बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

शर्म करो, मुख्यमंत्री

तेलुगु मूल : कालोजी नारायण राव 

अनुवाद : गुर्रमकोंडा नीरजा 

राज्यों के विभाजन के लिए
संविधान राजी है
राज्यों के विभाजन के लिए
रीति-नीति कायम है.

राज्यों के विभाजन के लिए
जनमत का समर्थन है
राज्यों के विभाजन के लिए
पूरी तैयारी है.

राज्यों के विभाजन के लिए
प्रजाशक्ति का रास्ता है
राज्यों के विभाजन के लिए
पार्लियामेंट का समर्थन है

तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरु की
स्वीकृति है
तत्कालीन मुख्य मंत्रियों की
स्वीकृति है

तत्कालीन अखिल भारतीय कांग्रेस अध्यक्षों की
स्वीकृति है
तत्कालीन निजलिंगप्पा की
स्वीकृति है

राज्यों को विभाजित करने पर
यदि कोई कहे कि
भारत की एकता भंग होगी
तो वह सरासर झूठ है

जनता को ठगते हैं
गिरोह के बलबूते पर गिद्ध;
राज्यों के विभाजन के लिए समझौता करके
‘फज़ल अली’ कमीशन लागू करने की
जिम्मेदारी को भूलकर
आज केंद्र सरकार
किलकारी मार रही है

‘अलग तेलंगाना
दक्षिण पाकिस्तान’
कह रहे हैं एक महाकवि
पाप शांत हो,
तेलंगाना विभाजन को
‘आत्महत्या सदृश’
बता रहे मुख्यमंत्री महोदय.

लंबी पगड़ी बाँधकर
प्रदेश में उग रही
विभाजन-विरोधी पार्टियाँ
(‘पार्टीव्रत’ है उनका)
इसलिए
अलग तेलंगाना का
का प्रश्न ही नहीं उठता -
कहती हैं प्रधानमंत्री ‘श्रीमती’ इंदिरा
नेहरु की लाडली
‘इंदिरा प्रियदर्शिनी’

प्रदेश में उग रही पार्टियों से
प्रधानमंत्री को
बहुत लगाव है
कितने सालों के बाद? कितने सालों के बाद?
पिता के पत्रों में पुत्री के नाम
कही गई बातें
विश्व इतिहास की झलक
भूल रही हैं समय के साथ
प्रधानमंत्री पद को शाश्वत समझ
लालची हो रही हैं
गुटबंदी की बंदिनी हो
डींगें हाँक रही हैं
एक देश एक दल
विवाद की ओर श्रद्धा से
दल को देश मान
हौवा खड़ा कर रही हैं.

प्रजातंत्र के लक्षण को
दरकिनार कर चल रही हैं
आंध्र के मुख्यमंत्री के धमकाने पर
घबराकर झुक जाती हैं

केंद्रीय मंत्री परिषद में
‘कैबिनेट रैंक’ है शान,
दो बैलों की जोड़ी के चुनाव चिह्न को
ए.पी., एम.पी. में से
किसी ने भी नहीं वोट दिया तो देख लेना -
कहते हैं ब्रह्मानंद
दल के दादा के समान
है वह मुख्यमंत्री – शर्म की बात है.

लोकतंत्र का संविधान
खंड खंड होने पर
किस सूत्र का अनुसरण करें?
किस संहिता का अनुकरण करें?

केंद्रीय मंत्री परिषद में
दो बैलों की जोड़ी के चुनाव चिह्न से
ए.पी., एम.पी. में से
कोई नहीं है तो
राज्य को न्याय नहीं मिलेगा
कर रहा है आरोप ब्रह्मानंद;
प्रजातंत्र का संविधान
किस सूत्र का अनुकरण करे?

केंद्रीय मंत्री परिषद में
शामिल होकर पूजनीय बन गए हैं
महामहिम, महनीय
समस्त भारतवर्ष की मंगलकामना न करके
सोचने के लिए मौक़ा दे रही है सरकार
कि प्रांत के आधार पर पक्षपात है.

लोकतंत्र का संविधान
भ्रष्ट है या नहीं ?

