ रही है वहीं दूसरी ओर पुरानी पुस्तकों के नए संस्करण भी सामने आ रहे हैं. इसी क्रम में पाठकों को लोक जीवन के नजदीक लेने जाने वाली ‘करुण कुमार कथलु’ (करुण कुमार की कहानियाँ) का पुनः प्रकाशन किया गया है. 65 वर्ष पूर्व कंदुकूरि अनंतम ने ‘करुण कुमार’ नाम से कहानियों का सृजन किया था. उनकी प्रतिनिधि कहानियों को ‘करुण कुमार कथलु’ नाम से प्रकाशित किया गया है. इनमें संकलित अधिकांश कहानियाँ 1936-50 के बीच लिखी गई कहानियाँ हैं. इन कहानियों के माध्यम से कहानीकार ने लोक जीवन, लोक की मान्यताएँ, लोक विश्वास आदि का चित्रण किया है. साथ ही सामाजिक विसंगतियों और बदलते जीवन मूल्यों पर भी प्रकाश डाला है. 

आज साहित्यकारों के समक्ष एक गंभीर समस्या है. क्योंकि पुस्तक प्रकाशन में काफी कुछ खर्च करना पड़ता है. यदि पुस्तक प्रकाशित भी हो जाए तो उसके वितरण को लेकर समस्या होती है. लेकिन इंटरनेट ने आम रचनाकार को भी विशिष्ट बना दिया है. कहने का आशय है कि न्यू मीडिया के कारण आज हर व्यक्ति ब्लॉग लेखक बन गया है. अपने ब्लॉग पर वह अपनी संवेदनाओं और अनुभूतियों को उकेरता जा रहा है. उसके समक्ष विशाल पाठक वर्ग है. उसकी रचना पर पाठकीय प्रतिक्रिया तुरंत प्राप्त हो जाती है. इसी तरह सत्यसाई कोव्वलि ने अपने ब्लॉग के माध्यम से समाज, संस्कृति, राजनीति, मूल्य ह्रास, गायब होते जा रहे रिश्ते-नाते और मानवीयता जैसे हर समसामायिक विषय पर अपनी संवेदनाओं को व्यक्त किया है. उन निबंधों को उन्होंने संकलित करके ‘नाकु तेलुगु चेसिंदि’ (मेरे लिए तेलुगु ने जो किया) पुस्तकाकार में प्रकाशित किया. 

उत्तर आधुनिक विमर्शों के इस दौर में यों तो कवि और कविता की मृत्यु घोषित हो चुकी है, लेकिन यह वास्तविकता नहीं है. कवि और कविता की मृत्यु हो ही नहीं सकती. संवेदनशील कवियों के कारण ही समाज जीवंत रहता है. एम.एस. सूर्यनारायण की 100 कविताओं का संग्रह ‘शब्दभेदी’ के नाम से प्रकाशित हुआ. मनुष्य और प्रकृति के रागात्मक संबंध इन कविताओं में मुखरित हैं. कवि ने अपनी निजी अनुभूतियों को शब्दबद्ध किया है. बचपन से लेकर अपने जीवन में घटित विभिन्न घटनाओं को उन्होंने शब्द संयोजन के माध्यम से पाठकों के सम्मुख रखा है. इन कविताओं में कहीं-कहीं दार्शनिकता का पुट दिखाई देता है. इसी प्रकार जगद्दात्री ने ‘सहचरणम’ (साहचर्य) नामक कविता संग्रह के माध्यम से साहचर्य में निहित माधुर्य भाव को अभिव्यक्त करने वाली कविताओं का सृजन किया. इन कविताओं में व्यंजित प्रेम वैयक्तिक न होकर वैश्विक है. ‘असंपूर्णा’ (असंपूर्ण) में संकलित राम चंद्रमौली की कविताओं में व्यक्ति के जीवन से संबंधित अधूरी इच्छाओं और आकांक्षाओं को व्यक्त किया गया है. 

