मंगलवार, 21 दिसंबर 2021

'महाबली' : संतन कहा सीकरी सों काम




यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि 2021 का प्रतिष्ठित व्यास सम्मान असग़र वजाहत (5 जुलाई, 1946) को उनके नाटक ‘महाबली’ (2019) के लिए प्रदान किया जा रहा है। ‘स्रवंति’ परिवार की ओर से उन्हें हार्दिक अभिनंदन! स्मरणीय है कि वे हिंदी अकादमी दिल्ली के श्रेष्ठ नाटककार सम्मान (2009-10), संगीत नाटक अकादमी अवार्ड (2014), दिल्ली हिंदी अकादमी के सर्वोच्च शलाका सम्मान (2016) से अलंकृत हो चुके हैं।

असग़र वजाहत सुप्रसिद्ध नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार और व्यंग्यकार हैं। अँधेरे से (1977), दिल्ली पहुँचना है (1983), स्विमिंग पूल (1990), सब कहाँ कुछ (1991), मैं हिंदू हूँ (2006), डेमोक्रेसिया (2010) आदि उनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं। मुश्किल काम (2010) और भीड़तंत्र (2018) लघुकथा संग्रह हैं। 10 प्रतिनिधि कहानियाँ, मेरी प्रिय कहानियाँ, पिचासी कहानियाँ और असग़र वजाहत : श्रेष्ठ कहानियाँ - उनकी चयनित कहानियों के संग्रह हैं। फ़िरंगी लौट आये, वीरगति (1981), इन्ना की आवाज़ (1986), समिधा, जिस लाहौर नहीं देख्या ओ जम्याइ नई (1991), गोडसे@गांधी.कॉम (2012), पाकिटमार रंगमंडल आदि उनके प्रसिद्ध नाटक हैं। सबसे सस्ता गोश्त (2015) उनके 14 नुक्कड़ नाटकों का संग्रह है। सात आसमान (1996), पहर-दोपहर, कैसी आगी लगाई (2006), बरखा रचाई (2011), धरा अँकुराई (2014) उनके उपन्यास हैं। इनके अतिरिक्त उन्होंने आलोचना, धारावाहिक, यात्रावृत्तांत और पटकथाएँ भी लिखी हैं।

असग़र वजाहत ने लेखन की शुरूआत कहानी के माध्यम से की। इस पर प्रकाश डालते हुए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा है कि ‘सबसे पहले कहानी लिखी। उर्दू में लिखी पहली कहानी ‘वो बिक गई’ शहरे तमन्ना अख़बार में 1962-63 में अलीगढ़ में छपी थी।’ उनकी मान्यता है कि साहित्य को सार्थक दिशा नई चुनौतियों से मिलती है। रंगों से संवेदना प्रकट करना यदि कला है, तो शब्दों से संवेदना की अभिव्यक्ति लेखन है। उन्होंने इसी लेखन को अपना शस्त्र बनाया। अपने लेखन के संबंध उन्होंने कहा है, ‘अभिव्यक्ति या अपनी बात कहने और जो कुछ हमारे आस-पास हो रहा है इसका एक तरह से विरोध करने का जो कलात्मक जीवन हो सकता है या लोगों के बदलने और लोगों के अंदर कुछ इच्छाएँ जगाने की कोशिश की जा सकती है, उसके लिए अलग-अलग तरीके अपनाते हैं। इसके लिए मैंने लेखन को अपनाया।’ साहित्य में एक दौर ऐसा भी आया, जब अपशब्दों को यथार्थ की पहचान माना जाने लगा था। लेकिन असग़र वजाहत अपशब्दों के प्रयोग का यह कहकर खंडन करते हैं कि चटखारे के लिए अपशब्दों के प्रयोग कहानी को कमज़ोर व भद्दा बनाते हैं। अतः ऐसे प्रयोगों से साहित्यकार को बचना चाहिए।

असग़र वजाहत एक सफल नाटककार हैं। उन्हें यह पता है कि नाटक के माध्यम से न ही पैसा कमाया जा सकता है और न ही किसी का समर्थन, फिर भी उन्होंने इस विधा को सशक्त बनाया। उनका कहना है, ‘मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि नाटक में न पैसा है, न प्रसिद्धि और न ही कोई सरकारी समर्थन या सहयोग। फिर भी नाटक लिख रहा हूँ। सिर्फ आत्माभिव्यक्ति और आत्म-संतुष्टि के लिए।’ आत्माभिव्यक्ति और आत्म-संतुष्टि के लिए लिखे गए नाटक ‘महाबली’ के कारण उन्हें आज व्यास सम्मान से पुरस्कृत किया जा रहा है।

‘महाबली’ नाटक के बारे में कहें तो यह नाटक सत्ता और कला के बीच के संबंधों पर आधारित है। इसमें मुगल सम्राट अकबर और तुलसीदास की बातचीत है जो सत्ता और कला के संबंधों पर विस्तृत प्रकाश डालती है। इस नाटक की भूमिका में स्वयं असग़र वजाहत ने इस बात की पुष्टि की है कि ‘सम्राट अकबर को अपने दरबार में प्रतिभाओं को जमा करने का शौक था। वह आज भी अपने नौ रत्नों के लिए जाना जाता है। नौ रत्नों के अतिरिक्त उसके दरबार में अलग-अलग प्रकार के विद्वान, धर्मशास्त्री, कलाविद् और हर क्षेत्र की प्रतिभाएँ दिखाई देती हैं। ऐसी स्थिति में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि सम्राट अकबर ने महाकवि तुलसीदास को अपने दरबार में बुलाने की कोशिश की होगी। इतिहास में इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता। लेकिन इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। नाटक में यह दर्शाया गया है कि सम्राट अकबार ने तुलसीदास को सीकरी बुलाया था और वे सीकरी नहीं गए। इस घटना के माध्यम से तुलसीदास और अकबर ही नहीं, बल्कि राजसत्ता और कला के पारस्परिक द्वंद्व को उभारा गया है।’

इतिहास में इसका कोई प्रमाण नहीं कि तुलसीदास और सम्राट अकबर दोनों की भेंट हुई थी। लेकिन असग़र वजाहत यह मानते हैं कि दोनों का मिलना जरूरी है। उन्होंने अपनी कल्पना को विस्तार दिया और दोनों के बीच संवाद स्थापित किया। और इस संवाद के माध्यम से उन्होंने लोकतंत्रीकरण, राजसत्ता और कला के संबंध में गहन विचार-विमर्श प्रस्तुत किए। वे नई पीढ़ी के रचनाकारों से यह अपील करते हैं कि ‘नई पीढ़ी के लेखकों को वही लिखना चाहिए जो वे पूरी तरह अनुभव करते हों। जिस पर उनका विश्वास हो। जो उन्हें दिल से निकली हुई बात लगती हो। नए लेखकों को किसी तरह का विशेष आग्रह लेकर नहीं चलना चाहिए।’

पुनश्च : दक्षिण भारत में असग़र वजाहत शोधार्थियों और शोध निर्देशकों में अति लोकप्रिय हस्ताक्षर हैं। उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के हैदराबाद केंद्र में ‘असग़र वजाहत के कहानी संग्रह ‘डेमोक्रेसिया’ में समकालीन बोध और व्यंग्य’ विषय पर मेरे ही निर्देशन में राहुल ने 2014 में लघुशोध प्रबंध प्रस्तुत किया था।

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