शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

पुनश्चर्या पाठ्यक्रम का बारहवाँ दिन


19/07/2012 की सुर्खियाँ

· 'संश्लेषण का रंगमंच और कहानी का मंचन' पर दिल्ली आर्ट्स कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर प्रो.महेश आनंद का व्याख्यान 

· 'सृजनात्मक नाटक' पर 'रंगधारा' के निर्देशक प्रो.भास्कर शेवालकर का व्याख्यान 

पुनश्चर्या पाठ्यक्रम का बारहवाँ दिन.

प्रो.महेश आनंद के व्याख्यान का सार संक्षेप 

'कलाएँ हमारे जीवन और संस्कृति का अहम हिस्सा है. विभिन्न कलाएँ एक-दूसरे से संबद्ध हैं. कहानी के रंगमंच ने कई कल्पनाशील निर्देशकों के कारण अपनी एक पहचान बनाई है. एक पाठक जब कहानी को पढ़ता है या सुनता है, वह उसी समय कहानी के पाठ के समानांतर कहानी को दृश्य के रूप में देखता है. अभिनेता के रूप में मंच पर एक दूसरा लेखक प्रस्तुत हो जाता है. सादगी भरी परिकल्पना वस्तुतः कहानी मंचन की विशेषता है. मंचन करते समय संवादों को पेश करना आसान है लेकिन वर्णन के दृश्यों को पेश करना कठिन है. इसलिए नाट्यरूपांतरण में वर्णन को छोड़ दिया जाता है लेकिन कहानी के रंगमंच में वर्णन को नेरेटर नेरेट करता है. कहानी में निहित व्यंग्यार्थ को मंचित करना चुनौती का कार्य है.'

प्रो.भास्कर शेवालकर के व्याख्यान का सार संक्षेप 

'सृजनात्मक नाटक' पर व्याख्यान देते हुए 'रंगधारा' के निर्देशक प्रो.भास्कर शेवालकर ने कहा कि 'नाटक महज मनोरंजन के लिए नहीं होता है. वह संप्रेषण का सशक्त माध्यम है तथा सभी कलाओं का सम्मिश्रण. सृजनात्मक नाटक (Creative Drama) पारंपरिक नाटक (Formal Drama) से भिन्न है. सृजनात्मक नाटक के लिए न ही किसी तरह के विशेष मंच की जरूरत है और न ही विशेष वेश-भूषा और मेकअप की और न ही बना बनाया स्क्रिप्ट की. इसके लिए सृजनात्मक व्यक्ति की जरूरत है. एक ऐसा व्यक्ति जो बच्चों की भीतरी प्रतिभा को सामने ला सके.' (Creative drama is especially good for children who are creative but do not get an opportunity to express themselves. Children often like to perform. They will have much more understanding power, self-confidence, better control on their bodies, clear dialogue utterance, grasping power. We can say that Creative Drama is the preparation for Formal Drama and those who are trained in this will bring the Formal Drama to the same imaginative level. By the Creative Drama both the action and the dialogue are improvised.)

1 टिप्पणी:

बलविंदर ने कहा…

प्रो.महेश आनंद व् प्रो. भास्कर शेवालकर जी के व्याख्यानों का इतनी खूबसूरती से जो सार डॉ. जी.नीरजा ने प्रस्तुत किया हैं उससे तो पुनश्चर्या कार्यकर्म में न रहते हुए भी बहुत सी बातो को समझने और नाटक के विस्तृत आयाम को जानने का अवसर मिल रहा हैं जिसके लिए डॉ.जी नीरजा को धन्यवाद् .