प्रादेशिक पार्टियाँ
(दो बैलों की जोड़ी के चुनाव चिह्न के अलावा)
बड़ी शान से
चला रही हैं शासन, ब्रह्मानंद !
‘शांति सुरक्षा’ कायम
न करने वालों को
प्रांतों की रक्षा न करने वालों को
न्याय पालन न करने वालों को
एक क्षण के लिए भी
गद्दी पर बैठने का हक नहीं.
अयोग्य घोषित करने वाले
अविश्वास प्रस्तावों को
गंभीरता से क्यों नहीं ले रहे हो?
आंध्रप्रदेश राज्य का गठन हुए
पुष्कर बीत गया,
कल ही तो
‘विवाह निमंत्रण’ के नाम पर प्रधानमंत्री ने
तिरुमल गिरि का आरोहण कर
तेलंगाना की जनता की बातों को
फुरसत से सुनकर
ब्रहमानंद को बुलाकर
पूछताछ की
‘तेलंगाना पहले की तरह
पिछड़ी हुई दुःस्थिति में
क्यों है? क्यों है जी?’

सुनते ही जल्दी जल्दी
मुख्यमंत्री ब्रह्मानंद ने कहा
‘पता चला, अब पता चला
प्रधानमंत्री के कहने पर कि
तेलंगाना पिछड़ी हुई
दुःस्थिति में है –

अब से निश्चित रूप से
आंध्रप्रदेश राज्य विधान
तेलंगाना की अभिवृद्धि के
अनुरूप होगा.’

कितनी दूरदृष्टि, दया?
कितनी ईमानदारी, सचाई
कितना भोलापन, ममता
कितनी राजनीति, समता?

* मेरी आवाज (पद्मविभूषण डॉ. कालोजी नारायण राव की चयनित कविताएँ)/ 2013/ आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद/ पृ. 117

इस देश की क्या दशा

तेलुगु मूल : कालोजी नारायण राव 
अनुवाद : गुर्रमकोंडा नीरजा 

इस देश की क्या दशा है
सबके दिमाग को क्या हुआ
प्रजातंत्र का संवैधानिक
प्रशासन क्या यही है ?

एमपी का प्रिविलेज है यह
इंदिरा की नीति और न्याय है यह
सम्माननीय हैं सब
गणपति गुणरहित

खुद मुर्गियों को निगलकर
शिष्यों को अंडों से दूर रख रहे हैं.
पार्टी नेताओं को, जनसाधारण को
एमपी को, एमएलए को
कितना भरोसा कितना भरोसा
इंदिरा पर कितना भरोसा

क्या कहा इंदिरा ने आखिर
अभी तक ‘नार्मल्सी’ नहीं आई
‘नार्मल्सी’ आ गई है
उन्हें तो इस बात पर यकीन ही नहीं है.

उनके विश्वास को जनता में
स्थान मिला ही नहीं
समग्रवादी दुस्साहसी हैं
अपने अपने प्रांतों में जाकर
पाँचसूत्री क्रायक्रम को
फैलाने के लिए समय चाहिए.

प्रतिपक्ष के साथ मिलकर
घोषित किया गया जनमत तो
सबके लिए गलत और जोखिम भरा हुआ ही
होगा न.

अगले चुनाव तक
देश में कुछ भी हो
जीती हुई पार्टी की नेता
जो चाहे, वही होगा.

प्रतिपक्ष का क्या मत है
पार्लियामेंट के पिंजरे में
उसी की हवा है
पार्टी के नेता तो तोते हैं
जो कहा जाता है वही बोलते हैं.

‘गरीबी हटाओ’ का नारा
वोट फँसाने का चारा है
अगले चुनाव तक
झेलना ही पडेगा.

उनके शासन के तीन वर्ष
पूरे होने के दिन तक
प्रतिपक्ष ज़िंदा रहता तो
तब भी रस्साकशी

इसीलिए तो उनकी हर बात
न्याय बन गई, उपचार भी
परिवर्तन, योगदान और रद्द करने का
मंत्र तंत्र भी

कांग्रेसी पार्टीव्रती हैं
अन्य दलों के सदस्य केवल सदस्य
‘एक देश एक दल
एक ही नेता’ है कांग्रेस का नारा.

