समीक्षित कृति : ॐ आदेश्वराय नमः
(आचार्य पी.आदेश्वर राव जी का अभिनंदन ग्रंथ)
संपादक : आचार्य यार्लगड्डा लक्ष्मीप्रसाद
प्रकाशक : माया प्रकशन, कानपुर
पृष्ठ : 250, मूल्य : 625 रुपये
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प्रो.पी.आदेश्वर राव (ज. 20 दिसंबर, 1936) दक्षिण भारत के उन वरिष्ठ हिंदी साहित्यकारों में अग्रणी हैं जिन्होंने हिंदी की भाषिक संस्कृति को प्रयाग और वाराणसी जैसे हिंदी के गढ़ में रहकर आत्मसात किया। यही कारण है कि वे सार्वदेशिक और अखिल भारतीय हिंदी के प्रतीक और उन्नायक दोनों है। उन्होंने 1961 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदी में एमए की उपाधि अर्जित की और 1965 में श्रीवेंकटेश्वर विश्वविद्यालय से पीएचडी। 1964 में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के उच्च शिक्षा और शोध संस्थान की स्थापना के समय वे चेन्नै में प्राध्यापक के रूप में नियुक्त हुए। बाद में आंध्र विश्वविद्यालय के अतिरिक्त बेल्जियम के स्टेट विश्वविद्यालय में आचार्य के रूप में हिंदी का अध्यापन और शोध निर्देशन किया। 85 वर्षीय आचार्य आदेश्वर राव आज भी निरंतर हिंदी में अनुवाद और सृजनात्मक लेखन में व्यस्त रहते हैं। यदि यह कहा जाए कि अपने मौलिक साहित्य सृजन द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर पहचान बनाने वाले दक्षिण भारत के गिने चुने हिंदीतरभाषी हिंदी साहित्यकारों में उनका नाम पहली पंक्ति में आता है, तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। सच तो यह है कि अपनी विद्वत्ता और सृजनशीलता के बल पर उन्होंने जो निजी पहचान अर्जित की है, वह ‘हिंदीतर’ जैसे किसी रेजीमेंटेशन की मोहताज नहीं। वे हिंदी, तेलुगु और अंग्रेजी साहित्य का चलता फिरता विश्वकोश हैं और अपनी स्मृति तथा वाग्मिता में अद्वितीय हैं।
ऐसे अप्रतिम आचार्य और अतुल्य हिंदी-सेवी के सम्मान में प्रकाशित अभिनंदन ग्रंथ का शीर्षक "ॐ आदेश्वराय नमः" पूर्णतः सटीक है। विश्व भर में अपनी हिंदी-चेतना के लिए समादृत आचार्य यार्लगड्डा लक्ष्मीप्रसाद के संपादकत्व में प्रकाशित इस ग्रंथ से आचार्य आदेश्वर राव के व्यक्तित्व और कृतित्व के अनेक संस्मरणीय, अविस्मरणीय और अछूते पहलुओं का पता चलता है। संपादक का यह कथन अत्यंत विचारणीय है कि कवि के रूप में प्रो.आदेश्वर राव हिंदी के छायावादी कवि चतुष्टय के समकक्ष प्रतिभा से संपन्न है। अंतराल, धार के आरपार और वातायन ये प्रेम सौध के – कवि आदेश्वर राव की छायावादी काव्य साधना के प्रतीक हैं तो तुलनात्मक साहित्य तथा अनुवाद के क्षेत्र में किए गए उनके कार्य उनकी गहन समीक्षादृष्टि और भावप्रवणता के मानदंड हैं। हिंदी जगत ने उनकी इस प्रतिभा और साधना का लोहा माना और खूब स्नेह लुटाया, इसमें भी कोई शक नहीं। साहित्य अकादमी के दो पुरस्कार और गंगाशरण सिंह पुरस्कार सहित आपको इक्कीस राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हैं।
"ॐ आदेश्वराय नमः (आचार्य पी. आदेश्वर राव का अभिनंदन ग्रंथ)" बड़े आकार का 250 पृष्ठ का ग्रंथ है। इसमें जहाँ एक ओर हिंदी जगत के प्रतिष्ठित विद्वानों और साहित्यकारों ने अभिनंदनीय व्यक्तित्व के प्रति स्नेह और श्रद्धा व्यक्त की है, वहीं दूसरी ओर तटस्थ भाव से उनके आलोचनाकर्म और सृजनधर्म का मूल्यांकन भी किया है। इनमें प्रो.शिवरामी रेड्डी, प्रो.ए.अरविंदाक्षन, प्रो.गिरीश्वर मिश्र, प्रो.ऋषभदेव शर्मा, प्रो.एम.वेंकटेश्वर, प्रो.निर्मला एस. मौर्य और प्रो.एस.ए. सूर्यनारायण वर्मा आदि प्रतिष्ठित नाम सम्मिलित हैं। इनके अलावा डॉ. सी.जयशंकर बाबू से लेकर डॉ. अनुपमा तिवारी तक अपेक्षाकृत नई पीढ़ी के लेखकों ने भी मुक्त भाव से गुरुओं के गुरु आदेश्वर राव के प्रति अपना सम्मान व्यक्त किया है।
इस अभिनंदन ग्रंथ में सम्मिलित आचार्य पी.आदेश्वर राव का आत्मकथ्य ‘मेरी कविताओं की रचना प्रक्रिया’ बार-बार पढ़ने और गुनने योग्य है। उन्होंने इसे अपना सौभाग्य माना है कि हिंदी और तेलुगु के दिग्गज कवि आलूरि बैरागी चौधरी तथा शीर्षस्थ साहित्यकार आचार्य डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी ने उन्हें भाषा, साहित्य, सृजन और समीक्षा के संस्कार प्रदान किए। ग्रंथ के एक खंड में आदेश्वर राव के कुछ प्रतिनिधि गीत भी उद्धृत किए गए हैं। अगर यह खंड कुछ और बड़ा होता तो कुछ और रसमय हो जाता! अस्तु; फिलहाल इस चर्चा को उनकी इन पंक्तियों के साथ विराम दिया जा सकता है –
"पंख लगा दो प्राणों में।
उड़ जाऊँ मैं मुक्त गगन में,
लेकर तुझ को बाहों में॥
भय से मत हो जाओ कंपित
नय से मत हो जाओ पुलकित
मुझ से मत हो जाओ शंकित
विचरेंगे मेघों के वन में।
पंख लगा दो प्राणों में॥"
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