सोमवार, 23 जुलाई 2012

पुनश्चर्या पाठ्यक्रम का तेरहवाँ दिन

20/07/2012 की सुर्खियाँ


· 'हिंदी कवियों के सिने गीत : वस्तु और शिल्प' पर हैदराबाद के गीतकार डॉ.डी.के.गोयल का व्याख्यान 

· 'सृजनात्मक नाटक' पर श्री डी.श्रीनिवास का व्याख्यान 

· नेशनल पुलिस अकादमी, हैदराबाद के निदेशक श्री विकास नारायण राय का व्याख्यान 

पुनश्चर्या पाठ्यक्रम का तेरहवाँ दिन.

डॉ.डी.के.गोयल के व्याख्यान का सार संक्षेप 

'हिंदी कवियों के सिने गीत : वस्तु और शिल्प' पर व्याख्यान देते हुए डॉ.डी.के.गोयल ने कहा कि 'दिल के दर्द से, दिमाग की गर्द से/ आहे सर्द से बनता है गीत./ भावना की चाल से, वर्तमान के हाल से/ शब्दों के जाल में फँसता है गीत./ बिंबों की साया ले, प्रतीकों की माया ले/ अलंकारों की काया में सजता है गीत/ नए नए छंदों में, गोरख धंधों में/ अकविता के फंदों में, कसता है गीत.' 

हिंदी सिनेमा लगभग गीति नाट्य का ही एक विकसित रूप है. हिंदी सिने गीतकार प्रमुख रूप से तीन प्रकार के हैं – (1) मूलतः हिंदी कवि, (2) मूलतः हिंदी गीतकार और (3) उर्दू शायर. सिने गीत भी साहित्य का ही हिस्सा है. ध्यान दिया जाए तो यह स्पष्ट होता है कि सिने गीतों में तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशी शब्दों की बहुलता है. सिचुएशन के अनुरूप गीत लिखे जाते हैं. कुछ गीतों में ध्वन्यात्मक शब्दों का भी प्रयोग होता है. आजकल तो सिने गीतों के लिए कोई शब्द निरर्थक नहीं हैं. इन गीतों में बिंब और प्रतीकों का सुंदर प्रयोग पाया जाता है. काम, प्रेम, विवाह, सौंदर्य, विरह, संयोग, वियोग, दुःख, सुख, संदेह, ईर्ष्या, द्वेष, प्रथम दर्शन, राजनीति, प्रकृति, मानवीय संबंध, माँ, जुआ, शराब, होली, दीवाली, सामाजिक चेतना, देश प्रेम आदि पर गीत हैं. एकल गीत, युगल गीत, समूह गीत, लोरी, पार्श्व गीत, संयुगल गीत, प्रश्नोत्तर शैली में गीत, फेरीवालों की शैली में गीत, वार्ता शैली में गीत, शीर्षक गीत, मुहावरों की शैली में गीत, लोकगीत, दार्शनिक गीत आदि अनेक प्रकार की शैलियों में सिने गीत लिखे जाते हैं.'

डॉ.डी.के.गोयल ने व्यावहारिक स्तर पर पूरी क्लास को तेलुगु सिनेमा 'श्री रामदास' का प्रसिद्ध गीत 'अंता रामा मैयम, जगमंता रामा मैयम...' सुनाकर सबसे यह कहा कि उसके आधार पर नया गीत लिखें. 


श्री डी.श्रीनिवास के व्याख्यान का सार संक्षेप 

'सृजनात्मक नाटक' पर व्याख्यान देते हुए 'जनपदम' के निर्देशक श्री श्रीनिवास देंचनाला ने कहा कि सृजनात्मक नाटक के लिए स्पेस, अभिनेता और दर्शक प्रमुख अंग है. इनके बिना नाटक का मंचन असंभव है.' मास्टर जी ने तो क्लास रूम को ही थियेटर में बदल दिया! उन्होंने प्रतिभागियों के तीन समूह बनाकर कहा कि पांच मिनट के समय में खुद एक थीम बनाकर नाटक प्रदर्शन करें जिसका अंत ट्रैजिक हो. समूह एक ने मध्यवर्गीय परिवार की समस्या को दर्शाया तो समूह दो ने अस्पतालों में गरीब मरीजों की समस्या को. समूह तीन ने पुलिस व्यवस्था को दर्शाया. सब प्रतिभागी पहले तो अपने आप में यह सोच रहे थे कि यह क्या हो रहा है और आपस में इशारों से बतिया रहे थे. कुछ लोग नाराज भी हो गए. पर अंत में सब प्रतिभागी खुश थे क्योंकि सबको मौक़ा मिला है अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने के लिए. 


श्री विकास नारायण राय के व्याख्यान का सार संक्षेप 

हैदराबाद नेशनल अकादमी के निदेशक डी जी पी श्री विकास नारायण राय ने प्रतिभागियों से यह कहा कि साहित्य से दोस्ती करना अनिवार्य है चूंकि वह हर एक के जीवन का हिस्सा है. उन्होंने यह स्पष्ट किया कि नाटक लिखना और मंच पर उसे प्रदर्शित करना आसान नहीं है. इस संबंध में उन्होंने 2007 में हरियाणा पुलिस अकादमी के लिए उनके द्वारा रचित '1857 : India's War Of Independence' शीर्षक नाटक के उदाहरण द्वारा ध्वनि एवं प्रकाश के माध्यम से गीतसंगीतमय नाटक की प्रक्रिया को समझाया और अपने अनुभवों को बांटा . 

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