प्रतिपक्ष के जन-आंदोलन की
योजना को कुचल दिया
भुजबल से, धनबल से
बहुत कुछ को वश में कर लिया.

बांग्लादेश में याहिया खान द्वारा
खुल्लमखुल्ला अपनाए गए
मार्शल लॉ के हथियार को ही
छद्म रूप से प्रयोग किया.
मीठे मीठे नारों के
शहद का लेप लगाया इंदिरा ने;
सूखे और अकाल के लिए तो
जिम्मेदार भगवान है.
करोड़ों लोगों की पुकार को
बना दिया असामाजिक तत्वों का आंदोलन
प्रगति मार्ग का व्यवधान
प्रतिपक्ष का कुचक्र.

मुखिया है विषनाग
जिसके फन में विष है.
भूमिगत दल बन गए
राइट रिएक्शन का षड्यंत्र.
लेफ्ट एडवेंचरिज्म
बुराई का नटखट व्यवहार.

कांग्रेस, सी पी आई
के सिवा और कौन !
हृदय से देश की भलाई
चाहने वाले देशीय और कौन !!

दोनों के आलिंगन बद्ध होने पर
कही गई बात एक है
अपने अपने दल में
शामिल होकर कही जाने वाली बात और एक है.

प्रस्ताव और वार्तालाप
तरीका एक है, बात और एक है
राग, ताल, पल्लवी
का लक्षण एक, रस और एक है.

देश दोगली निष्ठा के लिए है क्या
देश एकनिष्ठता का है
पार्टी के नाम पर दोगली निष्ठा
पालने का व्रत और एक है;
एक देश एक दल
एक नेता एक नारा.

सत्तारूढ़ दल के
हाथों में है देश,
दल की शक्ति
दल की नेता के हाथों में.
नेता का अर्थ है सर्वशक्तिमान
नेता का अर्थ है भगवान
नेता के संकल्प को साकार करने को
तैयार है पूरा दल.

प्रचलन में जो सिक्का है
उसकी ताकत और कीमत की कमी नहीं
सी पी आई और कांग्रेस
सिक्के के दो पहलू हैं.

बाकी सब कुछ हैं बेकार
गिनती में न आने वाले सिक्के.
आज का महाभारत है
कौरव सभा का वर्णन है.

भीष्माचार्य, द्रोण,
शकुनि, दुःशासन,
कर्ण, अश्वत्थामा,
कृपाचार्य और जयद्रथ.
राष्ट्रपति धृतराष्ट्र हैं.
भव्य, बहुत भव्य लोग हैं.
बलवान बहुत बलवान हैं.
गौरव सभा का वर्णन है
यह आज का महाभारत है
इंदिरा दरबार की शान है.

* मेरी आवाज (पद्मविभूषण डॉ. कालोजी नारायण राव की चयनित कविताएँ)/ 2013/ आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद/ पृ. 117

बीस सूत्रों की दांडी यात्रा

तेलुगु मूल : कालोजी नारायण राव 
अनुवाद : गुर्रमकोंडा नीरजा 


बीस सूत्रों की दांडी;
इंदिरा की योजनाओं के लिए
मुख्यमंत्री कठपुतलियों के समान
कह रहे हैं - हाँ, शाबाश
हम अमल में लाएँगे.
दीन जन के उद्धार के
संकल्प के लिए
प्रधानमंत्री गांधी के घोषित
सूत्र कहाँ तक
लागू होंगे?
देखेंगे इंतजार करके
सरकार द्वारा प्रारंभ किए गए
समृद्धि के सूत्र
लागू होने में
बाधक प्रतिपक्ष के
‘नियंत्रण’ में रहते ही
दीन जन का उद्धार हो गया
तो प्रसन्नता की बात है.
जयप्रकाश भी संतोषपूर्वक
रह सकते हैं डिटेंशन में
प्रतिपक्ष के शिकार होने पर भी,
भारत में हो
दीन जन का उद्धार
अच्छी बात है.

