गुरुवार, 28 मई 2009

उड़ती परियां

रंग बिरंगे पंखोंवाली
ओ मनभावन तितली!
किन कलियों की गलियों में
तू अपना रूप लुटाने निकली?

ओ बसंत की रानी तितली !
रंग बोलती तेरी भाषा ;
तेरे साथ थिरकती रहती
सबके मन की मंजुल आशा।

रंग मखमली, अंग पवन सा,
कली - कली की सगी सहेली;
ओ तितली! तू लगती सुंदर
परियों जैसी एक पहेली।

परी लोक की, परी भूमि पर
तितली बनकर आई;
धरती की बगिया में गाती, तू
चुपचाप बधाई।

किन कलियों का रस पीकर,
यह प्यारी छवि तूने पायी;
किरणों की है झूल सुनहरी, उस पर
लेती है अंगडाई ।

तितली! तुझसे स्वर्ग बन गई
धरती की फुलवारी;
तेरे पंखों पर यह किसकी
सरस कसीदाकारी?

जग को दिखलाती फिरती तू
इन मोहक रंगों की माया;
ओ तितली! किस चित्रकार ने
तेरा सुंदर रूप बनाया?

इस धरती की परी मनोहर
तेरे पर अलबेले;
बिन बोले ही सुलझा देती
जग के जटिल झमेले।




2 टिप्‍पणियां:

श्यामल सुमन ने कहा…

रंग मखमली, अंग पवन सा,
कली - कली की सगी सहेली;
ओ तितली! तू लगती सुंदर
परियों जैसी एक पहेली।

वाह। मनभावन पंक्तियाँ। सुन्दर प्रतीक।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

साहित्य और समीक्षा डॉ. विजय शिंदे ने कहा…

प्रकृति के एक खूबसूरत छोटे जीव पर बहुत अच्छी कविता। आजकल प्रकृति पर किए जा रहे हमलों में इस छोटे जीव का अस्तित्व अगर बना रहा तो आदमी के साथ प्रकृति जरूर बचेगी। अपेक्षा आपके कविता की और 'उडती परियों'खूबसूरती बनी रहें।