शुक्रवार, 1 मई 2009

फ़रिश्ते का आश्वासन

नदिया के इस पार मैं
प्रिय ! तुम थे उस पार ;
आए , मन के गाँव में
सुनकर प्रेम पुकार ।
नीर बहाते ही गए
कितने ही दिन - रैन ,
इतने दिन के बाद में
सुन पाए तुम बैन ।
यह फल - फूली वाटिका
यह सपनों की झूल ;
जीवन भर के साथ को
हाय ! गए क्यों भूल ?
ये उपवन , ये डालियाँ
ये कलियाँ , ये शूल ;
बचपन के ये मीत हैं
इन्हें न जाना भूल !
पंछी , परदेसी नहीं
कभी किसी के मीत ;
इसी बात को मानकर
तोड़ गए यह प्रीत !
सुख के दिन हैं फूल से
दुःख के दिन हैं शूल ;
सुख - दुःख में हम साथ हैं
इसे न जाना भूल ।

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