साइबर दुनिया की सबसे और जटिल समस्या है साइबर अपराध। मूल रूप से यह अवैध और जघन्य कार्य है। इसमें कंप्यूटर या तो उपकरण है या फिर लक्ष्य। इंटरनेट क्रांति के कारण हम आसानी से दुनिया भर से सूचनाएँ एक क्लिक में प्राप्त कर पा रहे हैं। इससे अनेक लाभ उठा सकते हैं, लेकिन मनुष्य का मस्तिष्क इतना विकृत हो चुका है कि वह साइबर पोर्नोग्राफ़ी, साइबर स्टाकिंग, ईमेल बम विस्फोट, वायरस अटैक, वेब जैकिंग आदि अपराध के लिए कंप्यूटर और इंटरनेट का दुरुपयोग कर रहा है। ये सब तो अपनी जगह है ही, पर साइबर दुनिया का उपयोग बाल शोषण के लिए किया जा रहा है। एक ओर अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस, बाल दिवस, विश्व बालश्रम विरोधी दिवस, बाल अधिकार दिवस, बाल सुरक्षा दिवस आदि मनाए जा रहे हैं और दूसरी ओर बच्चों का शोषण किया जा रहा है।
बाल शोषण अक्षम्य अपराध है। बाल मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने के लिए अनेक कानून हैं। फिर भी समाज से बाल शोषण को मिटाना असंभव हो रहा है। हर दिन बच्चों के खिलाफ हो रहे अपराध सामने आ रहे हैं। महिला और बाल विकास मंत्रालय ने बच्चों का सर्वेक्षण करवाया था। 53 प्रतिशत बच्चों ने कहा कि वे किसी न किसी रूप से यौन शोषण के शिकार हुए हैं। उस अध्ययन से यह भी पता चला कि पाँच से 12 वर्ष तक की उम्र के छोटे बच्चे सबसे अधिक शिकार होते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार बाल यौन शोषण संरक्षण कानून (पोक्सो) के तहत जहाँ वर्ष 2017 में 32,608 मामले दर्ज किए गए वहीं 2018 में इस कानून के तहत 39,827 मामले दर्ज किए गए। जब कि 2019 में 1,28,531 मामले दर्ज हुए। इससे यह स्पष्ट है कि कोरोना महामारी के समय बच्चों का शोषण दर बढ़ गया। बाल अधिकार संगठन ने कहा कि “हालांकि बच्चों के खिलाफ अपराधों की कुल संख्या में गिरावट आई है, लेकिन बाल विवाहों के मामलों में 50 प्रतिशत इजाफा हुआ है जबकि एक वर्ष में ऑनलाइन दुर्व्यवहार के मामलों में 400 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।” चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) की प्रीति महारा का कहना है कि यह चिंता का विषय तो है ही, पर लोग इसके बारे में सूचनाएँ दे रहे हैं जिससे एक सकारात्मक बात सामने आती है कि लोगों का कानून में विश्वास बढ़ रहा है।
साइबर शोषण सर्वसाधारण बात नहीं है, बल्कि चिंता का विषय है। जब प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से ऐसी खबरें सामने आती हैं तो एक क्षण के लिए हम सब संवेदनशील हो जाते हैं लेकिन अगले ही क्षण उसे भूल भी जाते हैं।
बच्चों के खिलाफ अपराध कोई नई बात नहीं है। फर्क बस इतना ही है कि आज यह बात सामने आ रही है। यह भी निर्विवाद सच है कि इस समाज में ऐसे अनेक माता-पिता हैं जो अपने बच्चों के साथ हुए शोषण को अनदेखा करते हैं या फिर दबा देते हैं। आजकल ऑनलाइन के माध्यम से ही पढ़ाई हो रही है। अतः बच्चों को साइबर अपराध के प्रति जागरूक करना आवश्यक है। इसीलिए एनसीआरटी के द्वारा साइबर जागृति दिवस के तहत सभी स्कूली बच्चों को जागरूक करने के लिए अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। यह सिर्फ बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि अभिभावकों के लिए भी आवश्यक है।
शिक्षाविद या समाज सेवी ही नहीं बल्कि संवेदनशील साहित्यकारों ने भी इस ओर ध्यान दिया है। नासिरा शर्मा का लघु उपन्यास ‘शब्द पखेरू’ यह आगाह करता है कि नई पीढ़ी अनजाने में साइबर क्राइम का हिस्सा बन सकती है। इस उपन्यास की नायिका शैलजा अनजाने में फ़ेसबुक दोस्त के कारण साइबर अपराध में फंस जाती है। नासिरा शर्मा ने इस उपन्यास के माध्यम से सबको आगाह किया है कि यदि हम जागरूक हों तो बढ़ते साइबर अपराध से अपने आपको बचा सकते हैं। प्रो. त्रिवेणी सिंह (आईपीएस) और अमित दुबे की पुस्तक ‘अदृश्य जाल’ (2021) में संकलित कहानियाँ साइबर क्राइम की सच्ची घटनाओं पर आधारित हैं। कहानिकारों ने स्पष्ट किया है कि यह पुस्तक एक प्रयास है “अधिक-से-अधिक लोगों को जागरूक करने और ऑनलाइन की दुनिया के बढ़ते खतरों से बचाने के लिए। इसलिए इस पुस्तक की बिक्री से अर्जित पूँजी रूट 64 फाउंडेशन (root64.in) नामक संस्था को दी जाएगी, जो कि इस साइबर क्राइम के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के साथ-साथ पुलिस और दूसरी लॉ एंफोर्समेंट एजेंसी को ट्रेनिंग देना काम करती है।”
बच्चों को एक सुरक्षित वातावरण देने के बजाय हम शोषणपूर्ण परिवेश दे रहे हैं। बच्चों पर ही कल आधारित है। अतः यह प्रत्येक नागरिक कर्तव्य है कि बच्चों को हर तरह के अपराधों के प्रति जागरूक करें। इसके लिए अभियान चलाना होगा। उन्हें स्वस्थ समाज देना होगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें