समकालीन सरोकार और साहित्य संपादक : ऋषभ देव शर्मा और गुर्रमकोंडा नीरजा अतुल्य पब्लिकेशंस, सी -5 /एफ - 2, ईस्ट ज्योति नगर, दिल्ली - 110 093 प्रथम संस्करण : 2017 मूल्य : रु 500 ISBN : 978-93-82553-66-3 |
दक्षिण भारत में किए जा रहे हिंदी भाषा और साहित्य विषयक शोध लेखन की एक छवि प्रस्तुत करने के लिए पिछले दो वर्षों में हमने दो पुस्तकें ‘संकल्पना’ (2015) तथा ‘अन्वेषी’ (2016) हिंदी पाठकों को समर्पित की हैं। ‘समकालीन सरोकार और साहित्य’ इस शृंखला की तीसरी कड़ी है। विशेष रूप से शोधार्थियों की माँग पर इसमें शोध विमर्श संबंधी व्यावहारिक जानकारियाँ शामिल की गई हैं। साथ ही इसका क्षेत्र अब दक्षिण भारत तक सीमित नहीं है।
हिंदी साहित्य और भाषा विषयक अनुसंधान के क्षेत्र में शोध पत्र और शोधप्रबंध के लेखन में मानकता की दृष्टि से प्रायः बड़ी अराजकता देखने को मिलती है। इसका एक बड़ा कारण शोध लेखन के संबंध में स्वीकृत अंतरराष्ट्रीय प्रारूपों के प्रति उपेक्षा भाव है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए शोध संबंधी मानक लेखन के लिए व्यापक रूप से स्वीकृत दो प्रारूपों की हिंदी के संदर्भ में प्रस्तुति इस पुस्तक को विशिष्ट बनाती है। ए.पी.ए. और एम.एल.ए. प्रणालियों की यह जानकारी हिंदी में पहली बार इस रूप में प्रस्तुत की जा रही है जो शोधार्थियों और शोध निर्देशकों के लिए समान रूप से उपयोगी है। इसके अलावा हिंदी में शोध की संभावनाओं एवं सकारात्मक मनोविज्ञान जैसी नई दिशाओं का उद्घाटन करने वाली सामग्री भी अत्यंत उपयोगी है।
यह पुस्तक समसामयिक अद्यतन हिंदी शोध में लोकप्रियता प्राप्त कर रहे दलित एवं स्त्री आदि हाशिया विमर्शों के आलोक में कविता, उपन्यास और कहानी जैसी विधाओं का पुनर्पाठ तो प्रस्तुत करती ही है, साथ ही भाषा विमर्श और मीडिया विमर्श के नए आयामों को भी प्रस्तुत करती है।
विश्वास है कि भाषा और साहित्य संबंधी अनुसंधानकर्ताओं और सुधी पाठकों को हमारा यह प्रयास पसंद आएगा।
पुस्तक के सुरुचिपूर्ण मुद्रण एवं प्रकाशन के लिए हम अतुल्य पब्लिकेशन्स के श्री अतुल माहेश्वरी और श्री आदित्य माहेश्वरी के प्रति विशेष रूप से आभारी हैं। इस पूरी योजना में सहयोग के लिए श्री वी. कृष्णाराव का हार्दिक धन्यवाद।
1 मई, 2017 - ऋषभ देव शर्मा
गुर्रमकोंडा नीरजा
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