शहीदा की कविताओं में एक ओर अनेक क्रांतियों का चित्रण है तो दूसरी ओर क्रांतिकारी नेता का जीवन संघर्ष है. उनके कविता संग्रह ‘ओका माटा, ओका संभाषण’ (एक बात, एक संवाद) में संकलित कविताओं में मिलन, विच्छेद, आपसी बातचीत, अंतहीन संवाद आदि मुखरित हैं. फिर मिलने का वादा करके जाने वाले दोस्त जब हमेशा हमेशा के लिए दुनिया से विदा ले लेते हैं तो उनके परिवार वालों की पीड़ा की अभिव्यक्ति इन कविताओं में निहित है. 

‘गुडिसे गुंडे’ (झोंपड़ी का हृदय) में संकलित डॉ. देवराजु महाराजु की कविताओँ में तेलंगाना क्षेत्र के सामान्य व्यक्ति का सामाजिक जीवन और अस्तित्व का संघर्ष अंकित है. ‘कोत्तसालु’ (नया साल) शीर्षक कविता संग्रह तेलंगाना राजभाषा एवं सांस्कृतिक विभाग द्वारा प्रकाशित है. नवगठित तेलंगाना राज्य में उगादि 2015 (नव संवत्सर) में संपन्न कविसम्मेलन में सुनाई गई कविताओं को इस संग्रह में स्थान दिया गया है. 

तेलुगु साहित्य को जहाँ एक ओर मौलिक सृजनात्मक कृतियाँ समृद्ध कर रही हैं वहीं दूसरी ओर अनूदित साहित्य का भी अपना महत्व है. 120 वर्ष पूर्व आर्मीनिया के रचनाकार होवेनस टुमेनियन द्वारा रचित बाल साहित्य का पी. चिरंजीविनी कुमार ने ‘कथलु-गाथलु’ (कथाएँ-गाथाएँ) शीर्षक से तेलुगु में अनुवाद किया था. 1974 तथा 1982 में प्रगति प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक को 2015 में नवचेतना प्रकाशन, हैदराबाद ने अब पाठकों के लिए पुनः प्रकाशित किया है. इन बाल कहानियों के माध्यम से बालश्रम, बाल शोषण, बच्चों के मानवाधिकार के साथ-साथ आर्मीनिया तथा टर्की के बीच घटित सीमा संघर्ष को भी उजागर किया गया है. 

कन्नड भाषा की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अग्नि’ के संपादक अग्नि श्रीधर द्वारा रचित लघु उपन्यास ‘येदगरिके’ (साहस) का तेलुगु में सृजन ने ‘तेगिंपु’ (साहस) शीर्षक से सरल और सुबोध भाषा में अनुवाद किया है. यह लघु उपन्यास सत्य घटना पर आधारित है. दो प्रमुख पात्रों के माध्यम से लेखक ने बहुत ही रोमांचक ढंग से आदि से अंत तक पाठकों को जिज्ञासा में बाँध कर रखने में सफलता प्राप्त की कि कब, किसकी और कैसे हत्या होगी? 

‘अंधकारमपै सम्मेटा देब्बा’ (अंधेरगर्दी पर करारी चोट) रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के हिंदी कहानी संग्रह ‘टूटते दायरे’ का तेलुगु अनुवाद है. इस संग्रह में कुल 17 कहानियाँ संकलित हैं जो सामाजिक विसंगतियों एवं विद्रूपताओं पर करारी चोट करती हैं तथा मानवाधिकारों के प्रति जनता को सचेत करती हैं. 

इस प्रकार वर्ष 2015 तेलुगु साहित्य की विभिन्न विधाओं के लिए पर्याप्त उर्वर रहा. इस वर्ष में प्रकाशित विभिन्न विधाओं की कृतियों का उपर्युक्त विवेचन पर समझने के लिए काफी है कि समकालीन साहित्यकार यथार्थ के प्रति संकल्पबद्ध हैं तथा समकालीन साहित्य अपनी प्रकृति में विमर्शपरक और आंदोलनात्मक चरित्रवाला है. 