झूठ होने पर भी
प्रतिपक्ष द्वारा व्यवधान की
अपनी बात को साबित करेंगी !
दीन जन का उद्धार
कर दिखाएँ.
इंदिरा इस बार
ऐसा न कर पाईं तो
उनकी सब बातें झूठी हो जाएँगी
उनका खेल नाटक बन जाएगा
इंदिरा के भक्तों को बहुत कष्ट होगा
फिर भी उस दिन तक
भ्रम में रहने वाले सब
जाग जाएँ तो अच्छा हो.

उस दिन की इमर्जेंसी
इंदिरा को भी
सहारा नहीं दे पाई.
गद्दी से लात मारकर
जनता नीचे नहीं उतारेगी क्या !
तनिक ठहर कर देखो तो सही
होगा क्या !
सुप्रीम कोर्ट में अपील का फैसला
आएगा इस बीच
तब क्या कहेंगी इंदिरा;
देखेंगे ज़रा;
सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी
इलाहाबाद हाईकोर्ट की तरह हो तो
सेंट्रल कैबिनेट में प्रवेश करेंगे
वी.पी.राजु, मर्रि, डीपी मिश्रा - सब,
भ्रष्टाचार के उपाधिधारी ही
हमारी केंद्र सरकार के
मंत्री मंडल में शामिल होने के
काबिल होंगे !

(4.7.75 : इंदिरा गांधी द्वारा इमर्जेंसी को दीन जन के उद्धार का कार्यक्रम बताने पर प्रतिक्रयास्वरूप रचित)

* मेरी आवाज (पद्मविभूषण डॉ. कालोजी नारायण राव की चयनित कविताएँ)/ 2013/ आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद/ पृ. 169

झूठी प्रशंसा

तेलुगु मूल : कालोजी नारायण राव 
अनुवाद : गुर्रमकोंडा नीरजा 

अहो भाग्य
भाग्य का क्या, कुछ भी लिखा जा सकता है
आँय-बाँय बोले तो आँय-बाँय
कितना भी गा सकते हैं.

युद्ध से बहुत दूर
उत्तर कुमार की प्रज्ञाएँ.
विप्लव के लिए हो या सर्वोदय के लिए
दृढ़ हृदय चाहिए.
कदम कदम पर हैं
तलवारों के पुल.
जिस तरफ भी कदम रखो योद्धा ही योद्धा हैं
डर के मारे स्तंभित हो गए
अहो भाग्य !
भाग्य का क्या, कुछ भी लिखा जा सकता है
आँय-बाँय बोले तो आँय-बाँय
कितना भी गा सकते हैं.

चबूतरे पर बैठकर
प्रशस्ति गाइए या निंदा कीजिए
कलम की लच्छेदार कविता
सबको वश में कर सकती है
गांधी के लिए हो या माओ के लिए
झूठी प्रशंसा तो झूठी प्रशंसा ही है
झूठी प्रशंसा से तारे जमीन पर नहीं आते
स्तुति-गायन से इमली तक नहीं गिरती.
परिस्थितियों की आड़ में
अपने सच्चे जीवन क्षेत्र में
नित्य गुलाम रहकर
तरह तरह की घास चबाकर
तलुवे चाटकर
बापू ! बापू ! कहो
माओ ! माओ ! कहो
सर्वोदय कहो
विप्लव कहो
क्रोध क्रोध कहो
शांति कहो या क्रांति
भूसी फटकने से भी
आसान है प्रशंसा करना.
अहो भाग्य !
भाग्य का क्या, कुछ भी लिखा जा सकता है !

तुम्हारा निमंत्रण मिला –
मुझे बुलाया
तुम्हारे स्थान पर,
तुम्हारी सलाह मानी,
मुझे वह करने के लिए कहा
जो तुम करते हो
यह कैसी दुविधा !
निरर्थक निमंत्रण, सलाह !
दोनों एक ही स्थान पर हैं
कुछ भी नहीं कर रहे हैं
अहो भाग्य !
भाग्य का क्या, कुछ भी लिखा जा सकता है !

(1971 : मित्र मंडली के ‘विप्लव गीत’ पर परिचर्चा की प्रतिक्रयास्वरूप रचित)

* मेरी आवाज (पद्मविभूषण डॉ. कालोजी नारायण राव की चयनित कविताएँ)/ 2013/ आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद/ पृ. 147

मुझे क्या हुआ?


तेलुगु मूल : कालोजी नारायण राव 
अनुवाद : गुर्रमकोंडा नीरजा 

क्या हुआ? मुझे क्या हुआ?
अत्याचार को देशीय समझ
दया की क्या मैंने?
अंग्रेजों का विरोध कर
काले लोगों की सेवा करना
किसलिए? क्या हुआ?
मुझे क्या हुआ?
उस समय के रजाकारों को
मिटाने की तरह मैं
आज के रजाकारों का
‘नायक’ बन आया हूँ
क्यों? क्या हुआ? मुझे क्या हुआ?
हृदय बकरी, चित्त लोमड़ी,
मन भेडिया.
कुत्ते की तरह जी रहा हूँ
क्यों? मुझे क्या हुआ?
इससे भला
कोई और पशु होता
तो अच्छा होता.

(1974 : सत्तालोलुप राजनीति से समझौता करने वाले सवतंत्रता सेनानियों को देख कर दुःख से रचित)

* मेरी आवाज (पद्मविभूषण डॉ. कालोजी नारायण राव की चयनित कविताएँ)/ 2013/ आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद/ पृ. 153

वोटों का क्या कहना

तेलुगु मूल : कालोजी नारायण राव 
अनुवाद : गुर्रमकोंडा नीरजा 

कहाँ कहाँ घूमे? क्या क्या किया?
कितने बरसों बाद घर वापस लौटे?
बहुत चालाकी से अपने हिस्से को स्वाहा कर
पुराना उधार चुकाने के वक्त भाग खड़े हुए क्या?
चोरी के माल को चोरी से बेचकर
नकदी अपनी पत्नी के नाम जमा कर ली क्या?
हाथ में कौड़ी नहीं, बस में चढ़ने की औकात नहीं
कारों में घूमनेवाली चमेली तुम्हारे पास कैसे?
भूल गई जनता – अब कैसा डर,
यह सोच तुम आज उम्मीदवार बन प्रकट हो गए?
ठगे गए थे कल – ठगे जाएँगे न आज
हर बार तुम्हारा खेल नहीं चलेगा.
दुष्कर्मी! वोटों का क्या कहना
जूतों की, लातों की कमी नहीं रहेगी!

(1949 : हैदराबाद पुलिस एक्शन के बाद स्टेट कांग्रेस के संस्थागत चुनाव के समय अपराधी तत्वों द्वारा चुनाव लड़ने के संदर्भ में रचित)

* मेरी आवाज (पद्मविभूषण डॉ. कालोजी नारायण राव की चयनित कविताएँ)/ 2013/ आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद/ पृ. 138

साजिश

तेलुगु मूल : कालोजी नारायण राव 
अनुवाद : गुर्रमकोंडा नीरजा 

चालीस लोगों ने या चार नक्सलियों ने
अत्यंत गोपनीय ढंग से
रची साजिश,
असल में भूमिगत – प्रकट में रहस्य !
साजिश !
प्रधानमंत्री इंदिरा की सरकार को
जड़ से उखाड़ फेंकने की साजिश!
सरेआम सशस्त्र संघर्ष चलाने की साजिश!
फिर भी गाय-बछड़े की सरकार के
जासूसों ने सूँघ ही लिया
षड्यंत्र.
दर्ज किया कोर्ट में केस
गवाह हैं पाँच सौ;
पाँच सौ गवाहों के समक्ष
रहस्यमय साजिश !
भयंकर खतरनाक साजिश !
पाँच सौ गवाह;
कैसी साजिश ! सरकारी साजिश
झूठे मुक़दमे की सुनवाई
चल सकती है कोर्ट में चार-पाँच सालों तक.
मृत्युदंड या उम्रकैद की धाराओं के तहत
दोष का अभियोग.
क्या कुछ लोगों को हो नहीं सकती फाँसी –
और कुछ को उम्रकैद की सजा –
बाकी के बरी हो जाने पर भी
धाराओं के तहत चार पाँच बरस का कारावास तो तय है.
भयंकर साजिश – सरकारी साजिश का मुकदमा
प्रजाहित के लिए – साजिश !
श्रेष्ठ राज्य के लिए – साजिश !!

