शनिवार, 31 अक्टूबर 2015

(शुभाशंसा : प्रो. ऋषभदेव शर्मा) 'अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परख'

अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परख 

गुर्रमकोंडा नीरजा 
2015
वाणी प्रकाशन
मूल्य : रु. 495
ISBN : 978-93-5229-249-3
पृष्ठ 304
                                      शुभाशंसा

हमारी परंपरा ने पंचभूतों की उत्पत्ति चिदाकाश से मानी है जिसमें नाद, शब्द, वाक् या भाषा व्याप्त है. इसीलिए हमारा सारा चिंतन भाषामूलक है. वाक् और अर्थ के संबंधों को समझने के लिए ही भाषाविज्ञान और काव्यशास्त्र विकसित हुए हैं. ये दोनों एक दूसरे को प्रभावित तो करते ही हैं, प्रतिच्छादित भी करते हैं. इन दोनों में भी भाषाविज्ञान अपेक्षाकृत अधिक वैज्ञानिक है और अपनी वैज्ञानिक विश्लेषण प्रक्रिया के कारण अनुप्रयोग की अनंत संभावनाएँ भी प्रस्तुत करता है. अनुप्रयोग से जुड़कर भाषाविज्ञान के सिद्धांत विभिन्न ज्ञान शाखाओं का विस्तार करते हुए नित्य नए क्षितिजों का उद्घाटन कर रहे हैं. इससे अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के कई क्षेत्र सामने आए हैं. भाषा शिक्षण, अनुवाद विज्ञान, शैलीविज्ञान, समाजभाषाविज्ञान, मनोभाषाविज्ञान, संचार अभियांत्रिकी, कंप्यूटर विज्ञान आदि क्षेत्रों में भाषाविज्ञान के अनुप्रयोग ने नई संभावनाओं को उजागर किया है. इसलिए अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की अलग अलग क्षेत्रों में व्यावहारिक परख भी आवश्यक हो गई है. डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की यह पुस्तक इसी दृष्टिकोण से लिखी गई है. 

लेखिका डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा को दक्षिण भारत में हिंदी के अध्ययन-अध्यापन, पठन-पाठन और तत्संबंधी शोधकार्य का अच्छा अनुभव है. वे समाजभाषिकी, अनुवाद, भाषा शिक्षण, व्यतिरेकी विश्लेषण, संचार, पत्रकारिता और साहित्यालोचन से व्यावहारिक रूप से प्रत्यक्षतः जुड़ी हुई हैं और इन विषयों पर प्रायः सोचती, पढ़ती और लिखती रहती हैं. यह पुस्तक उनके भाषा-साहित्य के स्वाध्याय और साधना का प्रीतिकर प्रतिफलन है. लेखिका ने अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के विभिन्न मुद्दों को आत्मसात करके उन्हें सोदाहरण सरल एवं सटीक भाषाशैली में इस पुस्तक में पिरोया है. 

सात खंडों वाली इस पुस्तक की प्रस्तुति पूर्णतः तर्कसंगत और क्रमिक विकास की दृष्टि से सोपानबद्ध है. ‘अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान’ खंड में भाषा अध्ययन की दृष्टियों पर चर्चा करते हुए अनुप्रयोग के कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर प्रकाश डाला गया है. इस संक्षिप्त पीठिका के साथ अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की व्यावहारिक परख की ओर अगले छह खंडों में क्रमशः प्रस्थान किया गया है. इस प्रस्थान के बिंदु हैं – भाषा शिक्षण, अनुवाद विमर्श, साहित्य पाठ विमर्श या शैलीवैज्ञानिक विश्लेषण, प्रयोजनमूलक भाषा विमर्श, समाजभाषिक विमर्श और भाषाचिंतन. 

इसमें संदेह नहीं कि यह पुस्तक अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के अनेक आयामों की व्यावहारिकता को उद्घाटित करने के साथ साथ उनका परीक्षण एवं मूल्यांकन भी करती है. इस दृष्टि से डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की यह कृति भाषा और साहित्य, दोनों ही के जिज्ञासु पाठकों और शिक्षकों के लिए अत्यंत उपादेय सिद्ध होगी तथा नई पीढ़ी को अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की ओर आकृष्ट करने में भी सफल होगी, ऐसा मेरा विश्वास है. 

शुभकामनाओं सहित
25 अप्रैल, 2015                                                                                                  -  ऋषभ देव शर्मा

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