शुभकामना
डॉ गुर्रमकोंडा नीरजा द्वारा रचित ‘तेलुगु साहित्य : एक अंतर्यात्रा’ तेलुगु रचनाकारों की कालजयी रचनाओं की आलोचनात्मक प्रस्तुति है। भारतीय साहित्य में तेलुगु साहित्य का प्रमुख स्थान है। तेलुगु भाषा में प्राचीन, मध्य और आधुनिक काल में रचित भक्ति साहित्य और गद्य की सभी विधाएँ विषय वस्तु और कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए भारतीय साहित्य में अपनी विशिष्ट पहचान रखती हैं। हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के ही समकक्ष तेलुगु साहित्य की सभी विधाओं में तेलुगु समाज की सांस्कृतिकता का चित्रण सामयिक संदर्भ में हुआ है। लेखिका ने प्रस्तुत ग्रंथ में विवेचित तेलुगु साहित्य की गद्य-पद्य विधाओं में रचित महत्वपूर्ण लेखकों की रचनाओं का अध्ययन मूल रूप में किया है। लेखिका स्वयं तेलुगुभाषी हैं, उन्होंने अपने तेलुगु भाषा ज्ञान का सदुपयोग करते हुए तेलुगु साहित्य का अध्ययन मौलिक रूप में किया है, जिसका फलागम उनकी यह रचना है। इस ग्रंथ में उनके द्वारा रचित चिंतनशील शोधप्रधान लेख संकलित हैं जो कि वैचारिक निबंध शैली में प्रस्तुत किए गए हैं। इन निबंधों में तेलुगु साहित्य के प्रथम काव्य ‘आमुक्तमाल्यदा’ के रचनाकार महाराज कृष्णदेवराय, युगप्रवर्तक कवि विश्वनाथ सत्यनारायण, तेलुगु नवजागरण के सुधारवादी कवि गुरजाड़ा अप्पाराव, आधुनिक प्रगतिशील क्रांतिकारी कवि श्रीश्री, धरतीपुत्र गुंटूर शेषेंद्र शर्मा, प्रेम और सौंदर्य के भावप्रधान कवि सी. नारायण रेड्डी, दिगंबर कवि ज्वालामुखी, आज के प्रयोगधर्मी कवि एन. गोपि, सर्वहारा जगत के आंचलिक कवि कालोजी नारायण राव आदि की रचनाओं का परिचय उनके साहित्यिक व्यक्तित्व की विशेषताओं सहित समीक्षात्मक शैली में लेखिका ने प्रस्तुत किया है। इसी प्रकार तेलुगु के कथाकारों में गोपीचंद, उन्नव लक्ष्मीनारायण, अडिवि बापुराज, रावूरी भारद्वाज जैसे महान उपन्यासकारों की रचनाओं से हिंदी जगत को परिचित कराने में लेखिका सफल हुई हैं। समकालीन तेलुगु साहित्य में विविध विमर्शों की पड़ताल भी लेखिका वर्तमान संदर्भों में करती हैं। तेलुगु साहित्य में दलित विमर्श, स्त्री विमर्श और अल्पसंख्यक विमर्श की स्थितियों पर लेखिका ने शोध दृष्टि से विचार किया है।
भारतीय साहित्य के व्यापक स्वरूप को समझने के लिए तेलुगु संस्कृति की विशेषताओं को जानना और समझना आवश्यक है। प्रस्तुत ग्रंथ भारतीय साहित्य के अध्येताओं के लिए उपयोगी है। हिंदी जगत को तेलुगु साहित्य की समृद्ध परंपरा से जोड़ने में लेखिका के प्रस्तुत प्रयास स्तुत्य हैं। हिंदी और तेलुगु भाषाओं के मध्य की दूरी को तेलुगु साहित्य की इस चिंतनप्रधान प्रस्तुति से कम किया जा सकता है। लेखिका ने प्रस्तुत निबंधों में विश्लेषणात्मक पद्धति के द्वारा अपनी समीक्षात्मक दृष्टि को स्पष्ट किया है। निश्चय ही, प्रस्तुत ग्रंथ तेलुगु में रचित प्रतिनिधि साहित्य की विशेषताओं को हिंदी में व्याख्यायित करने में सफल हुआ है। इस श्रमसाध्य सारस्वत कार्य के लिए डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा बधाई की पात्र हैं। उनकी यह शोधपरक प्रस्तुति उन्हें हिंदी की तेलुगु साहित्य की मर्मज्ञ विदुषी के रूप में स्थापित करेगी। मेरा विश्वास है कि यह ग्रंथ हिंदी शोध एवं समीक्षा जगत में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करेगा और समादृत होगा। लेखिका को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ।
-प्रो. एम. वेंकटेश्वर
पूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष
हिंदी एवं भारत अध्ययन विभाग
अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद
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