(1973 : प्रगतिशील रचनाकार वरवरराव और कुछ अन्य लोगों के खिलाफ सरकार द्वारा ‘सिकंदराबाद का झूठा मुकदमा’ दर्ज किए जाने की प्रतिक्रिया में रचित)

* मेरी आवाज (पद्मविभूषण डॉ. कालोजी नारायण राव की चयनित कविताएँ)/ 2013/ आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद/ पृ. 136

इच्छा

तेलुगु मूल : कालोजी नारायण राव 
अनुवाद : गुर्रमकोंडा नीरजा 

मेरी है एक इच्छा 
कि मेरी आवाज तुझे लिखे हुए खत के समान हो 
पढ़नेवालों को कविता लगे 
भावुक को मस्तिष्क के समान लगे
मेधावियों को हृदय-सा लगे
तार्किकों को करुणा उत्पन्न करने वाला लगे 
भोले भालों को खतरे की पहचान सा लगे
दाँत दिखानेवाले ओछे लोगों को गंभीर लगे 
गंभीरता ओढ़ने वालों को मुस्कान पैदा करनेवाला लगे
लुप्त हो रही दोस्ती को संजीवनी लगे 
जलती आँखों को ठंडक पहुँचाने वाला लगे
भटके हुए सांड को गले में बंधा गलगोड्डा-सा लगे 
हवा में फैलने वाली सुरभि-सा लगे 
दूध देने के लिए तैयार स्तनों की तरह लगे
माँ की आँखों की तरह लगे
किसान को रखवाले की तरह दिखे
निस्पृह हृदय को दिलासे की तरह लगे 
जीवन के लिए सहारा लगे
काल को पाश की तरह लगे
रेगिस्तान में नखलिस्तान की तरह लगे 
बर्फ को अंगीठी सा लगे 
राष्ट्र को नीति सा लगे 
शत्रु को भीति सा लगे 
सरहद को रक्षा सा लगे
शिबि के शरीर सा लगे
बलि के त्याग सा लगे
सैनिकों के प्राण सा लगे 
अमरों के हार सा लगे
वेदना के वेद सा लगे
गंगा को जीवन सा लगे 
जीवन को किनारा सा लगे 
पाताल को ऊपर खींचने वाला लगे 
स्वर्ग को भूमि पर उतारने वाला लगे 
धरती को धरती की तरह बनाए रखने वाला लगे 
मनुष्य को मनुष्य बनाने वाला लगे 
मेरी है एक इच्छा 


18.1.67

* मेरी आवाज (पद्मविभूषण डॉ. कालोजी नारायण राव की चयनित कविताएँ)/ 2013/ आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद/ पृ. 123

विडंबना


तेलुगु मूल : कालोजी नारायण राव 
अनुवाद : गुर्रमकोंडा नीरजा 


रोगों को देख डर रही हैं दवाइयाँ
अपमानजनक है गुंडों के हाथों पुलिस की पिटाई
टिकट चेकर कर रहे हैं सलाम बेटिकटों को
इनविजिलेटर दे रहे हैं प्रश्नपत्रों के समाधान
लिखे हुए उत्तर पर कितने अंक लुटाएँ - पूछ रहे हैं परीक्षक
कंडक्टर को देख डर रहे हैं पैसेंजर
गुंडों को देख डर रही है सरकार,
जनता खरीद रही है दैनंदिन सुरक्षा
स्थानीय बाहुबलियों से

1966

मेरी आवाज (पद्मविभूषण डॉ. कालोजी नारायण राव की चयनित कविताएँ)/ 2013/ आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद/ पृ. 126

एक और महाभारत

तेलुगु मूल : कालोजी नारायण राव 
अनुवाद : गुर्रमकोंडा नीरजा 

कन्याकुमारी का गृहप्रवेश ही
बुनियाद है कश्मीर की
समुद्र की बाष्प से
आरंभ होता है गंगा का जीवन.

