बुधवार, 18 जुलाई 2012

पुनश्चर्या पाठ्यक्रम का दसवाँ दिन


17/07/2012 की सुर्खियाँ

· 'प्रदर्शन कलाएँ और कला का मंचन' पर आर्ट्स कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर प्रो.महेश आनंद का व्याख्यान 

पुनश्चर्या पाठ्यक्रम का दसवाँ दिन.

डॉ.महेश आनंद के व्याख्यान का सार संक्षेप 


'प्रदर्शन कलाएँ और कला का मंचन' पर व्याख्यान देते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय, आर्ट्स कॉलेज के प्रोफेसर प्रो.महेश आनंद ने कहा कि 'भारत के हर प्रदेश में उत्सवधर्मिता है. हिंदुस्तान की परंपराओं में जिस तरह सम्मिश्रण प्राप्त होता है उसी तरह नाटक में भी कलाओं का सम्मिश्रण पाया जाता है. कूडीयाट्टम (केरल), करागाट्टम (तमिलनाडु), हरिकथा (आंध्र प्रदेश), स्वांग, रासलीला (उत्तरप्रदेश), पंडवानी (छत्तीसगढ़), ख्याल (राजस्थान), तमाशा, नुक्कड़ नाटक आदि अनेक लोक कलाएँ भारत में देखी जा सकती हैं. ये सभी पारंपरिक शैलियाँ हैं. 

कूडीयाट्टम केरल का नाट्य रूप है. यह संस्कृत नाटकों का पुराना रूप है. यदि संस्कृत नाटकों को समझना है तो इसे अवश्य देखना होगा. यह मंदिर कला है. इस कला को केरल के चाक्यार और नंपियार समुदाय के लोग प्रस्तुत करते हैं. 

प्रमुख रूप से ये कलाएँ भारत की मंदिर कलाएँ हैं. मंदिर के मंडपों में हमें लोक कलाओं और नृत्यों से संबंधित प्रतिमाएं, मुद्राएं प्राप्त होंगी. मदुरै मीनाक्षी मंदिर में सहस्र स्तंभ मंडप है. चिदंबरम नटराज मंदिर में नटराज की 108 भंगिमाएं अंकित हैं. वरंगल में सहस्र स्तंभ का मंदिर है. एल्लोरा, अजंता, कोणार्क आदि को भी देख सकते हैं. इन मंदिरों में हमारी प्राचीन कला और संस्कृति को देखा जा सकता है. इन्हीं से हमारी लोक कालाएँ उद्भूत हैं. परंपरा के साथ साथ हमें आज की आधुनिक तकनीकों को भी नाटक और लोक कलाओं में प्रयोग करना चाहिए. हमारी संस्कृति ही हमारी पहचान है.'

बाएँ से - स्नेहलता शर्मा, जी,नीरजा, महेश आनंद और करनसिंह ऊटवाल