संदर्भ 

  1. तेलुगु भाषा साहित्य दर्पणम : रूपालु, प्रक्रियलु, धोरणुलु (तेलुगु भाषा साहित्य दर्पण : रूप, प्रक्रिया, प्रवृत्तियाँ)/ आलोचना/ डॉ. दहगाम साम्बमूर्ति/ पृष्ठ : 392/ मूल्य : ₹ 375/ वितरक : नील कमल डिस्ट्रीब्यूटर्स, हैदराबाद 
  2. जानपद साहित्यम : आधुनिक स्पृहा (लोक साहित्य : आधुनिक चेतना)/ लोक साहित्य/ देवाराजु महाराजु/ 2015/ पृष्ठ 102/ मूल्य : ₹ 90 
  3. दलित साहित्यम नेपथ्यम (दलित साहित्य की पृष्ठभूमि)/ आलोचना/ डॉ. एस.वी. सत्यनारायण/ नवचेतना प्रकाशन, हैदराबाद/ पृष्ठ : 80/ मूल्य : ₹ 50 
  4. दलित साहित्यवादम : जाषुवा/ आलोचना/ डॉ. कत्ति पद्मारव/ पृष्ठ : 176/ मूल्य : ₹ 100/ वितरक : प्रजाशक्ति पब्लिशिंग हाउस, हैदराबाद 
  5. वार्धक्यम : वरमा? शापमा? (वार्धक्य : वरदान है या अभिशाप)/ आलोचना/ डॉ. गुरजाडा शोभा पेरिंदेवी/ पृष्ठ : 104/ मूल्य : ₹ 100 
  6. जाषुवा साहित्यम : द्रुकपथम – परिणामम (जाषुवा का साहित्य : परिप्रेक्ष्य और विकास)/ आलोचना/ डॉ. येंड्लूरि सुधाकर/ पृष्ठ : 168/ मूल्य : ₹ 100/ वितरक : प्रजाशक्ति पब्लिशिंग हाउस, हैदराबाद 
  7. महाकवि जाषुवा : प्रगतिशीलता-कलात्मकता (महाकवि जाषुवा : प्रगतिशीलता एवं कलात्मकता)/ आलोचना/ डॉ. अद्देपल्लि राममोहन राव/ पृष्ठ : 64/ मूल्य : ₹ 40/ वितरक : प्रजाशक्ति पब्लिशिंग हाउस, हैदराबाद 
  8. जाषुवा स्नेहम-संदेशम (जाषुवा का स्नेह और संदेश)/ आलोचना/ डॉ. राचपालेम चंद्रशेखर रेड्डी/ पृष्ठ : 72/ मूल्य : ₹ 45/ वितरक : प्रजाशक्ति पब्लिशिंग हाउस, हैदराबाद 
  9. बौद्धम : इप्पटिकी अवसरमा? (बौद्ध धर्म : आज भी आवश्यक है?)/ आलोचना/ बोर्रा गोवर्धन/ पृष्ठ : 291/ मूल्य : ₹ 150 
  10. नूरेल्ला तेलुगु नवला (1878-1977) {सौ वर्ष का तेलुगु उपन्यास}/ आलोचना/ सहवासी/ पृष्ठ : 240/ मूल्य : ₹ 140/ वितरक : नवोदया बुक हाउस, हैदराबाद 
  11. ओका नाजिया कोसम (नाजिया के लिए)/ उपन्यास/ नागेश बीररेड्डी/ पृष्ठ : 207/ मूल्य : ₹ 150/ प्रकाशक : वासीरेड्डी पब्लिकेशंस, हैदराबाद 
  12. अमूल्या/ कहानी संग्रह/ के. सुभाषिणी/ पृष्ठ : 192/ मूल्य : ₹ 100 
  13. कथा-2014/ कहानी संग्रह/ (सं) वासिरेड्डी नवीन, पापिनेनि शिवशंकर/ पृष्ठ : 197/ मूल्य : ₹ 65/ कथा साहिती प्रकाशन 
  14. कथला पंटा-3 (कहानियों का फसल)/ कहानी संग्रह/ वीरसम प्रकाशन, हैदराबाद/ पृष्ठ 232/ मूल्य : ₹ 120 