साड़ी के आँचल में आग लगे तो
आपादमस्तक हाहाकार
जूड़े को पकड़कर खींचने से
पाँव अंगारों पर पड़ने की पीड़ा,
अत्याचारी के दृष्टि संकेत पर
शीलवती की आँखों में
शिव के त्रिनेत्र की ज्वाला

सैरंध्री जब जब अपमानित होगी
तब तब कीचक वध निश्चित है
द्रौपदी की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने पर
दुर्योधन की जंघा का टूटना निश्चित है
दुःशासन के वक्ष का चिरना निश्चित है

अनेकों बार कीचक का वध होने पर भी
दुःशासन का वक्ष चीरे जाने पर भी
दुर्योधन की जंघा टूटने पर भी
कर्ण का रथचक्र धरती में धँसने पर भी
कृष्ण के दूत बन जाने पर भी
एक और महाभारत निश्चित है

फिर से, फिर फिर से, कीचकों को सुदेष्णा का प्रोत्साहन
दुःशासनों को दुर्योधनों का आदेश
दुर्योधनों की दुराशा और दुरभिमान
कर्णों की प्रतिशोध की भावना
फिर से कृष्णों का दूत कर्म अनिवार्य है
और एक महाभारत निश्चित है.

फिर से, फिर फिर से, भीष्म-द्रोण का मौनव्रत
धृतराष्ट्र के अंधे प्रेम का व्यामोह
शकुनि मामा के पासे का गोरखधंधा
फिर से द्रौपदी का अपमान
फिर से महाभारत.

फिर से, फिर फिर से
सैंधवों को वरदान
आचार्यों का चक्रव्यूह
योद्धाओं का षड्यंत्र
फिर से अभिमन्यु की नृशंस हत्या
फिर से महाभारत

फिर से, फिर फिर से, कश्मीर पर दुराक्रमण
यू.एन.ओ. का समझौता
सीज़ फायर का समझौता
समझौतों का उल्लंघन
भारत के धर्मराजों की सहनशक्ति
माओ त्से तुंग का षड्यंत्र
अयूब दुर्योधन दुराशा दुरभिमान
भुट्टो दुःशासन का दुरावेश
फिर से दुर्योधनों की जंघा का टूटना निश्चित है
दुःशासनों का वक्ष चीरा जाना निश्चित है
फिर से कुरुक्षेत्र निश्चित है
एक और महाभारत निश्चित है.

* मेरी आवाज (पद्मविभूषण डॉ. कालोजी नारायण राव की चयनित कविताएँ)/ 2013/ आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद/ पृ. 117

पराभव निश्चित है

तेलुगु मूल : कालोजी नारायण राव 
अनुवाद : गुर्रमकोंडा नीरजा 

प्रभुता के मद में
राजनीतिज्ञ झूम रहे हैं
अधिकारी संपत्ति स्वाहा कर
सत्यवान बन घूम रहे हैं
जनहित के जीवन-आदर्श
उनके बोझ तले टूटकर कराह रहे हैं
जनतंत्र का परदा खिसक गया है
निरंकुशता ने फन फैला दिया है,
फिर भी नित्य पूजा चल रही है
नागपंचमी जैसी !
सत्यवान विषपान करके
तत्वों का मंथन कर रहे हैं,
पराभव निश्चित है !
पाप का मद पक गया है
सत्तालोलुप राजनीति बन गई है
मदांध कसरत.
जुड़वाँ पिशाचों के दत्तक
चाल पर चाल चलकर
एक दूसरे को गिरा रहे हैं
लूट के माल के लिए.
काम के भूत की सोहबत;
पराभव निश्चित है !

(1966)

* मेरी आवाज (पद्मविभूषण डॉ. कालोजी नारायण राव की चयनित कविताएँ)/ 2013/ आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद/ पृ. 109