  15. मा ऊरू चेप्पिंदि (गाँव ने कहा)/ कहानी संग्रह/ प्रशांत विघ्नेश / पृष्ठ : 150/ मूल्य : ₹ 180 
  16. सुरमौली कथलु (सुरमौली की कहानियाँ)/ कहानी संग्रह/ (सं) संगिशेट्टि श्रीनिवास/ नवोदया पब्लिशिंग हाउस, हैदराबाद/ पृष्ठ : 172/ मूल्य : ₹ 100 
  17. कल्कि कथलु (कल्कि की कहानियाँ)/ कहानी संग्रह/ वेंपटि हेमा/ पृष्ठ : 648/ मूल्य : ₹ 300/ प्रकाशक : वंगूरी फाउंडेशन ऑफ अमेरिका/ वितरक : नवोदया पब्लिशिंग हाउस, हैदराबाद 
  18. करुण कुमार कथलु (करुण कुमार की कहानियाँ)/ कहानी संग्रह/ करुण कुमार/ पृष्ठ : 278/ मूल्य : ₹ 125/ वितरक : विशालंध्र पब्लिशिंग हाउस, विजयवाडा 
  19. नाकु तेलुगु चेसिंदि (मेरे लिए तेलुगु ने जो किया)/ निबन्ध संग्रह/ सत्यसाई कोव्वलि/ पृष्ठ : 223/ मूल्य : ₹ 120 
  20. शब्दभेदी/ कविता संग्रह/ एम.एस. सूर्यनारायण/ पृष्ठ 183/ मूल्य : ₹ 100/ वितरक : एम.रत्नमाला, आदित्य कुटीर, पोदलाडा – 533 242 
  21. सहचरणम (साहचर्य)/ कविता संग्रह/ जगद्दात्री/ पृष्ठ : 154/ मूल्य : ₹ 150 
  22. असंपूर्णा (असंपूर्ण)/ कविता संग्रह/ राम चंद्रमौली/ पृष्ठ : 120/ मूल्य : ₹ 100/ प्रकाशक : सृजन लोकम 
  23. ओका माटा, ओका संभाषण (एक बात, एक संवाद)/ कविता संग्रह/ शहीदा/ पृष्ठ : 144/ मूल्य : ₹ 75 
  24. गुडिसे गुंडे (झोंपड़ी का हृदय)/ कविता संग्रह/ डॉ. देवराजु महाराजु/ पृष्ठ : 66/ मूल्य : ₹ 60 
  25. कोत्तासालु (नया साल)/ कविता संग्रह/ (सं) मामिडी हरिकृष्ण/ पृष्ठ : 182/ तेलंगाना राज्य भाषा एवं सांस्कृतिक शाखा 
  26. कथलु-गाथलु (कथाएँ-गाथाएँ)/ बाल कहानियाँ/ मूल : होवेनस टुमेनियन (आर्मीनिया); अनुवाद : पी. चिरंजीविनी कुमार/ पृष्ठ : 92/ मूल्य : ₹ 60/ नवचेतना प्रकाशन, हैदराबाद 
  27. तेगिंपु (साहस)/ लघु उपन्यास/ मूल : येदगरिके : अग्नि श्रीधर (कन्नड); अनुवाद : सृजन/ पृष्ठ : 60/ मूल्य : ₹ 70/ एन बी टी 
  28. अंधकारमपै सम्मेटा देब्बा (अंधेरगर्दी पर करारी चोट)/ कहानी संग्रह/ मूल : टूटते दायरे : रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ (हिंदी); अनुवाद : गुर्रमकोंडा नीरजा/ 2015/ पृष्ठ : 142/ मूल्य : ₹ 250/ श्रीसाहिती प्रकाशन, हैदराबाद

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

Telugu sahitya ki etihas